इंदौर शहर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत पुराना नाता रहा है। श्रीगुरुजी ने अंग्रेजी शासन के दौरान यहां पर सभा की थी। शहर के विकास में संघ का योगदान भी अविस्मरणीय रहा है। कोरोना काल में यहां पर संघ के स्वयंसेवकों ने अपने घरों को लौट रहे प्रवासियों की भरपूर मदद की थी।
वर्तमान समय में वैभवशाली शहर के तौर पर इंदौर का नाम देश-दुनिया में विख्यात है। लेकिन इस शहर के नवनिर्माण एवं समाज की दशा सुधारने और दिशा देने में रा. स्व. संघ के स्वयंसेवकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। या यूं कहें कि इंदौर की वैभवशाली नींव में संघ स्वयंसेवकों का अहम योगदान है। स्वयंसेवकों के त्याग, समर्पण, परिश्रम एवं तपस्वी जीवन से भारतीय संस्कृति, सभ्यता व् परम्परा इंदौर में फलफूल रही है और आनेवाली पीढ़ी को प्रेरणा भी दे रही है।
डॉ. हेडगेवार ने किया है इंदौर में संघ का बीजारोपण
स्वतंत्रता के पूर्व ही 1929 में डॉ. हेडगेवार अपने काका आबाजी और काकी को उपचार हेतु इंदौर में लेकर आये थे। उस समय वह यहां लगभग डेढ़ महीने रहे। इस दौरान ही उन्होंने इंदौर एवं देवास में संघ का बीजारोपण कर दिया था।
1937 में दिगम्बर राव तिजारे जी स्वयंसेवक बने। 1939 में संघ शिक्षा वर्ग समापन के समय जब डॉक्टर साहब ने सभी से पूछा कि संघ कार्य के लिए कौन निकलेगा? तब दिगम्बर राव तिजारे जी आगे आए और स्वयं प्रेरणा से उन्होंने दायित्व लेकर मध्यप्रदेश में संघकार्य करने का उत्तरदायित्व लिया। मध्यप्रदेश में संघ का उन्हें आधार स्तम्भ (नींव का पत्थर) कहा जाता है। उन्होंने अपनी ओर से पहला स्वयंसेवक राजाभाऊ महाकाल को बनाया। दिगम्बर राव तिजारे जी से प्रेरित होकर राजाभाऊ महाकाल प्रचारक बन गए। उन्होंने आगे जाकर गोवा मुक्ति संग्राम के दौरान अपने प्राणों का बलिदान देकर गोवा को मुक्त कराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। संघ कार्य विस्तार हेतु सभी प्रांतों में स्वयंसेवक भेजे जा रहे थे तब डोक्टर साहब ने मध्य भारत में प्रचारक के नाते मनोहरराव मोघे को भेजा। जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान संघ कार्य का सघन कार्य विस्तार किया। इसके बाद श्रीगुरुजी के आह्वान करने पर 1942 में भैयाजी दाणी आगे आये और प्रांत प्रचारक का दायित्व लेकर पूरे शहर में संघ कार्य का विस्तार किया।
इंदौर, मालवा प्रांत और मध्यभारत में स्वयंसेवकों का संघकार्य
मध्य प्रदेश में कार्यरत एकनाथ रानडे, भाऊसाहेब भुस्कुटे, केशवराव गोरे ने सम्पूर्ण मध्य भारत में प्रवास किया और संघ को जमीनी स्तर पर मजबूती प्रदान की। उनके नेतृत्व में बाबासाहेब नातू, नरमोहन दोसी, द्वारकाप्रसाद खत्री, बद्रीलाल दावे, विमल कुमार चोरडिया, मनोहर राव मध्य भारत में संघ कार्य का दायित्व सम्भालने में अग्रसर भूमिका निभा रहे थे। प्रारम्भ में नागपुर से भेजे गए राजाभाऊ पातुरकर, मोरोपंत पिंगले के मार्गदर्शन में मध्य भारत में नियुक्त किए गए भैया जी सहस्त्रबुद्धे, केशवराव गोरे, कु. सी. सुदर्शन, शरदचंद्र महेरोत्रा, गोपाल जी व्यास एवं सुरेश सोनी ने अनेक वर्षो तक संघ कार्यों में स्वयं को झोंक दिया और गांव-गांव तक संघ शाखा का व्यापक विस्तार किया। इसी तरह अनेकानेक ज्येष्ठ श्रेष्ठ स्वयंसेवकों ने इंदौर सहित मध्य भारत में संघ की विचारधारा और संघकार्य को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इंदौर के भैयाजी जोशी 4 बार बने संघ सरकार्यवाह
इंदौर में जन्मे भैयाजी जोशी ने अपनी कर्मठता एवं संघ समर्पित जीवन के चलते 4 बार सरकार्यवाह बनकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। वह संघ शाखा बढ़ाने और विस्तारवादी कार्यशैली के साथ ही संगठनात्मक कार्य में पारंगत माने जाते हैं। उनका जन्म भले ही इंदौर में हुआ हो लेकिन मुंबई-ठाणे से उनका पुराना नाता रहा है। डोम्बिवली में वह रहते थे और यही से उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद यहां 2 वर्ष नौकरी करने के पश्चात वे नौकरी से त्यागपत्र देकर पूर्णकालिक संघ के प्रचारक बन गए। बाल स्वयंसेवक होने के कारण उनका मन नौकरी में नहीं लगता था इसलिए उन्होंने संघ प्रचारक बन कर राष्ट्र सेवा करने का निर्णय लिया था। संघ प्रचारक बनने के बाद उनका सर्वप्रथम कार्यक्षेत्र ठाणे जिला था। ठाणे के कल्याण, तलासरी, पालघर, मोखाडा, वाडा, दहाणू आदि जनजाति-वनवासी क्षेत्रों में उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया था।
श्रीगुरुजी का भी है इंदौर से पुराना नाता
मालवा क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों का केंद्र रहे अर्चना कार्यालय के बाद अब मालवा प्रांत के कार्यालय का नया ठिकाना पंत वैद्य कॉलोनी का नया भवन होगा। यहां पार्किंग, निवास कक्ष, भोजन शाला के साथ ज्यादा आधुनिक भवन तैयार हो रहा है। संघ के अर्चना कार्यालय की जमीन के मालिकी हक की कहानी भी बड़ी रोचक है। यह जमीन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव गोवलकर के नाम पर थी। वे गुरूजी के नाम से जाने जाते है। दरअसल 1943 में वे इंदौर में एक सार्वजनिक सभा लेने के लिए आने वाले थे। तब अंग्रेजों का शासन था। शहर में यह नियम लागू किया गया था कि यहां वही व्यक्ति सभा ले सकता है, जिसकी संपत्ति यहां होगी। गुरूजी की सभा के लिए तब रामबाग कालोनी बसाने वाले पुरुषोत्तम किबे ने अखाड़े की जमीन गुरू गोवलकर के नाम पर की थी। इसके बाद उनकी सभा हुई। बाद में जमीन हेडगेवार समिति के नाम पर हुई और यहां अर्चना कार्यालय का संचालन शुरू हुआ। पुरुषोत्तम किबे के पोते शेखर किबे बताते है कि रामबाग की बसाहट 100 साल पुरानी है। हमारे दादाजी ने सभा के लिए रामबाग की जमीन का एक हिस्सा गुरूजी को दिया था। तब सभा भी रामबाग क्षेत्र में हुई थी।
कोरोना काल में सेवाकार्य
देश पर जब भी अचानक संकट या आपदा आती है तो सबसे पहले मैदान में संघ के स्वयंसेवक ही दिखाई देते हैं। जैसे ही लॉकडाउन लगा वैसे ही अफरातफरी का माहौल बन गया। असामाजिक तत्व तो जैसे मौके के ही तलाश में थे लेकिन संघ के स्वयंसेवकों ने मोर्चा सम्भाला और हर तरह के राहतकार्य में जुट गए। जिन्हें रहने, खाने, पीने, इलाज, आदि की आवश्यकता थी ऐसे सभी लोगों को यथाशक्ति तत्काल मदद प्रदान की गई। जो भी प्रवासी मजदूर इंदौर या मध्यप्रदेश के मार्गों से होकर गुजरता था उनके खाने-पीने, चाय-जूस, ठहरने, चप्पल-जूते आदि की व्यवस्था की गई थी।
जब सभी लोग कोरोना संक्रमण से डर कर घरों में बैठे थे उस समय स्वयंसेवक अपने प्राणों की बाजी लगाकर लोगों की मदद कर रहे थे। हॉट स्पॉट व्यवस्था, कोरोंटाइन सेंटर, जनजागरण अभियान, अनुशासन, रक्तदान शिविर, प्लाज्मा दान, मेडिकल शिविर, काढ़ा वितरण, स्क्रीनिंग, प्लेटफार्म, सड़क, बैंक आदि स्थानों पर सहायता केंद्र, योग प्रशिक्षण, अल्ट्रावायलेट सेनिटाइजर मशीन, मां की रसोई (कम्युनिटी किचन), वेंटिलेटर-एम्बुलेंस सुविधा, औषधि पैकिंग, भोजन वितरण, आर्थिक सहायता, कोविड केयर सेंटर, वैक्सिनेशन, अंतिम संस्कार, कोविड आइसोलेशन केंद्र, टीकाकरण महाभियान, अस्थियां विसर्जन, ऑक्सीजन सिलेंडर, समुप्देष्ण केंद्र, सरकारी केन्द्रों में सहयोग, डोक्टर हेल्पलाइन, परिजन आवास, आदि अनेकानेक प्रकार से सेवाकार्य किया गया।