आत्मरक्षा में भी बने आत्मनिर्भर

बात उन दिनों की है जब बिहार एक तथाकथित गरीबों के मसीहा बने महाडकैत की मुट्ठी में था,सभी तरह के अपराधी चाहे वे छोटेमोटे पॉकेटमार, अपहरणकर्ता हों या नक्सली संगठन जैसे संगठित समूह,, निर्भीक निश्चिन्त और अनियंत्रित थे।पूर्वजों द्वारा बनाये भव्य सुविधासम्पन्न घर के होते हमारे परिजन गाँव छोड़कर शहरों में सुरक्षित रहने के लिए पलायन कर चुके थे।पहले जो शादी ब्याह मरनी जीनी गाँव के उस घर से ही सम्पन्न करने की परंपरा थी,उसकी निरंतरता बनाये रखने का साहस लोग नहीं कर पा रहे थे।

नक्सलियों यह भय और प्रभाव था कि उनको जिनकी जमीन पसन्द आ जाती,उसपर वे अपना लाल झण्डा गाड़ देते और किसी का साहस नहीं होता कि अपनी ही जमीन पर वे चढ़ जाएँ। ऐसे में सहते सहते अंततः तंग आकर चाचा ससुर जी के नेतृत्व में गाँव के कई जागरूक लोगों ने निर्णय लिया कि वर्षों वे समस्या से भाग लिए,अब भागना नहीं,सामना करना है और अपने ही सामर्थ्य पर भरोसा करना है।

पूरे गाँव ने इसकी तैयारी की।हमारा घर गाँव के छोर पर था जिससे दूर दूर तक गाँव तक आते हुए रास्ते को देखा जा सकता था।तो सबसे पहले तो पूर्वजों द्वारा बनाये घर, पहली मंजिल पर 2 कमरों के बीच एक कमरे भर की खाली जगह को बाहर से दीवार बनाकर बन्द कर दिया गया जिससे यदि भीड़(नक्सली दो तीन सौ की भीड़ बनाकर ही हमला करते थे जिससे उनका यह कार्य जनक्रांति लगे)घर के निकट आ भी गयी तो घर के अन्दर सुगमता से प्रवेश नहीं कर पायेंगे।

इसके बाद छत पर चारों दिशाओं में पत्थरों और काँच के टुकड़ों के ढ़ेर लगा दिए गए।जितने अधिक संख्या में लाइसेंसी हथियार पारिवारिक सदस्यों के नाम पर ले सके,ले लिया गया।इसके अतिरिक्त भी लाठी भाला तलवार इत्यादि जैसे सुरक्षात्मक उपकरण घर घर में जमा कर लिए गए।उनको संचालित करने की बेसिक ट्रेनिंग सबको देने का प्रयास किया गया और सबसे बढ़कर बच्चे बच्चे के हृदय में निर्भयता तथा स्वरक्षा का भाव भरा गया।

नवरात्रि में शास्त्र पूजन होता है और उसमें जंग लगना अपशकुन माना जाता है।पहले सत्ता को असरहीन और गाँववालों को असहाय मानते हुए जो नक्सली कभी भी मुँह उठाये आक्रमण करने और उत्पात मचाने को उत्साहित रहते थे,दो तीन असफल प्रयासों के बाद गाँववालों के साहस शक्ति को देखकर इतने हतोत्साहित हुए कि फिर कभी बड़े आक्रमण की उनकी हिम्मत नहीं हुई।

लगातार धन जन की हानि उठा रहे हों और फिर भी रक्षार्थ सत्ता की ओर हाथ मुँह उठाये टकटकी लगाए रहना ऐसे निर्वीर्य समूह को बचाने में ईश्वर भी कोई रुचि नहीं लेता।सेकुलड़िता आपको सत्य देखने नहीं देती तो बात और है, नहीं तो यदि आपको ज्ञात है कि आप उनलोगों से घिरे हैं जो आपको नष्ट करना ही अपना प्राथमिक कर्तब्य मानते हों और इसकी पूरी तैयारी वे रखते हैं,सत्ता सिकुलड़(तुष्टिकर्ता) हो और इसकी पूरी संभावना हो कि किसी भी घटना के बाद आप पिटेंगे भी और उकसाने के आरोप में दण्डित भी होंगे तो फिर किसके भरोसे निश्चिन्त रहते हैं?

यह देखना सुखद है कि कम से कम अब आपको अपने धर्म और पहचान को लेकर हीनभावना नहीं,धार्मिक शोभायात्राओं में सोत्साह आप भाग लेते हैं।किन्तु अपनी रक्षा सुरक्षा के उपाय भी तो आपको स्वयं ही रखने होंगे जो कि इतना भी कठिन नहीं कि आप न कर पाएँ। जब वोट का समय आएगा,तब उस शक्ति का प्रदर्शन कीजियेगा,लेकिन व्यक्तिगत रूप से किसी भी आक्रमण से बचने की तैयारी तो खुद ही रखनी होगी न?वे निश्चिन्त होकर आक्रमण तभी करते हैं जब उन्हें पता होता है कि कोई प्रतिकार को सम्मुख नहीं होगा, सामने वाला उनकी ही भाँति एकजुट होकर उन्हें हानि पहुँचाने नहीं आयेंगे।

एकबार उनके मन में बैठ जाय कि धन के बदले धन और जन के बदले जन की दुगुनी कीमत उन्हें अवश्य चुकानी पड़ेगी, उनकी सारी आक्रामकता कपूर हो जाएगी।सो आवश्यकता मात्र आत्मनिर्भर बनने की है।सेकुलड़िता रूपी आत्महन्ता कर्करोग से बचने की है और यह मानने की है कि बुलडोजर केवल भाजपा के पास ही होती है, बाकी सभी आपको बलात-डोज(हिन्दुअहित)ही करते थे,कर रहे हैं और अनन्तकाल तक करेंगे,बस उन्हें सत्ता देकर तो देखिए।

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