वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र का अनूठा संगम

नवनिर्मित राम मंदिर में ‘नागर शैली’ का उपयोग किया गया है। मुख्य गर्भगृह 20 गुणा और 20 फीट का अष्टकोणीय आकार में है, जो भगवान विष्णु के 8 रूपों को दर्शाता है। मंदिर में 366 स्तंभ होंगे। प्रत्येक पर 16 मूर्तियों को दर्शाया गया है। जिसमें शिव के विभिन्न अवतारों, दशावतारों, चौसठ योगिनियों से लेकर देवी सरस्वती के बारह रूपों तक की दिव्य आकृतियां प्रदर्शित होंगी।

ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैंजनियां

बालस्वरूप श्रीराम जब 22 जनवरी 2024 को अपने घुटनों के बल पर नागर शैली की स्थापत्यकला से निर्मित भवन में चलना आरम्भ करेंगे तो भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के करोड़ों राम भक्तों के कानों में उनकी पैजनियों की कर्णप्रिय मधुर शब्द की अनुभूति होने लगेगी।

श्रीराम मंदिर का आगार कितना विशाल हो और उसका स्वरूप क्या हो, इस पर विहिप ने आज से 32 वर्ष पूर्व जब चर्चा करके मंदिर के एक मॉडल को प्रस्तावित किया तो लोगों को विश्वास ही नहीं होता था, इसका निर्माण हो सकता है। करोड़ों भक्त अपने- अपने इष्ट देवता से यह प्रार्थना तो करते थे कि बाल स्वरूप श्रीराम को उनका अपना यह स्थल तो मिलना चाहिए, परन्तु, उन्हें कल्पना भी नहीं थी मंदिर का निर्माण इतना विशाल और शीघ्रता से हो जाएगा।

नवम्बर 2019 में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बाद जिस गति से मंदिर निर्माण की प्रक्रिया आरंभ की गई उससे तो यही यह आभास होता था कि मंदिर निर्माण में न्यूनतम पांच वर्ष तो लग ही जाएंगे, परन्तु अब वह समय आ ही गया जिसकी प्रतीक्षा करोड़ों भक्त कर रहे थे। 22 जनवरी 2024 को सर्वसिद्ध योग में श्रीराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त है और यह वैदिक प्रक्रिया पांच दिन पूर्व 17 जनवरी से आरंभ हो जाएगा।

मंदिर के प्रमुख वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि ‘राम जन्मभूमि मंदिर’ की निर्माण योजना 32 साल पहले शुरू हुई थी। 32 साल पहले की घटना को याद करते हुए वह कहते हैं कि अशोक सिंघल वहां प्रस्तावित मंदिर स्थल पर ले गए और कहा, राम मंदिर के निर्माण के लिए एक योजना तैयार करें। उस समय वहां केवल एक ढांचा खड़ा था जिसे हम माप नहीं सकते थे, किसी भी तरह के माप लेने की अनुमति नहीं थी।

वह कहते हैं कि हमने अपने पैरों से उस क्षेत्र को मापा और उस स्थान के क्षेत्रफल का अनुमान लगाया। उन्होंने बताया कि हमारी बनाई योजना को कुंभ मेले में प्रदर्शित भी किया गया था लेकिन योजना पर काम कुछ वर्षों के लिए धीमा हो गया। 2019 में अदालत के आदेश के बाद, हमें काम शीघ्र पूरा करने के लिए तो कहा ही गया और यह भी कहा गया कि अब इसे और बड़ा बनाया जाए। राम मंदिर में इस्तेमाल की गई वास्तुकला पर बोलते हुए, सोमपुरा ने कहा कि मंदिर के निर्माण में उत्तर और मध्य भारत की ‘नागर शैली’ वास्तुकला का उपयोग किया गया है। हिंदू धर्मग्रंथों में गहराई से निहित, वास्तुशास्त्र और शिल्पशास्त्र के सिद्धांतों का पालन किया गया है। मुख्य गर्भगृह 20 गुणा और 20 फीट के अष्टकोणीय आकार में है, जो भगवान विष्णु के 8 रूपों को दर्शाता है। ‘नागर शैली’ के साथ भगवान विष्णु के 8 रूपों का भी वास्तुकला में उपयोग किया जाता है।

मंदिर की चौड़ाई 235 फीट, लंबाई 360 फीट और ऊंचाई 161 फीट है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हिंदू मंदिर बनेगा। अधिकांश: यह उत्तर भारतीय गुजरा-चालुक्य स्थापत्य शैली से लिया गया है।

मुख्य मंदिर

मंदिर का निर्माण ऊंचा है और यह तीन स्तरों तक फैला हुआ है। इसमें पांच मंडप होंगे, जो पवित्र गर्भगृह और मुख्य प्रवेश द्वार के बीच स्थित है। तीन मंडप-कुडु, नृत्य और रंग-एक तरफ हैं, जबकि कीर्तन और प्रार्थना मंडप विपरीत तरफ हैं। ये मंडप, नागर शैली के अनुरूप, शिखर या शिखरों से सुशोभित होंगे। इनमें से सबसे ऊंचा शिखर सीधे गर्भगृह के ऊपर होगा।

स्तम्भ और देवता

मंदिर की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसके 366 स्तंभ होंगे। विस्तृत नक्काशी में प्रत्येक पर 16 मूर्तियों को दर्शाया जाएगा, जिसमें शिव के विभिन्न अवतारों, दशावतारों, चौसठ योगिनियों से लेकर देवी सरस्वती के बारह रूपों तक की दिव्य आकृतियां प्रदर्शित होंगी। विष्णु मंदिरों की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए गर्भगृह को अष्टकोणीय बनाया गया है।

मंदिर में कुल 17,000 ग्रेनाइट पत्थरों का उपयोग किया जा रहा है, जिनमें से प्रत्येक का वजन 2 टन है। इसके अलावा, नींव के निर्माण के लिए मिजाऱ्पुर से 4 लाख क्यूबिक फीट गुलाबी पत्थरों का उपयोग किया गया था और शिखर को गढ़ने के लिए राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से 1 लाख क्यूबिक फीट नक्काशीदार संगमरमर का उपयोग किया गया। मंदिर भूकंपरोधी हो इसके लिए मंदिर की नींव 40 फीट गहरी बनाई गई है। कर्नाटक के चिक्काबल्लापुर से लाए जा रहे पत्थरों को 1,500 सेंटीग्रेड तक गर्म करके परीक्षण किया गया।

पहले श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में बाल स्वरूप श्रीराम के दर्शन के लिए देश के अन्य राज्यों से आने वाले यात्रियों की संख्या नगण्य ही थी। उत्तर प्रदेश में धार्मिक स्थलों, वाराणसी और मथुरा सहित प्रयागराज (इलाहाबाद) में ही यात्री आते थे। अयोध्या की उपेक्षा का एक ही कारण था कि शहर में आने के लिए न तो सड़क और न रेलगाड़ी की व्यवस्था थी। किसी भी यात्री के लिए अयोध्या आना सुगम ही नहीं था। यही कारण है जहां भारत के दक्षिण राज्यों में श्रद्धालु रामजन्म का उत्सव मनाते तो थे परन्तु राम की नगरी अयोध्या आने में वे रुचि नहीं रखते थे। राम जन्मभूमि आंदोलन ने समग्र देश के हिन्दुओं को संगठित किया। जिसमें भारत के दक्षिणी राज्यों से भारी संख्या में कारसेवक इस आंदोलन के कारण ही अयोध्या पहुंचे। अयोध्या को पूरी तरह से हिन्दुओं की नगरी ही माना जाता था इसीलिए सेक्युलर पार्टियों की सरकारों ने कभी भी अयोध्या के सर्वांगीण विकास और उसकी आध्यात्मिक पहचान के लिए ऐसी किसी भी योजना को लागू करने में प्राथमिकता नहीं दी।

कहा जाता है कि परिवर्तन अवश्यंभावी है, विनाश और विकास दोनों पहलुओं को भी परिवर्तन ही निश्चित कर देता है। 22 जनवरी 2024 को राम जन्मभूमि मंदिर में हमारे आराध्य श्रीराम के बालस्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा जहां अयोध्या की आध्यात्मिक और धार्मिक अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने का साधन बनेगा वहीं, यह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर राम भक्तों के साथ ही अनेक पर्यटकों के लिए एक दर्शनीय स्थल भी बनेगा जिससे लोगों की आवाजाही बढ़ेगी। जो यहां के लोगों के जीविकोपार्जन का सशक्त माध्यम भी साबित होगा। अयोध्या में पर्यटकों के आगमन में कई गुना वृद्धि होने की संभावना है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर अयोध्या को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करेगा।

 

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