खत्म हुआ इंतजार दर्शन देंगे श्रीराम

मंदिर के पत्थरों पर होने वाली नक्काशी केवल मनमोहक कृतियां ही नहीं होंगी बल्कि श्रद्धालु त्रेता युग के दर्शन करेंगे। मंदिर हजारों वर्षों तक सुरक्षित रहें और उसके अनुरुप मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।  राम नगरी सज-धज कर तैयार है बस अब बारी है मंदिर के कपाट खुलने का। 

नवनिर्मित भव्य श्रीराम मंदिर की विशेषताएं जानने से पहले हमें यह जान लेना जरूरी है कि तीर्थाटन का यह स्थान भारत की शाश्वत सांस्कृतिक विरासत का अनावरण है जहां इतिहास और अध्यात्मिकता एक दूसरे से जुड़े हुए है।

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर केवल पत्थरों की संरचना मात्र नहीं है यह भारत की राष्ट्रीय आत्मा का प्रतीक है। यह आत्मा विराजमान होगी मंदिर के गर्भगृह के भीतर। बता दें कि 22 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम वाले दिन रामलला की मौजूदा ‘चलमूर्ति’ को उस पवित्र स्थान पर विराजमान किया जाएगा। साथ ही श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के द्वारा बनवाई जा रही तीन पांच फीट की मूर्तियों में से एक ‘अचल मूर्ति’ के रूप में गर्भगृह में विराजमान होगी। अचल मूर्ति के साथ-साथ चलित मूर्ति की स्थापना भी की जाएगी जो वर्षभर होने वाले आयोजनों में भगवान श्रीराम के चैतन्य स्वरूप उपयोग लाई जाएगी। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा था कि राम जन्मभूमि मंदिर में भगवान राम के पांच वर्षीय बाल रूप की पत्थर की चार फीट तीन इंच की खड़ी प्रतिमा का निर्माण अयोध्या के तीन स्थानों पर कर्नाटक एवं राजस्थान के शिल्पकारों के द्वारा किया जा रहा है। तीन कारीगर इसे तीन अलग-अलग पत्थरों में बना रहे हैं। हालांकि गर्भगृह में कौन सी मूर्ति स्थापित की जाएगी यह अभी तय नहीं हुआ है।

भव्य मंदिर का निर्माण तीन चरणों में होना है। पहले चरण में भूतल का निर्माण होना है जो दिसंबर 31, 2023 तक पूरा हो जाएगा। भूतल का निर्माण सबसे मजबूत होना आवश्यक है क्योंकि इसके उपर ही पूरी संरचना स्थापित होगी। मजबूती का विशेष ध्यान रखते हुए बेस निर्माण में मिर्जापुर के बलुआ पत्थर और ललितपुर तथा जयपुर के ग्रेनाइट स्टोन का इस्तेमाल किया गया है। सहस्राब्दियों से उपयोग में आने वाले बलुआ पत्थर अपनी स्थायित्वता और कठोरता के लिए जाने जाते है। विशेषज्ञों की देखरेख में चल रहे इस काम को लेकर राम मंदिर ट्रस्ट की प्राथमिकता है कि मंदिर हजारों वर्षों तक सुरक्षित रहें और उस लिहाज से मंदिर का निर्माण किया जा रहा है।

बेस का काम पूरा हो चुका है और इसके उपर प्रथम तल का कार्य भी तेजी से आगे बढ़ रहा है। बता दें कि प्रथम तल पर बनने वाले मंडप, विशाल खंभे, छत, दीवारें एवं सहायक संरचनाएं शामिल है। खंभो पर होने वाले आइकोनाग्राफी जो एक बहुत बारिक कार्य है जिसमें लगभग 1200 से ज्यादा कुशल कारीगर एवं टेक्नीशियन राजस्थान में खदानों और वर्कशॉप्स के लेकर श्रीराम मंदिर कार्यस्थल तक कार्यरत है। पत्थरों पर होने वाली यह नक्काशी केवल मनमोहक कृतियां नहीं होगी बल्कि यह साक्षात त्रेता युग के दर्शन श्रद्धालुओं करेंगे। मंदिर के भूतल पर गर्भगृह समेत पांच मंडप बनाए जाएंगे। गुह्य मंडप, नृत्य मंडप, रंग मंडप, प्रार्थना मंडप और भक्त मंडप। जिस जगह पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने पूजा की थी वहां गर्भगृह है जो अष्टकोणीय होगा जहां रामलला विराजमान होंगे। राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि एक उपकरण तैयार किया जा रहा है, जिसे मंदिर के शिखर पर लगाया जाएगा। इससे हर साल रामनवमी के दिन सूर्य की किरणें भगवान राम के माथे पर कुछ देर के लिए पड़ेंगी।

मंदिर में कुल 12 द्वार होंगे जो पूरी तरह से सागौन के बनाए जा रहे है। मंदिर में प्रवेश ‘सिंह द्वार’ से होगा, सिंह द्वार से श्रद्धालु आगे बढेंगे तो उन्हें नृत्य मंडप, रंग मंडप और गूढ़ मंडप के दर्शन होंगे एवं मंदिर परिसर में प्रवेश होगा। मंदिर परिसर में प्रवेश करते हुए श्रद्धालु सूर्य देवता, विष्णु भगवान और पंच देवता आदि के दर्शन करेंगे, तो वहीं संपूर्ण मंदिर परिसर में 392 पिलर होंगे जिसमें 160 गर्भगृह में होंगे तो वही 132 उपरी तल पर होंगे।

जब यह दावा किया जा रहा है कि इस मंदिर को सदियों तक किसी भी प्रकार से कोई आपदा नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी तो यह जानना आवश्यक हो जाता है कि कौनसी तकनीक का उपयोग मंदिर निर्माण में किया जा रहा है। बता दें कि मंदिर की चार सौ फुट लंबी, तीन सौ फुट चौड़ी नींव बनाई गई। मंदिर की नींव में चौदह मीटर की गहराई में चट्टान ढाली गई है। यह एक ऐसा आधार होगा जिसपर बना मंदिर हजारों साल तक अपनी विराटता के साथ सुरक्षित रहेगा. दावा किया रहा है कि अगले एक हजार साल से ज्यादा वक्त तक यह दिव्य मंदिर ऐसी ही भव्यता के साथ अपनी आभा बिखेरता रहेगा। मंदिर के निर्माण में यह बहुत सावधानीपूर्वक ध्यान रखा जा रहा है कि ऐसी किसी भी वस्तु का उपयोग न किया जाए जो नुकसान पहुंचा सके, इसलिए यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी प्रकार से निर्माण में लोहे का उपयोग नहीं किया जाए। पूरा निर्माण पत्थरों के माध्यम से किया जा रहा है और उन पत्थरों को जोड़ने के लिए तांबे का उपयोग किया जा रहा है।

ट्रस्ट के अनुसार लगभग 70 एकड़ क्षेत्रफल में फेले परिसर में मंदिर और परकोटा 8.64 एकड़ में रहने वाला है। इस संपूर्ण क्षेत्र में पत्थरों की कलाकृतियों के साथ ही हरियाली लगाई जाएगी। इस पूरे परिसर को सुरक्षित रखने के लिए आधुनिक सुरक्षा तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है साथ ही परिसर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि अगर डेढ़ लाख से ज्यादा श्रद्धालु एक साथ आ जाते हैं तो किसी भी प्रकार की असहजता नहीं होगी। भूतल, प्रथम तल और द्वितीय तल के लिए महाराष्ट्र की सागौन की लकड़ी से बने 46 दरवाजे लगाए जा रहे है। मंदिर की परिधि के चारों ओर आयताकार परकोटा है, जिसकी लंबाई लगभग 732 रनिंग मीटर (आरएमटी) और तीर्थयात्रियों के आवागमन के लिए चौड़ाई 14 फीट है। परकोटा में 6 अतिरिक्त स्थान होंगे जिनमें विभिन्न देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित किए जाएंगे। तीर्थयात्री सुविधा केंद्र (पीएफसी) में प्रवेश करने से पहले 16 स्थानों पर बैगेज स्कैनिंग की जाएगी। तो वहीं जन्मभूमि पथ पर 15 तलाशी बूथ लगाए जाएंगे। तीर्थयात्रियों की आवाजाही और फायर टेंडर के लिए तूफानी जल निकासी, सीवेज और प्रकाश सुविधाओं के साथ 3 किमी का आंतरिक सड़क नेटवर्क के साथ ही जटायु मूर्तिकला और एक शिव मंदिर वाले नवरत्न कुबेर टीला का विकास भी किया जाएगा।

                                                                                                                                                                                       रोहन गिरी 

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