संस्कृति, सभ्यता और विशेषता

मुंबई से सटा पालघर जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं एवं भविष्य की अपार सम्भावनाओं के कारण अपना विशेष स्थान रखता है। परंतु जिले के दूरदराज के क्षेत्रों तक विकास की समुचित लहर का पहुंचना अभी बाकी है। यहां की ‘वार्ली’ चित्रकला भी विश्व प्रसिद्ध है।

यह आम मान्यता है कि जहां संस्कृति नहीं होती, वहां संस्कार नहीं होते और जहां संस्कार नहीं होते, वहां का विकास नहीं हो सकता। जहां परम्परा नहीं होती, वहां परिवार नहीं होता, जहां परिवार नहीं होता वहां के लोगों का जीवन पशुओं के समान होता है। किसी भी स्थान विशेष की पहचान वहां की विशेष संस्कृति से होती है, वहां की सभ्यता से होती है, वहां की परम्परा से होती है।

अपनी संस्कृति, संस्कार, सभ्यता और परम्परागत पहचान की विरासत को सम्भालता महाराष्ट्र का एक जिला है, पालघर! पहले यह ठाणे जिले का भू-भाग हुआ करता था लेकिन 1अगस्त 2014 को यह ठाणे से अलग हो, महाराष्ट्र के 36 वें जिले के तौर पर अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा। आकार में विशाल होने की वजह से ठाणे जिले को बांट कर पालघर नाम से एक और नया जिला बनाने की मांग दशकों से चली आ रही थी, जिसे मुकम्मल अंजाम 1 अगस्त 2014 को जाकर मिला।

इसके भौगोलिक स्थिति की बात करूं तो अटखेलियां खेलता अरब सागर पालघर जिले की पश्चिमी सीमा का निर्माण करता है, जबकि यह पूरा का पूरा जिला मुंबई महानगर विकास प्राधिकरण के सबसे तेजी से विकसित हो रहे उत्तरी भाग के अंतर्गत आता है। पालघर जिले की अधिकांश मूल आबादी कोंकणी, वारली, कोली (मछुआरे) समुदाय से सम्बंधित है। पश्चिम महाराष्ट्र में आच्छादित कोंकण क्षेत्र का यह भी एक भाग है।

पालघर जिले के वसई तालुका की बात करूं तो यह पालघर जिले का सबसे आधुनिक और विकसित तालुका है। जो आर्थिक रूप से महाराष्ट्र की एक मजबूत एक महानगरपालिका है। यह शिक्षा केंद्र के तौर पर भी विकसित है, सभी प्रकार की सुविधाओं से सुसज्जित एक शहर है। यहां की भाषा मराठी, हिंदी और अंग्रेजी है। वसई एक रेल्वे जंक्शन भी है, यहां से होकर पूरे भारत में ट्रेन गुजरती है। इस तालुका में उत्तर भारतीय और मराठी लोगों की बहुलता है, जबकि वसई ग्रामीण क्षेत्र में ईसाई और कोली लोगों का दबदबा है। मुंबई महानगर के फूलों की कुल आवश्यकता के 35% की पूर्ति यही इलाका करता है। यहां फूलों की खेती बहुतायत में होती है।

वसई तालुका के बाद पालघर सबसे विकसित तालुका है। यहीं पर पालघर शहर भी है जो अपने ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यह शहर पालघर जिले का मुख्यालय भी है। खुबसूरत समुद्री किनारे, मनमोहक हरे-भरे वृक्षों से आच्छादित पठारी घाटियां, धार्मिक और ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल इस इलाके के मुख्य आकर्षण हैं। पालघर जिले में चीकू के बहुत बड़े-बड़े बागान है। यहां चीकू महोत्सव भी मनाया जाता है। पालघर रेलवे-स्टेशन पर उतरते ही सैकड़ों डोलचियों में रखे चीकू की भीनी-भीनी मीठी खुशबू आप को बता देती है, कि चीकू यहां का मुख्य फल है और यह जिला चीकू का सबसे बड़ा उत्पादक है। मुंबई और आसपास के महानगर को चीकू की सबसे ज्यादा आपूर्ति इसी शहर से होती है। समुद्र किनारा और कोली समुदाय की संख्या की वजह से मुंबई शहर के जरूरत की मछली उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी भी इसी जिले के कंधों पर है और इसमें यह काफी हद तक सफल भी है। पश्चिम रेलवे की सुलभ सुविधा इसकी मदद भी बहुत करती है।

स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का क्या कहूं? गर्भावस्था में प्रसूता की मौत का औसत अन्य इलाकों के मुकाबले कुछ अधिक है, दूर दराज के इलाकों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं हैं, अगर हैं भी तो डाक्टर नदारद हैं, अर्ध प्रशिक्षित और अनुभवहीन नर्सों या फिर आशा कर्मयोगियों के भरोसे ही ये स्वास्थ्य केंद्र चल रहे हैं। बदहाली का आलम यह है कि समय पर साधारण सी जरूरी दवाईयां भी उपलब्ध नहीं होती हैं।

आप को शायद इल्म न होगा? पालघर आदिवासी इलाका विश्व प्रसिद्ध ‘वार्ली’ चित्रकारी का गढ़ है। यहां के आदिवासी जन्मजात वार्ली चित्रकार होते हैं। क्या गजब की चित्रकारी करते है। विश्व को कई प्रसिद्ध और खूबसूरत चित्रकारी की सौगात पालघर जिले की ही देन है। वार्ली चित्रकारी में पालघर भारत का नेतृत्व करता है।

मुंबई, ठाणे और नई मुंबई में फ्लैट की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। ऐसे में एक आम मध्यम वर्गीय परिवार को पालघर में बनने वाले हाउसिंग प्रोजेक्ट अपनी ओर बहुत आकर्षित कर रहे हैं। एक आम मुंबईकर अपने सपनों के घर की ख्वाहिश में पालघर की तरफ टकटकी लगा देख रहा है और अपना आशियाना खरीद भी रहा है। यह जिला सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है, अब तो मुंबई लोकल की सुविधा भी यहां बढ़ा दी गई है।

पालघर शहर के निकट बोईसर उपनगर अपने कल कारखानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां बड़े-बड़े आधुनिक इंडस्ट्रीज हैं। दवाई, पेंट, स्टील, ईंट और बिजली के सामान बनाने की कई कम्पनियां हैं। मुंबई और ठाणे की बढ़ती आबादी, बेतरतीब यातायात व्यस्था और महंगी होती जमीनें आने वाले वक्त में बोईसर को कल कारखानों का स्वर्ग बनाने वाली हैं।

दिल्ली-मुंबई हाइवे का नया प्रोजेक्ट इसी पालघर जिले के बीच से होकर गुजरता है। इसका काम द्रुतगति से चल रहा है। निकट भविष्य में बुलेट ट्रेन के भी यहीं से होकर गुजरने की सम्भावना है। नई राज्य सरकार आने के बाद काम ने जोर पकड़ा है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने यहां एक हवाई अड्डा बनाने की रूपरेखा तैयार की है। अभी यह प्राथमिक स्तर पर है, सर्वे का कार्य चल रहा है। निकट भविष्य में हवाई अड्डा भी यहां मूर्त रूप लेता हुआ दिखाई देगा। इस शहर का आने वाला कल सुनहरा और चमकदार होने वाला है।

– डॉ. धीरज फूलमती सिंह 

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