नहीं रहे बॉलीवुड के ‘कलेंडर’

एक “मासूम” सा दिखने वाला हाँड़-मांस का व्यक्ति सपनों की “मंडी” में आकर “उड़ान” भरने की जिद पालता है और “वो सात दिन” उसकी ज़िन्दगी बदल देते हैं। “सागर” से गहरी उसकी अदाकारी से अवाम “मोहब्बत” करने लगती है। उसका “जलवा” ऐसा बिखरा कि लोगों को उसके होने से “गुदगुदी” होने लगी। “दिल के झरोखे में” उसने अपनी ख़ास जगह बनाई तो अपने हास्य “अंदाज” से आम आदमी से एक “नया रिश्ता” बना लिया। वो कभी “कलेंडर” की तरह नहीं बदला बल्कि “पप्पू पेजर” बनकर “दीवाना मस्ताना” हो गया।

वो “बड़े दिलवाला” था जो सीना ठोककर कहता था “हम आपके दिल में रहते हैं”। उसकी अदायगी के क़ायल भी उससे कहते थे “तेरा जादू चल गया”।

लेकिन भाई, इस बार “हद कर दी आपने”। “क्यों कि.. मैं झूठ नहीं बोलता” इसलिए कह रहा हूँ, तुम्हारे होने से पर्दे पर “डबल धमाल” होता था। जीवन तो “कुछ खट्टा कुछ मीठा” होता ही है पर “अतिथि तुम कब जाओगे?” ऐसा तो तुमसे किसी ने नहीं कहा था। “गॉड तूसी ग्रेट हो” “राजाजी” को इतनी जल्दी अपने पास बुला लिया??

“परदेसी बाबू” बनकर आने वाले “सरदार” ने भी अपने प्रशंसकों को “चल मेरे भाई” कहना गवारा नहीं किया। “वजह” जो भी रही हो पर “जानो भी दो यारो” नहीं कहना था। तुम “स्वर्ग” चले गए पर तुम्हारे प्रशंसक सदा तुमसे “प्रेम” करते रहेंगे। “तेरे नाम” का “किला” कभी नहीं ढहेगा “क्यों कि” “तेरे संग” ही हमने मुस्कुराना सीखा है। “काश” तेरा “ठिकाना” कुछ और दिन होता। अंतिम सलाम “बाँके बिहारी चतुर्वेदी (बीबीसी)”

– सिद्धार्थ शंकर गौतम

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