आंदोलन के सिपाही

श्रीराम जन्मभूमि के लिए संघर्षरत कई ऐसे आंदोलनकारी हैं जिनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। जिनमें संत परमहंस रामचन्द्र दास, संघ के वरिष्ठ प्रचारक महेश नारायण सिंह, विश्व हिन्दू परिषद के संपर्क अधिकारी मोरोपंत पिंगले, महंत अवैधनाथ, अशोक सिंहल, विनय कटियार, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, उमा भारती आदि शामिल हैं।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन दुनिया के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाला संघर्ष है। इस मुक्ति के आंदोलन में लाखों की संख्या में हिन्दू समाज ने हिस्सा लिया वहीं वर्षों की प्रतीक्षा भी समाज ने की है। श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर के लिए 76 युद्ध लड़े गए जिनमें 3 लाख 50000 हिन्दू बलिदान हो गए। देश की आजादी के बाद भी श्रीराम जन्मभूमि के लिए संघर्ष जारी रहा बल्कि यह संघर्ष अब दोहरा हो गया। एक संघर्ष श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति हेतु हिन्दू समाज के जागरण का तो वहीं दूसरा न्यायालय के समाने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार को प्रस्तुत करना। हम सब देखें कि 1964 में विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना के बाद से हिन्दू केंद्रित विमर्श को एक सम्बल मिला। इसी परिषद द्वारा 1969 में उडुप्पी धर्म संसद, 23 मार्च 1983 में उत्तर प्रदेश के शहर मुजफ्फरनगर में आयोजित हिन्दू सम्मेलन, 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हुई धर्म संसद सभी में एक स्वर में धर्म स्थान मुक्ति अभियान चलाने का निर्णय हुआ था। इससे भी पूर्व श्रीराम जन्मभूमि न्यास के पूर्व अध्यक्ष संत परमहंस रामचन्द्र दास 1949 से श्रीराम जन्मभूमि के लिए संघर्षरत थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की मुक्ति में लगा दिया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर यज्ञ समिति के उपाध्यक्ष से न्यास के अध्यक्ष तक प्रमुख भूमिका में परमहंस रहे। वहीं वर्ष 1981 के बाद देश के विमर्श में हिन्दू समाज के मुद्दे आने लगे थे। वर्ष 1978 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक महेश नारायण सिंह (सुलतानपुर) श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मुक्ति के अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई। इस वर्ष अयोध्या के सुग्रीव किले की बैठक में इस मुक्ति आंदोलन का शुभारम्भ हुआ। विश्व हिन्दू परिषद के संपर्क अधिकारी मोरोपंत पिंगले जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक थे, के मार्गदर्शन में देशभर में 1983 से एकात्मक यात्रा निकाली गई। इन्हीं एकात्मक यात्राओं ने देशभर के हिन्दू समाज के भीतर एक जागरण का संचार किया। इसी के बाद राम जन्मभूमि मंदिर मुक्ति अभियान हेतु श्रीराम-जानकी यात्रा की शुरुआत की गई। इस यात्रा के संयोजक मोरोपंत पिंगले ही थे। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन में प्रमुख भूमिका में मोरोपंत रहे। भारत भर चलने वाले सारे अभियान को मोरोपंत का मार्गदर्शन हमेशा मिलता रहा। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मुक्ति आंदोलन में नाथ संप्रदाय के गौरक्ष पीठ के महंत अवैधनाथ की भी बड़ी भूमिका रही। वर्ष 1984 में उन्हें श्रीराम जन्मभूमि मंदिर यज्ञ समिति का अध्यक्ष चुना गया तब से अपने जीवन भर वह श्रीराम जन्मभूमि मंदिर मुक्ति अभियान एवं विश्व हिन्दू परिषद में सक्रिय रहे। 1981 में सामाजिक समरसता हेतु काशी में डोमराजा के यहां तमाम हिन्दू समाज के सन्तों का सहभोज इस सबके योजनाकर्ता महंत अवैधनाथ एवं पिंगले ही थे। इसी प्रकार श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में स्वामी वाम देव की बड़ी भूमिका रही।

1984 से वह विश्व हिन्दू परिषद के साथ संपर्क में रहे।  जयपुर की उस बैठक का हिस्सा थे, जहां श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति का आह्वान किया गया था। 1992  की कारसेवा में वे शामिल थे। दक्षिण के कर्नाटक के उडुप्पी के स्वामी विश्वेश्वर तीर्थ महाराज का मार्गदर्शन और आशीर्वाद इस आंदोलन को मिलता रहा। वर्ष 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हुई धर्म संसद मेें हिन्दू समाज को अशोक सिंहल के रूप में एक विराट व्यक्तिव मिला उनके नेतृत्व और मोरोपन्त पिंगले एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के,मार्गदर्शन में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के अभियान में तेजी आई। 1984 में अशोक सिंहल को विश्व हिंदू परिषद में संयुक्त महामंत्री बनाया गया श्रीराम जानकी यात्रा जो पूरे देश में चल रही थी, संयोजक मोरोपंत पिंगले थे लेकिन तमाम व्यवस्थाओं को अशोक सिंहल देख रहे थे। 1986 में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष वैष्णव संप्रदाय के काशी पीठाधीश्वर शिवरामाचार्य को चुना गया। 1984 में बजरंग दल बना उस समय उसके राष्ट्रीय संयोजक का संघ प्रचारक विनय कटियार को दायित्व दिया गया। अशोक सिंहल ने बजरंग दल और दुर्गावाहिनी के माध्यम से युवाओं और महिलाओं को हिंदू आंदोलन से जोड़ने का काम किया। साथ ही उन्होंने विभिन्न मतों और सम्प्रदायों के साधु-संतों को एक मंच पर लाकर सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए व्यापक अभियान छेड़ा। 4 अप्रैल 1991 को दिल्ली के बोट क्लब पर अभूतपूर्व ऐतिहासिक रैली हुई। जिसमें लगभग 25 लाख से अधिक रामभक्त उपस्थित थे। 1989 की कार सेवा, शिला पूजन कार्यक्रम की असल प्रेरणा मोरोपंत पिंगले थे, लेकिन इसे जमीनी स्तर पर लागू करने का काम अशोक सिंहल एवं गिरिराज किशोर,साध्वी ऋतंबरा, उमा भारती जैसे नेताओं ने किया। वर्ष 1989, 1 फरवरी को प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर हो रहे कुम्भ मेले में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा धर्मसंसद का आयोजन किया गया। जिसमें देवहार बाबा की उपस्थिति में निर्णय हुआ कि देश के हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किए जाएं। इसी कर्म में पहली रामशिला का पूजन बद्रीनाथ धाम में किया गया। दो लाख 75 हजार स्थानों पर रामशिला पूजन हुआ। इस अभियान में लगभग 6 करोड़ लोगों की सहभागिता रही।  देवोत्थान एकादशी 9नवम्बर, 1989को राममंदिर के लिए अनुसूचित जाति के एक बन्धु कामेश्वर चौपाल द्वारा हजारों रामभक्तों एवं संतों की उपस्थिति में शिलान्यास किया गया। श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन दुनिया का एकमात्र ऐसा जन आंदोलन है, जो 500 वर्षों तक सतत चलता रहा। हम देखें  कि 1990 का दौर आते-आते सभी राजनीतिक दलों को हिंदू एजेंडे पर आना पड़ा। 90 के दशक में दुनिया भर में बसने वाला हिन्दू समाज कहने लगा कि ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं।’ श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन में लाखों राम भक्तों ने अपना समर्पण किया। कोलकाता के दो सगे भाई कोठारी बन्धु कभी नहीं भुलाए जा सकते। संपूर्ण हिन्दू समाज के संत जिनकी वाणी ने वर्षों-वर्षों राम जी और उनकी जन्मभूमि को हमारे भीतर संजोये रखा। आज श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर बड़ी तेजी से बन रहा है, ऐसे में इन तमाम आंदोलन के सिपाहियों का स्मरण नितांत आवश्यक है।

 

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