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नए साल के संकल्पों पर भारी पड़ती ठंड

नए साल के संकल्पों पर भारी पड़ती ठंड

by मुकेश जोशी
in जनवरी- २०२३, ट्रेंडींग, विशेष, सामाजिक, साहित्य
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हर साल की तरह नया साल फिर आ गया। सदियों से एक साल जाता है, दूसरा आ जाता है। यह सिलसिला अनंत है जो सदियों तक चलता ही रहेगा। हर नए साल के आगमन में कुछ उत्साही लोग हर बार की तरह कुछ नए रेजोल्यूशन, कुछ नए संकल्प, कुछ नए वादे, कुछ नए विचार अपने लिए पारित करते हैं। पर वे प्रस्ताव, वादे, संकल्प एकदम सरकारी घोषणाओं की तरह होते हैं कभी न पूरे होने वाले। खास बात यह है कि ये संकल्प सब खुद के लिए खुद के द्वारा लिए गए होते हैं। आदमी अपने लिए भी राजनीति करने लगता है साल के पहले दिन से ही।

नए साल का पहला संकल्प होता है पहली सुबह जल्दी उठकर प्रातःकालीन भ्रमण मॉर्निंग वॉक पर जाना पर वो संकल्प रजाई में ही इसलिए दम तोड़ देता है कि थर्टी फर्स्ट की रात के तीसरे प्रहर तक छककर रसरंजन खारमंजन की पार्टियां उड़ाई जाती हैं जिनमें मदहोश हुआ संकल्पजीवी कभी भी नववर्ष का प्रथम सूर्योदय नहीं देख पाता। उसे होश तब आता है जब सूर्यनारायण मध्याह्न में सिर पर आ चुके होते हैं इसलिए प्रथम संकल्प पहले ही दिन धराशायी हो जाता है।

द्वितीय संकल्प जाहिर है शराब और सिगरेट छोड़ने का होता है नए साल से। लेकिन सौभाग्य से नए साल की शुरुआत में ही इनकी कड़क जकड़ में फंसा रहता है अपना संकल्पवान हिंदुस्तानी। छूटे तब जब छोड़ें हमारे संकल्पवादी जी।

तीसरा संकल्प झूठ न बोलने का रहता है। संयोग से नए साल के पहले ही दिन पुरानी उधारी मांगने वालों का तगादा आ जाता है तो झूठ का उतारा करना पड़ जाता है भैया अगले से पैसे आ ही नहीं रहे तो आपको कहां से दें। उनसे आते ही आपके चुका देंगे। या अभी चेन्नई में हूं वहां से लौटते ही पेमेंट हो जाएगा। भले ही चेन्नई किस दिशा में है यह भी पता न हो पर झूठ जो न बुलवाए थोड़ा।

आजकल नया ट्रेंड है सोशल मीडिया से दूरी बनाने का। भैया कल से फेसबुक वाट्सप, इंस्टा सब बन्द। लेकिन मजाल बंदा सुबह उठते ही कराग्रे वस्ती मोबाइल का मंत्र छोड़ पाए। सुबह से कई फेसबुकिया गर्लफ्रैंडस भैया के गुडमॉर्निंग फूलों का इंतजार जो करती रहती हैं।

फिर समाजसेवा के कई प्रेरक संदेशों का उतारा जो करना होता है भले ही यह संकल्पों के विपरीत हो।

नए साल के संकल्प भारत जोड़ो यात्री से जुड़े भी हो सकते हैं और गुजरात में जिसकी सरकार बनते बनते रह गई और ढाई सौ से ज्यादा सीटों पर जमानत के संकल्प के टोटे पड़ गए हों ऐसे दिल्लीवाल से जुड़े भी हो सकते हैं। हम हिंदुस्तानियों के ज्यादा संकल्प इन्हीं दोनों महान आत्माओं से जुड़े ज्यादा होते हैं। माइक पर बार-बार झूठ बोलने जैसे।

संकल्पजीवी लोग प्रायः नए साल के संकल्पों में एक यह भी संकल्पित होते हैं कि कल से हेल्थ के लिए जिमिंग चालू करना ही है टायर लटकने लग गए हैं। अगला शहर भर के दस जिम जाता है उनके ऑफर लेता है टाइमिंग्स लेता है पर सुबह उठने से लगाकर देर रात तक उसके पास जिमिंग के लिए टाइम ही नहीं निकल पाता इसलिए जिम जाने का इरादा भारी मन से छोड़ना पड़ता है हालांकि इसमें बड़ी आर्थिक बचत भी हो जाती है। अब जिम का सस्ता विकल्प ढूंढ़ा जाता है। कोई बता देता है योग जिसे अब योगा कहा जा रहा है तो भाई साहब योगा क्लास या योगा टीचर की तलाश में जुट जाते हैं। इसमें पैसे भी कम खर्च होंगे और बैठे बैठे ही हेल्थ सही हो जाएगी। तो क्यों न योग किया जाए। पहले वामदेव जी के चैनल से बात शुरू हुई। बटरफ्लाई तो आसान आसन लगा पर वामदेव जी के कड़क आसन में तो अच्छे अच्छे उलझकर रह जाते हैं। फिर भी ट्राय करते रहते हैं कभी तोंद कम हो जाए।

एक संकल्प यह भी होता है कि खाने पर कंट्रोल करेंगे जो कभी सम्भव नहीं होता। अच्छा खाना देखकर या उसकी खुशबू से ही चटोरी जीभ लपलपाने लगती है। लिहाजा यह संकल्प भी पहले ही दिन से टूट जाता है। यही हाल शुगर कम करने का है। तो भाई साहब शुरुआत चाय से करते हैं। फीकी चाय पीते हैं लेकिन सिर्फ चाय ही फीकी लेते हैं। बाकी मिठाई के नाम पर तो खुशी खुशी राजी हो जाते हैं मिष्ठान्न प्रेमी जो हैं।

तो मिठाई छोड़ने का संकल्प फीकी चाय पर आकर टिक जाता है।

 

मुकेश जोशी

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