एपीएमसी में सुधार व बदलाव अपेक्षित – शरद मारू

किसानों की सहूलियत के लिए सरकार 1963 में एपीएमसी एक्ट लेकर आई ताकि देश के ज्यादातर किसान अनपढ़ होने के कारण शोषण के शिकार न हो सकें। परंतु समय के साथ ये नियम अप्रासंगिक हो गए हैं। हिंदी विवेक के साथ साक्षात्कार के दौरान संस्था के डायरेक्टर शरद मारू ने विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे।

एपीएमसी मार्केट कब स्थापित हुआ और इसकी स्थापना का उद्देश्य क्या था?

1963 में एपीएमसी मार्केट एक्ट लाया गया ताकि विक्रेता किसानों का शोषण न कर सकें। उससे पहले दि ग्रेन एंड राइस मर्चेंट्स एसोसिएशन यानी ग्रोमा के तहत हम मस्जिद बंदर में क्रय कर रहे थे, जिस पर एपीएमसी एक्ट कार्य नहीं करता था क्योंकि वहां पर सारा अनाज विक्रेताओं से आ रहा था, ना कि किसानों से। उसके नियम ग्रोमा ने ही बनाए थे। सरकार इसे नवी मुंबई ले जाना चाहती थी क्योंकि मस्जिद बंदर का इलाका काफी भीड़भाड़ वाला था, तथा सरकार नवी मुंबई को सुनियोजित तरीके से बसा रही थी। शुरुआत में लोग यहां पर नहीं आ रहे थे क्योंकि यहां आने के लिए साधन अनुपलब्ध था और यहां पर इंफ्रास्ट्रक्चर सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध न थी। मुंबई शहर का बोझ कम करने के लिए नवी मुंबई को बसाने का कार्य शुरू हुआ। उसी दौरान एपीएमसी एक्ट लाने की बात हुई ताकि किसानों को इसका ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके। राज्य के भीतरी इलाकों से अनाज यहां पर आता है। उसे हम ब्रोकर्स के माध्यम से मुंबई और नवी मुंबई के लाखों दुकानदारों तक पहुंचाते हैं।

 एपीएमसी मार्केट की क्या प्रमुख विशेषताएं हैं?

यह मार्केट पूरी तरह किसानों के लिए बना है। शुरुआती समय में ज्यादातर किसान अशिक्षित थे। इसलिए सरकार ने एपीएमसी बनाई, जहां पर उनके सामान की बोली लगने लगी और ज्यादा बोली लगाने वाले को ही सामान मिलने लगा। यहां पर उन्हें तमाम सुविधाएं मिलीं और उनकी समस्याओं का निराकरण किया जाने लगा। किसान अपना सामान अपने क्षेत्र के क्रेताओं को बेच देते हैं। उनके क्रेता उसकी सफाई करके शहरों में बेचने लायक बनाकर हमारे पास तक ला रहे हैं।

 मुंबई में एपीएमसी मार्केट से प्रतिदिन कितनी आपूर्ति होती है?

हम 1993 में यहां पर आए। उस समय 900-1000 ट्रक प्रतिदिन आते थे। मार्केट एक्ट की वजह से अब केवल 200-300 ट्रक ही आते हैं। हर मार्केट एरिया के आस पास किसान होते हैं, जबकि मुंबई के मार्केट एरिया के आस पास कोई किसान नहीं है। इसलिए मार्केटिंग एक्ट एमेंडमेंट के अनुसार महाराष्ट्र के सभी 6 रीजन में डायरेक्टर्स की नियुक्ति हुई है। लेकिन वे मार्केट के विकास को लेकर उदासीन हैं। यहां पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। डीमार्ट, मॉल्स इत्यादि ने भी प्रभाव डाला है। नियम के अनुसार पहले सामान एपीएमसी जैसे प्रिंसिपल मार्केट में जाना चाहिए, लेकिन कुछ जगह वह सीधे बाजार में पहुंच रहा है।

 एपीएमसी मार्केट के जरिए युवा कैसे लाभ कमाकर सफल व्यवसायी बन सकते हैं?

अब यहां गुंजाइश नहीं बची है। युवा इसे छोड़ रहे हैं क्योंकि सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा। बड़े उद्योगपतियों को सरकार छूट दे रही है और यहां के अधिकारी ट्रेडर्स का शोषण कर रहे हैं। मेरी उम्र ढल गई है। मेरे बच्चे यहां आना ही नहीं चाहते क्योंकि यहां पर बिजनेस ही नहीं है। एपीएमसी का संचालक मंडल भी कोई काम सीधे तरीके से नहीं करता। छोटे-छोटे कामों के लिए उनकी जी हुजूरी करनी पड़ती है। ये गाले सिडको ने अलॉट किए हैं। लेकिन नाम ट्रांसफर के लिए सिडको के अलावा एपीएमसी भी दो प्रतिशत लेता है।

 मार्केट की भूमिका एवं संचालन में समिति की क्या भूमिका है?

यहां पांच मार्केट हैं, कांदा बटाटा मार्केट, फल बाजार, सब्जी बाजार, किराना बाजार, मुड़ी बाजार। हर मार्केट का एक डायरेक्टर और कुल मिलाकर इक्कीस डायरेक्टर हैं। इन पांचों को छोड़कर बाकी बाहर के हैं। मार्केट के विकास में उनकी दिलचस्पी नहीं है। इसका संचालन महाराष्ट्र सरकार के सहकारिता मंत्रालय के अधीन होना चाहिए। हमने गणेश नाइक जी से बात की। वे भी इससे सहमत हैं। पहले छोटी लारी आती थी। अब बड़ी लारी आती है। उस हिसाब से व्यवस्था होनी चाहिए। नए हिसाब से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार होगा तो मार्केट एक बार फिर उसी स्थान पर पहुंचने की क्षमता रखता है।

आपके कार्यकाल में यहां क्या नवीन बदलाव हुए?

ऊपर जितनी बातें बतायी, हम वे सभी बदलाव लाने की दिशा में कार्य रहे हैं। लेकिन हमारी अपनी सीमाएं हैं। हम केवल शासन से मांग कर सकते हैं। यदि हमारे सुझावों पर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स और मंत्रालय कार्य करता है तो व्यापक स्तर पर सुधार हो पाएंगे। बाकी भारतीय कार्य प्रणाली से हम आप सुपरिचित हैं। हमारे पूरे मार्केट का सालाना खर्च मात्र पांच करोड़ रुपए है। लेकिन पिछले साल हमने 25 करोड़ रुपए सेस टैक्स दिये।

 इन चुनौतियों के क्या समाधान हैं और ये किस प्रकार सम्भव हैं?

कुछ बातें हम लोग ऊपर कर चुके हैं। एपीएमसी को भविष्योन्मुखी बनाने की आवश्यकता है। उसके लिए नई ट्रेडिंग पालिसी के अनुसार इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट होना चाहिए। हम एक टर्मिनल मार्केट हैं। यहां से हम दुकानदारों को माल बेचते हैं। साथ ही यहां से बाहर निर्यात भी किया जाता है। इसलिए यहां पर प्रोसेसिंग की सारी व्यवस्था होनी ही चाहिए। हमारे प्रधान मंत्री भी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की बात करते हैं। हम पाचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं। अगर अर्थव्यवस्था को आगे ले जाना है तो ऐसे प्लेटफार्म्स को आगे बढ़ाना अत्यावश्यक है। वरना यह अपने आप समाप्त हो जाएगा।

 एपीएमसी मार्केट से किसानों को उचित मूल्य प्राप्त हो पाता है?

हमारा किसानों से सीधा कोई सम्पर्क नहीं है। हर क्षेत्र में मंडी होती है। वहां के क्रेता किसानों से माल खरीदकर उसकी साफ सफाई करने के पश्चात् हमारे पास लाते हैं। कुछ लोग ज्यादा भाव के लिए अन्य जगहों पर जाते हैं।

एपीएमसी मार्केट को लेकर आपकी क्या राय है? सरकार से आपको क्या अपेक्षा है?

हम चाहते हैं कि एपीएमसी एक्ट को समाप्त कर देना चाहिए। सरकार को वैज्ञानिक तरीके से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के प्रति ध्यान देना चाहिए। मार्केट के रिडेवलेपमेंट के लिए आढ़त के लोग पैसा लगाने को तैयार हैं। कुछ कम्पनियां भी यहां निवेश करना चाहती हैं। व्यापारियों को सहूलियतें मिलनी चाहिए। 1944 में मुंबई पोर्ट ट्रस्ट पर धमाके में गोदाम नष्ट होने के बाद व्यापारी वहां से जाने लगे थे पर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गोदाम बनवाकर दिए। साथ ही, अन्य सहूलियतें भी दीं जबकि भारत सरकार ने 1993 में हमें यहां भेज दिया। हमारा व्यापार दिन ब दिन घट रहा है। आपके माध्यम से हम सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। समय की मांग के अनुसार यहां का विकास होना चाहिए।

 

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