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मंदी के गिरफ्त में आने के आसार नहीं

मंदी के गिरफ्त में आने के आसार नहीं

by सतीश सिंह
in आर्थिक, देश-विदेश, मीडिया, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने हाल ही मेंकहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है और वित्त वर्ष 2021 में वैश्विक वृद्धि दर 6 प्रतिशत रहने के बाद चालू वित्त वर्ष में वै​श्विक वृद्धिदर घटकर 3.2प्रतिशत रह सकती है और वित् वर्ष 2023 में इसमें 2.7 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है.आईएमएफने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए चीन के वृद्धि दर अनुमान को भी घटाकर 3.3 प्रतिशत कर दिया है, जो विगत 40 वर्षों का सबसे निचला स्तर है. साथ में, आईएमएफ ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के वृद्धि दर अनुमान को भी घटाकर 6.8 प्रतिशत किया है. फिर भी, यह चीन के वृद्धि दर अनुमान से बहुत ज्यादा बेहतर है. बावजूद इसके, कयास लगाये जा रहे हैं कि भारत भी मंदी की गिरफ्त में आने वाला है.

मंदी की परिभाषा के अनुसार जबकिसी देश की वृद्धि दर सुस्त पड़ने लगती है, बेरोजगारी दर में इजाफा होता हैऔर महँगाई दर ऊंची रहती है तो वह देश मंदी की गिरफ्त में आ जाता है. यह भी माना जाता है कि किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अगर दो तिमाहियों में लगातार गिरावट दर्ज होती है तो भी वह देश मंदी की गिरफ्त में आ जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में क्या मंदी के लक्षण भारतीय अर्थव्यवस्था में दृष्टिगोचर हो रहे हैं?

सबसे पहले हम जीडीपी की बात करेंगे. भारत में जीडीपी वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 13.5 प्रतिशत रही और पिछले वित्त वर्ष के जनवरी से मार्च 2022 के दौरान 4.1 प्रतिशत. वहीं,वित्त वर्ष 2021-22 की दिसंबर तिमाही के दौरान यह 5.4 प्रतिशत रही, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत रही. वित्त वर्ष 2021-22 की तीसरी तिमाही से चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर में मामूली कमी दर्ज की गई,लेकिन समग्र रूप से वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान जीडीपी में 8.7 प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई. इतना ही नहीं वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही और वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही के दौरान भी जीपीपी में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई.

बेरोजगारी के मोर्चे पर भी भारत का प्रदर्शन बेहतर हो रहा है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के दौरान सभी उम्र वर्ग में शहरी बेरोजगारी की दर 7.6 प्रतिशत रही, जो अप्रैल महीने में 9.22 प्रतिशत, मई महीने में 8.21 प्रतिशत और जून महीने में 7.3 प्रतिशत रही. इसतरह, शहरी बेरोजगारी दर में लगातार तीसरे महीने गिरावट दर्ज हुई. अगर पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि से इसकी तुलना की जाये तो भी ये आंकड़े सकारात्मक हैं।

पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में शहरी बेरोजगारी दर 12.7 प्रतिशत रही, जो कोरोना महामारी के दौर की तुलना में बहुत ही ज्यादा बेहतर है. अप्रैल से जून 2020 के दौरान तो शहरी बेरोजगारी दर बढ़कर 20.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई थी. शहरी क्षेत्र के अलावा भारत के ग्रामीण क्षेत्र में भी बेरोजगारी दर में कमी आई है. सीएमआईई के ताजा आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर अगस्त महीने में 7.68प्रतिशत थी, जो सितंबर महीने में घटकर 5.84 प्रतिशत रह गई.

महंगाई के मामले में स्थिति जरुर थोड़ी चिंताजनक है. उपभोक्ता मूल्य पर आधारित महंगाई दर (सीपीआई) सितंबर महीने में बढ़कर 5 महीने के उच्च स्तर 7.41 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह लगातार नौवां महीना है, जब खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा 6.00 प्रतिशत से ऊपर चल रही है। अगस्त महीने में खुदरा महंगाई दर 7.00 प्रतिशत थी, जबकि जुलाई महीने में 6.71 प्रतिशत.

अगर महंगाई दर लगातार 3 तिमाहियों तक सहनशीलता सीमा से ऊपर रहती है तो केंद्रीय बैंक द्वारा उठाये जा रहे क़दमों को असफल मान लिया जाता है. चूँकि, महंगाई दर लगातार 9 महीने से सहनशीलता सीमा से ऊपर है, इसलिए,महंगाई रोकने के भारतीय रिजर्व बैंक के प्रयासों को असफल माना जा सकता है. बावजूद इसके, केंद्रीय बैंक द्वारा महंगाई को रोकने के उपायों को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है. अगर रिजर्व बैंक महंगाई को रोकने के लिए समीचीन कदम नहीं उठाता तो शायद भारत में भी विकसित देशों की तरह महंगाई की वजह से लोगों में हाहाकार मच जाता.फिर भी, अब केंद्रीय बैंक को नीतिगत दरों में इजाफा करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे विकास की गति बाधित होती है.

अमेरिका में मई महीने में महंगाई दर 8.6 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच गई थी,जो दिसंबर 1981 के बाद सबसे उच्चतम दर है. पुनः जून महीने में यह 9.1 प्रतिशत रही और जुलाई महीने में घटकर 8.5 प्रतिशत रह गई और पुनः सितंबर महीने में कम होकर यह 8.2 प्रतिशत हो गई. चूँकि,अमेरिका में महंगाई की उपरी सहनशीलता सीमा 2 प्रतिशत है.इसलिए, वहां महंगाई को बेकाबू माना जा रहा है. अमेरिका में बेरोजगारी दर सितंबर महीने में 3.5 प्रतिशत थी और 2.63 लाख रोजगार सृजित हुए, जबकि अगस्त महीने में 3.15 लाख रोजगार सृजित हुए थे. बैंक ऑफ अमेरिका के अर्थशास्त्री माइकल गैपन के मुताबिक आगामी महीनों में अमेरिका में बेरोजगारी दर बढ़कर 5 से 5.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच सकती है, जबकि फेडरल रिजर्व बैंक के मुताबिक यह बढ़कर 4.4 प्रतिशत के स्तर पर पहुँच सकती है.

यूरोपीय संघ के यूरो स्टेट डेटा के अनुसार सितंबर महीने में यूरोजोन का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पहली बार दो अंकों में यानी 10 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया, जबकि अगस्त महीने में यह 9.1 प्रतिशत था. यूरोस्टेट के अनुसार सितंबर महीने में यूरोपीय संघ में बेरोजगारी दर 11.7 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि अगस्त में यह 11.6 प्रतिशत थी।

ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सितंबर महीने में वहां उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 10.1 प्रतिशत पर पहुँच गई, जो अगस्त महीने में 9.9 प्रतिशत थी. मुद्रास्फीति का यह दर 1982 के बाद सबसे ऊँचा है. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटेन को 3 नवंबर को नीतिगत दर में 0.75 प्रतिशत की वृद्धि करनी पड़ी, जो 33 सालों का उचत्तम स्तर है। ब्रिटेन की राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार सितंबर महीने में वहां बेरोजगारी दर 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 4.5 प्रतिशत हो गया, जबकि बेरोजगरी पर काबू पाने के लिए वहां वेतन समर्थन योजना चलाया जा रहा है. इसके तहत कामगारों को बिना काम किये वेतन दिया जा रहा है. साथ ही,उन्हें बेरोजगार की श्रेणी में भी नहीं रखा जा रहा है. इस योजना से 12 लाख ब्रिटेनवासी लाभान्वित हुए हैं.

भारत में चालू वित्त वर्ष में निजी व्यय में लगभग 26 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. सरकारी और निजी अनंतिम खर्च कोरोना महामारी के पहले वाली स्थिति में पहुँच चुकी है। वित्त वर्ष 2022 की जून तिमाही में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी महज 1.3 प्रतिशत की दर से हुई है, जो यह दर्शाता है कि सरकारी खर्च को कम करने की सरकारी मुहिम धीरे-धीरे कामयाब हो रही है।

अगस्त महीने में माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह 28 प्रतिशत बढ़कर 1.43 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले वर्ष के इसी महीने में 1.12 करोड़ रुपये था। सितंबर महीने में जीएसटी संग्रह 26 प्रतिशत बढ़कर 1.48 लाख करोड़ रुपए रहा, जबकि अक्तूबर महीने में यह 1.50 लाख करोड़ के स्तर को पार कर गया। यह लगातार आठवाँ महीना है, जब जीएसटी संग्रह 1.4 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा है।

कॉरपोरेट और व्यक्तिगत आयकर संग्रह चालू वित्त वर्ष में 1 अप्रैल से 8 अक्टूबर तक लगभग 24प्रतिशत बढ़ा है। इस दौरान कॉरपोरेट कर संग्रह में 16.74 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं व्यक्तिगत आयकर संग्रह में 32.30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि के दौरान कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 8.98 लाख करोड़ रुपये रहा, जो इससे पिछले साल की समान अवधि के संग्रह से 23.8 प्रतिशत अधिक है। साथ ही, यह संग्रह वित्त वर्ष 2022-23 के बजट अनुमान का 52.46 प्रतिशत है।

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 9 सितंबर को समाप्त पखवाड़े में कर्ज की वृद्धि दर 16.2 प्रतिशत रही, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 6.7 प्रतिशत रही थी। ऋण ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बावजूद ऋण वितरण में वृद्धि होना इस तथ्य की पुष्टि करता है कि माँग और आपूर्ति दोनों में तेजी आ रही है।

रुपये में आ रही गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जरुर कुछ दबाव बढ़ा है, लेकिन अमेरिकी डॉलर मजबूत होने से सिर्फ रुपया नहीं प्रभावित हुआ है। यूरो, येन और पाउंड जैसी मुद्राएं भी कमजोर हो रही हैं। रुपया कई अन्य मुद्राओं की तुलना में कम गिरा है. आयातक और विदेशी निवेशक दोनों को डॉलर की दरकार है। लिहाजा, रूपये की तुलना में डॉलर की कीमत बढ़ रही है। मौजूदा परिदृश्य में महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिकी फेडरल रिजर्व आने वाले दिनों में भी सख्त मौद्रिक नीति अपनायेगा, जिससे रूपये पर अभी भी दबाव बना रहेगा और देशों से पूँजी का निकलना भी जारी रहेगा. भारतीय बाजार से इस साल 24 अरब डॉलर की पूंजी बाहर निकल चुकी है।

आंकड़ों से साफ़ है, दुनिया के विकसित देश मंदी की गिरफ्त में आने के कगार पर हैं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी मजबूत बनी हुई है. मंदी के प्रमुख कारकों, चाहे वह जीडीपी हो, चाहे बेरोजगारी दर हो या फिर महंगाई दर, सभी मामलों में भारत दुनिया के विकसित देशों से बेहतर स्थिति में है. साथ ही,अर्थव्यवस्था के दूसरे जरुरी पैमानों पर भी उम्दा प्रदर्शन कर रहा है.

आज भारत के तमाम पड़ोसी देशों, जिनमें चीन भी शामिल है, कई-कई घंटे की बिजली की कटौती हो रही है। महंगाई से यूरोप और अमेरिका में हाहाकार मचा हुआ है. रुपया की तुलना में यूरोपीय देशों की मुद्राएं डॉलर के मुकाबले काफी नीचे आ गई हैं। भारत में महंगाई अभी भी ईकाई अंक में है। यही नहीं, भारत की विकास दर चालू वित्त वर्ष में 7 प्रतिशत के आसपास रह सकती है. इसलिए, यह कहना कतई सही नहीं होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की गिरफ्त में आने वाली है.

– सतीश सिंह

 

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