गठबंधन में गतिरोध

आगामी लोकसभा चुनावी सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी गठबंधन में आपसी रस्साकशी तेज हो गई है। एक-दूसरे के प्रति आलोचना और टिप्पणी से इंडी गठबंधन की यथास्थिति को समझा जा सकता है। जो आपस में समन्वय तक नही बना सकते, वे राष्ट्रहित के विषयों पर एकमत कैसे होंगे?

लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्ष के सामने सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन बनाए रखने की है। अभी तक तो बंगाल, बिहार और केरल में समीकरण बिठाने की समस्या थी, अब पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत मान ने कांग्रेस पर और मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने अखिलेश यादव पर टिप्पणी करके मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस दो प्रकार की रणनीति पर काम कर रही है। एक तो मनोवैज्ञानिक रूप से मतदाता को प्रभावित करके अपना मत प्रतिशत बढ़ाना और दूसरा विपक्षी दलों का गठबंधन बनाकर भाजपा विरोधी वोटों को एकजुट करना। इसके लिए बैठकों का दौर चला और कुछ शब्द जोड़कर इस गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखा। पहले ‘इंडिया’ शब्द की स्पेलिंग के अनुरूप शब्द तलाशे गए और इंडिया गठबंधन नाम देकर अपनी एकजुटता की घोषणा कर दी गई। गठबंधन का नामकरण इंडिया के नाम पर करके कांग्रेस ने मतदाता पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने का प्रयास किया है और इसके साथ बैठकों और चर्चाओं का दौर चला। इसके लिए पटना में पहली बैठक जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नीतीश कुमार की पहल पर हुई।  दूसरी बैठक से पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणामों ने कांग्रेस का मनोबल बढ़ाया लेकिन मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के परिणाम ने कांग्रेस की साख को मिट्टी में मिला दिया। अन्य दलों ने कांग्रेस पर दबाव बनाना आरंभ कर दिया और लगभग आधा दर्जन विपक्षी नेता इस गठबंधन का संयोजक बनने एवं भविष्य के प्रधान मंत्री बनने का सपना देखने लगे। इन्हीं उतार-चढ़ाव के चलते यह गठबंधन अंतिम आकार नहीं ले पा रहा। प्रतिदिन नई उम्मीद और नए अवरोध सामने आ रहे है। यह ठीक है कि कांग्रेस का जनाधार पूरे देश में है इसीलिए वह इस गठबंधन में अग्रणी होना चाहती है पर इसके लिए कुछ विपक्षी नेता तैयार नहीं। अनेक प्रदेश ऐसे हैं जिनमें कांग्रेस का जनाधार कमजोर होता जा रहा है। इसलिए राज्य स्तर पर प्रभावी राजनैतिक दल कांग्रेस को उतनी सीटें छोड़ने के लिए सहमत नहीं दिख रहे, जितनी कांग्रेस मांग कर रही है। हालांकि बंगाल, तमिलनाडु आदि प्रदेशों के प्रभावी राजनैतिक दलों ने अपने पत्ते नहीं खोले है पर बिहार से संकेत सामने आ गए। बिहार में लालू प्रसाद यादव के जनता दल और नीतीश कुमार के जदयू के बीच जो सहमति उभरी है, उसमें इन दोनों दलों ने 17-17 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के संकेत दे दिए हैं और कांग्रेस को केवल चार सीटें ही देना चाहते हैं जबकि कांग्रेस कम से कम छ: सीट मांग रही है। बंगाल और केरल में सीपीएम, पंजाब एवं दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ समन्वय बन सकेगा, इस पर संदेह है। कुछ ऐसे ही संकेत बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने दिए हैं। पंजाब, बंगाल, दिल्ली आदि प्रदेशों में कांग्रेस के भीतर भी कुछ ऐसे नेता हैं जो अपने प्रदेशों में प्रभावी क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करना नहीं चाहते। इस मानसिकता और सीटों के बंटवारे के साथ कुछ मुद्दों पर भी मतभेद सामने आए हैं। इनमें सबसे पहले डीएमके अध्यक्ष स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन की सनातन धर्म पर टिप्पणी की गठबंधन के कई सदस्यों ने निंदा की थी। यही असहमति 14 टीवी एंकरों के बहिष्कार करने के निर्णय पर भी देखी गई। असहमति व्यक्त करने वालों में बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार भी हैं।

मुद्दों और सीटों पर तालमेल की चर्चाओं के बीच मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम पांच राज्यों से विधानसभा चुनाव परिणाम आए। इनमें कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि कांग्रेस ने तेलंगाना में बहुमत प्राप्त कर लिया पर छत्तीसगढ, राजस्थान और मध्य प्रदेश में उसकी छवि को बहुत नुकसान हुआ। इसका प्रभाव गठबंधन के प्रयासों पर भी पड़ा। इन परिणामों ने गठबंधन के सहयोगियों को कांग्रेस पर दबाव बनाने का अवसर दे दिया। वे न केवल कांग्रेस पर हावी होते दिखे अपितु कांग्रेस का मजाक बनाते भी दिखे। इसे पंजाब के मुख्य मंत्री भगवंत सिंह मान की चुटकी से समझा जा सकता है। मुख्य मंत्री भगवंत मान ने कांग्रेस पर व्यंग्य किया और कहा कि दिल्ली और पंजाब में मां, बच्चे को दुनियां की सबसे छोटी कहानी सुना सकती है- एक थी कांग्रेस। भगवंत मान के इस बयान का उत्तर कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने दिया और कहा कि आने वाले समय में माताएं कहेंगी कि एक पार्टी थी जो अब तिहाड़ जेल में मिल सकती है। वहीं कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी भगवंत मान पर पलटवार किया और कहा कि एक भोजपुरी पिक्चर का नाम है ‘एक था जोकर’। आपने तो देखी होगी?

गठबंधन की इन सब चर्चाओं के बीच मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ की मीडिया से बातचीत का एक वीडियो सामने आया, जिसमें उन्होंने समाजवादी पार्टी पर उपेक्षापूर्ण टिप्पणी किया और अखिलेश-वखिलेश शब्द का प्रयोग करते हुए अपने हाथ से कुछ इशारा भी किया। इस पर समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव की भी तीखी टिप्पणी आई। दरअसल ये वक्तव्य और ये टिप्पणियां उन धारणाओं की अभिव्यक्ति है जो संभावित गठबंधन के सहयोगी एक-दूसरे के प्रति अपने मन में रखते हैं।

इन पांच विधानसभा चुनाव परिणाम से गठबंधन में गतिरोध आ जाने से उबरने और गठबंधन के दलों को मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रभावित करने के लिए ही अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत की है। गठबंधन में गतिरोध का सबसे बड़ा कारण यही है कि इस गठबंधन का आधार सैद्धांतिक नहीं है।                                                                                                            

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