पनवेल का ऐतिहासिक महत्व

अतीत में भौगोलिक एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और समृध्द रहे पनवेल का वर्तमान समय में कायापलट हो रहा है। पुराना पनवेल अब नए पनवेल के रूप में तेजी से परिवर्तित होता जा रहा है। साथ ही, पनवेल की असली प्राचीन विरासत, पहचान  और उपलब्धियों को जानकर आपको निश्चित ही गर्व की अनुभूति होगी।

मुंबई का प्रवेश द्वार की पहचान रखने वाले पनवेल शहर को कोंकण का प्रवेशद्वार भी कह सकते हैं। पनवेल का प्राचीन इतिहास भी इसी तरह का है। प्राचीन समय में नाग लोगों की जो बसाहट कोंकण में थी, उनमें से एक बसाहट पनवेल में भी थी ऐसा माना जाता है। पनवेल का प्राचीन नाम पन्नगपल्ली था। यादवों के काल में पनवेल को पण्यवेला भी कहा जाता था। शिव काल में पनवेल का उल्लेख पणवल्ली के रूप में मिलता है। प्राचीन काल में पानेली के रूप में में भी पनवेल पहचाना जाता था। इस काल में मुगल, अंग्रेज, पुर्तगाली, मराठों ने विविध कालावधि में पनवेल पर शासन किया। तालाबों का शहर के नाम से भी पनवेल की पहचान थी। सम्पूर्ण शहर में वडाले, विश्राले, कृष्नाले, देवाले, लेंडाले, दुदोले नाम के 6 तालाब हैं।

रायगढ़ जिले में सबसे बड़े, विकसित व महत्वपूर्ण शहर के रूप में पनवेल की पहचान है। रायगढ़ जिले का 564 गांव वाला पनवेल शहर यहां की सबसे बड़ी तहसील भी है। पनवेल की बसाहट गाढ़ी नदी के तीर पर है। यह नदी आगे जाकर पनवेल की खाड़ी बन जाती है। पनवेल समुद्र तल से 12.175 मीटर ऊंचाई पर स्थित है।

प्रबलगढ़, कर्नालागढ़ के शिवकालीन किले यहां से कुछ ही दूर स्थित हैं। कर्नाला पक्षी अभ्यारण भी पनवेल के आख्यान में बढ़ोत्तरी करता है। यहां देशभर से पक्षी अभ्यासक आते हैं। मुंबई से केवल 47 किलोमीटर दूर पनवेल वर्तमान में तेजी से बढ़ने वाली जनसंख्या के कारण यहां महानगरपालिका का रूप ले चुका है। पनवेल के खारघर, कलंबोली, कामोठे, खांदा कॉलोनी, नया पनवेल को सिडको ने व्यवस्थित तरीके से बसाया है। इसलिए यहां  विकास के साथ पर्यावरण संतुलन का भाव भी दिखता है।

पनवेल शहर आधुनिक काल में ही नहीं तो पुरातन काल से जल यातायात का एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। चौदहवें शतक के उत्तरार्ध में पनवेल शहर गुजरात के सुल्तान के कब्जे में था। उस समय लिखे गए ग्रंथ मीरत-ई-अहमदी में पनवेल शहर का वर्णन एक राजस्व प्राप्त कराने वाले बंदरगाह के रूप में किया गया है। सन 1570 में जब पुर्तगाली, डच, फ्रेंच, ब्रिटिश इत्यादि देश व्यापार के कारण भारत से जुड़े तब उन्होंने पनवेल का उल्लेख यूरोपियन्स के व्यापारी बंदरगाह के रूप में किया। सन 1637 में पनवेल पर आदिल शाह का शासन था। तब वह कल्याण सूबे के अंतर्गत आता था। शिवाजी महाराज ने सन 1657 में कल्याण पर विजय प्राप्त की, तब उन्होंने पनवेल को स्वराज्य में शामिल किया। शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की शक्तिशाली नौसेना खड़ी करने के लिए पनवेल में एक बड़ा नौसेना केंद्र स्थापित किया।

भौगोलिक दृष्टि से पनवेल ऐसी जगह स्थित था जहां से ब्रिटिश, पुर्तगाली, एवं सिद्दी जैसे शत्रुओं के राज्य निकट थे। इसलिए शत्रुओं की नाकाबंदी के लिए पनवेल कोंकण का महत्वपूर्ण क्षेत्र था। पनवेल पर जिसकी सत्ता होती उनके लिए घाटियों के प्रमुख मार्गो से जाने वाले शत्रुओं पर पैनी नजर रखी जा सकती थी। छत्रपति संभाजी महाराज ने पनवेल की खाड़ी में एक किले का भी निर्माण किया था जिसके अब मात्र अवशेष ही देखने को मिलते हैं। विरुपाक्ष महादेव, बल्लालेश्वर महादेव, राम मंदिर या दास मारुति मंदिर ये पुराने मंदिर हैं। जिनका निर्माण बालाजी कृष्ण बापट ने किया था ऐसा उल्लेख मिलता है।

वसई की मुहिम से लौटते समय चिमाजी अप्पा ने अपना डेरा कुछ समय के लिए पनवेल में जमाया था। पेशवा के काल में पनवेल में अनेक बाड़े (बड़े भवन) बनवाए गए। इनमें से कुछ आज भी सीना ताने खड़े हैं। उनमें से एक बापट वाड़ा प्रसिद्ध है। सन 1720 में यह बाड़ा पेशवा काल के एक उच्च पदाधिकारी बालाजी पंत बापट ने बनवाया था। उस काल में मराठेशाही के निर्माण कला की छाप इस बाड़ेे के निर्माण में दिखाई देती है। इसे बनवाए हुए लगभग 300 वर्ष हो गए। शहर का प्रसिद्ध ऐतिहासिक गोकुल अष्टमी (जन्माष्टमी) का त्योहार इस बाड़े में बरसों से प्रतिवर्ष मनाया जाता था। अब प्रशासन ने खतरनाक इमारत घोषित कर बाड़े को गिरा दिया है।

सन 1852 में पनवेल में नगर पालिका की स्थापना हुई। महाराष्ट्र की यह सबसे पहली नगरपालिका थी। जल मार्ग तथा थल मार्ग से व्यापार जुड़ा होने के कारण पनवेल प्रगति करता रहा। अभी 2016 में ही पनवेल को महानगरपालिका का दर्जा मिला। रायगढ़ जिले की पहली महानगर पालिका का सम्मान पनवेल को प्राप्त है। पनवेल में पहले एक टकसाल भी थी। काशी सुनार नामक एक व्यक्ति उसे चलाता था। नाना फडणवीस की पत्नी जिउबाई का पनवेल में बाड़ा था। कालांतर में इस भाग में धूतपापेश्वर नाम से प्रसिद्ध दवाइयों का कारखाना कार्य करने लगा। ब्रिटिश काल में भी पनवेल को तहसील का दर्जा प्राप्त था। परंतु क्षेत्रफल में बड़ा होने के कारण प्रशासनिक दृष्टि से इस के दो भाग किए गए। मुख्य पनवेल तहसील तथा उपविभाग उरण पेटा, ऐसे यह दो नाम थे। इसके अतिरिक्त पूर्वी पनवेल में ईंट निर्माण का भी बड़ा केंद्र था। मुंबई को ईंटे यहीं से भेजी जाती थी। पनवेल ऐतिहासिक काल से बाजार का बड़ा केंद्र था। संत तुकाराम महाराज पनवेल की मिर्ची गली में व्यापार के लिए आते थे। आज भी वहां उनकी स्मृति को जतन कर रखा गया है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी पनवेल का योगदान रहा है। पहले क्रांतिकारी वासुदेव बलवंत फड़के पनवेल के पास शिरढोण के थे। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष की नींव रखी एवं वे क्रांतिकारियों के प्रेरणास्त्रोत बने। इसी प्रकार हुतात्मा हिरवे गुरुजी पनवेल के थे। उनका पूरा नाम तुलसीराम बालकृष्ण हिरवे था। वे 15 अगस्त 1955 को अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उम्र के 37वें वर्ष में देश के लिए गोवा मुक्ति संग्राम में हुतात्मा हो गए। अनेक प्रसिद्ध महान व्यक्तियों का सान्निध्य पनवेल निवासियों को मिला है। इनमें प्रबोधनकार केशव सीताराम ठाकरे, विनायक मोरेश्वर गोविलकर, वसंत महादेव वेदक, त्रिंबक नारायण बेडेकर आदि के साथ अनेक व्यक्तियों के नाम गिनाए जा सकते हैं।

मुंबई से सटे होने के बावजूद पनवेल शहर ने अपना अलग अस्तित्व कायम रखा है। आगरी, कोली तथा कराड़ी समाज इस भाग में बहुसंख्या में रहे हैं। सिडको ने नवी मुंबई बसाने की मुहिम शुरू की और पुराना पनवेल नए पनवेल में परिवर्तित होने लगा। नया पनवेल पुराने पनवेल के पड़ोस में ही स्थित है। भविष्य में सिडको द्वारा निर्मित किए जाने वाले पुष्पक नगर तथा नवी मुंबई हवाई अड्डा पनवेल तहसील के दापोली, कुंडे वहाल, भंगारपाड़ा गांव से जुड़े हुए हैं। सिडको द्वारा निर्मित उल्वे, खारघर, कामोठे, सेंट्रल पार्क, गोल्फ कोर्स, आकर्षण के केंद्र हैं। आधुनिक काल में यद्यपि पनवेल ने अपना चेहरा-मोहरा बदल लिया है, फिर भी अतीत के निशान शहर में अपना अस्तित्व बचाए रखने का प्रयत्न कर रहे हैं।

                                                                                                                                                                                                 संदीप बोडके 

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