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अंकिता की हत्या और हत्यारे के हाव-भाव के मायने 

अंकिता की हत्या और हत्यारे के हाव-भाव के मायने 

by अवधेश कुमार
in महिला, मीडिया, राजनीति, विशेष, संस्था परिचय
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झारखंड के दुमका में अंकिता की हत्या ने पूरे देश को अंदर से हिला दिया है। सामान्य स्थिति में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती कि एक लड़की अपने घर में सोयी हो और उसे 5 बजे भोर में बाहर से पेट्रोल फेंक कर आग लगा दिया जाए। जाहिर है, वैसे स्थिति में शरीर में आग की लपटों से छटपटाते लड़की बचने के लिए घर में इधर उधर भागती रही और परिवार के लोग भी बहुत कुछ नहीं कर सके। हालांकि अंकिता को जलाए जाने के कुछ घंटे बाद ही यह खबर वायरल हो चुकी थी। झारखंड सरकार इसकी गंभीरता को समझती और सजग होती तो उसको बेहतर इलाज के लिए एअरलिफ्ट किया जा सकता था। खनन आवंटन मामले में विधायकी रद्द होने की संभावना से आशंकित मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की प्राथमिकता अपनी सरकार बचाने की है। साफ है कि इस पर सरकार का फोकस रहा ही नहीं। मुख्यमंत्री अन्य मंत्री या सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता इस समय चाहे जितना आक्रामक बयान दें इस जघन्य अपराध के तीन दिनों तक लगा ही नहीं कि झारखंड में कोई जागरूक सरकार भी है। मुख्यमंत्री का वक्तव्य पांचवें दिन आया। यह सामान्य स्थिति नहीं है।

हालांकि हेमंत सोरेन सरकार की कानून व्यवस्था संबंधी नीतियां और व्यवहार काफी समय से विरोध और आलोचना के घेरे में है। अभी भी सरकार और प्रशासन ने तय नहीं किया है कि अंकिता हत्याकांड को किस रूप में लिया जाए। अंकिता बताती थी कि उसके साथ जाते -आते हत्यारा शाहरुख छेड़छाड़ करता था और बात नहीं मानने पर पूरे परिवार को मार डालने की धमकियां भी देता था। वह ऐसा मोहल्ला है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों रहते हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि मोहल्ले के लोगों को इसका पता नहीं हो। बावजूद कोई शाहरुख को ऐसा दुस्साहस भरा अपराध करने से नहीं रोक सके। प्रश्न है कि उसने ऐसा क्यों किया होगा? अंकिता की मृत्यु के बाद कई तस्वीरें वायरल हैं जिनमें शाहरुख के साथ वह खुशी-खुशी घूम रही है ,तस्वीरें खिंचवा रही है ,गाड़ियों में चल रही है। इसका अर्थ है कि उनके बीच कुछ रिश्ते थे। उनका रिश्ता कैसा था, क्यों था, दोनों एक दूसरे को कितना जानते थे, इसका पता तो सही प्रकार से छानबीन से ही चलेगा।

आखिर ऐसी स्थिति क्यों हुई कि अंकिता उससे मिलना जुलना नहीं चाहती थी और और जबरन दबाव बना रहा था? अगर यह केवल अपराध है तब भी झारखंड प्रशासन को सोचना चाहिए कि कोई ऐसा दुस्साहस कैसे कर सकता है। किंतु पिछले कुछ वर्षों में झारखंड की घटनाओं को ध्यान रखें तो इसके एक दूसरे खतरनाक पहलू की ओर भी दृष्टि जाती है। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के बावजूद जिस ढंग से शाहरूख मुस्कुरा रहा है ऐसा लगा ही नहीं कि उसे अपने किए जाने पर अफसोस है। कुछ लोग उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। शाहरुख के मोहल्ले के लोग बता रहे हैं कि वह बिल्कुल सामान्य लड़का है। सामान्य लड़का अपने ही मोहल्ले में इस तरह का अपराध करके पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद इस ढंग से मुस्कुराए और व्यवहार करें मानो उसने कुछ गलत किया ही नहीं और उसे कुछ होगा ही नहीं या जो होगा उसकी उसे कोई परवाह नहीं तो फिर इसके कारणों की अलग तरीके से भी छानबीन करने की आवश्यकता महसूस होती है। क्या इसके पीछे मजहबी कारण भी हो सकता है?

हमारे देश में कई बार सच बोलना अपराध बन जाता है। दुनिया भर के जिहादी आतंकवादी भय और घबराहट में आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं देते हैं। ज्यादातर बिल्कुल मानसिक रूप से राहत भरी अवस्था में स्वयं को आत्मघाती विस्फोटक में तब्दील कर देते हैं। ऐसे आतंकवादियों पर की गई छानबीन बताती है कि उन्हें विशेष आनंद की अनुभूति होती है क्योंकि वह मानते हैं कि अल्लाह के आदेश का पालन कर रहे हैं। शाहरुख के बारे में अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है जिससे मान लिया जाए कि वह किसी तरह के अतिवादी मजहबी कट्टरता से भरा हुआ था। किंतु इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता।  झारखंड देश में इस्लामी कट्टरवाद और जिहादी आतंकवाद के साथ लव जिहाद की दृष्टि से हमेशा सुर्खियों में रहा है। झारखंड के ही जामताड़ा में अनेक स्कूलों में प्रार्थना के तरीके बदले जाने का मामला सामने आया और वहां मुसलमानों के एक समूह ने कहा कि उनको यहां बहुमत में है तो उनके अनुसार ही प्रार्थना होनी चाहिए। इसी तरह वहां रविवार की जगह शुक्रवार को स्कूल में छुट्टियां हो रही थी। सामान्य प्रकृति के लोग तो ऐसा नहीं कर सकते। यह घटनाएं सामने आ गईं लेकिन ऐसी भी कुछ बातें होंगी छो सामने नहीं आई होंगी। झारखंड के पलामू जिले के पांडू थाना क्षेत्र के मुरूमातू गांव में मुसलमानों के समूह ने 20 दलित परिवारों के घरों को ध्वस्त कर दिया और कहा कि ये मदरसे की जमीन थी जिन पर इनके घर बने हुए थे। उन लोगों ने न केवल उन्हें पीटा, उनका घर उजाड़ा बल्कि सभी को दो गाड़ियों पर लादकर एक जंगल के पास छोड़ दिया। जरा सोचिए, झारखंड की क्या स्थिति है ।

पिछले मार्च में उत्तर प्रदेश आतंकवाद निरोधक दस्ता यानी एटीएस ने देवबंद से  इनामुल हक उर्फ इनाम इम्तियाज़ को गिरफ्तार किया। लश्कर-ए-तैयबा से उसके संबंध के प्रमाण मिले और पता चला कि वह आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने की तैयारी कर रहा था। वह झारखंड के गिरिडीह जिले के पतना गांव का रहने वाला है। यह झारखंड के लिए पहला मामला नहीं है। 2003 में दिल्ली के अंसल प्लाजा विस्फोट मामले में शाहनवाज का नाम सामने आया था जो आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा था और जमशेदपुर में रहता था।  जमशेदपुर से लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी तारिक अख्तर और नूर मोहम्मद  पूर्व में गिरफ्तार किया जा चुका है। 23 सितंबर ,2019 को झारखंड एटीएस ने अलकायदा से जुड़े मोहम्मद कलीमउद्दीन मुजाहिरी को गिरफ्तार किया। एटीएस ने बयान दिया कि इसकी गिरफ्तारी के साथ ही अब झारखंड में सक्रिय अलकायदा का स्लीपर सेल पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। कलीमउद्दीन अलकायदा के सक्रिय आतंकवादी मोहम्मद अब्दुल रहमान अली उर्फ कटकी जो तिहाड़ जेल दिल्ली में बंद है, का सहयोगी था। कटकी के अलावा अब्दुल सामी, अहमद मसूद, राजू उर्फ नसीम अख्तर और जीशान हैदर भी गिरफ्तार हुआ । ये सभी आतंकवादी कलीमुद्दीन के सहयोगी हैं।

पीछे लौटे तो 21 अक्टूबर, 2013 में वर्तमान प्रधानमंत्री एवं तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की गांधी मैदान सभा 7 जुलाई 2013 को बोधगया में हुए आतंकवादी धमाकों के दोषी झारखंड से ही पकड़े गए थे। इसे रांची मॉड्यूल का नाम दिया गया था। सारी व्यवस्था रांची में हुई थी और वह इसे आतंकवादी आए थे । इंडियन मुजाहिद्दीन का एक बड़ा तंत्र झारखंड में पाया गया था। 2008 से 2011 और 12 के बीच भी काफी संख्या में आईएम के आतंकवादी पकड़े गए। पिछले जुलाई में प्रधानमंत्री की पटना यात्रा के एक दिन पहले 11 जुलाई को पटना से फुलवारी शरीफ तक पीएफआई का जो बहुचर्चित मॉड्यूल पकड़ में आया उसका प्रमुख मोहम्मद जलालुद्दीन झारखंड के कई थानों में साधारण पुलिस कांस्टेबल से लेकर दरोगा के पद पर कार्य कर चुका है। पिछले 10 जून को जुम्मे की नमाज के बाद रांची में जिस ठंड का उत्पात हुआ वह देश के सामने है। पुलिस के साथ देवर ने मुठभेड़ किया। बाद में पुलिस ने हिंसा करने वालों में से कुछ की तस्वीरें चौराहे पर लगाई लेकिन उसे हटा दिया गया। कहा गया कि इसमें कुछ गड़बड़ियां है और दोबारा सही करके लगाया जाएगा जो लगा नहीं। क्यों नहीं लगा इसका उत्तर आज तक झारखंड सरकार ने नहीं दिया है। बहरहाल इस घटना ने फिर इस बात की पुष्टि की कि झारखंड इस्लामी कट्टरपंथ का गढ़ बन चुका है।

लव जिहाद के मामले में भी झारखंड हमेशा सुर्खियों में रहा है। पिछले 7-8 वर्षों में झारखंड ने लव जिहाद के मामले में कई राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। 2014 में तारा शाहदेव नामक अंतरराष्ट्रीय शूटर की घटना ने पूरे देश को चौंकाया था। रंजीत कोहली के नाम से एक शख्स ने उससे प्रेम जाल में फंसा कर शादी किया जो बाद में रकीबुल हसन निकला। उसके बाद से लगातार ऐसी कोई कोई घटना हो रही है। इस मामले में भी कई मीडिया संस्थानों ने शाहरुख को अभिषेक के नाम से संबोधित किया है। अभी तक स्पष्ट नहीं है कि वाकई क्या वह अभिषेक के नाम से अंकिता से मिलता था। अगर एक ही मोहल्ले में रहते थे तो शाहरुख का सच अंकिता को मालूम होना चाहिए था। कहने का तात्पर्य कि यह मामला कई दृष्टियों से संदिग्ध हो जाता है।

इन सारी स्थितियों के आलोक में हम  खिड़की से पेट्रोल सीकर आग लगा देने जैसी दुस्साहसी वारदात और पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने के बाद की उसकी भाव -भंगिमा को देखकर इसे सहसा सामान्य अपराध जरा कठिन है। शाहरुख की हरकतें जेहादी मानसिकता से भरे इस्लामी कट्टरपंथ की झलक दे रही है। इस तरह इस्लामिक कट्टरवाद के दृष्टिकोण से भी इसकी जांच आवश्यक हो गई है। लेकिन जो सरकार पुलिस तक पर हमला करने वाले हिंसक तत्वों की तस्वीरें लगाकर हटा सकती है वह सच्चाई सामने लाने के लिए प्रतिबद्धता दिखाएगी इसमें संदेह है।

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अवधेश कुमार

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