एक भक्त थे कुम्भन दास जी, गोवर्धन की तलहटी में रहते थे ।
एक बार की बात है कि भक्त कुम्भन दास जी भगवान श्रीनाथजी के पास गये जाकर देखा कि श्रीनाथजी अपना मुँह लटकाये बैठे हैं ।
कुम्भन दास जी बोले – प्रभु क्या हुआ है, मुँह फुलाये क्यों बैठे हो ।
श्रीनाथ जी बोले – क्या बताऊ कुम्भन आज माखन खाने का मनकर रहयो है ।
कुम्भन दास जी -बताओ प्रभु क्या करना चाहिए माखन कहा से लाये ।
श्रीनाथजी – देख कुम्भन एक गोपी है , जो रोज मेरे दर्शन करने आवे मोते बोले कि प्रभु मोय अपनी गोपी बना लो सो आज वाके घर चलते हैं
कुम्भन दास जी – प्रभु काऊ ने देख लिये तो कहा होगो ।
श्रीनाथजी – कोन देखेगो आज वाके घर में वाके शादी है , सब बरात में गये हैं घर पर सब गोपी ही गोपी है और हम तो चुपके से जायेगे याते काहु हे न पतो हो ।
कुम्भन दास जी – ठीक प्रभु मै बुढा और तुम हट्टे -कट्टे कोई बात हैगयी तो छोडके मत भाग आईओ ।
श्रीनाथ जी – ठीक है पक्की साथ – साथ भागेगे कोई गोपी आ गयी तो नही तो माखन खाके चुप चाप भाग आयेगे ।
श्रीनाथ जी और कुम्भन दास जी दोनों गोपी के घर जाने केलिये निकले , और चुपके से घर के बगल से एक छोटी सी दीवार से होकर जाने की योजना बना ली ।
श्रीनाथजी – कुम्भन तुम लम्बे हो तो पहले मुझे दीवार पर चढाओ ।
कुम्भन दास जी -ठीक है प्रभु कुम्भन दास जी ने प्रभु को ऊपर चढा दिया और प्रभु ने कुम्भन दास जी को और दोनों गोपी के घर में घुसकर माखन खाने लगे , प्रभु खा रहे थे और कुम्भन दास जी को भी खिला रहे थे ,
कुम्भन दास जी की मूँछों और मुँह पर माखन लग गयो अचानक श्रीनाथजी कूॅ एक बुढी मईय्या एक खाट पर सोती हुई नजर आई जिसकी आँखखुली सीलग रही थी और उसका हाथ सीधा बगल की तरफ लम्बा हो रहा था यह देख प्रभु बोले ।
श्रीनाथजी – कुम्भन देख यह बुढी मईय्या कैसी देख रही हैं और लम्बा हाथ करके माखन माग रही है , थोडो सो माखन याकू भी दे देते हैं ।
कुम्भन दास जी – प्रभु न मरवाओगे क्या बुढी मइय्या जग गयी न तो लेने के देने पड जायेगे ।
श्रीनाथ जी गये और वा बुढी मईय्या के हाथ पर माखन रख दिया ,
माखन ठण्डा ठण्डा लगा बुढी मईय्या जग गयी और जोर जोरसे आवाज लगाने लगी चोर – चोर अरे कोई आओ घर में चोर घुस आयो ।
बुढिया की आवाज सुन कर घर में से जो जो स्त्री थी वो भगी चली आयी और इधर श्रीनाथजी भी भागे और उस दीवार को कुदकर भाग गये
उनके पीछे कुम्भन दास जी भी भागे और दीवार पर चढने लगे वृद्ध होने के कारण दीवार कु पार नही कर पाये आधे चढे ही थे की एक गोपी ने पकड कर खींच लिये और अन्धेरा के कारण उनकी पीटाई भी कर दी ।
जब वे उजाला करके लाये और देखा कुम्भन दासजी है , तो वे सभी अचम्भित रह गयी क्योंकि कुम्भनदासजी को सब जानते थे कि यह बाबा सिद्ध है ।
गोपी बोली – बाबा तुम घर में रात में घुस के क्या कर रहे थे और यह क्या माखन तेरे मुँह पर लगा है क्या माखन खायो बाबा तुम कह देते तो हम तुम्हारे पास ही पहुँचा देते । इतना कष्ट करने की क्या जरूरत थी ।
बाबा चुप थे , बोले भी तो क्या बोले ।
गोपी बोली – बाबा एक शंका है कि तुम अकेले तो नही आये क्योंकि इस दीवार को पार तुम अकेले नही कर सकते ।
कुम्भन दास जी – अरी गोपी कहा बताऊ कि या श्रीनाथजी के मन में तेरे घरको माखन खाने के मन में आ गयी कि यह प्रतिदिन कहे प्रभु मोये गोपी बना ले सो आज गोपी बनावे आ गये आप तो भाग गये मोये पीटवा पदियो ।
गोपी बडी प्रसन्न हुई कि आज तो मेरे भाग जाग गये ।
यह भावना युक्त लीला हैं भक्त बडे विचित्र और उनके प्रभु उनसे से अधिक विचित्र होते हैं ।
जब कुछ लोग उनकी लीलाओ पर टिप्पणी करते हैं हमारे पास जवाब नही होता..!!
अमर प्रेम के पाले पड़ कर, प्रभु को नियम बदलते देखा।
खुद का मान भले टल जाए, पर भक्त का मान न टलते देखा ।।
जिनके एक इशारे पर ही सकल सृष्टि को पलते देखा ।
उनको गोकुल के गौ रस पर सौ-सौ बार मचलते देखा।।
Bahut hi sundar leela. Bahut sundar bhaav aur shabd.
Jai Jai Bhakt aur Bhagwan 🙂