नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो

रामधारी सिंह जी दिनकर ने यह कविता रची थी। तिरंगे को समर्पित यह कविता किस प्रकार आज नरेंद्र मोदी के नमो को उच्चारित और मंडित करती है। यह एक चमत्कार ही है। नरेंद्र मोदी जी को भी नमो कहते हैं। दिनकर की के शब्द तो तिरंगे को ही समर्पित हैं किंतु इसमें गूंजता नमो राग का आज के नमो से साम्य किसी दैवीय संयोग से कम नहीं लगता..
आज यह कविता उन नरेंद्र मोदी जी जी को समर्पित, जो तिरंगे के सम्मान हेतु इस कविता के प्रत्येक शब्द को अपनी सांसों से जीवंत करते हैं।
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो
तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आगनमो
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़*
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो
*तब भारत की जनसंख्या चालीस करोड़ थी

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