सिख गुरु तेग बहादुर के बलिदान का विस्मरण

भाई सती दास , भाई मती दास और भाई दयाला को नाना विघि यातनाएं देकर हत्या करने के बाद अंततः मुगलों ने गुरु तेग बहादुर जी की भी हत्या कर दी और सिर धड़ से अलग कर दिया ।

इसके बाद मृत शरीर को अपमानित करने के लिये शरीर के टुकड़े कर दिल्ली के चारों दरवाजों पे लटकाने का आदेश दे दिया ।

बताते हैं कि उस शाम तेज़ आंधी तूफान आया और उसी अंधड़ का फायदा उठा के गुरु के शिष्य सेठ लक्खी शाह ने गुरु जी का धड़ उठा लिया और अपने घर मे छिपा के घर को आग लगा दी । घर जल कर भस्म हो गया और इसके साथ ही गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्कार भी हो गया ।

उसी समय एक अन्य शिष्य भाई जैता ने गुरु जी का शीश उठा लिया और उसे कपड़े में लपेट के दिल्ली से आनंद पुर साहिब के लिये कूच कर गए जिससे कि गुरु जी के शीश का अन्तिम संस्कार आनंदपुर साहिब में किया जा सके ।

दिल्ली से बमुश्किल 20 मील ही जा पाये थे कि मुगल सैनिक पीछा करते हुए आ गए । भाई जैता और उनके साथी नज़दीक के गांव गढ़ी में जा के छिप गए ।

मुगलों की सेना ने गांव को घेर लिया और खबर भिजवाई कि शीश वापिस कर दो नही तो पूरे गांव का कत्लेआम कर दिया जाएगा । गांव ने कहा कि कत्लेआम मंजूर है पर शीश वापस नही जाएगा ।

तभी एक बुजुर्ग खड़े हुए और उन्होंने कहा , नही …

पूरे गांव को बलिदान देने की ज़रूरत नही है । शीश वापस कर दो । इतना कह के अपने बेटे को बुलाया और अपनी हवेली में चले गए । कुछ देर बाद उनका बेटा लौटा तो उसके हाथ मे बाप का शीश था, मुगलों को वही शीश सौंप दिया गया और गुरु जी का शीश ले कर भाई जैता रात में ही आनंदपुर साहिब के लिए निकल गए ।

उस बुज़ुर्ग का नाम था दादा कुशाल सिंह दहिया । आपने गुरु जी के शीश की रक्षा के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया था ।

बाद में उस गढ़ी नामक गाँव का नाम बदल के दादा के नाम पे कुशाल गढ़ी कर दिया कालांतर में दशम गुरु महाराज श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे नया नाम दिया बढ़ खालसा वो बढ़ खालसा गांव आज भी वहीं है  उस हवेली में , जहां दादा कुशाल सिंह दहिया ने अपना शीश दिया आज एक भव्य गुरुघर स्थापित है ।

हर साल दादा कुशाल सिंह दहिया की याद में मेला भरता है ।

इसी गांव बढ़ खालसा के एकदम बगल में , बमुश्किल 1 किमी दूर है वो धरना स्थल, सिंघू बॉर्डर …जहां विगत दिन वो इफ़्तार पार्टी हुई थी।

ईद मुबारक हो दादा कुशाल सिंह दहिया

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