अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत राम

श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भांति यहां भी कण-कण में राम व्याप्त हैं।

मानव देह में भगवान श्रीराम ने जिन शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना की, वे सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। इसलिए राम केवल भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में आराध्य हैं। जीवन की अलग-अलग भूमिकाओं में मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श राम ने प्रस्तुत किया है। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है- मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गांव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है? उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूं। इस प्रसंग से ही स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में राम के नाम की महिमा क्यों है। क्यों दुनियाभर में उन्हें पढ़ा और पूजा जाता है। राम का जीवन मर्यादा सिखाता है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व का भाव जगाता है। राम का संदेश मनुष्य को देवत्व की ओर लेकर जाता है। संपूर्ण विश्व में रामराज्य की अवधारणा साकार हो, मूल्य आधारित समाज व्यवस्था निर्मित हो, इसलिए सब अपने यहां राम का चरित्र लेकर गए हैं। भारत के स्वाभिमान श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भांति यहां भी कण-कण में राम व्याप्त हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रामायण का मंचन इंडोनेशिया में किया जाता है। इंडोनेशिया के मुस्लिम भगवान राम को अपना नायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं।

इंडोनेशिया के शहर ‘योग्या’ को राम की नगरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप का नामकरण सुमित्रा के नाम पर हुआ। इंडोनेशिया के जावा शहर की एक नदी का नाम सेरयू है। यहां की रामकथा ‘ककनिन’ या ‘काकावीन रामायण’ के नाम से सुप्रसिद्ध है, जिसके रचयिता कवि योगेश्वर हैं। यानी इंडोनेशिया के लिए महर्षि वाल्मीकि कवि ‘योगेश्वर’ हैं। इंडोनेशिया की रामायण 26 अध्यायों का महाकाव्य है। इस्लामिक देश इंडोनेशिया की संस्कृति पर रामायण की गहरी छाप देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। सबके मन में यही विचार आता है कि आखिर क्या कारण रहे होंगे कि इंडोनेशिया पर हिन्दू संस्कृति का इतनी अधिक प्रभाव दिखाई देता है?

थाईलैंड की संस्कृति के तार भी रामायण से जुड़े हुए दिखाई देते हैं। यहां के तो राजा भी ‘राम’ हैं। थाईलैंड के राजा को राम ही कहा जाता है। उनके नाम के साथ अनिवार्य रूप से राम लिखा जाता है। वर्तमान में थाईलैंड के राजा ‘राम दशम’ हैं। यहां के ऐतिहासिक शहर अयुत्थया को राम की राजधानी अयोध्या के तौर पर देखा जाता है। राज परिवार आज भी अयोध्या (अयुत्थया) में ही रहता है। वैसे तो थाईलैंड बौद्ध देश है। परंतु यहां के नागरिक जीवन में राम के प्रति गहरी आस्था है। वहीं, दक्षिणी थाईलैंड और मलयेशिया में राम के प्रति आस्था रखनेवाले नागरिक बंधु तो यहां तक मानते हैं कि रामायण में वर्णित पात्र मूलत: दक्षिण-पूर्व एशिया के निवासी थे और रामायण की सारी घटनाएं इसी क्षेत्र में घटी थी। वे लोग मलाया के उत्तर-पश्चिम स्थित एक छोटे द्वीप को रावण की लंका मानते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की वेबसाइट पर उपलब्ध सामग्री के अनुसार, एक स्वतंत्र राज्य के रूप में थाईलैंड (उस समय थाईलैंड का नाम स्याम या सियाम था) के अस्तित्व में आने के पहले ही क्षेत्र में रामायणीय संस्कृति विकसित हो गई थी। अधिकतर थाईवासी परंपरागत रूप से राम कथा से सुपरिचित थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि तेरहवीं शताब्दी में राम वहां की जनता के नायक के रूप में प्रतिष्ठित हो गए थे। किंतु राम कथा पर आधारित सुविकसित साहित्य अठारहवीं शताब्दी में ही उपलब्ध होता है। थाईलैंड के राजाओं ने रामकथा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। जब तासकिन, थोनबुरी के सम्राट बने तब उन्होंने थाई भाषा में रामायण को छंदोबद्ध किया, जिसके चार खंडों में 2012 पद हैं। उनके बाद, सम्राट राम प्रथम (1782-09) ने अनेक कवियों के सहयोग से रामायण की रचना करवाई, जिसमें 50188 पद हैं। यह थाई भाषा की पूर्ण रामायण है। परंतु इतनी विशाल रामायण का मंचन नहीं किया जा सकता था, इसलिए राम द्वितीय (1809-24) ने एक संक्षिप्त रामायण की रचना की, जिसमें 14300 पद हैं। इसी प्रकार, राम चतुर्थ ने भी स्वयं पद्य में रामायण की रचना की, जिसमें 1664 पद हैं। एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि थाईलैंड के राजभवन परिसर स्थित वाटफ्रकायों (सरकत बुद्ध मंदिर) की भित्तियों पर संपूर्ण थाई रामायण ‘रामकियेन’ को चित्रित किया गया है।

किसी भी भारतवासी को यह जानकर सुखद अनुभूति होगी कि थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रंथ ‘रामायण’ है, जबकि वहां थेरावाद बौद्ध बहुमत में हैं। नि:संदेह, राम के कारण थाईलैंड बौद्ध और हिन्दू संस्कृति के समन्वय का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। थाईलैंड में रामायण को ‘रामकियेन’ कहते हैं, जिसका अर्थ है- राम कीर्ति। यह वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। एक और आनंददायक तथ्य यह है कि बैंकॉक के सबसे बड़े और भव्य सभागार का नाम ‘रामायण हॉल’ है, जहां प्रतिदिन रामकियेन पर आधारित नृत्य नाटक एवं कठपुतलियों का प्रदर्शन किया जाता है।

थाईवासियों की तरह वियतनाम के नागरिक भी अपने देश को राम की लीलाभूमि मानते हैं। इस मान्यता की पुष्टि सातवीं शताब्दी के एक शिलालेख से होती है, जिसमें आदिकवि वाल्मीकि के मंदिर का उल्लेख हुआ है। वहीं, लाओस के नागरिक तो स्वयं को भारतवंशी ही मानते हैं। उनका मानना है कि कलिंग युद्ध के बाद उनके पूर्वज इस क्षेत्र में आकर बस गये थे। लाओस की संस्कृति पर भी हिन्दू संस्कृति की गहरी छाप है। यहां रामकथा पर आधारित चार रचनाएं उपलब्ध हैं- फ्रलक फ्रलाम (रामजातक), ख्वाय थोरफी, ब्रह्मचक्र और लंका नोई। लाओस की रामकथा का अध्ययन कई विद्वानों ने किया है।

भारत के पड़ोसी देश म्यांमार (बर्मा) में भी राम नाम की महिमा व्याप्त है। यहां का पोपा पर्वत औषधियों के लिए विख्यात है। ऐसी मान्यता है कि जब लक्ष्मण को शक्ति लग गई थी तब उनके उपचार के लिए पोपा पर्वत के ही एक भाग को महावीर हनुमान उखाड़कर ले गये थे। म्यांमार के नागरिक उस पर्वत के मध्यवर्ती खाली स्थान को दिखाकर पर्यटकों को यह बताते हैं कि पर्वत के इस भाग को हनुमान उखाड़कर लंका ले गये थे।

कंबोडिया (कंपूचिया) के प्रसिद्ध मंदिरों की दीवारों पर भगवान राम की चरित्रगाथा का वर्णन करते चित्र देखे जा सकते हैं। यहां के विश्व विख्यात हिन्दू मंदिर ‘अंकोरवाट’ के गलियारे में तत्कालीन सम्राट के बल-वैमन का साथ स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश तथा रामायण से  सम्बद्ध अनेक शैलचित्र हैं। यहां के शिलाचित्रों में रूपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की शृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गई आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। विराध एवं कबंध के वध का चित्रण है। स्वर्ण मृग के पीछे धनुष-बाण लेकर दौड़ते राम भी दिखाई पड़ते हैं। सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य मंदिर की दीवारों पर चित्रित किया गया है।

लाओस में भी रामलीला के प्रति आस्था के प्रमाण स्पष्टतौर पर दिखाई देते हैं। यहां के लुआ प्रवा तथा विएनतियान के राजप्रसाद में थाई रामायण ‘रामकियेन’ और लाओ रामायण ‘फ्रलक-फ्रलाम’ अर्थात् ‘प्रिय लक्ष्मण प्रियराम’ की कथाएं अंकित हैं। लाओस के कई बौद्ध विहारों में भी रामकथा के चित्र उकेरे गये हैं। लाओस का उपमुंग बौद्ध विहार तो विशेष रूप से राम कथा से जुड़े चित्रों के लिए विख्यात है।

चीन में भी राम के दर्शन हो जाते हैं। यहां बौद्ध जातकों के माध्यम से मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की कथा पहुंची थी। वहां अनामक जातक और दशरथ कथानम का क्रमश: तीसरी और पांचवीं शताब्दी में अनुवाद किया गया था। वहीं, तिब्बती रामायण की छह पांडुलिपियां भी तुन-हुआन नामक स्थल से प्राप्त हुई हैं। इनके अतिरिक्त वहां राम कथा पर आधारित दमर-स्टोन तथा संघ श्री विरचित दो अन्य रचनाएं भी हैं। चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया में राम कथा पर आधारित जीवक जातक नामक रचना है। इसके अतिरिक्त वहां तीन अन्य रचनाएं भी हैं जिनमें रामचरित का विवरण मिलता है।

एशिया की पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान भी राम के प्रभाव से दूर नहीं रह सका। तुर्किस्तान के पूर्वी भाग को खोतान कहा जाता है। यहां की स्थानीय भाषा ‘खोतानी’ में भी रामायण की प्रति पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से प्राप्त हुई है। इस पर तिब्बती रामायण का प्रभाव दिखाई देता है। वहीं, जापान के एक लोकप्रिय कथा संग्रह होबुत्सुशु में संक्षिप्त रामकथा संकलित है। इसके अतिरिक्त वहां अंधमुनिपुत्रवध की कथा भी है। श्रीलंका में कुमार दास के द्वारा संस्कृत में जानकी हरण की रचना हुई थी। वहां सिंहली भाषा में भी एक रचना है, मलयराजकथाव। नेपाल में रामकथा पर आधारित अनेकानेक रचनाएं जिनमें भानुभक्तकृत रामायण सर्वाधिक लोकप्रिय है। इसी तरह, अयोध्या और कोरिया के रिश्ते लगभग 2000 वर्ष पुराने बताए जाते हैं। कोरिया में भी एक अयोध्या है जिसे अयुता कहा जाता है।

विश्व के विभिन्न देशों में प्रचलित रामकथाओं का अध्ययन करते हैं तो ध्यान में आता है कि समय की लंबी यात्रा में राम की चरित्र गाथा भारत से निकलकर न केवल विश्व के विभिन्न हिस्सों में पहुंची अपितु यह देशकाल के अनुरूप ढल भी गई। थाईलैंड, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस, मलेेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका, नेपाल, ईरान, चीन, वियतनाम, फिलिपींस, तिब्बत, जापान, मंगोलिया, तुर्किस्तान की प्राचीन भाषाओं में रामकथा पर आधारित बहुत सारी साहित्यिक कृतियां हैं। अनेक देशों में तो शिलाचित्रों पर रामकथा के अवशेष दिखाई देते हैं। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने राम के जीवन पर गंभीरता से अध्ययन किया है। विश्वभर में प्रचलित रामायणों का अध्ययन भी उन्होंने किया है। बाबा तुलसीदास की रामचरितमानस से प्रभावित होकर जब उन्होंने शोध किया, तब उन्होंने पाया कि विश्वभर में लगभग 400 रामकथाएं प्रचलित हैं और 3000 से अधिक ग्रंथों में राम के नाम का उल्लेख है। प्रो. बुल्के का शोधकार्य (थीसिस) ‘रामकथा’ के नाम से प्रकाशित है।

हम कह सकते हैं कि जहां-जहां राम पहुंचे, वहां-वहां रामभक्ति की नई कहानियों ने जन्म ले लिया। हमारी श्रद्धा है कि राम जिसका हाथ एक बार थाम लेते हैं, उसको कभी छोड़ते नहीं। विश्वभर में रामकथा की व्याप्ति को देखकर इसी तर्ज पर कहा जा सकता है कि जो एक बार राम के समीप आता है, वह सदैव के लिए राममय हो जाता है। उपलब्ध शोध एवं साहित्य के आधार पर तो यह कहा ही सकता है कि राम केवल भारत के ही नहीं अपितु समूचे विश्व के नायक हैं। अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत हैं हम सबके राम।

                                                                                                                                                                                             लोकेन्द्र  सिंह 

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