प्राकृतिक सौंदर्य एवं विरासत से समृद्ध है चंदेरी

मध्यप्रदेश के जिले अशोकनगर में बेतवा (बेत्रवती) एवं ओर (उर्वसी) नदियों के मध्य विंध्याचल की सुरम्य वादियों से घिरा ऐतिहासिक नगर चंदेरी और उसका दुर्ग हमारी धरोहर है। यह नगर महाभारत काल से लेकर बुंदेलों तक की विरासत को संभालकर रखे हुए है। चंदेरी न केवल अपनी समृद्धि की कहानियां सुनाता है अपितु अपनी सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत, त्याग, प्रेम और शौर्य, समर्पण, वीरता एवं बलिदान की गाथाओं से भी पर्यटकों को गौरव की अनुभूति कराता है।

वैसे तो यह छोटा-सा सुंदर शहर अपनी रेशमी साड़ियों (चंदेरी की साड़ियों) के लिए विश्व प्रसिद्ध है परंतु यहाँ का रमणीक वातावरण और स्थापत्य आपका मन मोह लेगा। सघन वन, ऊंची-नीची पहाड़ियां, तालाब, झील, झरने अविश्वसनीय रूप से चंदेरी के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देते हैं। चंदेरी उन सबको आमंत्रित करती है- जो प्रकृति प्रेमी हैं, जिनका मन अध्यात्म में रमता है, जो प्राचीन भवनों की दीवारों से कान लगाकर गौरव की गाथाएं सुनने में आनंदित होते हैं। चंदेरी उनको भी लुभाती है, जिन्हें कला और संस्कृति के रंग सुहाते हैं। चंदेरी किसी को निराश नहीं करती है। चैत्र-वैशाख की चटक गर्मी में भी चंदेरी ने मेरे घुमक्कड़ मन को शरद ऋतु की ठंडक-सा अहसाह कराया।

भोपाल से जब निकला तो मेरे ध्यान में सिर्फ चंदेरी का किला और साड़ियां ही थीं। लेकिन चंदेरी में प्रवेश के साथ ही उसके प्राकृतिक सौंदर्य और स्थापत्य ने स्वागत किया। यहाँ केवल किला ही प्राचीन स्थापत्य नहीं है बल्कि चंदेरी की गली-गली में आपको ऐतिहासिक महत्व की इमारतें देखने को मिल जाएंगी। कई प्राचीन इमारतें तो अब भी रहने में उपयोग की जा रही हैं। किले की प्राचीर से जब इस शहर को निहारते हैं, तब यह शहर प्राचीन और नये निर्माण का समुच्य दिखायी पड़ता है। चंदेरी, नये और पुराने रंगों के संयोजन से तैयार एक खूबसूरत तस्वीर की तरह नजर आता है।

जैसे किसी बुनकर ने रेशम की साड़ी में जगह-जगह सोने के धागों से फुलकारी की हो। किले से ही तीन-चार ऊंची पहाड़ियां नजर आती हैं, जो एक समय में चंदेरी के निगरानी के केंद्र थे। चंदेरी के दर्शनीय स्थलों में त्रिकाल चौबीसी, बत्तीसी बावड़ी, कौशक महल, कटीघाटी, बादल महल, रामनगर महल, सिंहपुर महल, लक्ष्मण मंदिर, शक्तिपीठ जागेश्वरी देवी मंदिर, फुआरी के हनुमान मंदिर की सुंदरता, जामा मस्जिद और शहजादी का रोजा शामिल है। जैन अतिशय क्षेत्र खंदारगिरी और सकलकुड़ी जैसे धार्मिक महत्व के स्थान भी पर्यटकों के मन को शांति और ऊर्जा प्रदान करते हैं।

यदि आप बारिश के मौसम में चंदेरी जा रहे हैं, तब कटौती खो का झरना, मालनखो का झरना, अंगरा खार वायपास का झरना, आमखो का झरना जैसे अन्य प्रकृति के नजारे आपका मन जीत लेंगे। उर्वशी नदी के किनारे गुफाओं में बने शैलचित्र भी चंदेरी के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ये शैलचित्र भी इस बात के साक्षी बनते हैं कि चंदेरी प्रागैतिहासक काल से एक जीवंत शहर है। चंदेरे के इतिहास को समझना है तब यहाँ का संग्रहालय देखना न भूलिएगा। चंदेरी के संग्रहालय में बूढ़ी चंदेरी और आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के शिलालेखों एवं प्रतिमाओं को प्रदर्शित किया गया। यह संग्रहालय पाँच गैलरी में व्यवस्थित है-  चंदेरी का इतिहास, वैष्णव, शैव एवं शाक्त, जैन और आनंदम।

यह छोटा शहर चंदेरी भी अब अन्य शहरों की भाँति अपनी पुरानी सीमाओं से बाहर निकलकर फैलने लगा हैं। हालांकि इस विस्तार में एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि चंदेरी नगर की ऐतिहासिक महत्व की चारदीवारी अवैध अतिक्रमण में गुम होती जा रही है। अतिक्रमणकारियों ने चंदेरी नगर के परकोटे पर कब्जा कर लिया है, कई स्थानों पर उसको तोड़कर पत्थर निकाल लिए हैं। चंदेरी में जब आप भ्रमण करेंगे, तब किले की तलहटी में दूर तक आपको यह ऐतिहासिक चारदीवारी दिखायी देती है।

चंदेरी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ता है। चंदेरी, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ श्रुति के पुत्र शिशुपाल की राजधानी थी। उस समय इसका उल्लेख चेदी राज्य के रूप में आता है। पांचवीं-छठवीं शताब्दी में जिन 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है, उनमें सातवीं महाजनपद चेदी थी, जो सबसे धनाड्य जनपदों में शामिल थी। वर्तमान चंदेरी शहर से लगभग 18 किमी की दूरी पर जंगल में आज भी बूढ़ी चंदेरी में प्राचीन शहर के अवशेष बिखरे पड़े हैं। कालांतर में यह शहर काल के गाल में समा गया और 9वीं शताब्दी के बाद से वर्तमान चंदेरी अस्तित्व में आने लगा। चंदेरी के किले में लगे शिलालेख के अनुसार, चंदेरी में सांस्कृतिक गतिविधियां चंदेलों के समय (9वीं शताब्दी ई.) से प्रारंभ हो जाती हैं। वर्तमान चंदेरी नगर को 10वीं-11वीं शताब्दी में प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल ने बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। इतिहासकार अलबरूनी एवं इब्नबतूता ने भी अपने लेखन में चंदेरी की समृद्धि एवं महत्व का वर्णन किया है।

चंदेरी के किले में अनेक दर्शनीय एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थान हैं, जिन्हें पर्यटकों को अवश्य ही देखना चाहिए। चंदेरी के शासक मेदनी राय और बाबर के बीच 29 जनवरी, 1528 को हुए भयानक युद्ध के बाद क्रूर आक्रांताओं से अपने स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए रानी मणिमाला के साथ 1600 क्षत्राणियों ने किले पर जौहर किया था। उन महान वीरांगनों की स्मृति को अक्षुण्य रखने के लिए चंदेरी के किले पर जौहर स्मारक बनाया गया है। इसके समीप ही प्रसिद्ध संगीतज्ञ बैजू बावरा का समाधि स्थल भी है। चंदेरी, संगीत सम्राट बैजू बावरा की जन्मभूमि है। बैजू बावरा के जीवन से जुड़ी अनेक कहानियां यहाँ की हवा में तैर रही हैं।

जौहर स्मारक के सामने ही किले के प्रमुख स्थापत्य ‘कीर्ति महल’ का पृष्ठ भाग दिखायी पड़ता है। भविष्य में आप कीर्ति महल की विशाल दीवार पर ‘प्रकाश एवं ध्वनि कार्यक्रम’ के माध्यम चंदेरी की कीर्तिगाथा सुन सकेंगे। प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल द्वारा बनाए गए कीर्ति महल को ‘नौखंडा महल’ भी कहा जाता है। इसकी चार मंजिल तलघर में और पाँच मंजिल ऊपर हैं। पुरातत्व विभाग ने संधारण करके इस महल को पुनर्जीवित कर दिया है। कीर्तिमहल के एक कक्ष में आप देख सकते हैं कि पुरातत्व विभाग ने कैसे चंदेरी को वापस उसका सौंदर्य लौटाया है। यहाँ प्रमुख स्थानों के पुराने और नये चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। कीर्ति महल के सामने ही हवा महल या हवापौर है, जहाँ से चंदेरी नगर के नयनाभिराम दृश्य देख सकते हैं। इस स्थान से किले की तलहटी में स्थित बादल महल, बादल दरवाजा, जामा मस्जिद, ऊंट सराय जैसे पर्यटकों की रुचि के स्थान दिखायी देते हैं।

चंदेरी के मुख्य किले में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं हैं। परंतु बादल महल में जाने के लिए आपको 20 रुपये का टिकट लेना होता है। चंदेरी की पहचान बन चुके बादल दरवाजे का संबंध किसी महल से नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी विशेष घटना या उपलब्धि पर इसका निर्माण कराया गया होगा। इस दरवाजे की सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर खींच लेती है। यहाँ सुंदर बाग विकसित किया गया है। हाल ही में इसी परिसर में तीन-चार मंजिला भूमिगत महल की संरचना मिली है। यह संरचना आकर्षण का केंद्र है। सीढ़ियों से नीचे उतरकर इसे देखा जा सकता है।

किले पर आने के लिए मुख्य रूप से तीन रास्ते हैं- पहला पक्का रास्ता है, जिस पर डामर की सड़क है। इस रास्ते से आप वाहन से किले के ऊपर तक आ सकते हैं। पर्यटकों के ठहरने के लिए मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने यहाँ एक होटल भी बनाया है। एक अन्य दरवाजा जागेश्वरी देवी मंदिर के पास से सीढ़ी मार्ग है। दूसरा प्रमुख रास्ता खूनी दरवाजे से है, जहाँ से पर्यटक पैदल आ सकते हैं। खूनी दरवाजे में लकड़ी का विशाल दरवाजा है। इस प्रवेश द्वार की रचना इस प्रकार की गई है कि शत्रु सेना के घुड़सवार या पैदल सैनिक सीधे प्रवेश न कर सकें। इसे थोड़ा घुमावदार बनाया गया है, ताकि किसी प्रकार दरवाजा तोड़कर सैनिक प्रवेश करें, तो उनकी गति बाधित की जा सके।

चंदेरी नगरी अपने धार्मिक स्थलों के लिए भी पहचानी जाती है। किले के दोनों प्रमुख मार्गों पर भी हमें हिन्दू समुदाय के दो प्रमुख धार्मिक स्थान मिलते हैं। खूनी दरवाजे की ओर प्रसिद्ध एवं प्राचीन फुआरी के हनुमानजी का मंदिर है। मंदिर पर प्रतिदिन श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर में तिरुपति के बालाजी महाराज की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। वहीं, दूसरी ओर के मार्ग पर माँ जागेश्वरी देवी का प्राचीन मंदिर है। यह भी एक सिद्ध स्थान है। चंदेरी में वैसे तो अनेक मंदिर हैं, परंतु लक्ष्मण मंदिर विशेष है। इस मंदिर में शेषनाग के रूप में लक्ष्मणजी की प्रतिमा है। मंदिर के पास बुंदेला राजाओं की छतरियां भी देख सकते हैं। परमेश्वरा तालाब में लक्ष्मण मंदिर का प्रतिबिम्ब देखते बनता है।

चंदेरी पहुँचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन ललितपुर है, जो चंदेरी से लगभग 40 किमी की दूरी पर है। ललितपुर से चंदेरी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध रहती है। भोपाल और ग्वालियर से चंदेरी की दूरी लगभग 200-200 किलोमीटर है। आप भोपाल और ग्वालियर से निजी वाहन से भी चंदेरी पहुँच सकते हैं। वैसे तो चंदेरी बारह महीने दर्शनीय है परंतु बारिश या उसके बाद आएंगे, तो चंदेरी का भरपूर सौंदर्य देखने को मिलता है। चंदेरी आनेवाले पर्यटकों को अवश्य ही दो-तीन दिन का समय लेकर आना चाहिए, तब ही चंदेरी का दर्शन भली प्रकार हो सकता है। एक दिन वर्तमान चंदेरी को देखने के लिए चाहिए तो कम से कम दो दिन चंदेरी के आसपास के प्रमुख स्थानों को देखने में लग जाते हैं।

– लोकेन्द्र सिंह

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