हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
पू. सरसंघचालक के वक्तव्य का संदर्भ

पू. सरसंघचालक के वक्तव्य का संदर्भ

by रमेश शर्मा
in मार्च-२०२३, विशेष, संघ
0

संत शिरोमणि रविदास जयंती के अवसर पर पू. सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा कही बातों पर राष्ट्रविरोधी जनों ने विरोध करना शुरू कर दिया कि उन्होंने ब्राह्मणों का अपमान कर दिया, जबकि उन्होंने कहीं पर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग ही नहीं किया था। कुतर्क करने वालों के लिए संघ पहले ब्राह्मणवादी था, और अब वे संघ को ब्राह्मणविरोधी कह रहे हैं। कितना हास्यास्पद है यह!

सत्यहीन और तथ्यहीन बातों में उलझाकर सनातन हिंदू समाज में बिखराव पैदा करने के कुचक्र में एक अध्याय और जुड़ गया। यह अध्याय है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पू.सरसंघचालक मोहन भागवत द्वारा दिये गये एक सम्बोधन का। पू.सरसंघचालक के भाव को बिना समझे केवल एक शब्द को मुद्दा बनाकर तनाव पैदा करने का प्रयास हो रहा है। इस कुचक्र को वे राजनीतिक दल और उनके समर्थक मीडिया समूह हवा दे रहे हैं, जो भारत के स्वत्व, स्वाभिमान और सामाजिक उत्थान के लिये नहीं अपितु अपने निहित उद्देश्य के लिये समाज को विभाजित करने का काम करते हैं।

पू.सरसंघचालक मोहन भागवत पिछले दिनों संत रविदास महोत्सव में बोल रहे थे। उन्होंने अपने सम्बोधन में भारतीय समाज रचना की श्रेष्ठता और मानव मात्र में एकत्व की विशेषता समझाई। उन्होंने अपने उद्बोेधन में प्रत्येक मनुष्य और प्राणी में ईश्वरीय अंश का एकत्व भाव समझाया। सम्बोधन मराठी में था। उन्होंने कहा था- सत्य यह है कि मैं सब प्राणियों में हूं, इसलिए रूप नाम कुछ भी हो लेकिन योग्यता एक है, मान सम्मान एक है, सबके बारे में अपनापन है। कोई भी ऊंचा या नीचा नहीं है। शास्त्रों का आधार लेकर पंडित लोग जो जाति आधारित ऊंच-नीच की बात कहते हैं, वह झूठ हैं। उनके इन वाक्यों में पंडित शब्द है, ब्राह्मण शब्द है ही नहीं। उनका पूरा सम्बोधन सांस्कृतिक और सामाजिक एकत्व पर केंद्रित था। उसमें न तो किसी वर्ग, वर्ण या जाति की प्रशंसा है, न किसी की आलोचना। उन्होंने न किसी को श्रेष्ठ बताया और न किसी को नेष्ठ। उनके सम्बोधन में ब्राह्मण शब्द आया ही नहीं।

हां, पंडित शब्द आया। भारत में पंडित शब्द का आशय किसी वर्ण या वर्ग विशेष के लिये नहीं अपितु विषय विशेषज्ञ के लिये प्रयोग होता है। संघ प्रमुख का संकेत उन कुछ लोगों के लिये था जो स्वयं को ऊंचा दिखाने के लिये शास्त्रों की मनमानी व्याख्या करते हैं। और अपनी निजी राय को शास्त्रों का बहाना बनाकर समाज में विभेद करना चाहते हैं। पू.सरसंघचालक मोहन भागवत का भाव पूरे सनातन हिंदू समाज में एकत्व की स्थापना करना था। किंतु भाव को समझा ही नहीं गया और एक शब्द पकड़कर हमला बोल दिया गया। वस्तुतः इस सारी बहस के पीछे संघ के विरुद्ध सनातन हिंदू विरोधी मानसिकता है जो संघ पर हमला बोलने का अवसर और बहाना तलाशती है। अपनी स्थापना के प्रथम दिन से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अभियान सम्पूर्ण हिंदू सनातन समाज को एक सूत्र में पिरोने का रहा है। संघ यात्रा का संकल्प उन लोगों के मार्ग में बाधा बना जो भारतीय समाज जनों को विभाजित करके और भ्रमित करके अपने पंथ और सत्ता दोनों को बनाये रखना चाहते हैं। उनकी तो घोषित नीति रही, विभाजित करो और शासन करो।

वे जानते थे कि संसार भर में भारतीय गौरव संस्थापना का आधार सनातन हिंदू समाज का अटूट ताना-बाना रहा है, सांस्कृतिक परपराओं की गरिमा से रहा है और उनकी वैज्ञानिकता से रहा है। इसके विरुद्ध दो षड्यंत्र चले। एक षड्यंत्र भारतीय मान्यताओं और परम्पराओं का उपहास बनाकर समाज को अपनी जड़ों से दूर करने का और दूसरा समाज को बांटकर अपनी सत्ता स्थापित करने का। वे अपने षड्यंत्र में सफल हुए और भारत दास बन गया। लेकिन दासत्व के घोर अंधकार में भी कुछ व्यक्ति, समूह, वर्ग, वर्ण और संगठन सांस्कृतिक परम्पराओं और स्वत्व बोध के जागरण के लिये समर्पित रहे। जो लोग षड्यंत्र करके भारत पर हावी हुए, उन लोगों के निशाने पर सदैव हर वह व्यक्ति, संस्था और संगठन रहा है जो भारत की मान्यताओं के पुनर्जागरण के लिये आगे आया।

इतिहास के इस तथ्य से कोई इंकार नहीं कर सकता कि विषम परिस्थियों में ब्राह्मणों और पुरोहित-पुजारियों ने भूखे रहकर, अपने प्राणों की बाजी लगाकर भारतीय अस्मिता की रक्षा का प्रयत्न किया। इसीलिए सल्तनत काल और अंग्रेजी काल में योजनापूर्वक ब्राह्मणों के विरुद्ध अभियान चले। ब्राह्मणों पर कैसे अत्याचार किये गये, सामूहिक नरसंहार हुए, इन घटनाओं से इतिहास भरा पड़ा है। जो काम कभी ब्राह्मणों ने किया था, उसी काम को आगे बढ़ाने के लिये एक संगठनात्मक स्वरूप लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामने आया। इसीलिए इस पर सबसे अधिक हमले हुए। स्वतंत्रता से पूर्व मिशनरीज, मुस्लिम लीग और अंग्रेजी सत्ता ने संघ को अपना शत्रु नम्बर एक माना। स्वाधीनता आंदोलन में जंगल सत्याग्रह के बाद विभिन्न बहानों से संघ और संघ के पदाधिकारियों के विरुद्ध जो हमले आरम्भ हुए, वे थमने का नाम ही नहीं ले रहे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत के उन विरले संगठनों में से एक है जो भारतीय मानबिंदुओं, सांस्कृतिक गौरव के प्रतीकों के लिये पूर्ण समर्पित हैं और इसके लिये समाज को समरस स्वरूप में रहना आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके एक-एक स्वयंसेवक की जीवन यात्रा इसी दिशा में है। यह काम कभी पुजारी, पुरोहित और ब्राह्मण समाज करता था। इसलिए विदेशी सत्ताओं के निशाने पर यह वर्ग रहा और जब संगठनात्मक रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस काम को आगे बढ़ाया तो उनके निशाने पर संघ का आना भी स्वाभाविक था। वे अब तक संघ पर ब्राह्मणवाद का आरोप लगाकर समाज के अन्य वर्गों को संघ से तोड़ने का प्रयास करते थे। संघ विरोधी लोग तर्क देते थे कि संघ के संस्थापक न केवल स्वयं ब्राह्मण थे अपितु उसके अधिकांश पू.सरसंघचालक ब्राह्मण ही रहे। यह कहकर वे समाज के अन्य वर्गों को संघ के विरुद्ध भड़काते रहे पर भारतीय जन सत्य समझते हैं। वे हिंदू समाज को विभाजित करने के कुचक्र से भी परिचित हैं इसलिए संघ के विरुद्ध सतत दुष्प्रचार और हजार अवरोधों के बावजूद संघ शक्ति में निरंतर वृद्धि होती रही।

संघ विरोधी चेहरे बदले हैं, शब्द बदले हैं। समय के साथ विषय बदले, शैली बदली, तरीका भी बदला है पर संघ पर हमला करने का कुचक्र नहीं बदला। अब इस बार नया मुद्दा मिला संघ के ब्राह्मणों को लामबंद करने का। इसी मानसिकता के चलते अब संघ और वर्तमान पू.सरसंघचालक मोहन भागवत को निशाने पर लिया गया। उनके वक्तव्य को ब्राह्मण विरोधी बताकर दुष्प्रचार किया गया, जबकि उनके वक्तव्य में ब्राह्मण शब्द था ही नहीं। वे भले कितनी शक्ति लगाएं पर समाज संघ के सत्य से परिचित है। भारतीय समाज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इस राष्ट्र और संस्कृति के प्रति समर्पण से अवगत है। स्वयं पू.सरसंघचालक मोहन भागवत न केवल जन्म से ब्राह्मण हैं, वे आचरण से भी ब्राह्मण हैं, त्रिकाल संध्या करते हैं, बिना मंत्रोच्चार के भोजन ग्रहण नहीं करते। उनका जीवन ऋषि जीवन है। और फिर उनके वक्तव्य का मूल मराठी अंश और उसका हिंदी अनुवाद भी सोशल मीडिया में उपलब्ध है। उसमें ब्राह्मण शब्द है ही नहीं, तो उनका चिंतन ब्राह्मण विरोधी कैसे होगा? इसलिए इस दुष्प्रचार का भारतीय समाज पर कोई प्रभाव नहीं। पूर्व में दुष्प्रचारों की भांति यह दुष्प्रचार भी कुछ दिन चला अवश्य, पर शीघ्र दम तोड़ दिया।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: dr mohan bhagvatrashtriya swayamsevak sanghrsssarsanghchalak

रमेश शर्मा

Next Post
सम्बलपुर का क्रांतिवीर सुरेन्द्र साय

सम्बलपुर का क्रांतिवीर सुरेन्द्र साय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0