चुनौतियों के बीच विश्व में भारत का दमखम

वर्तमान में भारत ने स्वयं को इतना मजबूत कर लिया है कि  वैश्विक स्तर पर बनने वाले किसी भी गुट में उसकी उपस्थिति आवश्यक है। यह सब चीन द्वारा पैदा किए जा रहे अवरोधों के बावजूद हो रहा है। इसका प्रमुख कारण वर्तमान नेतृत्व क्षमता है।

किसी देश की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा उसकी आर्थिक, तकनीकी और सैनिक ताकत से तय होती है और भारत इन तीनों क्षेत्रों में दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार हो चुका है। भारत आज ब्रिटेन को पछाड़ विश्व की पांचवीं बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है, जबकि भारत को दुनिया की चौथी बड़ी सैन्य ताकत भी कहा जाता है। जिसकी खासियत यह है कि वह लम्बी दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस एक परमाणु ताकत भी है जिसके पास जल-थल-नभ से परमाणु बम दुश्मन के इलाकों में गिराने की असाधारण क्षमता भी है। इसलिये कहा जाता है कि देश की इस त्रिकोणीय परमाणु क्षमता ने भारत को पूरी दुनिया में अजेय बना दिया है। आज चीनी सेना को भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर और आगे बढ़ने से रोका हुआ है तो अपनी परमाणु ताकत के बल पर ही। इसके अलावा भारत को साफ्टवेयर और अंतरिक्ष ताकत के तौर पर भी मान्यता मिली हुई है।

जहां विकसित देश भारत की खुले बाजार की अर्थव्यव्स्था और विशाल बाजार से अपनी झोली भरना चाहते हैं तो विकासशील देश भी भारत की तकनीकी औद्योगिक क्षमता से लाभान्वित हो रहे हैं। पिछले तीन सालों के दौरान पूरी दुनिया जब कोरोना महामारी से कराह रही थी तब भारत ने ही सौ से अधिक विकासशील देशों को कोरोना के टीके भेजकर अपनी तकनीकी और आर्थिक ताकत का इस्तेमाल वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा को व्यवहार में लाकर सिद्ध कर दिया कि भारत संसाधनों से विहीन गरीब व द्विपीय देशों के हितों की कितनी चिंता करता है। यही वजह है कि भारत आज ग्लोबल साउथ कहा जाने वाला सवा सौ से अधिक देशों के हितों की देखभाल की अगुवाई कर रहा है और विकासशील देशों के बीच अपनी मौजूदगी दर्ज कर ली है।

भारत की पूरी दुनिया में बढ़ती साख की वजह से ही अमेरिका से लेकर सभी यूरोपीय देश, पूर्व एशियाई ताकतें जापान और दक्षिण कोरिया औऱ इन सबके दुश्मन बन चुके रूस भी भारत को गले लगाना चाहते हैं। इसीलिये भारत को जहां चार बड़ी ताकतों अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान के साथ चर्तुभुजीय गठजोड़ यानी क्वाड का अहम साझेदार बताया जाता है वहीं वह अमेरिका विरोधी ब्रिक्स व शंघाई सहयोग संगठन का भी सदस्य है। क्वाड के अलावा भारत कई त्रिकोणीय गठजोड़ों जैसे भारत-अमेरिका-जापान, भारत-आस्ट्रेलिया-अमेरिका आदि गुटों का सदस्य है जो विश्व के ज्वलंत मसलों पर विचार विमर्श करते हैं। रोचक बात यह है कि इन चौगुटे और त्रिगुटों के विरोधी गुटों वाले संगठनों का भी भारत सदस्य है और इनमें उसी तरह बढ़-चढ़कर भागीदारी करता है जैसे कि वह अमेरिकी अगुवाई वाले गुटों में। इसी साल भारत अमेरिका विरोधी गुट शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक आयोजित करने वाला है तो आगामी 22 जून को अमेरिकी राष्ट्पति जो बाइडन ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष आमंत्रण दिया है। वे नरेन्द्र मोदी के सम्मान में 22 जून को राजकीय भोज भी आयोजित करेंगे जो कि ह्वाइट हाउस आमंत्रित में किये जाने वाले सभी राष्ट्राध्यक्षों को नहीं दिये जाते।

कुछ महीने बाद सितम्बर में ही भारत दुनिया के 20 विकसित और विकासशील देशों की शिखर बैठक आयोजित करेगा जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति से लेकर चीन और रूस के राष्ट्रपति भी भारतीय प्रधानमंत्री के मेहमान होंगे। जुलाई महीने में ही भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक भी आयोजित करेगा जो कि अमेरिका विरोधी माना जाता है। इस शिखर बैठक में भी शिरकत करने रूस और चीन के राष्ट्रपति नई दिल्ली आएंगे।

इस तरह एक ओर भारत अमेरिकी अगुवाई वाले क्वाड का सदस्य है तो दूसरी ओर शंघाई सहयोग संगठन में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। पांच देशों के एक और संगठन, जो कि रूसी खेमे का माना जाता है, ब्रिक्स में भारत की अग्रणी भूमिका रहती है। भारत इस तरह रूस से लेकर अमेरिका और छोटे विकासशील देशों के लिये एक महत्वपूर्ण सामरिक साझेदार के तौर पर उभर चुका है। विश्व के सामरिक पर्यवेक्षकों को हैरानी होती है कि भारत अपने अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों का किस तरह संतुलन करता है। क्वाड में रहने से न तो रूस से भारत की दोस्ती पर आंच आती है और न ही शंघाई सहयोग संगठन और पांच देशों वाले ब्रिक्स में भारत की सक्रियता से अमेरिका नाराज होता है।

साफ है कि दोनों गुटों के देश भारत को साथ रखना अपरिहार्य मानते हैं। जहां हिंद प्रशांत के गुट क्वाड की कल्पना भारत की भागीदारी के बिना नहीं की जा सकती है वहीं ब्रिक्स और एससीओ में भारत की मौजूदगी को जरूरी माना जाता है।

एक सवाल यह उठता है कि भारत की सभी गुटों के बीच इस अभूतपूर्व प्रतिष्ठा के बावजूद भारत की चीन औऱ पाकिस्तान से क्यों नहीं बनती है। इसकी सचाई यह है कि दोनों देशों की भारत के भूभाग पर नापाक नजर है। पाकिस्तान चीन के पिछलग्गू देश के तौर पर जाना जाता है जबकि चीन को यह पसंद नहीं आ रहा कि विश्व में भारत की भूमिका और सम्मान व हैसियत बढ़े। चीन पूरे विश्व पर अपनी प्रतिष्ठा और प्रभुत्व जमाना चाहता है जिसके लिये उसने बेल्ट एंड रोड की महत्वाकांक्षी परियोजना लागू करनी शुरू की है जिसका विरोध करने की हिम्मत भारत ने दिखाई है। वास्तव में विश्वगुरु बनने की चीन की आकांक्षा में भारत आड़े आ रहा है जिसे निरस्त करने के लिये चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को नीचा दिखाने की हरकतें करता रहता है।

रूस युक्रेन युद्ध में भारत ने भारी अमेरिकी और यूरोपीय दबावों के बावजूद अपनी तटस्थता औऱ स्वतंत्र विदेश नीति की मिसाल पेश की है जिसकी दुनिया के विभिन्न सामरिक हलकों में चर्चा की जाने लगी है। अमेरिका ने रूस से खनिज तेल खरीदने पर पाबंदी लगाने का ऐलान किया और भारत से अपेक्षा की कि भारत अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन करे। लेकिन भारत ने अपनी सामरिक स्वायत्तता की ताकत दिखाते हुए अमेरिकी प्रतिबंधों को नजरअंदाज किया और रूस से सस्ते दामों पर तेल का आयात तो जारी ही रखा, संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ पेश किये जाने वाले प्रस्तावों का भी साथ नहीं दिया। वास्तव में भारत के सामरिक हित रूस के साथ दोस्ती से भी जुड़े हैं जिसकी कीमत पर अमेरिका से दोस्ती को आगे नहीं बढ़ा सकता।

भारत ने तेजी से बदलती विश्व की भू राजनीति के अनुरूप अपने को ढाला है और भारत की सामरिक स्वायत्तता पर आंच नहीं आने देने की इन चुनौतियों को स्वीकार किया है और दुनिया की बड़ी ताकतों अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे के साथ हाथ मिला लिया है, उसका एक बड़ा लक्ष्य दुनिया में महाशक्ति के तौर पर चीन के उभार को रोकना है। अमेरिका और इसके साथी देश भारत को चीन के मुकाबले खड़ा करना चाहते हैं जो कि भारत के लिये एक सुनहरा मौका है जिससे भारत दुनिया में अपनी प्रतिष्ठा और बढ़ा रहा है। कोविड महामारी और रूस-युक्रेन युद्ध के बाद दुनिया की अर्थव्यवस्था जिस तरह मंदी के दौर से गुजरती देखी जा रही है और इसके बीच भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था की गाड़ी तेजी से आगे बढ़ाई है उससे भारत की अहमियत में काफी इजाफा हुआ है। इसी क्षमता की बदौलत दुनिया की सभी ताकतें भारत को गले लगाना चाहती हैं।

– रंजित कुमार 

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