कर्तव्य पथ के कर्मठ यात्री… रामभाऊ नाईक

वे खड़े होते हैं, बिल्कुल तनकर
वे बात करते हैं,  बेलाग एवं मधुमयता के साथ
वे चलते हैं तो ऐसे मानो चरैवेति चरैवेती मंत्र को अक्षरशः जी रहे हो!!
प्रसन्न एवं तरोताजा… सदा ही

बहुत कठिन नहीं अनुमान लगाना कि मैं राम नाईक की बात कर रही हूं। उम्र के 90 वें पड़ाव पर पहुंचने के बावजूद जो जरा भी थके या रुके नहीं है। उनका उत्साह, उनकी सकारात्मकता कायम है। चश्मेबद्दुर !!!  रामभाऊ का ह्रदय से अभिनंदन।

श्री राम नाईक से मेरा परिचय 40-45 साल पुराना है। इस ओर मैं नवभारत टाइम्स की पत्रकार और वे (पहले जनता पार्टी के थे) बीजेपी  के नेता के रुप में मिले! हमारा रिश्ता वहीं था जो उस जमाने में पत्रकार एवं एक जानकार और सधे नेता के बीच होता था, अब भी है। कभी-कभी फोन पर बातचीत और प्रेस कांफ्रेस में सवाल-जवाब से संपर्क का क्रम बना रहता था। जब तक मुंबई उनका कार्यक्षेत्र था, संपर्क बना रहा। लोकसभा के लिए उनके चुने जाने पर यह क्रम खंडित हो गया, हालांकि पूरी तरह नहीं।

दिल्ली जाने पर रामभाऊ ने प्रगति की अनेक सीढ़ियां पार की। उनके बहुत सारे प्रशंसनीय योगदान है पर मेरी राय में संसद में वंदे मातरम् गान की परिपाटी कायम कराने का कार्य सर्वोत्तम और ऐतिहासिक है। मुंबई लौटने से पहले रामभाऊ ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का दायित्व संभाला। उनके सहज स्वभाव ने उत्तर प्रदेश के लोगों के दिलों में अलग छाप छोड़ी। 2019 में लखनऊ से रामभाऊ मुंबई लौटे, बीजेपी के कार्यकर्ता और पुनः जनसेवक बनकर, पर उपलब्धियों का क्रम नहीं थमा। 2024 के जनवरी में भारत सरकार ने रामभाऊ को पद्मभुषण प्रदान करके उनकी सेवाओं पर मुहर लगाईं।

शुरु से ही मैं उन्हें रामभाऊ कहती हूं। उन्होंने हमेशा मेरा और मेरी जिज्ञासा का आदर किया। सभी का आदर करना उनकी आदत रही हैं। मीडिया से संपर्क रखना रामभाऊ की अनेक विशेषताओं में से एक है। मैं ‌किंतु इसे उनके शौक के रुप में देखती हूं। जब वे मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष थे, तब से या शायद उससे पहले से प्रेस कांफ्रेस बुलाना और प्रेस नोट जारी करना, उनकी कार्य-चर्या का अविभाज्य अंग था। हम पत्रकारों को लगता था कि प्रेस से मिलना उनके लिए जैसे एक तरह का टॉनिक बन गया है। पर कांफ्रेस में वे इतना सरल और विस्तृत बोलते  कि प्रश्न पूछने की नौबत कम ही आती। यदि किसी ने टेढ़ा प्रश्न पूछ लिया तो वे बिना कटूता के सहजता और कुशलता से जवाब देते। विवादास्पद बयान करने का झंझट वे नहीं पालते थे। प्रेस नोट भी सटीक होती। अतः रसप्रद विवादास्पद कॉपी पैदा करने के इच्छुक पत्रकार निराश होते। कुछ तो नाराज भी रहते। ज्यादातर इसी श्रेणी में आते थे। उनकी मंशा पूरी करने से रामभाऊ बचते। वैसे तो पत्रकारिता विश्व के लिए बीजेपी अपने आप में विवादों का पुलींदा एवं प्रतिरोध का विषय  रही है। बीजेपी के भरसक, लंबे प्रयास और मेहनत के बाद अब ताजा राजनीतिक स्थिति से सभी वाकिफ है। गत 15-20 साल से वह विरोध और समर्थन की बराबर भागीदार बनी हुई है।

बहरहाल आसान नहीं होता या कभी नहीं रहा 70 वर्षों के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में निरंतरता बनाए रखना। पर आचार‌-विचार, दृष्टिकोण, वाणी, निष्ठा और कार्य-पध्दति में सातत्य बनाए रखने का कमाल रामभाऊ ने कर दिखाया है। शायद यह उनका नैसर्गिक गुण है या सिध्दी ही कही जा सकती है। ऐसा नहीं कि राजनीति के गिरते स्तर के वे पीड़ित नहीं, पर उन्होंने अपनी जगह, अपना स्तर छोड़ा नहीं। मैं उन्हें 40 साल से देख रहीं हूं। रामभाऊ बिल्कुल बदले नहीं है। उनकी जिजीविषा, उनकी जीवटता वैसी ही है जैसी सन् 1980-85 के दौरान मैंने महसूस की थी।

मैं नवभारत टाइम्स की रिर्पोटर थी जब उनसे मुलाकात हुई। अब याद नहीं आता वह कौन सा साल था। हाउ डज इट मैटर? तब से मैं उनके राजनीतिक जीवन, उतार-चढ़ाव, चुनाव, संसदीय कार्य, उपलब्धियों, बाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री के बतौर कार्य निर्वाहन को देखती रही हूं। कभी अप्रत्यक्ष, कभी प्रत्यक्ष रूप से। रामभाऊ की बेटी विशाखा मेरी दोस्त बन गई है। यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी के प्रति किन्ही नेताओं की अटल निष्ठा का दावा करना हो तो आप बेशक राम नाईक को शामिल कर सकते हैं। वे न सिर्फ संगठन के प्रति निष्ठावान रहें हैं बल्कि अपने दायित्वों और नीति नियमों के प्रति भी उनका विश्वास अपूर्व रहा है। पता नहीं कैसे पर दिन ब दिन गंदी होती जा रही राजनीति में भी रामभाऊ बेदाग रहे हैं। तीन बार विधायक और पांच बार सांसद रहे वे, वह भी मुंबई ‌शहर की घनी आबादीवाले उत्तर मुंबई जैसी सीट से! इतने बड़े क्षेत्र का मानस संभालकर भी रामभाऊ ने वैधानिक दायित्व की बारीकियों का लगातार अध्ययन और प्रयोग किया। वैधानिक बारिकियां समझने-समझाने में वे माहिर है। समस्याएं हल होने तक धैर्य से लगे रहने, कामकाज, प्रशासकीय और जीवन में अनुशासन का अनुपालन करने, विषयों का अध्ययन करके उन्हें उठाने… आदि विविधांगी आयामों का ताना-बाना साधे रहने का कमाल रामभाऊ ने कर दिखाया है। श्री अटलबिहारी बाजपे‌यी ने एक बार कहा ‌था कि ‘सही समय पर कुशलता से विषय उठाने का गुण, समयसूचकता और नियमों का उपयोग करने की जो सिध्दता राम नाईक में है, वह सब में नहीं होती।’

यह कोई नई जानकारी नहीं कि रामभाऊ की पहल पर ही संसदीय सदनों में वंदे मातरम् गीत गाया जाता है। एमएलए और एमपी फंड की स्थापना का प्रेरणास्रोत वे रहे हैं।रामभाऊ के कट्टर विरोधी भी मानते है कि जनप्रतिनिधि के रुप में रामभाऊ ने कई मानक गढ़े हैं। कुष्ठरोगियों के प्रश्न उठानेवाले विरले सदस्य रामभाऊ ही है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बनने के बाद भी उन्होंने कुष्ठरोगियों की समस्याओं पर ध्यान देना नहीं छोड़ा। उनके लिए राजभवन के दरवाजे खुले रखे होते थे।
आज वे स्वयं को बीजेपी के महज कार्यकर्ता कहते हैं। बीजेपी के धुरंधर नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने रामभाऊ की कर्मयोद्धा पुस्तक में लिखा है, ‘मैं मानता हूं, हमारे सामने.., भारतीय जनता पार्टी और हमारे सब सहयोगी दलों के सामने एक बड़ा लक्ष्य है, ‘‘टू चेंज द इमेज ऑफ अग्ली इंडियन पॉलिटिशियन’’ भारतीय राजनेता की गंदी प्रतिमा बदलना हमारा लक्ष्य है। इसको करने में यदि कोई व्यक्ति रोल मॉडल बन सकता है तो वह हमारे रामभाऊ नाईक है।’ आज के युग में इससे श्रेष्ठ सर्टिफिकेट क्या हो सकता है?

मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि रामभाऊ उम्र के मामले में 100 का आंकड़ा पार करें और सदैव स्वस्थ रहें।

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श्री राम नाईक द्वारा लिखित ‘चरैवेति चरैवेति’ पुस्तक का संस्कृत समेत 13  भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। अरबी, फारसी तथा जर्मन संस्करण भी प्रकाशित हुआ है। यह रामभाऊ की आत्मकथा नहीं है। आधे शतक की उनकी राजनीतिक यात्रा की अनुभव गाथा है। किसी राजनीतिक नेता की गाथा या संस्मरणों का इतनी भाषाओं में अनुवाद होना एक ‘रेकॉर्ड’ माना जाता है।

छायाचित्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत के साथ उत्तर प्रदेश राजभवन में श्री राम नाईक

श्री राम नाईक की अगुवाई से उत्तर प्रदेश के 2,866 कुष्ठपीड़ित परिवारों को योगी सरकार ने रु 4 लाख की लागत से बने घर दिए। घरों की चाबी प्रदान करते हुए श्री राम नाईक, साथ में मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल और अन्य मंत्रीगण

 

– कुमुद चावरे

वरिष्ठ पत्रकार (पूर्व राजनीतिक संपादक, नवभारत टाइम्स)

 

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