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आध्यात्मिक पर्यटन का वैश्विक केंद्र

आध्यात्मिक पर्यटन का वैश्विक केंद्र

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, पर्यटन, राम मंदिर विशेषांक जनवरी २०२४, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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धर्म और अध्यात्म का अनूठा संगम है अयोध्या। श्रीरामलला के मंदिर का कपाट खुलते ही अयोध्या पर्यटन का एक मुख्य केंद्र भी बन जाएगा। देश-विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक भगवान श्रीराम के दर्शन कर प्राकृतिक सौंदर्य बिखेरते अयोध्या घूमेंगे।

अध्यात्म और आधुनिकता के साथ जिस प्रकार से अयोध्या का नया रूप दिया जा रहा है, वह आने वाले दिनों में पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहेगा। आध्यात्मिकता और विरासत को विकास के रंग में रंगा जा रहा है। अयोध्या नया आकार लेता दिख रहा है। इससे पहले अयोध्या से कुछ ही घंटे की दूरी पर काशी को भी नया रूप दिया गया है। ताजा रिपोर्ट बताते हैं कि बीते दो वर्षों में काशी यानी वाराणसी में ढ़ाई सौ से अधिक नए होटल और रेस्तरां खुल गए हैं।

अयोध्या में भगवान श्रीराम लला के मंदिर के गर्भगृह का फोटो, जिस दिन सोशल मीडिया पर आया, खूब पसंद किया गया। समय-समय पर मंदिर के निर्माण और नए आकार लेती अयोध्या की तस्वीरें लोगों के बीच कौतूहल पैदा कर रही हैं।

अयोध्या को नए तरीके से आकार दिया जा रहा है ताकि वह धार्मिक एवं आध्यात्मिक वैश्विक पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित रहे, जो भक्तों को सहज ही खींच कर लाए।

सेवा, सुविधा, व्यवस्था की दृष्टि से मंदिर तीर्थ क्षेत्र परिसर का विस्तार भी किया गया है। उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य सरकार लगातार निर्माण कार्य को देख रही है। सरकार की कोशिश है कि अयोध्या की पुरातन समृद्धि को आज जनमानस के बीच लाया जाए। वाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या की समृद्धि का वर्णन बालकाण्ड के पांचवें सर्ग में किया गया है और लिखा है कि कोशल नाम से प्रसिद्व एक बहुत बड़ा जनपद है, जो सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है। वह प्रचुर धन-धान्य से सम्पन्न, सुखी और समृद्धशाली है। उसी जनपद में अयोध्या नाम की एक नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है। कर देने वाले सामंत नरेशों के समुदाय उसे सदा घेरे रहते थे। विभिन्न देशों के निवासी वैश्य (व्यापारी वर्ग के लिए उस दौरान उपयोग में आने वाली संज्ञा) उस पुरी की शोभा बढ़ाते थे।

भारतीय इतिहासकार राधाकुमुद मुखर्जी अपनी पुस्तक ‘मेन एंड थॉट इन एनशियंट इंडिया’ में लिखते है, ‘समुद्रगुप्त के दौर में अयोध्या एक प्रमुख नगर था। गया में उत्खनन के दौरान मिले अभिलेखों से पता चलता हैं कि समुद्रगुप्त के कालखंड में अयोध्या जहाजों, हाथियों और घोड़ों से भरा हुआ एक नगर हुआ करता था।’

इतिहास बताता है कि अयोध्या का सम्बंध भारत ही नहीं बल्कि भारत के बाहर के दर्जनों देशों-इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, मलेशिया, कोरिया, चीन, जापान और पाकिस्तान से भी हैं। अयोध्या सिर्फ हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान नहीं है बल्कि बौद्ध, जैन और सिक्खों का भी प्रमुख तीर्थस्थान है। भगवान बुद्ध ने अयोध्या की दो बार यात्रा की थी। चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनत्सांग ने भी यहां की बौद्ध परम्पराओं का उल्लेख अपने संस्मरणों में किया है। जैन मत के अनुसार यहां पहले तीर्थकर आदिनाथ सहित पांच तीर्थंकरों-अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ का जन्म हुआ था। सिक्खों के तीन गुरुओं-नानकदेव, तेगबहादुर और गोबिंद सिंह ने यहां की यात्रा की थी।

ऐसे में पूरी उम्मीद है कि 22 जनवरी, 2024 के बाद अयोध्या हर धर्म के लोगों के बीच आकर्षण का प्रमुख केंद्र होगा। अयोध्या में ‘टूरिज्म फैसिलिटेशन सेंटर’ बनाया जा रहा है, जिसे 4.40 एकड़ में बनाया जा रहा है। जिसे तैयार करने में 130 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। इस केंद्र को राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 330 व 27 से जोड़ने की भी तैयारी है। यहीं सैलानियों के ठहरने के भी इंतजाम किए जाएंगे। इसके निर्माण के लिए उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग ने कार्य शुरू कर दिया गया है। जिस तरह उत्तर प्रदेश सरकार इस दिशा में आगे बढ़ रही है, उससे लगता है कि आस्था और अध्यात्म का केंद्र राममंदिर वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर बड़ा केंद्र बनकर उभरेगा।

आध्यात्मिकता में खींचे चले आएंगे लोग

अध्यात्म की शक्ति और उसकी भारतीय जड़ों को पूरी दुनिया जानती है। सदियों से विदेशी भारत की आध्यात्मिक शक्ति के कायल हैं। अयोध्या के उत्कर्ष और प्रसिद्धि में अध्यात्म का बड़ा योगदान है। इसके प्रतीक श्रीराम हैं। अध्यात्म कोई मंजिल नहीं बल्कि यात्रा है। यह बड़ा सरल है, फिर भी लोग मन में कई भ्रांतियां पाल लेते हैं कि कहीं आध्यात्मिक होने पर घर छोड़कर संन्यास न लेना पड़ जाए। कहीं बैरागी न हो जाऊं, कहीं गृहस्थ धर्म न छोड़ दूं। अध्यात्म तो हमें जीवन जीना सिखाता है। भगवान श्रीराम ने गृहस्थ में संन्यास और अध्यात्म का संदेश दिया है। उनकी जन्मभूमि अयोध्या का महत्व इस कारण और अधिक बढ़ जाता है।

अध्यात्म घर-गृहस्थी में तालमेल बैठाना सिखाता है। इसलिए धर्म कोई भी हो, लेकिन सभी को आध्यात्मिक अवश्य होना चाहिए। वही जीवन का मूल है। हम अपने जीवन में संपूर्ण विधाओं को एक नया आयाम देते हैं और उस मूल बिंदु से परम शाश्वत सत्य की ओर उन्मुख होते हैं। कोरोना महामारी के दौर में पूरी दुनिया ने भारतीयों के संयम और आध्यात्मिक शक्ति को एक बार फिर देखा और समझा। इसलिए अयोध्या में जब रामलला अपने भव्य गर्भ-गृह में पुनः विराजेंगे तो पूरी दुनिया से लोग उन्हें देखने और महसूस करने के लिए अयोध्या आएंगे। धर्म, ज्ञान व उत्सव के शहर के रूप में विश्वभर में अयोध्या की पहचान हो, ऐसी कई योजनाओं पर रामनगरी में तेजी से काम चल रहा है। रामनगरी से सटे तीन गांवों की 1450 एकड़ जमीन पर ‘नव्य अयोध्या’ के नाम से ग्रीनफील्ड टाउनशिप बसाई जा रही है। ‘नव्य अयोध्या’ में 40 देशों के लिए भवन व विभिन्न मठ-मंदिरों के आश्रम भी बनाए जाएंगें। ‘नव्य अयोध्या’ के लिए तीन गांवों शाहनेवाजपुर मांझा, मांझा बरहटा व तिहुरा मांझा की जमीन अध्रिगहीत की जा रही है। पहले चरण के लिए 90 फीसदी जमीन अधिग्रहित की जा चुकी है। योजना है कि ‘नव्य अयोध्या’ में भी विभिन्न प्रकार के उत्सवों, मेलों आदि का आयोजन होता रहेगा।

अयोध्या से काशी की दूरी करीब सवा दौ सौ किलोमीटर है। बीते साल काशी तमिल संगमम के दौरान जो भी पर्यटक काशी आए, उनमें से अधिकतर ने अयोध्या की यात्रा की। ऐसी ही उम्मीद अयोध्या आने वाले पर्यटकों से की जा रही है। अयोध्या में 22 जनवरी, 2024 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में देश भर के साधु-संत गर्भगृह में श्रीराम लला की प्राण-प्रतिष्ठा करेंगे। उसके बाद अयोध्या में काशी से भी अधिक श्रद्धालु और पर्यटकों के आने की उम्मीद है। उत्तर प्रदेश राज्य प्रशासन और कई केंद्रीय एजेंसियां इसके लिए पूरी तरह से तैयारी कर रही है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने एक निजी कंपनी की सहायता से प्रदेश में अगले 20 सालों में पर्यटन की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट बनवाई। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक भी किया गया जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में जहां पर्यटन की संभावनाएं थी, वहां पर्यटकों को आकर्षित करने की दृष्टि से तीन फेज तैयार किए गए। इस पूरी कवायद का उद्देश्य अयोध्या सहित अन्य तीर्थस्थलों का विकास कर उन्हें पर्यटन के लिए अनुकूल बनाना था।

                                                                                                                                                                               सुभाष चंद्र

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