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“बिन पानी सब सून” कहावत कहीं वास्तविकता न बन जाए

“बिन पानी सब सून” कहावत कहीं वास्तविकता न बन जाए

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, पर्यावरण, विशेष, सामाजिक
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ऐसा कहा जा रहा है कि आगे आने वाले समय में विश्व में पानी को लेकर युद्ध छिड़ने की स्थितियां निर्मित हो सकती हैं, क्योंकि जब भूगर्भ में पानी की उपलब्धता यदि इसी रफ्तार से लगातार कम होती चली जाएगी तो वर्तमान स्थानों (शहरों एवं गावों में) पर निवास कर रही जनसंख्या को अन्य स्थानों पर जाकर बसने को बाध्य होना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में, उन स्थानों जहां पर पानी की पर्याप्त उपलब्धता है, ऐसे स्थानों पर अधिक से अधिक लोग बसना चाहेंगे और फिर नागरिक आपस में युद्ध की स्थिति निर्मित करेंगे।

आगे आने वाले समय में पानी की अनुपलब्धता सम्बंधी परेशानियों से हमारे समाज के श्रद्धेय बुज़ुर्ग हमें लगातार आगाह कर रहे हैं परंतु इस देश के नागरिक होने के नाते अभी भी उक्त समस्या को हम गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जिसका बहुत बुरा परिणाम शायद हमें अथवा हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है।

दिनांक 5 जनवरी 2023 को ‘जल विजन 2047’ कॉन्फ़्रेन्स को सम्बोधित करते हुए देश के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि जल संरक्षण से जुड़े अभियानों में हमें जनता जनार्दन को, सामाजिक संगठनों को और सिविल सोसायटी को ज्यादा से ज्यादा जोड़ना होगा। हालांकि आज  जियो मैपिंग और जियो सेंसिंग जैसी तकनीक जल संरक्षण के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं और इस कार्य में विभिन्न स्टार्टअप भी सहयोग कर रहे हैं, परंतु, फिर भी  इस संदर्भ में नागरिकों का जागरूक होना बहुत आवश्यक है। भारत के नागरिकों द्वारा स्वच्छ भारत अभियान को भी इसी प्रकार सफल बनाया गया है। सरकार ने संसाधान जुटाए, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और शौचालय बनाने जैसे अनेक कार्य किए, लेकिन अभियान की सफलता तब सुनिश्चित हुई जब जनता ने सोचा कि गंदगी नहीं फैलानी है।  इस अभियान से जब सब लोग जुड़े और जनता में चेतना और जागरूकता आई, तभी यह अभियान सफल हो सका। जनता में यही सोच जल संरक्षण ​के लिए भी जगाने की आज महती आवश्यकता है।

इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूजनीय सर संघचालक श्री मोहन भागवत जी ने ‘सुजलाम अंतरराष्ट्रीय सेमिनार’ को संबोधित करते हुए जल का संयमित उपयोग करने एवं जल को बचाने का आह्वान किया। उक्त सेमिनार देश में चलाए जा रहे ‘सुमंगलम’ नामक कार्यक्रमों की एक शृंखला का भाग है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रकृति के पांच मूल तत्वों या ‘पंचमहाभूत’ – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष की शुद्धता को सुरक्षित रखने की अनूठी भारतीय अवधारणा को प्रस्तुत करना है। पर्यावरण संकट पर भारत सहित पूरी दुनिया में गहरा संकट देखने को मिल रहा है। इस महासंकट से निजात दिलाने में भारत सक्षम है।

आईए पहिले जल संकट की लगातार गम्भीर होती समस्या को समझने का प्रयास करते हैं। भारत में पूरे विश्व में उपलब्ध ताजे जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत भाग ही मौजूद है जबकि विश्व की कुल जनसंख्या के 18 प्रतिशत भाग को भारत में जल उपलब्ध कराया जा रहा है।  केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, वर्ष 2010 में देश में मौजूद कुल ताजे जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिये किया जा रहा था जो वर्ष 2050 तक भी लगभग 68 प्रतिशत के स्तर पर बना रहेगा। वर्ष 2010 में घरेलू कार्यों में उपयोग होने वाले जल की मात्रा 6 प्रतिशत थी जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 9.5 प्रतिशत हो जाएगी। इस प्रकार भारत में कृषि क्षेत्र जल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता बना रहेगा ताकि भविष्य के लिये पर्याप्त खाद्यान्न की उपलब्धता बनी रहे। भारत के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा ही सिंचित हैं।

सिंचाई के लिये सर्वप्रमुख स्रोत के रूप में भूमिगत जल (63 प्रतिशत) का उपयोग किया किया जाता है, जबकि नहर (24 प्रतिशत), जलकुंड/टैंक (2 प्रतिशत) एवं अन्य स्रोत (11 प्रतिशत) भी इसमें अंशदान करते हैं। इस प्रकार, भारतीय कृषि में सिंचाई का वास्तविक बोझ भूमिगत जल पर है। समग्र स्थिति यह है कि 256 जिलों के 1,592 प्रखंड भू-जल के संकटपूर्ण अथवा अति-अवशोषित स्थिति में पहुंच गए हैं। इसी प्रकार जल संकट से जूझ रहे दुनिया के 400 शहरों में से शीर्ष 20 में 4 शहर (चेन्नई पहले, कोलकाता दूसरे, मुंबई 11वें तथा दिल्ली 15वें स्थान पर है) भारत में है। संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार देश के 21 शहर जीरो ग्राउंड वाटर स्तर पर शीघ्र ही पंहुच सकते हैं।

देश में प्रतिवर्ष औसतन 110 सेंटीमीटर बारिश होती है एवं बारिश के केवल 8 प्रतिशत पानी का ही संचय हो पाता है, शेष 92 प्रतिशत पानी बेकार चला जाता है। अतः देश में, शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में, भूजल का उपयोग कर पानी की पूर्ति की जा रही है। भूजल का उपयोग इतनी बेदर्दी से किया जा रहा है कि आज देश के कई भागों में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि 1000 फुट तक जमीन खोदने के बाद भी जमीन से पानी नहीं निकल पा रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, पूरे विश्व में उपयोग किए जा रहे भूजल का 24 प्रतिशत हिस्सा केवल भारत में ही उपयोग हो रहा है। यह अमेरिका एवं चीन दोनों देशों द्वारा मिलाकर उपयोग किए जा रहे भूजल से भी अधिक है। इसी कारण से भारत के भूजल स्तर में तेजी से कमी आ रही है।

हम बचपन से देखते आ रहे हैं कि भारत के पहाड़ी इलाकों में कई स्थानों पर बहुत पुराने पानी के चश्मे थे। साथ ही, मैदानी क्षेत्रों में जल से भरपूर कूएं, बावड़ियां होती थीं। चश्मों, में बहुत स्वादिष्ट पानी रहता था। गर्मियों में भी वह पानी कभी सूखता नहीं था। परंतु पिछले अनेक वर्षों से मैदानी इलाकों में कूएं, नदियां और नाले सूखते जा रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में चश्में भी सूख गए हैं, इनमें सदियों से बह रहा पानी लुप्त हो गया है। देश में इतनी बड़ी दुर्घटना कभी चर्चा का विषय नहीं बनी, यह हम सब जागरूक नागरिकों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। ऐसा कहा जा रहा है कि भारत में विदेशों से बीजों का आयात कर जो पौधे लगाए गए हैं, उनमें से कई पौधे नकारात्मक ऊर्जा वाले व हानिकारक हैं। इन पौधों से हवा, पानी, भूमि प्रदूषित हो रही है एवं प्राणियों के स्वास्थ्य, शरीर, मन पर गम्भीर दुष्प्रभाव हो रहे हैं। सम्भवतः जमीन का पानी भी इन पौधों के कारण सूख रहा है। भारत में जो भी विदेशी पौधे लगाये जा रहे हैं, उन्हें लगाने के पूर्व वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में इनकी विधिवत जांच की जानी चाहिये और उसके बाद ही कोई पौधा भारत की धरती पर लगाने की अनुमति दी जानी चाहिये।

उक्त के साथ ही, देश की खाद्य सुरक्षा को प्रभावित किए बिना सिंचाई स्तर पर पानी के उपयोग को नियंत्रित करना आवश्यक है। ड्रिप एवं स्प्रिंक्लर तकनीक को प्रभावी ढंग से लागू करके प्रति एकड़ सिंचाई के लिए पानी की खपत में 40 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है।  ऐसी फसलें, जिन्हें लेने में पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है, जैसे, गन्ने एवं अंगूर की खेती, आदि को पानी की कमी वाले इलाकों में धीरे-धीरे कम करते जाना चाहिए और इन्हें देश के उन भागों में स्थानांतरित कर देना चाहिए जहां हर वर्ष अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है। उदाहरण के तौर पर गन्ने की फसल को महाराष्ट्र एवं उत्तरप्रदेश से बिहार की ओर स्थानांतरित किया जा सकता है। देश की विभिन्न नदियों को जोड़ने के प्रयास भी प्रारम्भ किए जाने चाहिए जिससे देश के एक भाग में बाढ़ एवं दूसरे भाग में सूखे की स्थिति से भी निपटा जा सके। विभिन्न स्तरों पर पाइप लाइन में रिसाव से बहुत सारे पानी का अपव्यय हो जाता है, इस तरह के रिसाव को रोकने हेतु भी सरकार को गम्भीर प्रयास करने चाहिए।

आज आवश्यकता इस बात की भी है कि हम घर में कई छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर भी पानी की भारी बचत करें। जैसे, (i) दांतों पर ब्रश करते समय सीधे नल से पानी लेने के बजाय, एक डब्बे में पानी भरकर ब्रश करें, (ii) शेव करते समय चालू नल के इस्तेमाल की जगह एक डब्बे में पानी भरकर शेव करें, (iii) स्नान करते समय शॉवर का इस्तेमाल न करके, बालटी में पानी भरकर स्नान करें, (iv) घर में कपड़े धोते समय नल के पानी को चालू रखते हुए कपड़े धोने के स्थान पर बालटी में पान भरकर कपड़े धोएं, एवं (v) टोईलेट में फ्लश की जगह पर बालटी में पानी का इस्तेमाल करें। एक अनुमान के अनुसार, इन सभी छोटे छोटे कार्यों पर ध्यान देकर प्रति परिवार प्रतिदिन 300 लीटर से अधिक पानी की बचत की जा सकती है।

कुल मिलाकर भारत के हम सभी नागरिक पानी के संरक्षण के सम्बंध में यदि समय रहते नहीं चेते तो “बिन पानी सब सून” कहावत हमारे जीवन में ही वास्तविकता बन जाएगी।

– प्रहलाद सबनानी

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Tags: climate changeenvironmentfresh waterglobal warmingground watermonsoonrain water harvestingriverswater vision 2047

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