मधुमक्खी से संचालित होता है प्रकृति का चक्र

आज पांचवा विश्व मधुमक्खी दिवस है। पर्यावरण प्रणाली में मधुमक्खियों के महत्व और उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से हर वर्ष 20 मई को विश्व मधुमक्खी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इसे मनाने का प्रस्ताव स्लोवेनिया के बीकीपर्स एसोसिएशन के नेतृत्व में 20 मई 2017 को संयुक्त राष्ट्र के सम्मुख रखा गया था, जबकि दिसंबर 2017 में इसे मनाने के लिए मंजूरी मिली। तब से ही दुनिया भर में 20 मई को हर साल मधुमक्खी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। यानी पहला विश्व मधुमक्खी दिवस 20 मई 2018 को मनाया गया था। इस खास दिन 20 मई को आधुनिक मधुमक्खी पालन की तकनीक का जनक कहे जाने वाले एंटोन जान्सा के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एंटोन जान्सा का जन्म 20 मई 1734 में स्लोवेनिया में हुआ था।

इसे मनाने के पीछे यह उद्देश्य है कि, लोगों को मधुमक्खियों और उस प्रजाति के अन्य कीड़ों तथा उनके आवासों के सरक्षण के प्रति जागरूक किया जाए। मधुमक्खियों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमारे भोजन में उपयोग आने वाले अनाज, फल, सब्जियों को उगाने में मधुमक्खियों की भूमिका अहम भूमिका निभाती हैं क्योंकि मधुमक्खियां पेड़ पौधों के पराग कणों को एक पौधे से दूसरे पौधे तक पहुंचाने में मदद करती हैं जिसकी मदद से पौधों में निषेचन की प्रक्रिया से अनाज, फल और सब्जियों की उत्पत्ति होती है। इनके बनाए अत्यंत पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर शहद का उपयोग तो लगभग हर घर में होता है।

प्रख्यात्  वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंसटीन ने कहा था कि यदि मधुमक्खियां पृथ्वी से गायब हो जाएं तो 4 साल में मानव जाति का अस्तित्व इस दुनिया से खत्म हो जाएगा। यह चिन्ता का विषय है कि मानवीय गतिविधियों, पेड़-पौधों पर कीटनाशकों के छिड़काव, बढ़ते प्रदूषण, औद्योगिकरण इत्यादि के दुष्प्रभावों के कारण दुनिया भर में मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी आ रही है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में जीवन को लेकर हमें बड़े खतरों का सामना करना पड़ सकता है।  विशेषज्ञों के अनुसार हमारा जीवन परागणकों पर निर्भर हैं इसलिए उसकी ओर अधिक ध्यान देना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना आवश्यक है। मधुमक्खियां जैव विविधता के संरक्षण, प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन और प्रदूषण को कम करने में बेहद उपयोगी भूमिका निभाती हैं।

इस दिवस का मुख्य उद्देश्य लोगों को फसलों पर परागण के महत्व, बागवानी, मधुमक्खी पालन और इससे जुड़े उत्पादों शहद, रायल जैली, बी-पोलेन, प्रपोलिस और बी-वैक्स आदि के बारे में विस्तार से जानकारी देना है। दुनिया भर की लगभग 90 प्रतिशत जंगली फूल पौधों की प्रजातियां, 75 प्रतिशत से अधिक खाद्य फसलें और 35 प्रतिशत वैश्विक कृषि भूमि परागण पर निर्भर करती है। मधुमक्खी एक ऐसा कीट है जो किसी भी तरह का रोगजनक बैक्टीरिया या वायरस नहीं छोड़ता है। ऐसा कभी देखने को नहीं मिलता कि मधुमक्खी के संपर्क में आने से व्यक्ति को कोई बीमारी हो जाए। ‘विश्व मधुमक्खी दिवस’ न सिर्फ मधुमक्खियों के संरक्षण के लिए ही बल्कि परागण करने वाले अन्य कीटों जैसे चिड़ियों चमगादड़ और तितलियों के भी महत्व का है।

मधुमक्खियों के प्रकार

  1. मधुमक्खियां – इन्हें Communal Bees भी कहा जाता है। इनके छत्ते में 50000 से लेकर 60000 तक मधुमक्खियां होती हैं।
  2. भौंरा – ये छोटे छत्तों में रहते हैं, जहां इनकी संख्या 200 से 500 तक होती है।
  3. लिफ कटर –इन्हें Alone Bee भी कहा जाता है क्योंकि एक मादा मधुमक्खी अकेले घोसले में रहती है।
  4. कारपेंटर मधुमक्खी – ये मधुमक्खियां ज्यादातर मिट्टी  में रहती हैं।
  5. एंड्रीना मधुमक्खी – इनका परिवार काफी बड़ा होता है। लेकिन मादा मधुमक्खियां एक दूसरे के करीब घोंसलों में अकेली रहती हैं।

 

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