जयंती विशेष: त्यागमल से गुरु तेग बहादुर तक का सफर

राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए सिख धर्म गुरुओं द्वारा दिये गये बलिदान को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है। भारत जब मुगलिया जंजीर में जकड़ा हुआ था तब सिख धर्म गुरुओं ने कड़ी लड़ाई लड़ी और अपने बच्चों तक का बलिदान दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अनेक संतानों की रक्षा के लिए अपने ही पुत्र की बलि दे दी। इस्लाम न कबूल करने के चलते गुरु तेग बहादुर जी की हत्या कर दी गयी। मध्यकालीन भारत में मुगल शासक किसी भी कीमत पर इस्लाम मनवाने पर लगे हुए थे, उस समय जिंदा रहने का मतलब ही था इस्लाम को कबूल करना या फिर मौत को गले लगाना लेकिन ऐसे समय में भी सिख धर्म गुरुओं ने इस्लाम को कबूल नहीं किया और अपनी जान देकर सनातन धर्म की रक्षा करते हुए प्राणों की आहुति दे दी।  

गुरु तेग बहादुर का जन्म 21 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। उनका बचपन का नाम त्यागमल था। करीब 14 वर्ष की आयु में ही वह पिता हरगोविंद के साथ मुगलों से युद्ध करने चले गए और वहां एक अद्भुत साहस का परिचय दिया जिससे इनके पिता बहुत प्रभावित हुए और इनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया। तेग बहादुर का अर्थ होता है तलवार चलाने में निपुण व्यक्ति अर्थात अपनी तलवारबाजी के चलते ही इनका नाम तेग बहादुर रखा गया। सिखों के 8वें धर्मगुरु हरिकृष्ण राय की आकस्मिक निधन के बाद तेग बहादुर को सिखों का 9वां गुरु बनाया गया। धर्म, आदर्श, सिद्धांत और मानवीय मूल्यों को प्रमुखता देने वाले तेग बहादुर जी को ‘हिंद की चादर’ भी कहा गया। आज भी उनका नाम बड़े आदर व सम्मान के साथ पूरी दुनिया में लिया जाता है। 

भारत पर मुगल शासक औरंगजेब का शासन था वह सभी को प्रताड़ित करता और इस्लाम कबूल करने का दबाव डालता। एक बार औरंगजेब ने कश्मीर के हिन्दूओं को इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश जारी कर दिया और उसका आदेश ना मानने वालों को मौत की सजा का फरमान सुनाया। संकट में पड़े कश्मीरी हिन्दू तेग बहादुर जी के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार लगाई। गुरु तेग बहादुर ने कहा कि आप मुगल शासक को यह संदेश भेज दे कि जब तक तेग बहादुर इस्लाम कबूल नहीं करेंगे कश्मीर का कोई भी हिन्दू इस्लाम नहीं कबूल करेगा। यह संदेश सुनकर औरंगजेब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उसने गुरु तेग बहादुर जी को गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। 1665 में गुरु तेग बहादुर और उनके तीनों भाइयों भाई मतिदास, भाई सतिदास और भाई दयाल को गिरफ्तार कर लिया गया।

इस्लाम न कबूल करने पर सभी को मौत के घाट उतार दिया गया। इन सभी की मौत हृदय विदारक थी लेकिन धर्म की रक्षा के लिए तीनों भाईयों ने खुशी खुशी मौत को गले लगा लिया। इधर गुरु तेग बहादुर जी पर मुगल शासक दबाव बनाना चाहता था औरंगजेब को ऐसा लगा कि भाईयों की मौत से तेग बहादुर जी डर जाएंगे और इस्लाम स्वीकार कर लेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ और तेग बहादुर जी को इस्लाम कबूल करवाने में औरंगजेब की सेना नाकाम रही, सिख धर्मगुरु ने कहा कि ”शीश कट सकता है लेकिन केश नहीं” जिसके बाद दिल्ली के चांदनी चौक पर 11 नवंबर 1675 को उनका सर धड़ से अलग कर दिया गया। गुरुद्वारा ‘शीशगंज साहिब’ और गुरुद्वारा ‘रकाब गंज साहिब’ उनके बलिदान का प्रतीक माना जाता है। 

संसार में ऐसे कई बलिदाई हुए हैं जिन्होंने अपने धर्म और राष्ट्र के लिए अपना जीवन तक दांव पर लगा दिया। हम सभी को इनसे कुछ सीखना चाहिए और धर्म की रक्षा के लिए आगे बढ़ना चाहिए। धर्म किसी राजनीति से प्रेरित नहीं होता है बल्कि धर्म की रक्षा पूरे मानव जाति की रक्षा के लिए होता है। धर्म के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा होता है इसलिए हजारों सालों से धर्म का पालन होता आ रहा है। ऋषि-मुनि भी धर्म के लिए सैकड़ों वर्ष तक तपस्या करते थे और धर्म को आगे बढ़ाने के लिए ही सभी को शिक्षित किया जाता था। हालांकि अब धर्म की रूपरेखा पूरी तरह से बदल चुकी है और इसे मात्र एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया गया है।  

21 अप्रैल को प्रधानमंत्री मोदी ऐतिहासिक कार्य करने जा रहे हैं। दरअसल इस बार गुरु तेग बहादुर जी की जयंती पर पीएम मोदी सूर्यास्त के बाद देश को लाल किले से संबोधित करेंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है जब देश के प्रधानमंत्री सूर्यास्त के बाद लाल किले से देश को संबोधित करने वाले हैं।

गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश वर्ष पर सरकार की तरफ से एक सिक्का और डाक टिकट जारी किया जाएगा।

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