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पूर्वोत्तर में रहेगा एनडीए का वर्चस्व

पूर्वोत्तर में रहेगा एनडीए का वर्चस्व

by रविशंकर रवि
in अप्रैल -२०२४, ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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2024 के लोकसभा चुनाव का रुझान भाजपा-एनडीए के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है। पूर्वोत्तर में 24 में से 20 से अधिक सीटों पर एनडीए का वर्चस्व रहने का अनुमान है। हालांकि भयमुक्त चुनाव सम्पन्न करने हेतु संवेदनशील और सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से सर्तक रहना आवश्यक है।

लोकसभा चुनाव- 2024 में पूर्वोत्तर की 24 सीटों में से 20 से अधिक पर एनडीए का वर्चस्व रहने का अनुमान है। भारतीय जनता पार्टी या एनडीए के घटक दल आरम्भिक स्थिति में बहुत आगे हैं। लंबी हिंसक आंदोलन के बाद भी यदि मणिपुर की दोनों सीटों पर भाजपा की जीत हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। असम की 14 लोकसभा सीटों में से कम से कम 12 सीटों पर मुख्य मंत्री डॉ. हिमंता विश्वा शरमा जीत का दावा कर रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास 3 सीटें थी। एक पर बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का कब्जा था। नगालैंड की एकमात्र लोकसभा सीट पर मुख्य मंत्री एन रियो की पार्टी एनडीपीपी की जीत तय मानी जा रही है।

मेघालय में सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने अरुणाचल में भाजपा उम्मीदवार के समर्थन की घोषणा कर दी है। जबकि मेघालय की तुरा सीट पर पार्टी अपने उम्मीदवार के रुप में अगाथा संगमा को उतारेगी। पिछला विधानसभा चुनाव एनपीपी और भाजपा ने अलग-अलग लड़ा था। एनपीपी चाहती है कि भाजपा तुरा सीट पर एनपीपी उम्मीदवार का समर्थन करें।

असम में मुकाबला दिलचस्प होगा। चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद पूरा चुनाव प्रचार बिहू के उत्सव के रुप में चलेगा। राज्य में पहला चरण 19 अप्रैल से आरम्भ होकर तीसरा चरण 7 मई तक चलेगा।

लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान हो गया है और इसके साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू हो चुकी है। असम के साथ सम्पूर्ण पूर्वोत्तर में 7 मई तक चुनाव प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, लेकिन चुनाव परिणाम के लिए 4 जून तक की प्रतीक्षा करनी होगी, क्योंकि देश में अंतिम चरण का चुनाव 1 जून को संपन्न होगा। पहले चरण के मतदान के लिए 20 मार्च को अधिसूचना जारी हो जाएगी। उसके साथ ही उम्मीदवारों का नामांकन आरम्भ हो जाएगा। यानी बिहू आने के पहले ही राज्य में चुनाव प्रचार आरम्भ हो जाएगा। पहले चरण और दूसरे चरण के प्रचार के दौरान पूरे राज्य में रंगाली बिहू की धूम रहेगी। ऊपरी असम में मतदान पहले चरण में होना है। रंगाली बिहू का ज्यादा उत्सव ऊपरी असम में ही होता है। ऐसे में हर दल का उम्मीदवार बिहू समितियों को उपकृत करके खुश करने की कोशिश करेंगे। अब देखना है कि चुनाव आयोग उत्सव के बीच किस तरह से उम्मीदवारों पर नजर रखता है। दरअसल बिहू के मंचों पर जाकर हर उम्मीदवार मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास करेंगे। बिहू उत्सव 13 अप्रैल से आरम्भ हो जाएगा। यह करीब एक सप्ताह तक चलता है। ऐसे में बिहू के बीच ही चुनाव प्रचार चलने की वजह से चाहकर भी चुनाव प्रक्रिया को बिहू से अलग नहीं किया जा सकता है। एक ओर बिहू का उत्सव चलेगा तो दूसरी ओर लोकतंत्र का सबसे बड़ा मतदान पर्व होगा। हालांकि मुख्य मंत्री चाहते थे कि असम में बिहू के पूर्व ही मतदान प्रक्रिया पूरी हो जाए। इसके लिए असम सरकार की ओर से चुनाव आयोग से आग्रह भी किया गया था।

चुनाव की घोषणा के पूर्व से ही असम में नागरिकता (संशोधन) विधेयक का विरोध हो रहा है। जगह-जगह प्रदर्शन और प्रतिवाद कार्यक्रम चल रहे हैं। आंदोलन की वजह से कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आंदोलन के प्रभाव वाले क्षेत्र में अतिरिक्त सुरक्षाबलों को तैनात करना पड़ा है। राज्य में आमतौर से शांति है और उग्रवाद का लगभग सफाया हो चुका है। इसलिए इस चुनाव में उग्रवादी हिंसा की आशंका नगण्य दिखती है। फिर भी संवेदनशील और सीमावर्ती क्षेत्र पर नजर रखनी होगी। इस बार निचले असम में राजनीतिक दलों के समर्थकों के बीच भी टकराव की आशंका है। लेकिन राज्य प्रशासन ने भयमुक्त निष्पक्ष चुनाव कराने की पूरी तैयारी कर ली है। इस बार के चुनाव में पहली बार मतदान करने की पात्रता पाने वाले उम्मीदवारों में उत्साह है। युवावर्ग भी इस मतदान को लेकर उत्साहित है। चुनाव आयोग ने भी सभी मतदाताओं से चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने का आह्वान किया है।

असम में शांतिपूर्वक चुनाव होते रहे हैं, लेकिन मतदान की प्रक्रिया लंबी हो गई है। राज्य में तीन चरणों में 19 दिनों तक मतदान की प्रक्रिया जारी रहेगी। दो चरणों में चुनाव हो सकते थे, क्योंकि राज्य में चुनाव हिंसा का इतिहास नहीं रहा है। असम में डिब्रूगढ़ सीट से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनोवाल को उतारा है। भाजपा ने एनडीए के घटक दल असम गण परिषद के लिए बरपेटा और धुबड़ी सीट छोड़ी है। जबकि बोडोलैंढ पीपुल्स प्रोग्रेसिव फ्रंट के लिए कोकराझाड़ सीट छोड़ी है। अल्पसंख्यक बहुल धुबड़ी सीट से बदरुदीन अजमल चुनाव लड़ते हैं।

उधर कांग्रेस में नेताओं का इस्तीफा जारी है। बरपेटा से कांग्रेस सांसद अब्दुल खालेख ने फिर से उम्मीदवारी न मिलने पर पार्टी से त्यागपत्र दे दिया है। कांग्रेस के कई विधायक विधानसभा में भाजपा का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस के दो कार्यकारी अध्यक्ष पार्टी छोड़ रहे हैं। जोरहाट के पूर्व विधायक पार्टी छोड़कर अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैैं। जिला स्तर पर सैंकड़ों कार्यकर्ता पार्टी छोड़ रहे हैं और भाजपा में उनका स्वागत किया जा रहा है, जबकि लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है। डिब्रूगढ़ के पूर्व सांसद और केंद्र में मंत्री रहे मजदूर नेता पवन सिंह घटोवार कांग्रेस समर्थित असम जातीय पार्टी के उम्मीदवार लुरिन गोगोई का समर्थन करने की जगह भाजपा उम्मीदवार सर्वानंद सोनोवाल के साथ प्रचार पर दिख रहे हैं। असम के कांग्रेस प्रभारी अपनी भूमिका में पूरी तरह से विफल रहे हैं। पार्टी लगातार कमजोर हो रही है, लेकिन उन्होंने अपनी तरफ से कोई पहल की हो, ऐसा दिखता नहीं है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा की कोई सुनता ही नहीं है। पार्टी के अंदर अंतर्कलह बढ़ता ही जा रहा है। कांग्रेस का एआईयूडीएफ के साथ तालमेल न करना, ऊपरी असम में हिंदू मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एक निर्णय है, लेकिन भाजपा के आक्रामक रुख के सामने कांग्रेस बेहद कमजोर नजर आ रही है। कांग्रेस से नाराज अजमल बदरुद्दीन ने धुबड़ी के साथ नगांव और बरपेटा से भी अपना उम्मीदवार उतार दिया है। इससे अल्पसंख्यक वोट बंटने की आशंका पैदा हो गई है, जबकि ज्यादातर हिंदू मतदाता भाजपा की ओर देख रहे हैं।

 

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