मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता है भोजन

मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन मूलभूत आवशयकता है। भोजन से ही हमारा शरीर बनता है। भोजन के प्रति हमें सदैव कृतज्ञ होना चाहिए। भारतीय संस्कृति में भोजन को देवता माना गया है। भोजन के कई सारे प्रकार हैं। यह हर जगह अलग-अलग प्रकार से बनता है। जैसी जहाँ की संस्कृति है, वहाँ उस संस्कृति के अनुसार ही भोजन के प्रकार बनते हैं। पूरे जीव सृष्टि को भोजन प्रदान करने का कार्य प्रकृति करती है। फिर चाहे वह कोई सब्जी हो या कोई फल या फिर चावल, गेहूँ आदि की फसल हो। यह सब कुछ हमें पृथ्वी की प्रकृति की वजह से प्राप्त होता है।
भोजन तीन प्रकार के होते हैं –
१. सात्विक भोजन : यह शरीर को शुद्ध करता है। मन को शांति प्रदान करता है। इस भोजन में ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, बादाम, अनाज, दूध आदि आते हैं।
२. राजसिक भोजन : यह शरीर और दिमाग को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। इसके सेवन से शरीर में अति सक्रियता, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, क्रोध, नींद ना आना इसका कारण है।  मसालेदार, प्याज, लहसुन, चाय-का@फी और तला भोजन राजसिक भोजन है।
३. तामसिक भोजन : तामसिक भोजन वह है, जो शरीर और मन को सुस्त करते हैं। इनके अत्यधिक सेवन से जड़ता, भ्रम और भटकाव महसूस होता है। बासी व पुन: गर्म किया गया, तेल वाला, मांसाहारी, वसायुक्त और अत्यधिक मीठा भोजन इसके अंतर्गत आता है।
एक कहावत है – ‘जैसा खाओ अन्न, वैसा होवे मन।’  इसीलिए दीर्घायु और स्वस्थ रहने के लिए हमेशा सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
लोक-मान्यता के अनुसार हमेशा जमीन पर बैठकर ही भोजन करना चाहिए,  इससे शरीर पर सकारात्मक प्रभाव होता है। इससे हमारा शरीर सीधे पृथ्वी के संपर्क में आता है, जिससे पृथ्वी की तरंगे पैरों की उंगलियों से होकर पूरे शरीर में फैल जाती हैं। ये तरंगे भोजन के साथ शरीर को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं। जमीन पर बैठकर खाने से खून का संचार दिल तक आसानी से होता है, जिससे किसी तरह की समस्या नहीं होती। इसलिए सदा जमीन पर बैठकर ही भोजन करना चाहिए। जमीन पर बैठकर खाने से पाचन तंत्र मजबूत होता है। एक मान्यता यह भी है कि थाली में कभी भी जूठा भोजन नहीं छोड़ना चाहिए। थाली में उतना ही भोजन लें, जितना आप आराम से खा सkोंÀ। भोजन को कूड़े में पेंÀकना अन्न का अपमान है।
सदैव हाथ, पैर और मुँह धोकर ही भोजन करना चाहिए। खाना शुरू करने से पहले भगवान का ध्यान कर उन्हें भोग जरूर लगायें। भोजन शुरू करने से पहले भोजन की थाली के चारों तरफ पानी छिड़कना चाहिए, जिससे कीट आदि भोजन की थाली से दूर रहें। खाना शुद्ध जगह पर ही बनाना चाहिए। माता, पत्नी और कन्या के द्वारा बनाया गया भोजन ही शुद्ध और वृद्धि करने वाला माना गया है। सबसे पहले भोजन-सामग्री अग्निदेव को समर्पित करनी चाहिए। इसके बाद गाय, कुत्ते, कौए, चींटी और देवताओंके लिए भोजन-ग्रास निकालना चाहिए। इसके बाद यदि घर में कोई मेहमान आया हो, तो उसे भोजन खिलाना चाहिए। इसके बाद खाना कैसा भी बना हो, उसे प्रसाद समझकर खुद ग्रहण करना चाहिए।
भोजन में तुलसीपत्र अवश्य डालें, ताकि अगर अन्न में कोई विषाक्त पदार्थ है, तो वह तुलसीपत्र के प्रभाव से नष्ट हो जाये। पूरे परिवार के साथ मिल-बैठकर ही भोजन करना चाहिए। इससे परिवार में प्रेम, सद्भाव और एकता कायम होती है। भोजन पूर्व तथा उत्तर दिशा की ओर मुँह करके ही करें। संभव हो, तो भोजन के समय मौन रहें। एक-दूसरे का झूठा भोजन न करें, इससे रोग होने की आशंका रहती है। बासी भोजन न खायें। भोजन के तुरंत बाद पानी न पियें। भोजन के बाद टहलना स्वास्थ के लिए हितकारी है।
   – जीतसिंह चौहान

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