आरएसएस हिंदुत्व का विराट दर्शन

हमलोगों को “हिंदू” कब से कहा जाया जाने लगा ये तो ठीक-ठीक नहीं पता पर मेरे ख्याल से ये नाम हमारे लिए सबसे उपयुक्त नाम है क्योंकि ये सर्वसमावेशी नाम है जो हमारी सामूहिक प्रकृति को सबसे ठीक से परिभाषित करती है।

महाभारत के बाद से भारत कई अवैदिक मतों की उद्भव स्थली बनी। बौद्ध, जैन और सिख मत जन्में। अगर और ज्यादा विस्तृत रूप में कहें तो हिंदुत्व वो है जिसमें सनातनी, बौद्ध, जैन, निंबार्ककी, सिख (सिखों में भी सहजधारी, केशधारी) लिंगायत, गृहस्थ, संन्यासी, नास्तिक, वैदिक, अवैदिक, अज्ञेयवादी, निरंकारी, प्रकृति पूजक, मशान पूजक, सुधारवादी, जड़वादी, कैवल्य, रामस्नेही सबके सब इस के अंदर समाहित है।

दिक्कत ये हुई कि ये सब जो पंथ-उपपंथ-मत- संप्रदाय आदि जन्में इन सबके अपने गुरु, अपने इष्ट, अपने प्रवर्तक और अपने तीर्थंकर हैं। इनके अपने तीर्थ हैं। अपनी परंपराएं हैं। अपने आश्रम और कर्मकांड हैं तो जब तक इनके अस्तित्व को समाहित करते हुए एक umbrella में संरक्षण देने वाली व्यवस्था इन्हें नहीं मिलती, ये अपनी अलग डफली बजाते ही रहेंगे। किसी ने जरा ही छेड़ा नहीं कि ये अपनी अलगाववादी डफली पीटने लगते हैं।

समस्या ये भी कि हिंदुओं के अंदर जो सनातनी पीठ हैं वो बेचारे तो बड़ी मुश्किल से शैव, वैष्णव और शाक्त परंपरा को एक साथ स्वीकार कर पाए हैं अब वो कहां उन-उन पंथों को मान्यता देने जाएं जिनके पीछे उनके अनुयायी उन्हें अवैदिक, वर्णाश्रम मर्यादाहीन आदि कहकर लट्ठ लिए खड़े रहते हैं।

ठीक से कोई नहीं कोई आया जो वैशाली को, ननकाना को, पटना को, पावापुरी को या लुम्बिनी को हिंदू धर्म स्थल के रूप में मान्य कर लेता? कोई क्यों नहीं आया जो अमृत सरोवर के डुबकी को भी पापनाशिनी या मोक्ष प्रदान करने वाला बताता? कोई नहीं आया जो सुधारवादी विचारों से अच्छे विचारों को आत्मसात कर उन्हें मान्यता देता।

अगर आपने या हमने ये नहीं किया तो वो लोग तो आपसे दूर होकर “हम हिंदू नहीं” का बेसुरा राग अलापेंगे ही।

हिंदुत्व की शक्ति इसकी विविधता है, इसलिए यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही स्वीकार्य हो सकेगा क्योंकि वो “जितनी राहें उतने दर्शन चिंतन का चैतन्य धरा” के नैसर्गिक हिंदू दर्शन में बिलीव करता है। आप कभी आरएसएस के एकात्मता स्त्रोत को पढ़िए आपको समझ आ जायेगा कि मैं आरएसएस को हिंदू समाज का एकमात्र संगठनकर्ता क्यों कहता हूं।

संघ के एकात्मता स्त्रोत में पाटिलीपुत्र भी है और वैशाली भी, अमृतसर भी है और नॉर्थ ईस्ट में बहने वाला ब्रह्मपुत्र भी। जैन मत की आगम पुस्तकें हैं तो बौद्ध मत की त्रिपिटक और गुरु ग्रंथ साहिब के सत्य श्लोक भी है।

यहां भगिनी निवेदिता भी प्रशंसित हैं तो पुण्य श्लोका देवी अहल्याबाई होलकर भी। यहां एकलव्य भी प्रशंसित हैं तो तो मनु भी। भगवान बुद्ध, भगवान महावीर के लिए भी आदर भाव है तो योगी गोरखनाथ से लेकर माधवाचार्य और निम्बार्कचारी भी पूजित हैं। सिंध के झूलेलाल और महर्षि देवल से लेकर बंगाल से महाप्रभु चैतन्य और दक्षिण से तिरुवल्लुवर, नयनमार, अलवर, कंबन और बसवेश्वर भी संघ के एकात्मता यात्रा में वंदित है।

संघ ने वंचित समाज के संत रविदास, निर्गुण निराकार उपासक
कबीर, शंकरदेव और गुरु नानक को मान दिया तो सगुण साकार उपासक तुलसीदास और रामानंद को भी। संघ ने रसखान को भी याद रखा तो कृषकों की बात करने वाले स्वामी सहजानंद को भी। वनवासी समाज के बिरसा का भी स्मरण किया। भाई सायणाचार्य और माधवाचार्य, भक्त नरसी मेहता, संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम भी इनकी जाप माला के मनके बने। संघ ने महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी को स्मरण किया तो साथ महाराजा रणजीत सिंह और गुरु गोबिंद सिंह जी को उतने से आदर से स्मरण किया।

संघ ने जहां वैज्ञानिकता की बात करने वाले कपिल, कणाद ऋषि, सुश्रुत, चरक, आर्यभट्ट, रामानुजन, सी वी रमण, भास्कराचार्य और वराहमिहिर को मान दिया वहीं आधुनिकता और प्रगतिशीलता की बात कहने वाले राजा राम मोहन राय को भी स्मरण किया। संघ ने ठक्कर बापा, भीमराव अंबेडकर, महात्मा ज्योति राव फुले, नारायण गुरु को भी अपने एकात्मता मंत्र में जोड़ा तो गांधी तक को विस्मृत नहीं किया।

हिंदुओं को जोड़ने, उनको जगाने, उनका संगठन करने का दावा करने वालों में क्या कोई भी है जो वैविध्य के इतने आयामों को एक साथ मान दे सकता है, साध सकता है?

क्या कोई भी है जो नारा तो हिंदू एकता का देते हैं पर एक दूसरे को गाली दिए बिना उनका तर्पण नहीं होता? आर्य समाज वाले विवेकानंद से चिढ़े रहते हैं, रामकृष्ण मिशन वाले दयानंद से, सिखों में केशधारी को सहजधारी से पीड़ा है तो को दोनों को राधा स्वामी वालों से।

हिंदू महासभा संघ को कोसता है, कुछ और संगठन रात दिन संघ के विरुद्ध विष वमन करते हैं पर संघ ने आज तक कभी भी हिंदू ऐक्य के काम में लगे किसी भी व्यक्ति या संगठन के विरोध में नहीं बोला क्योंकि वो जानता है कि घी कहीं भी गिरे पड़ेगा दाल में ही।

“एक ध्येय के पथिक विविध हम” को मूल मंत्र मानने वाला संघ इसीलिए सबसे अधिक शत्रुओं के निशाने पर रहता है क्योंकि उन्हें पता है कि हिंदू धर्म रक्षण की गगनभेदी ललकारासुर तो बहुत हैं पर हिंदू एकात्मता को अक्षुण्ण रखने का हुनर केवल संघ में है।

कई बड़े नामी-गिरामी कट्टर संगठन हुए, लोग हुए, भाषणवीर हुए पर शत्रुओं ने खतरा उनको नहीं बल्कि संघ को ही माना। बाकी कथित कट्टर हिन्दू नेताओं और संगठनों को वो संज्ञान लेने लायक भी नहीं मानती।

संघ को समझना है तो इसरार अहमद से समझिए, इमरान खान से समझिए, पीएफआई से समझिए…… सोशल मीडिया और यूट्यूब पर तुरत फुरत वालों से समझिएगा तो संघ आपके लिए अनसुलझा ही रहेगा।

– अभिजीत सिंह

Leave a Reply