‘हिंदू’सूत्र से जुड़ा है हमारा समाज – डॉ. मोहन भागवत

एक आक्रमण होने के बाद हम सावधान हो गए, ऐसा नहीं हुआ. पिछले २ हजार वर्षों में बारम्बार कोई न कोई आता है और हमें गुलाम बनाता है. हर बार हमने वहीँ गलती की. हर बार कोई घरभेदी (गद्दार) ही धोखा देता आया है, यह रोग हमारे मूल में है. इसका निदान हुए बिना देश सुरक्षित नहीं रह सकता. हम कौन और हमारे कौन? इस सम्बंध में देश में ज्ञान का अभाव है. ‘हिंदू’ सूत्र के आधार पर हम जुड़े हुए है. अपने धर्म-संस्कृति पर अडिग रहकर श्रेष्ठ आचरण करने पर अपनी चुनौतियों से पार पाते हुए हम विश्व को भी मार्ग दिखा सकते है. यह वक्तव्य पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने साप्ताहिक विवेक द्वारा प्रकाशित ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – हिंदू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य की क्रमबद्ध अभिव्यक्ति’ नामक ग्रंथ के विमोचन समारोह के दौरान दिया. उन्होंने आगे कहा कि चारों ओर से विरोधियों के बीच, बिना किसी साधन के १९२५ में संघ कार्य शुरू हुआ. तब प. पू. सरसंघचालक सहित सभी स्वयंसेवकों ने अनेक प्रकार की प्रतिकूलताओं, चुनौतियों और अभावों के बीच संघकार्य को आगे बढ़ाया. उस समय संघ की प्रशंसा नहीं होती थी और न ही प्रशंसा सुनने की संघ को आदत है. संघ के स्वयंसेवक किसी अमीर व्यक्ति के बगिया के फुल नहीं बल्कि वन के फुल है. हम अपने सामर्थ्य के बल पर बढ़ते रहे, ऐसी ही हमारी यात्रा रही है. परिस्थितियां कैसी भी हो, पर जो उसका सामना करता है वह सदैव यशस्वी होता है. अनेक वरिष्ठ स्वयंसेवकों ने संघ का उतार-चढ़ाव देखा, प्रतिकूलता और अब की अनुकूलता भी देखी. इन सभी स्थितियों में संघ स्वयंसेवकों ने पूर्ण निष्ठा से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया. राष्ट्र-धर्म के लिए स्वयंसेवक कार्यरत थे, अब भी है और आगे भी रहेंगे. समाज का पराक्रम केवल शक्ति के आधार पर नहीं बल्कि शील के बल पर होगा. ऐसे आदर्श व्यक्तित्व का चरित्र निर्माण संघ करता है. सा. विवेक द्वारा प्रकाशित इस ग्रंथ की उन्होंने प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे संघ जीवन कैसे जिए, इसका व्यवहारिक बोध होता है. जब मेरे हाथ में पहली बार ग्रंथ आया तब लगा कि यह काफी मोटा है परंतु संघ के आज तक की यात्रा को समाहित करने के मामले में यह छोटा है. संघ का अभ्यास, चिंतन, संघ विचार, विस्तार और लोग संघ-संघ कहते है तो वास्तव में वह क्या है, इसे जानने-समझने  के लिए यह ग्रंथ उपयुक्त है.

इसके अलावा पद्मश्री रमेश पतंगे ने अपने वक्तव्य में कहा कि प. पू. डॉ. हेडगेवार ने कहा था कि संघ अपनी ५०वीं, ६०वीं, शताब्दी आदि नहीं मनाएगा. फिर संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित की गई इस ग्रंथ का क्या अर्थ है? संघ का अर्थ हिंदू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य का क्रमबद्ध विकास है. इसलिए डॉ. हेडगेवार द्वारा दिए गए संघ विचार की अभिव्यक्ति कैसे होती गई और काल सुसंगत हिंदू राष्ट्र के जीवन उद्देश्य की क्रमबद्ध अभिव्यक्ति कैसे होती गई, यह विवेक ने इस ग्रंथ में बताने का प्रयास किया है. साथ ही रा. स्व. संघ के शताब्दी वर्ष के अब तक की यात्रा का सिंहावलोकन किया है.

नागपुर के रेशिम बाग़ स्थित डॉ. हेडगेवार स्मारक समिति के महर्षि व्यास सभागार में पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के करकमलों द्वारा उक्त ग्रंथ का विमोचन किया गया. इस दौरान मंच पर हिंदुस्थान प्रकाशन संस्था के अध्यक्ष पद्मश्री रमेश पतंगे, महानगर संघचालक राजेश लोया, जाधवर ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूट (पुणे) के संस्थापक अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. सुधाकर राव जाधव सहित अन्य मान्यवर उपस्थित थे. कार्यक्रम का सफल संचालन सा. विवेक की सम्पादक अश्विनी मयेकर ने किया.

 

 

 

 

 

 

 

 

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