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राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका लक्ष्मीबाई केळकर  

राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका लक्ष्मीबाई केळकर  

by हिंदी विवेक
in जीवन, ट्रेंडींग, देश-विदेश, महिला, मीडिया, विशेष, व्यक्तित्व, संघ, सामाजिक
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देशहित के आगे व्यक्ती स्वार्थ को तुच्छ मानकर जिन्होंने अपने राष्ट्र को उन्नत करने का और समाज के अभ्युदय का संकल्प लिया था ऐसी महान संकल्पिता,  समर्पिता, कर्मयोगिनी, राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापिका एवं प्रथम संचालिका वंदनीय लक्ष्मीबाई केळकर उपाख्य वंदनीय मौसीजी का, आषाढ शुध्द दशमी शके १८२७ (६ जुलाई १९०५) यह जन्मदिन है,  जिसे राष्ट्र सेविका समिती संकल्प दिन के रूप में मनाती हैl

नागपूर के दाते कुटुंब में जन्मे इस बालिका को बचपन से अपने राष्ट्रभक्त माता पिता एवं कुटुंब से विषय की प्रतिपादन कुशलता, समर्पणभाव,  देशभक्ती के संस्कार मिलेl उनकी पढ़ाई चौथी कक्षा तक ही हो पाई परंतु वाचन विपुल, प्रगाढ़ होने के कारण उनके विचारों में अत्याधिक प्रगल्भता थीl

विदर्भ में वर्धा के श्री पुरुषोत्तमराव केळकरजी से मौसीजी का विवाह हुआl  मौसीजी अतीव सुव्यवस्थित, कल्पक, अनेक कलाओं से निपुण सुगृहिणी थीl अतीव स्नेहभाव एवं कार्य-कर्तव्यदक्षता के कारण उनका कुटुंब में विशेष आदर का स्थान थाl अपने प्रापंचिक जीवन में पति, तरुण बेटी की अपमृत्यू जैसी अनेक विपदाएं आईl परंतु नैराश्य से न डगमगाते हुए बड़ी धैर्य से विपदाओं पर मात करके उन्होंने अपना गृहस्थ जीवन संभालकर एक आदर्श निर्माण कियाl वो कहती थी “स्त्री यह कुटुंब का केंद्र है और कुटुंब राष्ट्र का केंद्र हैl राष्ट्र के उत्थान हेतु उत्तम नागरिक, सैनिक, नेता, वैज्ञानिक आदि सब सुखी गृहस्थी से ही मिलते है और ये राष्ट्र की धरोहर समझकर प्रत्येक घर ने वो देनी ही चाहिए”l

वर्धा में अनेक उत्तम वक्ताओं के भाषणों का प्रभाव पड़ने से उनके मन में विचारों की दिशा निश्चित होने लगीl इसी समय हिंदू महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों से वो अत्यंत अस्वस्थ थीl हिंदू स्त्रियों की वैयक्तिक एवं सामाजिक सुरक्षा और उनमें राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति बोध की आवश्यकता के विचार मन में आ रहे थेl इसी दौरान अपने पुत्रों में संघ शाखा में जाने के कारण हो रहे नियमितता एवं स्वयं अनुशासन के परिवर्तन देखकर वर्धा में आए प. पू. डॉ. हेडगेवारजी से भेंट लेकर अपनी स्त्री बहनों के लिए भी ऐसी योजना की आवश्यकता का निग्रहपुर्वक विचार उनके सामने रखाl  इस महिला संगठन का दायित्व मौसीजी ले, ऐसा प. पू. डॉ. हेडगेवार जी ने सुझाव रखने के बाद शके १८५८ के विजयादशमी अर्थात २५ अक्तुबर १९३६ के शुभ अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना हुईl  स्त्री शक्ती जागृत करने का और संगठित होकर आत्मबल की उपासना करने का यह राष्ट्रीय कार्य मौसीजी के कुशल नेतृत्व में शुरु हुआl उनकी बहन समान प्रिय जेठानी श्रीमती उमाबाईजी ने उनका निजी जीवन संभालकर उनका इस ध्येयपथ, कर्तव्यपथ पर चलना सुलभ किया l

राष्ट्र सेविका समिति की आराध्य देवी प्रेरक, मारक, तारक शक्ति की प्रतिमा देवी अष्टभुजा वं. मौसीजी के अलौकिक चिंतनस्वरुप से साकार हुईl नेतृत्व के लिए स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व एवं स्वतंत्रता हेतु बलिदान करनेवाली शूरवीर झांसी की राणी लक्ष्मीबाई, मातृत्व के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के माध्यम से हिंदू साम्राज्य की स्थापना करनेवाली राजमाता जीजाबाई और कर्तृत्व के लिए प्रजाजनों के हित को प्रधानता देनेवाली उत्कृष्ट शासक प्रशासक लोकमाता पुण्यश्लोका देवी अहल्याबाई होळकर यह तीन आदर्श समिति के सामने रखेl हमारी महिलाओं में इन गुणों का समयानुकूल प्रत्यक्ष प्रकटीकरण होना चाहिए, ऐसा वं. मौसीजी का आग्रह थाl गुरु भगवा ध्वज से हमें तेज, सामर्थ्य, समर्पण, ज्ञान, अंतःकरणपुर्वक अडिग व्यक्तित्व एवं संगठन सुत्र में बंधे रहने की प्रेरणा मिलती हैl एखाद बार शाखा स्थान पर जाना असंभव होने पर भगवा ध्वज के सामने प्रार्थना कर सके इस कल्पना से वं. मौसीजी ने पुजाध्वज बना लियाl

वं. मौसीजी में अनोखी चिंतनशीलता थीl प्रगाढ, नियमित वाचन में विषय विविधता थीl ” सीता के जीवन से अपने आप श्रीराम निर्माण होंगे”, भाषण में सुने इस वाक्य से प्रेरणा लेकर रामायण का अध्ययन कियाl श्रोतागण के बहुसंख्य उपस्थिति में उन्होंने अनेक प्रवचन दिएl आज उनके प्रवचन अनेक भाषाओं मे अनुवादित हैl उनके ये प्रवचन कार्यविस्तार की ही योजना का आदर्श हैl

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत और पाकिस्तान के विभाजन का निर्णय हुआl महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की तो कोई परिसीमा ही नहीं थीl सिंध प्रांत भारत से विभाजित होनेवाला थाl वहाँ के माता बहनों की मौसीजी को बहुत चिंता थीl  इसी समय कराची से मा.जेठाबहेन के आए हुए भावनापुर्ण पत्र से मौसीजी अत्यंत व्यथित हो गई और वेणुताई कळंबकर के साथ अत्यंत विपरित परिस्थिति में विमान से कराची गईl वहां पर तो पाकिस्तान का मदोन्मत्त स्वतंत्रता उत्सव मनाया जा रहा थाl ऐसे अत्यंत विकट परिस्थिति में १२०० राष्ट्राभिमानी सेविकाओं का और मौसीजी का अनोखा राष्ट्रभावपूर्ण एकत्रिकरण हो रहा था! उस रात भगवे ध्वज को साक्षी रखकर अपने स्त्रीत्व की रक्षा करने की एवं भारतभू की सेवा आमरण करने की प्रतिज्ञा मौसीजी के सामने ली और विभाजन के बाद इन सभी सेविकाओं की भारत में अनेक स्थानों पर रहने की व्यवस्था मौसीजी ने कीl विपरीत परिस्थिति में संगठन का अत्याधिक महत्व होता है ये प्रतिपादित करने के लिए वं. मौसीजी सेविकाओं को यह सिंध का हृदयस्पर्शी उदाहरण देती थीl

ध्येय के प्रति अतीव श्रध्दा, कार्य बढ़ाने की आत्मिक इच्छा और जो भी परिस्थिति हो उसमें  कार्य करते रहने की जिद यह मौसीजी के विशेषत्व की त्रिसूत्री थीl उन्होंने परंपरागत चलती आई अबला की व्याख्या ही अपने सकारात्मक, उच्च विचार से बदल दीl ‘ स्वयंमेव मृगेंद्रता’  का भाव मन में रखते हुए मौसीजी कहती है अबला याने जिसके बल की कोई तुलना नही हैl अतुलनीय बल जिसके पास हैl जिस तरह मुल्य से अमुल्य अधिक मौल्यवान, उस तरह बल से अबला अधिक सामर्थ्यवानl

स्री राष्ट्र की आधारशक्ति हैl वह शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं भावनात्मक दृष्टि से सक्षम होनी चाहिएl इसी दृष्टि से शाखा स्थान एवं समिति के सभी कार्यक्रमों की रचना की गईl ऐसी सुशीला,  सुधीरा,  समर्था महिलाओं की संगठित शक्ति ही परीवार, समाज और राष्ट्र को दिशा दे सकती है, तेजस्विता निर्माण कर सकती हैl

वं. मौसीजी ने अनेक सेविकाओं के हृदय में राष्ट्रधर्म की प्रेरणा जगाईl  “व्यक्ति से समष्टि श्रेष्ठ”  यह संगठन का मुलमंत्र हैl संगठन में ‘मै’ , ‘मेरा’  नही बल्कि ‘ हम’  यह निःस्वार्थ भाव होना चाहिए, ऐसे मौसीजी अपने वक्तव्यों में कहती थीl दृढ़निश्चयी, अनुशासन प्रिय, सदैव जागरुक, गुणी,  कुशल संगठक, आत्मविश्वासी, कर्तव्य दक्ष, सकारात्मक विचारों से कर्तव्य संपन्न वं. मौसीजी सेविकाओं का आदर्श थीl मुंबई की बकुळताई देवकुळे, सोलापूर की काशीताई कुलकर्णी, दिल्ली की सिंधुताई फाटक,  हैद्राबाद की सौ. अफजलपुरकर आदि अनेक सेविकाओं ने दायित्व स्वीकार कर समिति कार्य को गति प्रदान कीl  वं. ताईजी आपटे ने मौसीजी के साथ ही समिति का कार्य अत्यंत निष्ठाभाव से बढ़ावाl

वं. मौसीजी ने सेविकाओं को आलस, निष्क्रियता, आधुनिक प्रलोभनों से दूर रहकर स्वधर्म,  स्व संस्कृति की  निष्ठा से रक्षा करनी चाहिए और दिव्य, उदात्त राष्ट्रकार्य में खुद को भूल जाना चाहिए, ऐसा महान मंत्र दियाl

वं. मौसीजी के इसी मंत्र को स्वीकार एवं अंगीकृत करते हुए ‘ चरैवेती, चरैवेती’  का सुत्र अपनाकर हमें राष्ट्र सेविका समिति का कार्य आगे ले जाना हैl  स्वर्णिम भारत का सपना साकार करने के लिए और अपने इस हिंदूराष्ट्र को विश्वगुरु बनाने के लिए हमें कटिबध्द होना हैl  इसी संकल्प के साथ,  संकल्प दिन के उपलक्ष्य में वंदनीय मौसीजी को आदरपुर्वक, श्रध्दापुर्वक कोटी-कोटी वंदनl

युगप्रवर्तक पथप्रदर्शक, लक्ष्मी को शतवार वंदन l

सेविकाओं के हृदय में,  शक्तिरूपा तुम चिरंतन l

लक्ष्मी को शतवार वंदन ll

वंदना के इन क्षणों में, भावसुमनांजली समर्पण l

लक्ष्मी को शतवार वंदन ll

 

– स्वाती राजीव जहागिरदार

शहरकार्यवाहिका, राष्ट्र सेविका समिति, छत्रपती संभाजीनगर, महाराष्ट्र

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Comments 2

  1. Pradeep Bhaskarrao Bangale says:
    2 years ago

    Pradeep Bangale

    Salute to Honorable Mavsiji for great devotional working for Nation !!
    Appreciation to our Sister Swati Rajiv Jahagirdar for thoughts written !!!

    Vande Mataram !!!

    Reply
  2. शशिकांत वैद्य says:
    2 years ago

    धन्य हैं वं. मावशी और शत शहा नमन … 🙏🏻🙏🏻🚩🚩
    और मेरी आदरणीय बेहना… स्वाती जहागीरदार… 🙏🏻🙏🏻
    हम करें राष्ट्र आराधन….🚩
    हम करें राष्ट्र आराधन….🚩
    तन सें मन सें धन सें….🚩
    तन मन जीवन अर्चन सें…. 🚩🚩🚩

    Reply

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