महिलाएं आसमान छू रही हैं यह बात भी अब बहुत फीकी लगने लगी हैं क्योंकि आसमान को पार कर महिलाओं ने चांद को भी छू लिया है। महिलाएं दूज को जिस चांद की आरती उतारती थीं आज उन्होंने उस पर यान भेजकर यह सिद्ध कर दिया है कि वे केवल घर-गृहस्थी, धरती या आकाश ही नहीं चांद को भी नापने को तैयार हैं।
23 अगस्त 2023 का दिन भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। इस दिन चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने चंद्र सतह पर सफलतापूर्वक उतर कर भारत का अंतरिक्ष के क्षेत्र में वर्चस्व स्थापित कर दिया। चंद्रयान-3 को 14 जुलाई 2023 को (14.35 भारतीय मानक समय) पर एलवीएम-3 द्वारा श्री हरिकोटा से लॉन्च किया गया था। इसमें एक लैंडर मॉड्यूल, प्रणोदक मॉड्यूल और रोवर थे। लैंडर और रोवर के साथ वैज्ञानिक प्रयोगों को सम्पन्न करने के लिए अंतरिक्ष उपकरण (पैलोड) रखे गए थे। यह इसरो का तीसरा चंद्र मिशन था। वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 के आंशिक रूप से सफल होने के बाद से ही इसरो ने चंद्रयान-3 की तैयारी शुरू कर दी थी।
अमेरिका, चीन, और पूर्व सोवियत संघ के बाद हमारा भारत अब चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा राष्ट्र बन गया है। हालांकि, दक्षिणी ध्रुव के पास पहुंचने वाला यह प्रथम राष्ट्र है। इसके साथ ही चांद को छू लेने का हमारा बहुप्रतीक्षित स्वप्न भी पूरा हुआ। इस मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ-साथ चंद्रमा पर सॉफ्ट लैन्डिंग का प्रदर्शन और रोवर द्वारा चंद्र सतह भ्रमण करना भी था।
यह गौरतलब है कि, चांद छू लेने के इस स्वप्न को साकार करने में इसरो की स्त्री शक्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। करीब 100 महिला वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 की अवधारणा, उपकरणों की डिजाइन और क्रियान्वयन में अपना अवदान दिया है। ये सब महिला वैज्ञानिक लंबे समय से इसरो से जुड़ी हुई हैं और उनके पास उपग्रह प्रक्षेपण, मंगलयान मिशन और चंद्रयान-2 का अनुभव था। इस सफलता के पीछे उनके अथक परिश्रम को भुलाया नहीं जा सकता। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ बताते हैं कि कुछ महिला वैज्ञानिकों की लैंडर के चंद्रमा पर उतरने के क्रांतिक क्षणों के दौरान नेवीगेशन में भूमिका रही। चंद्रमा पर जिस स्थान पर लैंडर विक्रम उतरा, उस स्थान को शिव-शक्ति पॉइंट नाम दिया गया है। हिन्दू आदि देवता शिव इस ब्रह्मांड में पदार्थ का और शक्ति दिव्य स्त्री ऊर्जा का प्रतीक है।
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 अगस्त को बेंगलुरू में इसरो की महिला वैज्ञानिकों से बात करते हुए कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता को सुनिश्चित करने में महिला वैज्ञानिकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। उनके योगदान के बिना यह उपलब्धि संभव नहीं थी। वे कहते हैं; जहां अन्य कोई देश नहीं पहुंच पाया वहां भारत को ले जाने में ‘नारी शक्ति’ की अहम भूमिका है। वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं।
आइए, इसरो की प्रमुख महिला वैज्ञानिकों से मिलते हैं-
कल्पना कालाहस्ती
कल्पना एक उपग्रह विशेषज्ञ हैं। उन्हें परिष्कृत इमेजिंग उपकरणों की देखरेख का लंबा अनुभव है। सन् 1980 में जन्मी कल्पना, बेंगलुरू की हैं। वे आईआईटी खड़गपुर से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक हैं। सन् 2003 में उन्होंने इसरो में वैज्ञानिक के रूप में पद भार ग्रहण किया। इसरो में कार्य करते हुए अपने प्रारम्भिक वर्षों में उन्होंने अनेक संचार और दूर संवेदी उपग्रहों के उपकरणों पर कार्य किया। कार्य के प्रति अपने समर्पण और अभिनव सोच के कारण वे आगे बढ़ती गईं। मंगलयान और चंद्रयान-2 मिशन में भी उनका अहम योगदान था। उन्हें चंद्रयान-3 मिशन में डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त किया गया। विक्रम लैंडर के उपकरणों को डिजाइन और अनुकूलित करने का महत्त्वपूर्ण कार्य उन्होंने कुशलतापूर्वक किया। चंद्रयान-3 की चंद्र सतह पर सफलतापूर्वक लैंडिंग के बाद वे उल्लसित होकर कहती हैं; “यह हम सब के लिए और हमारी चंद्रयान-3 की टीम के लिए सबसे ज्यादा यादगार और खुशी का पल रहेगा। चंद्रयान-2 के अनुभव के बाद जब हमने हमारे अंतरिक्ष यान का पुनर्निर्माण शुरू किया, तब से हमने हमारा लक्ष्य बिना कोई त्रुटि किए प्राप्त किया। हमारी टीम के लिए चंद्रयान-3 मिशन, सांस लेने और छोड़ने जैसा था। इसकी पुनर्संरचना से लेकर सभी संयोजनों को हमने सावधानीपूर्वक किया है। यह केवल टीम के अत्यधिक प्रयास से ही संभव हो सका है।‘
रितु करिधाल श्रीवास्तव
चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे डॉ. रितु करिधाल श्रीवास्तव का कुशल नेतृत्व उल्लेखनीय है। इसरो में वरिष्ठ वैज्ञानिक ऋतु ‘रॉकेट वुमन’ के नाम से जानी जाती हैं। रितु लखनऊ की हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री लेने के बाद देश के प्रतिष्ठित शोध संस्थान आईआईएससी, बंगलुरु से उन्होंने एरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमई किया। वर्ष 1997 में उन्होंने इसरो में वैज्ञानिक के रूप में कार्य ग्रहण किया। वे चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर और मंगलयान की डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर रही हैं। इसके बाद चंद्रयान-3 मिशन में उनका सक्रिय योगदान रहा। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में उनके 20 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इसरो में वैज्ञानिक के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अनेक सम्मान और पुरस्कार अपने नाम किए। उन्हें माननीय पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम के हाथों ‘इसरो युवा वैज्ञानिक’ का पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें ‘इसरो टीम अवॉर्ड फॉर मार्स ऑर्बिटर मिशन’ (2015), एएसआई टीम अवॉर्ड और सोसाइटी ऑफ इंडियन ऐरोस्पेस टेक्नॉलजीज एण्ड इंडस्ट्रीज द्वारा ‘वुमन अचीवर्स इन ऐरोस्पेस’ (2017) सम्मान मिल चुका है।
मुथैया वनिता
वनिता चैन्नई की हैं। वे तीन दशकों से इसरो से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गिंडी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे चंद्रयान-2 मिशन की प्रोजेक्ट निदेशक रही हैं। इस पूरे प्रोजेक्ट की कमान इनके हाथ में थी। वनिता, यूआर राव सैटेलाइट सेंटर से इलेक्ट्रानिक्स सिस्टम इंजीनियर हैं। वे डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग की जानी मानी विशेषज्ञ हैं। उपग्रह संचार पर उनके कई शोध पत्र आ चुके हैं। वनिता ने प्रथम भारतीय दूर संवेदन उपग्रह (कार्टोसैट-1), दूसरे महासागर अनुप्रयोग उपग्रह (ओशनसैट-2), मेघा ट्रापिक्स, जल चक्र और ऊर्जा विनिमय का अध्ययन करने के लिए इंडो- फ्रेंच उपग्रह पर बतौर परियोजना निदेशक काम किया है। वे मंगलयान मिशन में भी शामिल थीं। इन्हें वर्ष 2006 में ‘एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया’ द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ महिला वैज्ञानिक’ के पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें वर्ष 2019 में नेचर द्वारा उल्लेखित 5 वैज्ञानिकों में से एक के रूप में भी जाना जाता है।
नंदिनी हरिनाथ
नंदिनी का विज्ञान से प्रथम परिचय टेलिविज़न की ‘स्टार ट्रेक श्रृंखला’ के द्वारा हुआ। वे 20 वर्षों से इसरो में कार्यरत हैं। इस दौरान उन्होंने 14 मिशन पर काम किया है। वे मंगलयान मिशन से प्रोजेक्ट मैनेजर, मिशन डिजाइनर, डिप्टी ऑपरेशन डायरेक्टर के रूप में जुड़ी हैं। उन्होंने निसार और रिसैट 2 का भी नेतृत्व किया है। वे कहती हैं, “यदि आप अंतरिक्ष के मिशन को संचालित कर रहे हैं तो आपको साइंस फिक्शन मूवी देखने की आवश्यकता नहीं है। आपका दिन-प्रतिदिन का जीवन उत्तेजना से भरा हुआ होता है। उन्हें ‘इंडिया टुडे वुमन इन साइंस’ सम्मान (2015), रिसैट -1 के लिए ‘इसरो टीम एक्सेलेन्स अवॉर्ड’ और अन्य सम्मान भी मिल चुके हैं।
मीनल रोहित
मीनल रोहित राजस्थान की हैं। मंगलयान मिशन में प्रोजेक्ट मैनेजर रही मीनल रोहित ने चंद्रयान-2 में सिस्टम इंजीनियर की भूमिका निभाई थी। उन्होंने मंगलयान के लिए मेथेन सेन्सर विकसित किया था। चंद्रयान-3 की सफलता के पीछे भी उनका परिश्रम किसी से छुपा नहीं है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत इसरो में सैटेलाइट कम्युनिकेशन इंजीनियर के रूप में की थी। वे निरमा इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, अहमदाबाद से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्यूनिकेशन में स्नातक हैं। वर्ष 1999 में वे इसरो में शामिल हुईं। कार्य और पारिवारिक जीवन में संतुलन की जब बात चलती है तो वे कहती हैं, “हम अपने उपग्रहों और पैलोड को भी अपने बच्चों के रूप में देखते हैं। हमारे लिए उनमें भी जीवन है। कार्यालय और घर के नियम सामान्य हैं, धैर्य, प्रक्रियाएं और प्राथमिकताएं। यदि आप धैर्यवान हैं तो आधी लड़ाई जीत ली….।
रीमा घोष
रीमा घोष एक रोबोटिक्स विशेषज्ञ हैं। वे वर्ष 2008 से इसरो में कार्यरत हैं। वे रोवर प्रौद्योगिकी और गतिकी के क्षेत्र में कार्यानुभव रखती हैं। उन्होंने ‘प्रज्ञान’ रोवर के लिए एनजीसी डिजाइन टीम के हिस्से के रूप में कार्य किया। वे रोवर के लिए परियोजना प्रबंधक थीं। वे कहती हैं कि उनके लिए ‘प्रज्ञान’ एक शिशु के समान था जो चंद्रमा पर अपने नन्हे कदम रख रहा था। रोवर को चंद्रमा पर चलते हुए देखना एक अभूतपूर्व अनुभव था।
मोनुमिता दत्ता
मोनुमिता दत्ता, 2004 से इसरो में भौतिकीविद के रूप में पदस्थ हैं। उन्होंने राजाबाजार साइंस कॉलेज, कोलकाता से स्नातक की उपाधि ली है। चंद्रयान-3 के साथ वे मंगलयान मिशन से भी जुड़ी हुई थीं। वर्तमान में वे अपनी टीम के साथ अंतरिक्ष यानों के लिए संवेदनशील और उन्नत स्वदेशी प्रकाशिक उपकरणों के निर्माण में जुटी हैं। विदेशों से आयातित उपकरण अंतरिक्ष मिशन को खर्चीला बना देते हैं। वे ऑप्टिकल, आईआर सेन्सर, पैलोड के विकास और परीक्षण में दक्ष हैं। उनकी टीम स्वदेशी उन्नत इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर विकसित कर रही है, ताकि इस क्षेत्र में भारत आत्मनिर्भर बन सके। उन्हें मंगलयान के लिए ‘इसरो टीम ऑफ एक्सेलेन्स अवॉर्ड’ मिल चुका है।
वी. आर. ललिताम्बिका
वर्ष 1962 में जन्मी डॉ. ललिताम्बिका का जन्म और सम्पूर्ण शिक्षा तिरुवन्तपुरम में हुई। उन्हें उन्नत लांचर तकनीकी में विशेषज्ञता हासिल है। इसरो से जुडने के पूर्व उन्होंने विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, तिरुवन्तपुरम में डिप्टी डायरेक्टर के रूप में कार्य किया। वे 100 से भी अधिक अंतरिक्ष अभियानों का हिस्सा रही हैं। उन्हें उत्कृष्टता प्रदर्शन के लिए विविध सम्मानों से नवाजा जा चुका है। 2022 तक वे महत्त्वाकांक्षी भारतीय मानव युक्त अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम ‘गगनयान’ की निदेशक थीं।
इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में इसरो की वरिष्ठतम महिला वैज्ञानिक अनुराधा टी. के. की भूमिका को कौन नहीं जानता। वे इसरो में प्रथम महिला उपग्रह प्रोजेक्ट निदेशक रही हैं। अब तक के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उनका योगदान उल्लेखनीय है।
चंद्रयान-3 मिशन से जुड़ी कुछ महिला वैज्ञानिकों से हम परिचित हुए। हालांकि, यह प्रथम बार है जब महिला वैज्ञानिकों के कार्य और समर्पण को पहचान मिली है। आज भी इसरो के कुल कर्मियों में महिलाओं का प्रतिशत काफी कम है। आशा है, नई पीढ़ी की बेटियां इस योगदान को और आगे बढ़ाएंगी।
प्रज्ञा गौतम