आखिर बच्चे क्यों हिसंक हो रहै है??

मांटुगा स्थित एक विधालय के आठवी क्लास के दो सहपाठियों ने एक छात्रा के साथ लैंगिक घटना की रिपोर्ट सामने आई तथा कल्याण तथा आदि स्थानो में ऐसी खबर आई है। उपरोक्त जैसी घटनाऐ क्रमशः बढता चलन किस ओर ले जा रहा है?? कभी शिक्षकों पर हमला, कभी आपसे में गुटबाजी आदि……
शिक्षण संस्थान ही ऐसी जगह है जहाँ अनुशासन तथा संस्कार और सलीके सिखाये जाते है।,किन्तु विधालय में ही गलत कृत्य तथा मार-पीट ऐसा माहौल क्यो बन रहा है??

शिक्षा से तो अच्छे संस्कार और प्रेरणा स्रोत मानकर चलते है। तो अब पाठशाला में कोरोना के पश्चात मोबाइल तथा मीडिया का हस्तक्षेप एक कारण है। किन्तु माता-पिता का समय नही देना तथा बच्चों की भावनाओ को समझना चाहिए। तथा उनकी मन की बात पढनी तथा सही गलत की पहचान करवाना, प्रथम परिवार तथा फिर विधालय में शिक्षक का कार्य होता है।

पहले विधालय में शांत रहना भी सिखाये जाते थे।अब सिर्फ ऊपर ऊपर शांती दिखाई देती है। किन्तु अंदर क्रोध, हिंसक प्रवृति दिखाई देती है ।
देश के सर्वेक्षण के मुताबिक विधालय के प्रांगण से ही 20 प्रतिशत हिंसा का जन्म लेते है। कारण टीचर्स भी अपने अपने क्लास के विधार्थीयो को अच्छे से अच्छे अंक लाने पर जोर देते हैं, किन्तु ये नही देखते क्या वास्तविक में उनका मूल्यांकन से तुलना करना चाहिए। तथा परिवार में भी बच्चो को प्रतिस्पर्धात्मक रूप से बच्चों के मन में एकदूसरे के प्रति नफरत की बीज बोई जाती है ।और उनको हौड लगा देते है, कैसै भी स्पर्धा में अच्छे अंक लाना है।

इस प्रकार के स्पर्धात्मक पढाई के लिए होगा तो बच्चे का मानसिक तनाव तो होगा। आपसी स्पर्धा सिर्फ शिक्षण में हो तो कुछ हद तक ठीक है किन्तु वो मानसिक विकार तक नही पहुँचना चाहिए।
वस्तुतः हिंसा, वादविवाद, तनाव, आक्रमकता, जब बढ़ जाये तो बच्चों को इतना विवेकपूर्ण तथा, इतना बच्चों को भावनात्मक स्तर ऊंचा उठाना एक शिक्षक का कार्य होना चाहिए।
जब तक संसार में शिक्षण क्षेत्र में शांति का पाठ बच्चों को सिखाया जायैगा तो बच्चों में आक्रमकता की कमी तथा अन्य गलत व्यवहार नही पनप सकता।
धन्यवाद

डॉ आनंदी सिंह रावत

This Post Has One Comment

  1. Kusum Gusain

    बहुत अच्छा लिखा‌ है आपने।
    पर‌ स्पर्धात्मकता से ज्यादा शायद अध्यापन कार्य का व्यवसायीकरण और माता पिता का जीवन मूल्यों से अधिक भौतिक उपलब्धियों को महत्व देने की आदतों ने बच्चों के आचार और व्यवहार में गिरावट पैदा की है।
    वैमनस्य और विलगाव जैसे नकारात्मक भाव गहरी लापरवाही के कारण पैदा होते हैं।
    किसी ने सच ही कहा है –
    Parents and Teachers are co-partners in man making mechanism.

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