आज जिस गति से दुनिया दौड़ रही है वहां एक साथ कई काम करना बहुत आवश्यक हो गया है। दुनिया भर में हुए कई सर्वेक्षणों के अनुसार महिलाएं एक साथ कई काम करने में अर्थात मल्टीटास्किंग में पुरुषों की तुलना में अधिक माहिर होती हैं। इसके कारणों की मीमांसा करता आलेख-
स्त्री-पुरुष दोनों में अव्वल कौन है? कौन ज्यादा मल्टीटास्किंग है? यह बहस आज से नहीं सदियों से चली आ रही है। मानव सभ्यता के शुरुआती काल से ही स्त्री-पुरुष दोनों अपने आपको एक-दूसरे से बेहतर मानते आ रहे हैं, लेकिन वास्तव में दोनों में से ज़्यादा बेहतर कौन है? इसका संतोषजनक जवाब आज तक किसी के पास नहीं। वैसे भी अगर स्त्री-पुरुष दोनों मानव सभ्यता के चलायमान रहने की पहली और अंतिम शर्त हैं तो फिर दोनों में से कौन ज़्यादा बेहतर है और कौन कम, इसकी तुलना करना उचित नहीं है। देश और समाज का विकास कंधे से कंधा मिलाकर जब स्त्री-पुरुष दोनों चलते हैं, तभी होता है। ऐसे में किसी एक के अव्वल होने या न होने का कोई विशेष औचित्य नहीं है। फिर भी यह दुनिया तर्क के आधार पर चलती है और व्यक्तियों में सर्वश्रेष्ठता का गुण पाया जाना स्वाभाविक है। ब्रिटिश मनोवैज्ञानिकों के अनुसार महिलाएं कई काम एक साथ करने में पुरुषों के मुकाबले ज़्यादा सक्षम होती हैं। ऐसे में कई शोध हमें यह बताते हैं कि तनाव भरी जटिल परिस्थितियों में महिलाएं ज्यादा सोच-विचार कर काम करती हैं और वो कई कामों के बीच संतुलन बनाने में पुरुषों से कहीं आगे होती हैं।
निःसंदेह हम अपने आसपास ऐसे अनगिनत उदाहरण देख सकते हैं। जब एक महिला अपने घर को बेहतर तरी़के से संभालने के साथ अपनी बाहरी जिम्मेदारियों का भी बख़ूबी निर्वहन करती है। एक अनुमान की मानें तो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पांच और शहरी क्षेत्रों में तकरीबन 30 फीसदी महिलाएं वर्तमान समय में घर के साथ नौकरी कर रही हैं। ऐसे में देश की अर्थव्यवस्था में पुरुषों की तुलना में ऐसी महिलाओं की भूमिका अहम हो जाती है। वैसे भी अगर कोई महिला किसी संस्था के शीर्ष पद पर आसीन हो तो उसके ़फैसले कंपनी या समाज के हित में काफ़ी अहम हो जाते हैं। हम देखते हैं कि हमारे सामने ऐसी कई महिलाएं मिसाल के तौर पर हैं। जिन्होंने अपने काम के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी है। न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे विश्व प्रसिद्ध समाचार पत्र ने आज से अमूमन 15 साल पहले इस विषय पर एक बहस पेश की थी कि, ‘कोई शक नहीं: महिलाएं बेहतर बॉस हैं।’ ऐसे में देखा जाए तो पुरुषों से ज्यादा बेहतर तरीके से प्रबंधन करने में महिलाएं सक्षम हैं और बेहतर प्रबंधक होती हैं।
इसी बारे में जानी-मानी महिला रोग विशेषज्ञ (गायनेकोलॉजिस्ट) डॉ. दिव्या गुप्ता कहती हैं कि इसके पीछे कोई हार्मोनल कारण नहीं है। मेडिकल साइंस में भी इसका कोई उल्लेख नहीं कि महिलाएं मल्टी टास्किंग क्यों होती हैं? लेकिन एक बात ये है कि, महिलाओं का चरित्र ही ऐसा होता है, कि वे एक साथ कई जटिल काम कुशलता से कर लेती हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए यह चुनौती घर और दफ्तर संभालने तक सीमित नहीं है। आज कई मल्टीनेशनल कंपनियों में महिलाएं बड़े पदों पर हैं और वे कई सारे काम एक साथ बिना तनाव के निपटाती हैं, जो कई बार पुरुषों के लिए मुश्किल होते हैं।
वहीं मनोचिकित्सक डॉ. वी. एस. पाल बताते हैं कि ऐसे कई गुण या खासियत जो अधिकतर महिलाओं में होती हैं। जैसे सहानुभूति, संवेदनशीलता, भावनात्मक रूप से खुद को अभिव्यक्त करने की क्षमता और अधिक धैर्य। महिलाओं में संवेदनशीलता, सहानुभूति और एक्सप्रेशन स्किल्स अधिक होने के कारण वे संवाद साधने में बेहतर होती हैं। किसी भी सहयोगात्मक प्रयास में न केवल फैक्ट्स बल्कि उनकी मीनिंग को भी कम्यूनिकेट करने की क्षमता महिलाओं में बेहतर होती है। इसके अलावा महिलाओं में किसी भी सिचुएशन के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता होती है। वे किसी स्थिति से घबराती नहीं, बल्कि उसका सामना करने के लिए तैयार रहती हैं। इसके लिए स्वीकृति, धैर्य और सहनशीलता बेहद आवश्यक हैं। शायद परिवार की वृद्ध महिलाएं इसलिए लड़कियों को सिखाती हैं कि उन्हें जरूरत पड़ने पर सामंजस्य स्थापित करना आना चाहिए। इसी कारण वे फ्लैक्सिबल होती हैं और उनमें खुद को ढालने की क्षमता होती है। लेकिन, उनकी इस क्षमता को लोग कमजोरी का नाम दे देते हैं।
मैं अपने निजी अनुभव से कहूं तो सचमुच में पुरुषों की तुलना में महिलाएं बेहतर संरक्षक और सलाहकार होती हैं। शायद यही एक वजह है कि अधिकतर कम्पनियों की एचआर टीम में महिलाओं की संख्या सर्वाधिक होती है। हालांकि मनोवैज्ञानिक लिंग के आधार पर अति सरलीकरण करने से बचने की सलाह अक्सर ऐसे मामलों में दी जाती है। जॉर्जिया और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की एक स्टडी रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं अच्छी लर्नर होती हैं। यानी वे बहुत जल्दी सीख-समझ जाती हैं। रिसर्च के अनुसार वे अलर्ट, फ्लेक्सिबल और ऑर्गेनाइज़्ड भी होती हैं। किसी भी काम को वे पुरुषों के मुक़ाबले जल्दी समझ जाती हैं। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि कोई सामाजिक निर्णय लेना हो, तो पुरुष मस्तिष्क को इसके लिए ज़्यादा काम करना पड़ता है। जबकि, महिलाएं ऐसे निर्णय चुटकियों में कर लेती हैं। यदि महिलाएं पुरुषों से तुलना में बहुविध कार्य (मल्टीटास्किंग) में सचमुच बेहतर है, तो इसकी क्या वजह हो सकती है? इस पर ब्रिटिश विशेषज्ञ डॉ स्टोएट और प्रो कीथ की राय काफ़ी अहम है। उनके अनुसार जिन मामलों में महिलाएं कई काम करने में पारंगत होती हैं, उनमें पुरुषों के खराब प्रदर्शन के पीछे पुरुषों का किसी काम को सीखने का गलत तरीका भी हो सकता है। कई लोग दोनों में अंतर के लिए विकासवादी सिद्धांत को आधार मानते हैं। जिसके अनुसार जैव विकास के क्रम में पुरुष कमाने वाला और महिला घर चलाने वाली रही है। डॉ स्टोएट का निष्कर्ष है कि सीधे शब्दों में कहें, तो अगर महिलाएं कई काम एक साथ नहीं कर पाती, तो हम आज विकास के इस स्तर तक नहीं पहुंच पाते। उनका मानना है कि इस तरह की परिकल्पना से महिलाओं के बारे में रूढ़ छवि उभरती है। यानी महिलाओं का काम घर में खाना बनाना और बच्चे पालना है। जबकि, पुरुष बाहर जाकर कमाते हैं।
देखा जाए तो सामाजिक स्थितियों ने पुरुषों को एक ‘रक्षक’ और महिलाओं को एक ‘पालक’ के रूप में विकसित किया है। इसलिए, आक्रामकता, प्रतिस्पर्धात्मकता, शारीरिक ताकत, और आजादी आदि मानवीय लक्षणों को पौरुष के साथ जोड़कर देखा जाता है। जबकि, संवेदनशीलता, सहयोग, विनम्रता और पोषण आदि विशेषताओं को स्त्रियोचित माना जाता है। महिलाएं अपनी भूमिका के साथ पुरुषों की भूमिका निभाने में भी सक्षम हैं। इसके लिए उनमें हर ‘स्किल’ अर्थात ‘कौशल’ मौजूद हैं। कुछ ऐसी स्किल्स हैं, जो पुरुषों को महिलाओं से सीखना जरूरी है। महिलाएं अपने घर, परिवार और खुद को एक ही समय में ‘मैनेज’ करने में पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा समर्थ होती है। इस कारण उनका ब्रेन भी कई कार्य एक साथ करनेमें सक्षम होता है। महिलाएं तनाव को भी बेहतर तरीके से मैनेज कर सकती हैं। जहां पुरुष एक समय में एक ही काम करने के लिए खुद को प्रेरित करते हैं, वहीं महिलाओं से एक ही समय में कई कामों को करने की उम्मीद की जाती है। हम अक्सर देखते हैं कि महिलाएं अच्छी टीम प्लेयर होती हैं और उनमें अधिक धैर्य होता है। पर इसे स्पष्ट और एक मत से यह कह देना कि सभी महिलाएं अच्छी प्रबंधक होती हैं, इसे पूरी तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित विचार कहा जाएगा। महिला और पुरुष दोनों के अपने निजी चारित्रिक गुण होते हैं, जिसके आधार पर ही प्रबंधकीय सफलता का अनुपात निर्धारित होता है।
कई शोध यह बताते हैं कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा रचनात्मक होती हैं। उनका फेमिनिन साइड कई डिस्कवरी और इन्वेंशन्स को जन्म देता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है इमेजिनेशन जो कि उन्हें सभी क्रिएटिव एक्टिविटी में मदद करता है। आज के समय में हर एक फील्ड में काम करने लिए क्रिएटिव होना जरूरी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं में स्ट्रेस टोलरेंस (तनाव झेलने की क्षमता) जबरदस्त होती है। इस मामले में हुए शोध भी बताते हैं कि महिलाएं तनाव को ज्यादा बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं। अपने करियर में जैसे-जैसे हम बढ़ते हैं, तनाव भी बढ़ता है, जो स्वाभाविक है। हम जिस समाज में रहते हैं, उनमें पुरुषों को कुछ विशेषाधिकार मिले हैं। उनमें तनाव को झेलने और सहने की क्षमता महिलाओं की तुलना में कम ही होती है। इस कारण उनमें छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा और आक्रामकता ज्यादा दिखाई देती है। इमोशन जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक महिलाएं अपने दुख और दर्द को ज्यादा बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में सक्षम होती हैं और इसके पीछे उनकी प्रजनन क्षमता जिम्मेदार होती है। यही कुछ वजहें हैं। जो महिलाओं को कई मामलों में पुरुषों से अलग बनाती हैं और महिलाएं कामकाजी हों या घरेलू उनमें कई काम एक साथ करने की क्षमता समान होती है। वे अपने जीवनसाथी और परिवार की खुशहाली को हमेशा प्राथमिकता में रखती हैं।
सोनम लववंशी