डिजिटल साक्षरता और जागरूकता

देश-दुनिया में हो रहे सकारात्मक परिवर्तन व सुधार में सोशल मीडिया की प्रभावी भूमिका रही है, हालांकि इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी है। बावजूद इसके आम आदमी की आवाज बुलंद करने, रोजगार, प्रचार प्रसार और जन जागरण की दृष्टि से सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम बन कर उभरा है।

भारतीय प्रबंधन संस्थान रोहतक की ओर से मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के उपयोग पर जनवरी के पहले सप्ताह में एक महत्वपूर्ण

सर्वेक्षण रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारतीय हर दिन औसतन सात घंटे मोबाइल का उपयोग कर रहे हैं। समय का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया ऐप्स और वेबसाइटस पर खर्च हो रहा है। इससे सरलता से समझा जा सकता है कि भारतीयों के जीवन में सोशल मीडिया का कितना गहरा दखल है।

कम्प्यूटर, टैबलेट या मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट पर सूचनाओं को साझा करने के माध्यम को सोशल मीडिया कहा जाता है। इस ऑनलाइन मंच पर सूचनाओं को साझा करने में वेबसाइट एवं ऐप का योगदान होता है। सहज सुलभता और बढ़ती उपयोगिता-लोकप्रियता के कारण सोशल मीडिया वर्तमान समय में संचार के एक प्रभावशाली साधन के रूप में उभर कर सामने आया है। यह मंच उपयोगकर्ता को एक सार्वजनिक अथवा निजी प्रोफाइल बनाने एवं वेबसाइट पर अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ संवाद करने की अनुमति देता है। संवाद का यही निर्बाध एवं निरन्तर प्रवाह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की सबसे बड़ी ताकत है। सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है। आज प्रत्येक व्यक्ति सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रखता है और भौगोलिक सीमाओं से परे क्षण भर में उसे लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंचा सकता है।

परम्परागत रूप से अखबार, टेलीविजन और रेडियो ही सूचनाओं को साझा करने के प्रमुख माध्यम रहे हैं। इन साधनों पर समाज के चुनिंदा लोगों का स्वामित्व रहा है। अपनी वैचारिक-पेशेवर प्रतिबद्धताओं के कारण ये सूचनाओं के प्रवाह को प्रभावित करते रहे हैं। अपने हितों को आगे रखकर ये लोग किसी खास तरह के विमर्शों को गढ़ते और आगे बढ़ाते रहे हैं। विमर्शों के इस जंजाल में बहुधा सत्य छिपा भी लिया जाता था। ये दुराग्रही सूचनाएं बहुधा अनर्थकारी साबित होती रही हैं। इसके साथ उन विमर्शों को परोसा जाता था, जो किसी एक वर्ग विशेष के हितों को साधते थे। सूचनाओं के प्रवाह में इस छेड़छाड़ से पत्रकारिता जगत की विश्वसनीयता भी बार-बार संदिग्ध बनती रही।

इंटरनेट और सोशल मीडिया के उभार के बाद सूचनाओं से छेड़छाड़ का यह संकट दूर हो गया है। सोशल मीडिया पर आम आदमी की उपस्थिति से अब हर वह सूचना सार्वजनिक हो रही है, जिसका एक व्यापक लोकहित में उद्घाटित होना आवश्यक होता है। सत्य अब बिना किसी दुराग्रह के सामने आ रहा है। सूचनाओं के लोकतंत्रीकरण की यह विशेषता सोशल मीडिया की सबसे बड़ी ताकत है। वर्तमान में आम नागरिकों के बीच जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर किया जा रहा है। कई शोधों में सामने आया है कि दुनिया भर में अधिकांश लोग रोजमर्रा की सूचनाएं सोशल मीडिया के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं।

भारत एक विशाल भौगोलिक विविधताओं वाला राष्ट्र है। देश के कई दुर्गम क्षेत्र आज भी अखबार, रेडियो या टेलीविजन की पहुंच से दूर हैं। वहीं, मोबाइल और इंटरनेट की पहुंच देश के लगभग हर कोने तक है। यह इंटरनेट और सोशल मीडिया की एक अन्य विशेषता है। सोशल मीडिया की इसी विशेषता के कारण देश के दूर-दराज के क्षेत्रों की बात भी अब सामने आ पा रही है। इसके अलावा सोशल मीडिया उन लोगों की आवाज बन सका है, जो समाज की मुख्यधारा से अलग है और जिनकी आवाज को दबाया जाता रहा है। इससे सामाजिक न्याय के मार्ग भी प्रशस्त हुए हैं।

सोशल मीडिया के साथ ही कई प्रकार के रोजगार भी पैदा हुए हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत का जनसांख्यिकी लाभांश 2041 के आसपास चरम पर होगा, जब कामकाजी उम्र (20 से 59 वर्ष की आयु वाले) की जनसंख्या 59 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी। यह वही अवधि है, जिसमें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और देश की राष्ट्रवादी शक्तियों ने देश को एक विकासशील देश की श्रेणी से निकालकर विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में लाने का स्वप्न देखा है। ऐसे में प्रधान मंत्री मोदी को इस कामकाजी आबादी से विशेष अपेक्षाएं हैं। वर्तमान में सोशल मीडिया कई व्यवसायियों के लिए व्यवसाय के एक अच्छे साधन के रूप में कार्य कर रहा है।

सोशल मीडिया व्यापक राष्ट्रीय हितों को साधने के कारगर उपकरण के रूप में अपनी उपयोगिता को बार-बार सिद्ध करता रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण व्यापक जनजागरूकता के माध्यम से देशवासियों, खासकर युवाओं को मतदान के लिए जागरूक करने के रूप में हमारे सामने आता है। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में शत-प्रतिशत मतदाताओं द्वारा मताधिकार का प्रयोग सुनिश्चित कराने के लिए सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स का भी सहयोग लिया गया। सोशल मीडिया के कई प्लेटफार्म जैसे इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, यूट्यूब चैनल आदि पर मतदान की जानकारी और उसके प्रभाव को बताने वाले वीडियो, रील्स, रोचक क्रिएटिव आदि अपलोड किए गए। इनके माध्यम से मतदाता वोट डालने के लिए प्रेरित किए गए। इन सोशल मीडिया माध्यमों पर मतदान करने का तरीका, मतदान में बरती जाने वाली सावधानियों और अन्य ज्ञानवर्धक जानकारी भी अपलोड की गई। सम्भवतः इसका प्रभाव चुनावों के बढ़े मतदान प्रतिशत के रूप में देखने को मिला।

सूचना दोधारी तलवार की तरह होती है। सूचनाओं के उन्मुक्त प्रवाह से जहां कई लाभ सोशल मीडिया के उभार के रूप में समाज को मिलें, मगर इसके साथ ही कई विकट चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। एक ओर इसका उपयोग भ्रम और कट्टरता फैलाने में किया जा सकता है, तो दूसरी ओर रचनात्मक कार्यों में भी किया जा सकता है। सूचना क्रांति के इस आधुनिक दौर में सोशल मीडिया की भूमिका को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। राजनीतिक स्वार्थ के लिए भी गलत जानकारियां पहुंचाई जा रही है। सोशल मीडिया की ताकत को देखते हुए एक ऐसा वर्ग भी सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गया है, जो सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए लगातार फेक सूचनाओं को प्रसारित कर रहा है। जवाबदेही का कोई मजबूत मेकेनिज्म विकसित न होने के कारण ये लोग बेरोक-टोक सक्रिय हैं।

दूसरा, डीपफेक जैसी तकनीकी से सोशल मीडिया यूजर्स की व्यक्तिगत पहचान पर चोट करना आसान हो गया है। इसको लेकर देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी भी कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं। बढ़ते साइबर हमले अपने आप में हम सब के समक्ष एक बड़ी चुनौती बने ही हुए हैं। व्यापक राष्ट्रीय और सामाजिक हित में सोशल मीडिया के अधिकाधिक लाभ लेने के लिए इन खतरों से निपटना बेहद जरूरी है। डिजिटल साक्षरता इस सन्दर्भ में पहला और सबसे व्यावहारिक उपाय दिखता है।

 

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