समुदाय विशेष पर क्यों मेहरबान है सुप्रीम कोर्ट ?

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फैसला दिया था कि हल्द्वानी में रेलवे की 78 एकड़ की जमीन पर बसे बनभूलपुरा को खाली करवाया जाए और पूरे इलाके में बुलडोजर चलवाकर जमीन को समतल किया जाए ताकी रेलवे की जमीन रेलवे को सौंपी जा सके । पूरे इलाके में 4 हजार 365 कच्चे पक्के मकान थे । इलाके में 20 मस्जिदें थीं । लेकिन इलाके में रहने वाले 95 प्रतिशत लोग मुसलमान थे । इसलिए पूरा जिहादी इको सिस्टम सिर के बल पर खड़ा हो गया ।

वैसे तो सुप्रीम कोर्ट में किसी फैसले के लिए 50-50 साल तक गरीब लोग एड़ियां घिसते रहते हैं । लेकिन क्योंकि मामला मुसलमानों का था इसलिए कछुए की रफ्तार से चलने वाला सुप्रीम कोर्ट भी खरगोश की तरह दौड़ने लगा । कश्मीर को आजाद करने की मांग करने वाले प्रशांत भूषण ने हल्द्वानी के इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सिफारिश की । प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूढ, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के सामने सिफारिश लगाई कि मुसलमानों के घर गिरवा दिए जाएंगे आप फौरन सुनवाई करें । बुधवार को प्रशांत भूषण ने हाजिरी लगाई और गुरुवार को ही सुनवाई की तारीख लग गई ।

फैसला भी फौरन आ गया । गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और बुलडोजर पर एक महीने के लिए स्टे लगा दिया । इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी वाले फैसले को ही दोहरा दिया । 50 साल पहले हल्द्वानी की रेलवे लाइन की इस जमीन पर सिर्फ और सिर्फ छप्पर और तिरपाल था । बाद में ये अवैध बस्ती 78 एकड़ तक फैल गई । वोटर कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड सब कुछ बन गया । बिजली, पानी, सडक का टैक्स भी दिया जाने लगा लेकिन 4 हजार 365 वादियों में से एक भी जमीन का कागज नहीं दिखा सका । इसीलिए साल 2007 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कब्जा हटाने के लिए कहा था लेकिन तब भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी और जब फरवरी 2013 में उत्तराखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगने के बाद दोबारा सुनवाई शुरू हुई तो भी अब सुप्रीम कोर्ट ने ही रोक लगा दी है ।

याद कीजिए जब दिल्ली के जहांगीरपुरी में दंगे हुए थे उस वक्त भी ऐसा ही हुआ था । जहांगीरपुरी में सुबह 10 बजे से बांग्लादेशियों की बस्ती पर बुलडोजर चलने शुरू हो गए थे । लेकिन एक घंटे बाद सुबह 11 बजे ये मामला सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ एन वी रमन्ना की बेंच के सामने उठाया गया और तुरंत आधे घंटे के अंदर सुप्रीम कोर्ट ने जहांगीरपुरी में स्टे लगा दिया यानी यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया । सुप्रीम कोर्ट की इस बिजली वाली रफ्तार से हमें कोई आपत्ति नहीं है हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं कि ऐसी ही रफ्तार सुप्रीम कोर्ट हर केस में क्यों नहीं दिखाती है ?

14 दिसंबर 2022 को अखबारों में खबर प्रकाशित हुई कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की जांच की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा खारिज कर दिया है ।

इसी तरह जब बंगाल में चुनाव जीतने के बाद टीएमसी के गुंडे अनुसूचित जाति जनजाति के हिंदुओं के साथ मध्ययुगीन क्रूरता कर रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट सो रहा था और ग्रीष्म कालीन अवकाश पर जाने की तैयारी कर रहा था । हिंदुओं की जान भी चली जाए तो सुप्रीम कोर्ट को कोई फर्क नहीं पड़ता है और मुसलमानों के आशियाने के लिए सुप्रीम कोर्ट दुबला हुआ जाता है ।

इसी तरह कोरोना के समय सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के अंदर कावड़ यात्रा पर संज्ञान लिया था लेकिन केरल में बेतहाशा कोरोना के बाद भी बकरीद पर कोई संज्ञान नहीं लिया था ।

सिर्फ रीढ़ की हड्डी में दर्द होने की वजह से राना अयूब को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी । एक प्रेग्नेंट अपराधी महिला जिहादी को भी फौरन बेल दे दी गई थी ।

अयोध्या के फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के साथ पक्षपात करते हुए उनको अयोध्या के अंदर ही 5 एकड जमीन मस्जिद बनाने के लिए दे दी । सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में ये कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका की बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी । जबकि पूरी दुनिया में लाखों करोड़ो टूटी हुई मूर्तियां मंदिर और गिरिजाघर जिहाद की मॉडस ऑपरेंडी की गवाही देते हुए आज भी खड़े हैं ।

या तो सुप्रीम कोर्ट हर मुद्दे पर संज्ञान ले या फिर स्वत संज्ञान लेने की पक्षपात पूर्ण परंपरा बंद करे । जिहादियों की याचिकाओं पर बिना रोटी दौड़े दौड़े फैसले के लिये बेकरार रहना इंसानों की आदत नहीं है

नूपुर शर्मा केस में नूपुर के खिलाफ देश भर में दायर सारे मामलों को दिल्ली की अदालत में लाए जाने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा के खिलाफ कई ऑब्जर्वेशन दिए । तब तालिबान ने भी सुप्रीम कोर्ट की प्रशंसा की थी । तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने तब कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का ये बयान कि नूपुर को माफी मांगनी चाहिए एकदम सही है ।

सुप्रीम कोर्ट के ही एक और जज जस्टिस धूलिया ने स्कूल में हिजाब पहनने के समर्थन में फैसला दिया था वो भी तब, जब ईरान में हजारों महिलाएं हिजाब के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं और हजारों लोगों की इसमें मौत हो चुकी है

आजम खान को भी कई बार सुप्रीम कोर्ट ने ही जमानत दी । रामपुर कोर्ट से रिहा हुए आजम को जैसे यकीन था कि सुप्रीम कोर्ट बेल दे देगा ।

– दिलीप पांडे

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