तबाही का हमासी न्योता

पिछले संकटों में, इज़राइल भारत के साथ खड़ा रहा है और उसकी मदद करने की कोशिश की है। हमास के आतंकवादी कृत्य की निंदा करने और संकट की घड़ी में इज़राइल के साथ खड़े होने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की त्वरित प्रतिक्रिया संकेत है कि हाल के वर्षों में यह देश भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण हो चुका है।

यहूदियों के त्योहार के दिन इजराइल पर फिलीस्तीन समर्थक हमास के भयानक आतंकी हमले ने गाजा पट्टी ही नहीं, पूरी दुनिया को तबाही का न्योता दे दिया है। हमास के हमले ने 2008 की याद दिला दी जब आतंकियों ने मुंबई को बंधक बना लिया था। अब, भाईचारे के नाम पर दुनिया के मुसलमान इजराइल के विरूद्ध इस्लामी जिहाद के लिए एकजुट हो गए हैं, तो भारत में आसन्न चुनावों में इस मुद्दे पर अपनी रोटी सेंकने की कवायद तेज हो गई है। सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सरोकारों पर संकट के बीच तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका भी बढ़ गई है।

1948 में इजराइल के अस्तित्व में आने के साथ ही उसका फिलिस्तीन साथ भीषण संघर्ष चल रहा है। इजराइल को फिलिस्तीन समेत ज्यादातर अरब देश मानने को तैयार नहीं हैं। अरबों समेत पूरी दुनिया के मुसलमानों की शिकायत है कि इजराइल ने फिलिस्तीनियों पर जुल्म किया है और पूरी दुनिया एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मूकदर्शक बनी बैठी हैं। वहीं, यहूदियों का कहना है कि उनकी मातृभूमि फिलिस्तीन ही रही है जहां से उन्हें सन् 71 में मारकर भगा दिया गया। सदियों दर-दर भटकने के दौरान जब दुनिया के अन्य देशों में भी यहूदियों पर अत्याचार होने लगे तो उनके पास अपनी मातृभूमि लौटने के सिवा कोई चारा नहीं था, जहां से उन्हें कोई हटा नहीं सकता।

35 एकड़ जमीन के एक टुकड़े के लिए अरबों और यहूदियों के बीच संघर्ष एक सदी से भी अधिक पुराना है। येरुशलम में जमीन के इस टुकड़े पर एक ऐसी जगह है, जिसका संबंध तीन-तीन धर्मों से है। इस जगह को यहूदी हर-हवाइयत या फिर टेंपल माउंट कहते हैं। मुस्लिम इसे हरम-अल-शरीफ पुकारते हैं। हाल-फिलहाल 35 एकड़ जमीन पर बसे टेंपल माउंट या हरम अल शरीफ पर न तो इजराइल का कब्जा है, न ही फिलिस्तीन का। ये पूरी जगह संयुक्त राष्ट्र के नियंत्रण में है।

इस्लामी मान्यताओं के अनुसार मक्का और मदीना के बाद हरम-अल-शरीफ उनके लिए तीसरी सबसे पाक जगह है। मुस्लिम धर्म ग्रंथ कुरान के अनुसार आखिरी पैगंबर मोहम्मद मक्का से उड़ते हुए घोड़े पर सवार होकर हरम-अल-शरीफ पहुंचे थे और यहीं से वो जन्नत गए। इसी मान्यता के अनुसार तब येरुशलम में मौजूद उसी हरम-अल-शरीफ पर एक मस्जिद बनी थी, जिसका नाम अल अक्सा मस्जिद है। मान्यता है कि ये मस्जिद ठीक उसी जगह पर बनी है, जहां येरुशलम पहुंचने के बाद पैगंबर मोहम्मद ने अपने पांव रखे थे। अल अक्सा मस्जिद के पास ही एक सुनहरे गुंबद वाली इमारत है। इसे डोम ऑफ द रॉक कहा जाता है। मुस्लिम मान्यता के अनुसार ये वही जगह है, जहां से पैगंबर मोहम्मद जन्नत गए थे।

यहूदियों की मान्यता है कि येरुशलम में 35 एकड़ की उसी जमीन पर उनका टेंपल माउंट है। यानी वो जगह जहां आदम का जन्म हुआ था। यहूदियों की मान्यता है कि ये वही जगह है, जहां अब्राहम से खुदा ने कुर्बानी मांगी थी। अब्राहम के दो बेटे थे, एक इस्माइल और दूसरा इसहाक। अब्राहम ने खुदा की इच्छा पर इसहाक को कुर्बान करने का फैसला किया, लेकिन यहूदी मान्यताओं के अनुसार तभी फरिश्ते ने इसहाक की जगह एक भेड़ को रख दिया था। जिस जगह पर ये घटना हुई, उसका नाम टेंपल माउंट है। यहूदियों के धार्मिक ग्रंथ हिब्रू बाइबल में इसका जिक्र है। बाद में इसहाक को एक बेटा हुआ, जिसका नाम जैकब था। जैकब का एक और नाम था इसराइल। इसहाक के बेटे इसराइल के बाद में 12 बेटे हुए। उनके नाम थे टुवेल्व ट्राइब्स ऑफ इजराइल। यहूदी मान्यता के अनुसार, इन्हीं कबीलों की पीढ़ियों ने आगे चल कर यहूदी देश बनाया। शुरुआत में उसका नाम लैंड ऑफ इजराइल रखा। 1948 में इजराइल की दावेदारी का आधार यही लैंड ऑफ इजराइल बना।

लैंड ऑफ इजराइल पर यहूदियों ने एक टेंपल बनाया, जिसका नाम फर्स्ट टेंपल था। इसे इजराइल के राजा किंग सोलोमन ने बनाया था। बाद में ये टेंपल दुश्मन देशों ने नष्ट कर दिया। कुछ सौ साल बाद यहूदियों ने उसी जगह फिर एक टेंपल बनाया। इसका नाम सेकंड टेंपल था। इस सेकंड टेंपल के अंदरुनी हिस्से को होली ऑफ होलीज़ कहा गया। यहूदियों के अनुसार ये वो पाक जगह थी, जहां सिर्फ खास पुजारियों की छोड़ कर खुद यहूदियों को भी जाने की इजाजत नहीं थी। 1970 में रोमन ने इसे भी तोड़ दिया। लेकिन इस टेंपल की एक दीवार बची रह गई। इसी दीवार को यहूदी वेस्टर्न वॉल कहते हैं।

जबकि, ईसाइयों की मान्यता है कि ईसा मसीह ने इसी 35 एकड़ की जमीन से उपदेश दिया। इसी जमीन से वो सूली पर चढे, फिर दोबारा जी उठे। और, अब जब वो एक बार फिर जिंदा होकर लौटेंगे, तो भी इस जगह की एक अहम भूमिका होगी।

1980 के दशक के उत्तरार्ध में प्रथम इंतिफादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) के दौरान इस्लामी संगठन हमास का उदय हुआ। तबसे, इज़राइल-हमास संघर्ष भूमि, संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर दोनों पक्षों के बीच लंबे समय से चले आ रहे और जटिल विवाद का एक सिलसिला है। इस विवाद का शिकार हमेशा की तरह निरीह नागरिक भी हो रहे हैं। अब, गाजा के अल अहरी अस्पताल पर राकेट गिरने से 500 लोगों की मौत के बाद मुस्लिम भाईचारा इजराइल के विरूद्ध गुस्से में उफान पर है। जबकि, इजराइल का दावा है कि ये राकेट इजराइल का नहीं बल्कि खुद इस्लामिक जिहाद का मिसफायर हुआ राकेट था, जो इजराइल पर छोड़ा गया था। प्रमाण में इजराइल ने एक आडियो भी मीडिया को जारी किया।

सच तो ये है कि ताजा संघर्ष में दुनिया दो नए खेमों में बंटती नजर आ रही है। ईरान जैसे कुछ अरब देश हैं जिन्होंने हमास के शुरुआती हमले का जश्न मनाया। चीन और रूस सहित मुस्लिम देश भी इस्लामी जिहाद के समर्थन में खड़े हो गए हैं। सबके अपने-अपने निहित स्वार्थ हैं। किसी को खुद काो मुस्लिमों का सबसे बड़ा पैरोकार सिद्ध करना है, तो किसी के व्यावसायिक हित हैं और किसी का कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना वाला लक्ष्य है। दूसरी ओर, अमेरिका सहित जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जापान आदि पश्चिमी देश आतंकवाद के विरूद्ध एकजुटता दिखाते हुए इजराइल के समर्थन में खड़े हैं। इनका कहना है कि हमास और फिलीस्तीन एक नहीं हैं। हमास का सफाया अनिवार्य है।

इज़राइल भारत के सबसे विश्वसनीय रणनीतिक साझेदारों में से एक है। पिछले संकटों में, इज़राइल भारत के साथ खड़ा रहा है और उसकी मदद करने की कोशिश की है। हमास के आतंकवादी कृत्य की निंदा करने और संकट की घड़ी में इज़राइल के साथ खड़े होने की भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की त्वरित प्रतिक्रिया संकेत है कि हाल के वर्षों में यह देश भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण हो चुका है। हालांकि, पांच दिन बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने पुरानी नीति को दोहराया कि वह सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर, इजराइल के साथ-साथ और शांति से रहने वाले एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य की स्थापना के लिए सीधी बातचीत फिर से शुरू करने की वकालत करता है।

लेकिन, कांग्रेस सहित ‘इंडी गठबंधन’ के दलों ने हमास के बर्बर हमले को नजरंदाज करते हुए फिलीस्तीन के समर्थन में इजराइल की जवाबी कार्रवाई की ही निंदा कर दी। माना जाता है कि कांग्रेस अपना मुस्लिम वोट बैंक खोने के डर से आतंकी संगठन हमास की खुलकर आलोचना नहीं कर रही है। शरद पवार, संजय राउत, महबूबा मुफ़्ती और ओवैसी जैसे भारतीय राजनेता भी इज़रायली लोगों की मौत पर चुप हैं। इजराइल की जवाबी कार्रवाई के बाद वे विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं। हालांकि, आम भारतीय आतंकवाद के बिल्कुल विरूद्ध है और आसन्न विधानसभा चुनावों से लेकर 2024 के आम चुनाव के नतीजों पर इस सोच के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता।

बोले तो, इज़राइल-हमास युद्ध चीन और भारत की राजनयिक महत्वाकांक्षाओं के लिए भी एक परीक्षा है। एशिया की दोनों शक्तियां वैश्विक प्रभाव के वैकल्पिक रास्ते बनाने पर काम कर रही हैं। मार्च में, चीन सऊदी अरब और ईरान के बीच राजनयिक संबंधों को फिर से स्थापित करने के समझौते के केंद्र में था। हालांकि, अमेरिका सऊदी अरब और इजराइल को करीब ला कर चीन की कूटनीति को लगभग पलीता लगा चुका था। लेकिन, ताजा युद्ध ने चीन की बांछे खिला दी हैं। यही नहीं, अमेरिका को मध्य पूर्व में फंसा देख कर चीन को वियतनाम के साथ दादागिरी करने का अवसर भी दिख रहा है।

दूसरी ओर, भारत, ने इस वर्ष जी20 की अध्यक्षता करते हुए वैश्विक नेताओं का सफल शिखर सम्मेलन आयोजित किया। इसमें यूक्रेन के खिलाफ रूस के युद्ध पर चल रहे मतभेदों के बावजूद सभी पक्षों द्वारा एक संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर किए गए थे। अब यदि, इजराइल और सऊदी अरब के बीच ऐतिहासिक शांति समझौते की कोशिश पटरी से उतरी तो ‘भारत मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा’ परियोजना में देरी और जटिलताएं हो सकती हैं। परिकल्पित गलियारा संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, जॉर्डन, इज़राइल और ग्रीस से गुजरते हुए भारत से यूरोप तक फैला होगा। परियोजना का मुख्य लक्ष्य यूरोप और एशिया के बीच परिवहन और संचार लिंक को बढ़ाना है, और इसे चीन की बेल्ट और रोड पहल की प्रतिक्रिया के रूप में माना जाता है।

तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के संकेत पहले से ही मिल रहे हैं और अगर आने वाले दिनों में यह और बढ़ता है, तो इससे भारत और अन्य देशों में मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती है। हालांकि, सारे किंतु-परंतु के बीच प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इस विवाद में भी एक बार फिर विश्व गुरु की भूमिका निभाते नजर आएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

 

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