दे दनादन फ़िल्म में शक्ति कपूर अपने से बहुत छोटी उम्र की लड़की को कहते हैं कि तुम चाचा, ताया, मामा कुछ भी कहो पर एक बार मेरे कमरे में आ जाओ, बीवी नम्बर वन में सलमान सुष्मिता सेन का परिचय अपनी आंटी के रूप में करवाते हैं। भागमभाग मूवी में अक्षय कुमार एक लड़की से जबरदस्ती करते हैं पोल खुलने में दीदी दीदी कह शोर करते हैं।
आंटी, भाभी, दीदी, चाची, मौसी शब्द के गलीच निहितार्थ जनरल यूज में आते जा रहे हैं। इन सम्बन्धों के अर्थ गूगल पर सर्च करना महापाप हो गया है।
मिर्जापुर जैसे सीरीज जो विशुद्ध घृणा, असामान्य चलन और हिंदू परिवारों में निषेध इंसेस्ट कर्म को दिखाती है। ऐसे चरित्र का महिमामंडन कर समाज को किस दिशा में ढकेला जा रहा है। ऐसे लोग इस तरह के रोल कर लज्जित क्यों नही होते। चीजें कहाँ जाकर रुकेंगी। या हम हिंदू हिंदू करते कुटुंब व्यभिचार समेत उन सभी म्लेच्छ आचरणों को सामान्य बना देंगे जिसे विचार करने का प्रायश्चित भी भयंकर हुआ करता था।
एक शब्द है ‘बहन जी टाइप’ , मतलब बहन होना अभिशाप है। सच्चरित्र लड़का भोंदू, शालीन लड़की बहनजी, गम्भीर बातें करने वाला पकाऊ। दूसरी तरफ जो कमीना वो स्मार्ट, जो चरित्रहीन वो आजाद।
उन्हें पता है एक बार व्यक्ति और समाज को मूल्यहीन कर दो तो आसानी से झुकाया और उपयोग किया जा सकता है।
यही सब म्लेच्छ होने के लक्षण हैं जो फिल्मों के माध्यम से जन सामान्य तक जा रहा है। यहाँ फेसबुक पर तमाम लोगों के बारे में सूचना मिलती रहती है कि वे दीदी दीदी करके इनबॉक्स या विश्वास में लेंगे पर कुछ दिन बाद मन का काम न होने पर तनु वेड्स मनु भाग दो के जीशान बन जाएंगे। मिल गयी तो सैंया नही तो भैया वाला पैटर्न तेजी से हिंदू लड़कों में पनप रहा है जो किसी म्लेच्छ से कहीं ज्यादा खतरनाक है, जिस समाज में मातृत्व का अपमान हो वहाँ और कुछ और हो सकता है हिंदुत्व नही हो सकता।