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तू हाँ कर या ना कर…..तू है मेरी किरन…..

तू हाँ कर या ना कर…..तू है मेरी किरन…..

by हिंदी विवेक
in फिल्म, मनोरंजन, महिला, विशेष, सामाजिक
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कुछ याद आया? आ रहा है अब समझ में किस तरह इस गाने के जरिए हाँ या ना कुछ भी कहने पर भी हरेक किरन, अंकिता, निकिता आदि को ‘ तथाकथित शांति दूत गैंग  के लिए आरक्षित कर दिया गया था?
सुपरहिट फिल्म ‘डर’ में शाहरुख खान किरन के इंडियन नेवी के अफसर पति की हत्या कर उससे प्रेम का इजहार करता है और दर्शकों की सहानुभूति लूट ले जाता है। ध्यान दीजिए, फिल्म का नायक भारतीय सेना का अफसर सनी देओल नहीं, पागल, साइको, हकला, खुद से बातें करनेवाला शाहरुख है। यानि साइकोज आर बैटर एंड हॉटर लवर्स दैन इंडियन आर्मीमैंस….राइट?
“अठरा बरस की कुंवारी कली थी,
सुलोचन सूँघनेवाले तथाकथित शांति दूत के लिए ही पलीबढ़ी थी”
‘अंजाम’ फिल्म का ऑब्सेसिव एकतरफा प्रेमी शाहरुख एयरहोस्टेस शिवानी के पति,बहन और बेटी की हत्या कर देता है। शिवानी पर झूठे आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा देता है पर जेल से निकलकर ‘स्टॉकहोम सिंड्रोम’ की शिकार शिवानी पैरालाइज्ड शाहरुख की सेवा करती है और अंत में उसी के साथ स्वयं को भी खत्म कर लेती है।
“किताबें बहुत सी पढ़ी होंगीं तुमने,
कभी लव जिहाद भी तुमने पढ़ा है?”
“बाजीगर” फिल्म का शाहरुख पिता से बदला लेने के लिए निर्दोष भोलीभाली टीनएज सीमा को प्रेमजाल में फँसाकर ऊँची बिल्डिंग से फेंककर उसकी हत्या कर देता है। उसकी सहेली,उसके दोस्तों की एक के बाद एक हत्या करते हुए उसकी सगी बहन से शादी भी करता है। अंत में अपनी ही पत्नी के पिता,बहन सहित दर्जनों का हत्यारा माँ की गोद में प्राण त्यागकर मूर्ख हिंदू दर्शकों की सहानुभूति लूट ले जाता है।
कुछ समझ आ रहा है आपको कितनी लंबी कंडीशनिंग चल रही थी पीछे पड़नेवाले, मारधाड़ करनेवाले, दबाव डालनेवाले विलेन्स को नायक बनाए जाने की। उदाहरण और भी हैं पर अभी झारखंड की घटना का पुलिस की गिरफ्तारी में हँसता हुआ ‘शाहरुख’ प्रासंगिक है सो अभी बात सिर्फ शाहरुख की।
“पाकिस्तान की टीम जीतती है तो लगता है कि वालिद साहब की टीम जीत गई……”
कहनेवाले शाहरुख खान को बादशाह ओ बादशाह बनानेवाले मूर्ख दर्शकों, हम स्वयं अपने ही देश में आतंकवाद और लव जिहाद की फंडिंग करते रहे।
ग्रे शेड्स वाले चरित्रों को जनरलाइज करने की तकनीक देखिए। ‘ही इज ‘किलर’ मैन, ‘आई सो मच लाइक हिज ‘वाइल्ड’ साइड, ‘आई लाइक हिज ‘पजेसिवनेस’, ‘आई गो क्रेजी व्हैन ही शाऊट्स एट मी’……आदि डायलॉग्स आप कक्षा दस की बच्चियों के मुँह से भी सुन सकते हैं। ‘कूल’ है अब यह सब। ऐसी ही फिल्मों,टीवी सीरियल्स और वेबसीरीज के जरिए लगातार लड़कियों के दिमाग में यह बात बिठा दी गई है कि पीछा करना, जबरन बात करने की कोशिश करना, धमकाना, मारपीट करना यह सब प्यार के ही रूप हैं। ‘इश्क और जंग में ‘सब’ जायज़ है’ जैसे खतरनाक वाक्य को वहशी साइको स्टॉकर्स का नेशनल एंथम बना दिया गया है। ‘अगर वो मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होने दूँगा’ यह डायलॉग तो हमने कितनी ही फिल्मों में सुना है ना?
टीनएज की दहलीज पर हारमोनल बदलावों से गुजरती लड़कियों को ऐसे आक्रामक स्टॉकर्स सैक्सुअली भी अधिक अट्रैक्ट करते हैं। ‘इतना गुस्सैल है तो बैड में कितना हॉट होगा’ यह डिस्कसन कॉलेज नहीं, स्कूल कैंटीन में प्रतिदिन ही सुनती हूँ। आठवीं,दसवीं की छात्राएं बेचारी ये बच्चियाँ ये नहीं जानतीं कि ज्यादा ‘हॉट’ इतना ‘हॉट’ होता है कि अंकिता जैसी निर्दोष,निष्पाप बच्ची किसी नशेड़ी की एकतरफा ‘हॉटनैस’ में जलकर भस्म हो जाती है।
अपने बच्चों से इस विषय में आज ही बात कीजिए। बेटे, बेटियों को बताइए कि जबरन किसी को आपको पसंद करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। यह प्यार नहीं आकर्षण है, एक फेज है। कच्ची उम्र के आकर्षण को हैल्दी तरीके से हैंडल कर लेनेवाले लोग कालांतर में उन्हीं लोगों के साथ अच्छे दोस्ताना संबंध रखते हुए अपने बचपन के पागलपन पर हँसते हैं जिनके तथाकथित प्यार में वे कभी पागल हो रहे थे। कच्ची उम्र का यह आकर्षण ज्यादातर होश आने पर एक ‘ऑब्लिगेशन’ बनकर रह जाता है। अपने बच्चों को विश्वास में लेकर बात कीजिए कि कहीं कोई उन्हें झारखंड की अंकिता की तरह धमका तो नहीं रहा है।

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