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वर्क फ्रॉम होम का टेंशन

वर्क फ्रॉम होम का टेंशन

by हिंदी विवेक
in जीवन, विशेष, सामाजिक, सांस्कुतिक भारत दीपावली विशेषांक नवंबर-2022, साहित्य
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आप  और हम अपने आप को कितना भी मां सरस्वती के पुत्र कहते रहे हैं पर असली में तो मां सरस्वती का वरद हस्त प्राप्त आठ बाय तीन इंची लाड़ले बच्चे मोबाइल को ही है।

हां जी बच्चा ही तो है एक मिनट हाथ नहीं छोड़ते उसका। अपना बच्चा भीड़ में गुम हो जाए तो होश ही नहीं रहता लेकिन मोबाइल गुम हो जाए तो सेकंड के सौवें हिस्से में ही पता चल जाता है। पूरी दुनिया को उंगलियों पर नचाना किसे कहते हैं आज समझ में आया। एक उंगली पर पूरी दुनिया और पूरी दुनिया की उंगलियां मोबाइल पर! वाह रे मोबाइल, उंगली की ताकत तूने आज हमें समझा दी। आज कोई हमें दांत तोड़ दूंगा की धमकी दे तो उतना भय नहीं लगता जितना उंगली मरोड़ दूंगा कहने पर लगता है। उंगली के खोने का डर हम ब्लैक होल में समाने जा रहे हों ऐसा लगता है। मोबाइल महत्ता पर चिंता हो रही थी कि, श्रीमान जी का उलाहना भरा स्वर जो कि उनके स्वर का स्थाई भाव है कानों से टकराया अजी सुनती हो! अपने लाड़ले को देख लिया करो जरा पढ़ाई के नाम पर पूरे दिन मोबाइल में डूबा रहता है पढ़ता भी है या कुछ और ही….. मोटे-मोटे चश्मा लगेंगे ना तब पता चलेगा, महीने भर का डाटा पंद्रह दिन में खत्म कर देता है…..।

श्रीमान जी का बड़बड़ाना चालू था।

पत्नी जी आखिर कब तक चुप रहती – इतनी चिंता है ना तो खुद क्यों नहीं देख लेते, खुद को भी व्हाट्सएप विद्यालय से फुर्सत मिले तब ना। अपने आप को देखो चश्म का नम्बर बढ़ते बढ़ते आंखों में मोतिया उतर आया है पर मजाल कि माननीय मोबाइल छोड़ दें।

मेरे मोतिया की बात बाद में देखना पहले अपनी बिटिया रानी को देख लो। उनके स्वर का स्थाई भाव और स्थाई हो गया। दिन के 11:00 बजे हैं अभी तक उठी नहीं महारानी अगले घर जाएगी तो क्या करेंगी।

श्रीमती जी बच्चों पर हमला देखकर घायल सिंहनी हो गई, अच्छा लाखों के पैकेज की कमाऊ लड़की भी चाहिए और भिनसारे उठकर सेवा करने वाली बहू भी। अब ऐसा नहीं हो पाएगा। रात रात भर काम करेगी तो दिन में तो देर तक सोएगी ना।

लाखों की पैकेज वाली बात पर श्रीमान जी कुछ नरम हो गए। समझता हूं भागवान, मैं तो इसलिए कह रहा हूं उसका बायोलॉजिकल सर्कल डिस्टर्ब हो जाएगा। श्रीमान जी खिसियाते हुए बोले।

हां हां जानती हूं, पर मल्टीनेशनल कम्पनियों को आपकी बायोलॉजिकल घड़ी से कोई लेना-देना नहीं, उन्हें तो घड़ी-घड़ी का उपयोग करवाना है। वर्क फ्रॉम होम में एक एक पल कम्पनी के कब्जे में है बच्चों का। कम्पनियों का आर्थिक स्तर शुक्ल पक्ष के चांद की तरह बढ़ रहा है और कर्मचारियों की शारीरिक अवस्था अमावस की ओर बढ़ रही है।

मजे तो बस तुम्हारे हैं, ऑफिस में हो या घर में कोई काम नहीं है। तुम्हारे ऑफिस का भी कम्प्यूटरीकरण तो हो गया है ना तुम काम क्यों नहीं करते ऑनलाइन?

अरी भागवान काम तो ऑफिस जाकर होता है। घर में कोई काम होता है।

मैं भी तो सुनूं ऑफिस जाकर क्या काम करते हैं! 11:30 के पहले तो कभी घर से निकलते नहीं थे।

हां तो 11:30 पर साइन करता हूं, तुम्हारे हाथ के आलू के परांठे सुस्ती चढ़ा देते हैं और काम करने के लिए दिमाग को तरोताजा करना पड़ता है तो तुरंत ऑफिस के बाहर की टपरी पर चाय पीने आ जाता हूं। अब चाय पीने में आधा घंटा तो लग ही जाता है लोगों से मिलते जुलते, सीट पर आता हूं तब तक 1:00 बज जाता है। अब इतने प्यार से तुम जो टिफिन देती हो उसे भी तो खाना पड़ता है ना। खा कर फिर नींद आने लगती है फिर चाय पीने जाना इस सब में 3:00 बज जाता है। एक आध घंटा फाइल अल्टी पलटी करता हूं उनके वजन तोलता हू़ं। तब तक साढ़े चार बज जाता है और तुम तो जानती हो पांच बजे की चाय तो मुझे तुम्हारे हाथों की ही चाहिए। तो साढ़े चार पर तो निकलना ही पड़ता है।

ऑफिस की तरह ही दस दस चाय तो तुम घर में भी पीते हो, तो कुछ फाइलें ही क्यों नहीं निपटा लेते।

श्रीमती जी तुम बड़ी भोली हो। फाइलें भी बड़ी मूडी होती हैं, जैसे जगह बदलने पर तुमको नींद नहीं आती है, वैसे ही सरकारी फाइलें भी जगह बदलने पर काम नहीं कर पाती। फाइलों को जगह से हिलाने की ताकत अच्छों अच्छों में नहीं होती।

फाइल का एक एक पेज जानता है उसे कब पर कितना खुलना है, खुलना है भी कि नहीं! फाइलों को बिना प्रेरणा के जगह से हिलाना डुलाना सरकारी दफ्तर की जन्मपत्री में बैठे ग्रहों को चुनौती देना है। भला प्रारब्ध से कोई कैसे लड़ सकता है।

तुम जितना समझते हो इतनी भोली भी नहीं हूं मैं। ये प्रेरणाएं ऑनलाइन भी तो अकाउंट में आ सकती हैं।

कर दी ना अनाड़ियों वाली बात, प्रेरणा दिव्य आत्माओं द्वारा दी गई दिव्य शक्ति होती है ऑनलाइन जमा होने पर उनके उजागर होने का डर रहता है और तुम तो जानती हो ना दिव्य शक्तियों का इस तरह प्रचार नहीं किया जाता, उजागर नहीं किया जाता, नहीं तो उनके पकड़े…. नहीं नहीं समाप्त हो जाने का डर रहता है।

इसलिए तुम भी सोओ और मुझे भी चैन से सोने दो।

12 घंटे रात की नींद लेने के बाद श्रीमान जी फिर निद्रा देवी के आगोश में चले गए।

एक ओर 14 घंटे काम करके अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति आंख मींचे रहने वाले और दूसरी ओर सरकारी लैपटॉप पर केवल लॉगइन ओर लॉगआउट करके 14 घंटे सोने वाले। देश बड़ी गहरी नींद सो रहा है भाई!

                                                                                                                                                                         – साधना बलवटे 

 

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