विश्व की प्राचीनतम नगरी वाराणसी जीवन रेखा की दृष्टि से एकमात्र अटूट नगरी है, जहां मानव जीवन लगभग ६ हजार वर्षों से प्रतिष्ठित है, पल्लवित है। यूं तो सूर्योदय होने पर अंधकार दूर होता है, कोहरा छंट जाता है, रहस्य उन्मुक्त हो जाता है, परंतु वाराणसी सूर्योदय के लिए विख्यात होने के उपरान्त अनादिकाल से एक रहस्यमयी नगरी है।
’मिस्टीक’ वाराणसी के लिए सर्वाधिक समीचीन विशेषण है। इस नगरी के ’मिस्टीसिज्म’ यानी रहस्यवादी चरित्र के कई आधार या स्रोत हैं। जिसमें प्रमुखत: जितने सत्य और तथ्य उपलब्ध हैं, उसका विवेचन इसलिए भी जरुरी है क्योंकि एक आगंतुक या पर्यटक वाराणसी में न केवल दर्शन करने आता है बल्कि अनुभव करने भी आता है। ६ हजार वर्षों में लगभग २८ नामों से इस नगरी का परिचय मिलता है।
ब्रह्मवर्त, आनंद कानन, गौरीपीठ, महाश्मशान, त्रिखण्ड़ी, बनारस की परिक्रमा की वर्तमान कड़ी वाराणसी है। भूभौतिकी या भौगोलिक तथ्यानुसार विंध्य पर्वतमाला की एक पूर्वोत्तरीय शाखा में तीन पहाड़ियों पर वाराणसी अवस्थित है। पौराणिक साहित्य में शायद इसी यथार्थ को आध्यात्मिक रुपक में ’शिव के त्रिशूल पर बसी’ की संज्ञा दी है। पर्वतीय यथार्थता के चलते पतित पावनी गंगा वाराणसी में उत्तरवाहिनी हैं। नगर वाराणसी उत्तरवाहिनी के पश्चिम तट पर अवस्थित है। प्राचीन नगरी चारों दिशाओं से नदियों से परिवेशित रही- पूरब में गंगा, पश्चिम में गोमती, उत्तर में वरुणा तथा दक्षिण में असि वाराणसी का भौगोलिक परिसीमन है। शायद वाराणसी शब्द निर्माण के पीछे वरुणा एवं असि के कोष्ठक वाची शब्द ही होंगे।
लिंगायत शैवों की नगरी का एक नाम अविमुक्त नगरी भी है। अर्थात शिव यहां समस्त जगत को मुक्ति प्रदान करते हैं; मगर स्वयं इस नगरी से कभी मुक्त नहीं होंगे। वाराणसी में शिव के समस्त प्रकार के लिंगों पर मन्दिर हैं- ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ, अनादिलिंग केदारेश्वर, वार्णेश्वर, ओंकारेश्वर, नर्मदेश्वर, कर्दमेश्वर जिनमें प्रमुख हैं।
शैवों की नगरी होने के बावजूद वाराणसी विश्व की एकमात्र बहुवचनवादी नगरी या समाज है, जहां विश्व के प्रमुख धार्मिक व दार्शनिक आस्थाओं के लोग शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में रहते हैं और श्रीवृद्धि प्राप्त करते हैं। शैव, शाक्त, वैष्णव, सौर, गाणपत्य जैसी सनातन धर्म की शाखाएं इस्लामी आस्था से जुड़ी शिया, सुन्नी, अहमदिया, देवबन्दी।
बौद्धों के हीनायान, महायान, वठायान, जैनियों के श्वेताम्बर, दिगम्बर। ईसाइयों के कैथोलिक, प्रोटेस्टेन्ट, सिख, यहूदी, पारसी के साथ-साथ चारवाकी व अन्य नास्तिक दर्शन के अनुयायी काशी में बहुवचन समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं।
महान वैज्ञानिक प्रो. शान्ति स्वरूप भटनागर की अमर काव्य रचना वाराणसी को अनुभव करने के लिए श्रेष्ठ है – मधुर, मनोहर ये सर्वविद्या की राजधानी। राष्ट्र, विद्या, धर्म व विज्ञान ने काशी के पाठशाला से चलकर वैश्विक रूप लिया है। विश्व का प्रथम मुक्ताकाशीय विश्वविद्यालय वाराणसी में ही ईसा पूर्व सातवीं शताब्दी में स्थापित हुआ था। वर्तमान में भी जहां काशी हिंदू विश्वविद्यालय व काशी विद्यापीठ आधुनिक विद्या के लिए प्रमुख केंद्र हैं, वहीं प्राच्य दर्शन व संस्कृत विद्या के लिए सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, बौद्ध दर्शन के शिखर अध्ययन के लिए तिब्बती उच्च शिक्षा संस्थान एवं इस्लाम दर्शन व अरबी फारसी अध्ययन के केन्द्र के रूप में जामिया मिलिया अशर्फिया वाराणसी के बौद्धिक समरसता के प्रतीक हैं।
शास्त्रीय संगीत के आदि एवं सिद्धपीठ के रूप में वाराणसी सहस्राब्दियों से ज्ञात है। यहीं से तानसेन के पूर्वज ग्वालियर गए थे। वर्तमान काल के कई संगीत महापुरुषों की धरती है काशी। भारत रत्न पण्डित रविशंकर, भारतरत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, सरोद के जादूगर पण्डित ज्योतिन भट्टाचार्य के साथ-साथ नाद साधना के बनारसी वाद्य के जनक पण्डित रामसहाय तथा उसी क्रम में पण्डित वीरू महाराज, पण्डित भैरव सहाय, पण्डित कण्ठे महाराज, पण्डित अनोखे लाल, पण्डित सामता प्रसाद, पण्डित किशन महाराज आदि काशी की धरोहर हैं। कथक नृत्य की महान नृत्यांगना सितारादेवी व नटेश्वर गोपी कृष्ण की मूलधारा काशी से ही प्रभावित है। महफिल गायकी की दृष्टि से भी वाराणसी सर्वाधिक सम्पन्न है। उस्ताद मोइजुद्दीन खां, राजेश्वरी, विद्याधरी, हुस्नाबाई, जगदनबाई, रसूलनबाई, सिद्धेश्वरी देवी जैसी कई अलौकिक प्रतिभाएं और उनके स्मृतिशेष काशी में अब भी सुरक्षित हैं।
आयुर्वेद धारा के भगवान धन्वंतरि व अष्टांगी शल्य चिकित्सा के प्रणेता सुश्रुत आज भी विस्मयकारी वैश्विक आकर्षण हैं।
रहस्यमयी वाराणसी के और कई वैभवों का उल्लेख किया जा सकता है जिन्होंने मूर्त या अमूर्त स्वरूप में विश्वजन को आकर्षित किया है और आज भी कर रहा है। क्योंकि इसके पीछे का जो जीवन दर्शन है उसे यहां आकर ही अनुभव किया जा सकता है।
वाराणसी में आपात दृष्टि से भले ही किसी आगन्तुक को यह नगर ’केयरलेस’ प्रतीत हो परन्तु गम्भीरता से अनुभव करें तो यहां के मूल निवासी वस्तुत: ’केयर फ्री’ हैं। एक भयविहीन मन:स्थिति जो लाभ-हानि के अंक शास्त्र से ऊपर है।
शिव काशी में अघोर है अर्थात भय के आतंक से परे हैं। और यहां के निवासियों को भी उस ज्योर्तिमय पथ की यात्रा कराते हैं। साथ ही वाराणसी ’गॉड लविंग’ है ‘गॉड फियरिंग’ नहीं। शिवालय के प्रांगण स्थित नंदी की तरह यहां के लोग हैं और मन्दिर के गर्भगृह में स्थित हैं दिव्य शिव। जीव अपने प्रयत्न से कपाट को मुक्त करता है और यहां शिव प्रकाशवान होता है।
फोरलिरिस्टिक्स यानि लोकायन संस्कृति वाराणसी में मुखर रूप से जीवित है। उसी का परिणाम है विश्वविख्यात लोकगायक हीरा-बुल्लू, चांद-पुतली या पद्मभूषण छन्नूलाल मिश्र मध्ययुगीन कबीरी धारा के वर्तमान हैं।
यहीं महाकवि व्यास ने महाभारत तथा पुराणों की रचना की थी। भगवान बुद्ध व जैन तीर्थंकर सुपाश्वनार्थ की दार्शनिक रचनाएं काशी में ही रचित एवं संकलित हुईं। कबीर, तुलसी, पण्डित राज जगन्नाथ, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, आगा हश्र जमील, नजीर बनारसी जैसे असंख्य साहित्यिक नक्षत्रों से वाराणसी के आकाश समुज्जवल है। जिसमें बृहस्पति स्वरूप भारत रत्न पण्ठित मदनमोहन मालवीय भी हैं। शिक्षा क्षेत्र में दो भारत रत्न आचार्य भगवान दास एवं श्री प्रकाश जी के साथ-साथ पूर्व प्रधान मंत्री भारत रत्न लाल बहादुर शास्त्री व वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की नगरी है काशी। मार्क ट्वेन के अनुसार इतिहास से प्राचीन है काशी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में ’अविनाशी है काशी’।.