राष्ट्र सम्मान की पुन:प्रतिष्ठा

राम मंदिर का निर्माण सिर्फ कानूनी लड़ाई से नहीं हुआ बल्कि जनसहयोग से भी हुआ है। भले ही लोगों के मत अलग-अलग हों पर मंदिर निर्माण को लेकर देशवासियों के मत एक थे। एक लम्बे संघर्ष, कठिन प्रयास के बाद ही आखिरकार राम मंदिर का निर्माण हुआ और बस अब इतंजार है तो कपाट खुलने का।

राम मंदिर का विषय देश में एक बार फिर जीवित हुआ है, इस बारे में लोगों के मन में जिज्ञासा है। अपनी इच्छा हो या न हो, फिर भी सामने से कोई न कोई प्रश्न पूछता ही रहता है। सिर्फ मंदिर का नाम सुनकर ही लोग प्रसन्न हो जाते हैं। आज का युवा इंटरनेट, सोशल मिडिया के सान्निध्य में रहता है, इस वजह से ऐसा लगता है कि उनके पास बहुत सी जानकारी है।

मैं कुछ बातों का पुन:स्मरण करवा रहा हूं। मंदिर के लिए जमीन फिर प्राप्त करने और वहां मंदिर का पुनर्निर्माण करने के लिए बहुत से लोगों का योगदान है।

जनसहयोग से राम मंदिर बना है और विश्व को दिखाना है कि भारत किस तरह के लोगों का देश है। भारत के लोग धैर्यवान हैं, लंबे समय तक संघर्ष करने वाले हैं। विचारों में अंतर होने पर भी भगवान राम के बारे में सभी के विचार एक जैसे ही हैं। कोई उन्हें भगवान मानता है, कोई महापुरुष मानता है, कोई मर्यादापुरुषोत्तम मानता है। भगवान श्रीराम सभी के हैं और यह रामजन्मभूमि फिर से प्राप्त करना तथा वहां राम मंदिर का निर्माण करना, यह देश के सम्मान की, गौरव की पुन:प्रतिष्ठा ही है। 1528 के अपमान का परिमार्जन है। भावी पी़ढ़ी को ऐसी विदेशी गुलामी के चिन्ह नहीं दिखाई देना चाहिए। यह इस श्रृंखला का एक हिस्सा है। विदेशियों का चिन्ह भी समाज की स्मृति में नहीं रखना है, इससे भावी पीढ़ियां स्वाभिमानी बनेंगी।

हम सभी संपन्न देश के नागरिक हैं, ऐसा संदेश विश्व में जाना चाहिए। अलग-अलग सरकारों ने अपनी-अपनी दृष्टि से कदम उठाए हैं। सरदार पटेल ने मोहम्मद गजनी के आक्रमण के सभी चिन्ह समाप्त कर दिए। सरदार पटेल की ही परंपरा वाले दाऊ दयाल खन्ना ने संघ परिवार तथा विश्व हिंदू परिषद को बताया कि आप काशी और अयोध्या को मुक्त करें। देश के करोड़ों लोगों के सहयोग से यह काम सम्पन्न हुआ। यह उस जनता का हृदय मंदिर है। इतना व्यापक अभियान विश्व में कभी भी किसी ने चलाया नहीं होगा। यह समाज के सन्मान के लिए किया जाने वाला कार्य है, इसलिए समाज की ओर से इस कार्य को व्यापक सहयोग मिलेगा, इस पर हमें पूरा विश्वास है।

                                                                                                                                         लेखक – चम्पतराय, महासचिव, श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र

 

Leave a Reply