कुछ चुनिंदा विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को आत्मरक्षा के गुण भी सिखाए जाते है लेकिन यह सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे वे शारीरिक व मानसिक रुप से अपनी आत्मरक्षा करने में समर्थ हो और उनका मनोबल बढ़े। जागरुकता की दृष्टि से राष्ट्रीय स्तर पर आत्मरक्षा अभियान चलाना आवश्यक है।
प्रशासन की सम्पूर्ण सजगता के बाद भी रोज लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार और छेड़खानी के मामले देखने को मिल ही जाते हैं। विद्यालय, महाविद्यालय, कार्यक्षेत्र हो या सार्वजनिक जगह, यहां तक कि कई बार खुद अपने घर में भी लड़कियों को असहज स्थितियों का सामना करना पड़ता है। इन सबसे बचने का बस एक ही तरीका है कि उन्हें इतना सक्षम बनाया जाए कि अपनी सुरक्षा के लिए वे दूसरों पर निर्भर न रहें। विद्यालय, महाविद्यालय में आत्मरक्षा की शिक्षा को लड़कियों के लिए अनिवार्य रूप से लागू करना इस दिशा में एक बेहतरीन कदम साबित हो सकता है।
क्या होंगे लाभ
आत्मरक्षा की तकनीक लड़कियों को मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत करने का काम करती है। इससे उन्हें अपने आस-पास के वातावरण को समझने में मदद मिलती है। याद रहे कि सतर्कता ही बचाव की पहली सीढ़ी है। सम्भावित बचाव की स्थिति में सजग रहने और उसका बेहतर तरीके से सामना करने की शिक्षा इन आत्मरक्षा के तरीकों का सबसे अहम हिस्सा होता है।
आत्मविश्वास में वृद्धि : आत्मरक्षा की शिक्षा लड़कियों में आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करती है। जब लड़कियों को ये विश्वास होता है कि वो खुद अपनी रक्षा करने और हर तरह के खतरे का सामना करने में सक्षम हैं तो उनके अंदर की झिझक और डर धीरे-धीरे खत्म होने लगता हैं। यही से उनके आगे बढ़ने के नए रास्ते भी खुलने शुरू होते है। अपने आत्मविश्वास के बल पर वो न केवल अपनी बात खुलकर कह सकती हैं बल्कि अपने अधिकारों के लिए मजबूती से लड़ भी सकती हैं।
स्कूल छोड़ने की दर में कमी : गांव घरों में अधिकतर सुरक्षा के डर से लड़कियों को शिक्षा के समान अवसर नहीं मिल पाते। ज्यादातर मामलों में असामाजिक तत्वों की वजह से बीच में ही उनकी पढ़ाई छुड़ाकर उनकी शादी करवा दी जाती है या उन्हें घर बैठने की सलाह दी जाती है। ऐसे में आत्मरक्षा की शिक्षा और भी अनिवार्य हो जाती है। इससे विद्यालय, महाविद्यालय में एक सुरक्षित वातावरण बनता है और लड़कियां बिना किसी डर के अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए प्रोत्साहित होती हैं।
इन्होंने की है पहल
बेटियों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई राज्यों ने स्कूलों में आत्मरक्षा की शिक्षा की शुरुआत की है। सरकार की समग्र शिक्षा योजना के अंतर्गत चलने वाले रक्षा अभियान से सरकारी विद्यालयों में कक्षा छह से लेकर बारहवीं तक लड़कियों को आत्मरक्षा की तकनीक सिखाने की शुरुआत हो चुकी है। उड़ीसा ने भी इस दिशा में आगे बढ़ते हुए विद्यालय जाने वाली लड़कियों के लिए आत्मरक्षा के प्रशिक्षण को अनिवार्य बनाया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने बाल रक्षक और जीवन रक्षा कार्यक्रम के तहत सरकारी विद्यालयों में लड़कियों को आत्मरक्षा के साथ ही बेसिक लाइफ स्किल्स और लीगल अवेयरनेस वर्कशॉप की सुविधा देने की शुरुआत की है।
शारीरिक सुरक्षा के साथ ‘वर्चुअल सेफ्टी’भी जरूरी
आज के दौर में जब सब कुछ ऑनलाइन है तब लड़कियों को शारीरिक आत्म सुरक्षा के साथ साथ वर्चुअली भी खुद को सुरक्षित रखने के उपायों को समझना भी जरूरी हो जाता है। खासकर तब जब साइबर बुलिंग, हैरासमेंट और साइबर स्टॉकिंग जैसे मामले लगातार बढ़ने लगे हैं। इससे बचने के लिए विद्यालय शिक्षा में साइबर बुलिंग अवेयरनेस का समावेश भी आवश्यक हो जाता है। ऐसे लोगों की पहचान कर उनके विरुद्ध रिपोर्ट करने के साथ ही अपनी ऑनलाइन प्राइवेसी की सुरक्षा से सम्बंधित जरुरी जानकारियां लड़कियों को होना आवश्यक है। साइबर बुलिंग से लड़कियों को बचाने के लिए सरकार की तरफ से भी साइबर सेफ गर्ल, बेटी बचाओ, साइबर क्राइम सेफ जैसी योजनाएं शुरू की गई हैं जो विभिन्न कार्यशालाएं के माध्यम से लड़कियों को जागरुक करने का काम करते हैं। साथ ही डिजिटल शक्ति कैम्पेन लड़कियों को सशक्त करने में मददगार साबित हो रही है।
तकनीक के इस्तेमाल से बनाएं सुरक्षा कवच
लड़कियों की सुरक्षा की दृष्टि से अब बाजार में कई ऐसे उपकरण मौजूद हैं जिनसे वे विषम परिस्थितियों में खुद को सुरक्षित कर सकती हैं। अकेले सुनसान रास्तों पर चलते समय ‘पेपर स्प्रे’ और ‘इलेक्ट्रिक शॉक’ देने वाले ‘गजेट्स’ साथ में रखना उत्तम विकल्प है। इसके अलावा अब कई ऐसे ‘एप्स’ भी उपलब्ध हैं जो लड़कियों की सुरक्षा को मजबूत बनाते हैं। ये एप्स आपके चुने हुए ‘कॉन्टैक्ट्स’ तक आपकी ‘लाइव लोकेशन’ पहुंचाने के साथ ही आपातकालीन स्थिति में नजदीकी पुलिस स्टेशन में कॉल भी कर सकते हैं। जिससे जरूरत पड़ने पर तुरंत मदद मिलती है।
ये ‘एप्स’ होंगे सहायक
किसी भी तरह के आपातकालीन परिस्थिति में 112 नम्बर डायल करने पर पुलिस, एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड जैसी सेवा तुरंत मिलती है। इसका प्रयोग कॉल, एसएमएस, ईमेल, पैनिक बटन और 112 इंडिया मोबाइल एप के जरिए किया जा सकता है। स्मार्ट फोन के पावर बटन को तीन बार जल्दी-जल्दी दबाने पर पैनिक कॉल तुरंत सक्रिय हो जाती है।
बी सेफ : इस ‘एप’ में आप अपने विश्वसनीय ‘कॉन्टैक्ट्स’ को सेफ्टी की द़ृष्टि से जोड़ सकते हैं। इसमें ‘लोकेशन शेयरिंग’, ‘एसओएस अलट्स’ भेजने, ‘फेक कॉल क्रिएट’ करने जैसी सुविधाएं दी गई हैं।
माय सेफ्टीपिन : अकेले होने की स्थिति में इस ‘एप’ की सहायता से लड़कियां उन रास्तों का चुनाव कर सकती हैं जो भीड़भाड़ वाले और सुरक्षित होते हैं।
स्मार्ट 24/7 : इसमें आप अपनी प्राइमरी कॉन्टैक्ट लिस्ट क्रिएट कर सकते है।आपातकालीन परिस्थिति में या ‘पैनिक कॉल क्रिएट’ करने पर इन कॉन्टैक्ट्स पर तुरंत अलर्ट जाता है। स्मार्ट फोन या इंटरनेट कनेक्शन इस अलर्ट सिस्टम के बीच की बाधा बिल्कुल नहीं है। इंटरनेट न होने की स्थिति में एसएमएस के माध्यम से अलर्ट चुने हुए कॉन्टैक्ट्स तक पहुंच जाता है।
शेक 2 सेफ्टी : इस ‘एप’ की मदद से केवल फोन को शेक करके या ‘पावर बटन’ को लगातार चार बार दबाकर ‘एसओएस कॉल’ और ‘एसएमएस’भेज सकते है। यह ‘स्क्रीन लॉक’ रहने की हालत में भी काम करता है और इसके लिए इंटरनेट की भी जरूरत नहीं है।
जागरण अभियान- आस पास के वातावरण को समझना, खतरों को पहचानना और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना।
शारीरिक प्रशिक्षण – कुछ छोटी-छोटी तकनीक जिससे लड़कियां अपराधियों के चंगुल से स्वयं को आसानी से बचा सकें और जरुरत पड़ने पर उनपर प्रतिघात भी कर सकें।
दैनिक चीजों का प्रयोग – अपनी सुरक्षा करने के लिए हमेशा शस्त्र साथ रखना जरुरी नहीं। जरुरत पड़ने पर रोज के प्रयोग की चीजों जैसे की-चेन्स, स्कार्फ, बैग, पेन आदि को भी शस्त्र की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।
स्ट्रेस मैनेजमेंट – आपात के दौरान स्वयं को घबराहट से बचाना और अपने डर पर काबू रखते हुए तुरंत आत्मरक्षा के लिए कदम उठाना।
अधिकारों के प्रति जागरुकता- कुछ गलत होने की स्थिति में लड़कियों को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए। लड़कियों की सुरक्षा से जुड़े कई कानून हैं, जिन्हें विद्यालय शिक्षा में शामिल करने से उन्हें ऐसी स्थिति से निपटने में मदद मिलेगी।
किससे सहायता लें – बहुत सी लड़कियां अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की शिकायत तो करना चाहती हैं, मगर उन्हें पता ही नहीं होता कि शिकायत कहां करनी है। ऐसे में उन्हें शिकायत करने के सही तरीके की पूरी जानकारी होना जरूरी है।
पूजा कुमारी