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सहमति से सेक्स विवाद और यथार्थ

सहमति से सेक्स विवाद और यथार्थ

by हिंदी विवेक
in अगस्त-२०२३, ट्रेंडींग, देश-विदेश, महिला, युवा, विशेष, सामाजिक
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भारतीय कुटुंब एवं समाज व्यवस्था को ध्वस्त करने हेतु पश्चिमी सोच की भोगवृत्ति से प्रभावित कुछ मुट्ठीभर लोग ‘सहमति से सेक्स’ की आयु कम करने की मांग कर रहे हैं लेकिन इससे होनेवाले दुष्परिणाम के बारे में वे तनिक भी विचार नही कर रहे हैं। व्याभिचार की खुली छूट मिलने पर नाबालिग लड़कियों के साथ हिंसा, शोषण, यौन शोषण के मामलों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी होगी।

15 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था कि बेटियों की शादी की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 साल कर देनी चाहिए। तभी से देश इस दिशा में लगातार आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने के पीछे तर्क दिया था कि इससे बेटियों को कुपोषण जैसी गम्भीर समस्याओं से मुक्ति मिल सकेगी। वहीं दूसरी ओर देश में ‘सहमति से सेक्स’ करने की उम्र को कम करने की मांग कुछ लोग कर रहे है।

‘सहमति से सेक्स’ यानी जिसे अंग्रेजी में ‘ऐज ऑफ कंसेंट’ कहा जाता है। उसकी देश में निर्धारित आयु सीमा अभी 18 वर्ष है। ऐसे में मान लीजिए कोई लड़की 18 वर्ष की है तो वह सहमति से किसी भी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध स्थापित कर सकती है, लेकिन यहां सवाल यही उठता है कि अगर सहमति से सेक्स की उम्र घटाकर 16 या उससे भी कम कर दी गई, तो क्या इसे हमारा समाज स्वीकृति दे पाएगा? हमारे देश में विशेषकर हिंदू संस्कृति में शादी एक पवित्र बंधन माना जाती है, तो क्या शादी के पूर्व किसी लड़की के संबंध को समाज स्वीकृति प्रदान कर पाएगा? हमारे सभ्य समाज में सेक्स को शादी के बाद ही स्वीकृति प्राप्त है। किसी लड़की के बारे में यह पता चले कि उसने शादी के पूर्व ही शारीरिक संबंध स्थापित किया है तो उसे स्वीकार नही किया जाता है। इसके अलावा 16 वर्ष की एक लड़की कैसे अपने स्वतंत्र निर्णय ले सकती है? कैसे अपने भविष्य के लिए बेहतर निर्णय कर सकती है? यह भी एक बड़ा प्रश्न है।

माना वर्तमान समय में किसी भी लड़की या लड़के में हॉर्मोनल बदलाव 12-13 साल की उम्र में होने लगते हैं, लेकिन एक 16 वर्ष की लड़की या लड़का अमूमन 10वीं या 12वीं पास होकर अपने आगे के भविष्य की सोच रहा होता है। ऐसे में अगर उसे सेक्स करने की अनुमति मिल गई, तो निःसन्देह यह हमारे समाज और संस्कारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा। साथ ही लड़कियों के शारीरिक और मानसिक विकास को भी प्रभावित करेगा।

कुछ मतावलम्बी ये दलील दे रहे हैं कि ‘सहमति से सेक्स’ की आयु 18 से घटाकर 16 कर देने से रेप जैसी घटनाओं में कमी लाएगा। ऐसे में समाज को स्वयमेव निर्णय लेना चाहिए कि दुष्कर्म जैसी घटनाओं में कमी व्यक्ति की सोच में बदलाव लाकर लाया जा सकता है या सहमति से सेक्स की उम्र घटाकर? हमारे देश में अमूमन देखने को मिलता है कि महिलाएं कई तरी़के की शारीरिक समस्याओं से दो-चार होती है। जिसमें कुपोषण और एनीमिया अहम है और इसके पीछे की वजह भी कम उम्र में शादी करना है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटियों की शादी की उम्र बढ़ाने की वकालत की थी।

बेटियों की कम उम्र में शादी हो जाने से इसका प्रतिकूल असर देश की अर्थव्यवस्था और प्रगति पर भी पड़ता है। कहते हैं कि मानव जाति की प्रगति की धुरी में स्त्री-पुरुष दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं। बेटियों की कम उम्र में शादी करके उनका मानसिक विकास ही अवरुद्ध नहीं किया जाता, अपितु देश के विकास से भी समझौता किया जाता है। कम उम्र में शादी बेटियों की पढ़ाई में बाधक बनती है। जिसके कारण लड़कियों का स्कूल-कॉलेज ड्राप आउट रेट बढ़ता है और ये कदम कई अन्य प्रकार से समाज और देश को हानि पहुंचाता है। ऐसे में देश की संस्कृति, संस्कार और सामाजिक ताने-बाने को देखते हुए शादी की उम्र और ‘सहमति से सेक्स’ की उम्र एक समान होनी चाहिए, क्योंकि हमारा समाज कभी भी शादी से पहले सेक्स की स्वीकृति नहीं दे सकता।

करियर ग्रोथ और हेल्थ इश्यू मानव जाति के लिए आज के समय में बहुत ही मायने रखता है। 16 वर्ष की लड़की या लड़का अपने जीवन के एक ऐसे मुहाने पर खड़ा होता है। जहां से उसके सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है। ऐसे में अगर एक युवती या युवक सेक्स की लत से पीड़ित हो गया। तो यह समाज और युवक-युवती सभी के लिए नुकसानदेह है। बढ़ती टेक्नोलॉजी के दौर में ये दुहाई देना की हमारे बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं और उनकी हथेली में सबकुछ है। जिससे उनकी समझ बहुत विकसित हो चुकी है। यह तर्क ‘सहमति से सेक्स’ या शादी की उम्र कम करने की वकालत के लिए बचकाना लगता है। हमारा समाज, कुछ ऐसे ताने-बाने से रचा-बसा है। जिसे तोड़ना कहीं न कहीं संस्कृति और संस्कारों से खिलवाड़ करने वाला होगा। इतना ही नहीं जब एक लड़की 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की हो जाती है तो उसका मानसिक और शारीरिक विकास इस स्तर तक हो जाता है कि वो दूसरे की जिम्मेदारियों को संभाल सके। साथ ही अपने और अपने परिवार के लिए सही-गलत का ़निर्णय कर सकती है। इसलिए सहमति से सेक्स की उम्र को 18 वर्ष या शादी के लिए निर्धारित उम्र के बराबर रखने में ही समाज और देश की भलाई है।

दुनिया के विभिन्न देशों में ऐज ऑफ कंसेंट को देखा जाए तो बहुत से देश ऐसे हैं। जहां इसकी उम्र 14 से 16 निर्धारित की गई है, लेकिन ये ऐसे देश हैं। जहां विवाह कोई परम्परा या संस्कार नहीं है। हिंदू धर्म में शादी-विवाह को सोलह संस्कारों में से एक माना गया है। ऐसे में अभी तक भारत, वियतनाम, तुर्की, युगांडा, अर्जेंटीना,  इराक, लेबनान और मिस्र जैसे देशों में सहमति से सेक्स के लिए आयुसीमा 18 वर्ष ही निर्धारित है।

इसके अलावा दक्षिण कोरिया और नेपाल में सहमति से सेक्स की उम्र 20 वर्ष है, जबकि बहरीन में 21 वर्ष तय की गई है। सहमति से सेक्स की निर्धारित आयुसीमा के भारतीय इतिहास को देखें तो भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत सहमति की उम्र शुरुआती दौर में सिर्फ लड़कियों के लिए थी और शुरुआत में यह 10 वर्ष निर्धारित की गई थी। जिसे 1891 में बढ़ाकर 12, 1925 में 14, 1940 में 16 और 2013 में 18 कर दिया गया।

कुल-मिलाकर देखें तो सहमति से सेक्स की आयुसीमा 16 वर्ष करने से देश में शादी की उम्र में भी गिरावट की वजह बनेगी और यह बाल विवाह के लिए कहीं न कहीं एक जिम्मेदार कारण बन सकता है। बाल विवाह से अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है। ये बात वैश्विक स्तर पर स्वीकार की जा चुकी है। बाल विवाह का सीधा असर न केवल लड़कियों पर बल्कि उनके परिवार और समुदाय पर भी होता हैं। बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है जिससे उन पर हिंसा, शोषण तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है। बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है। ऐसे में ‘सहमति से सेक्स’ की उम्र में कमी की आवश्यकता नहीं, अपितु सामाजिक ख्यालों में बदलाव की आवश्यकता है।

माना कि मानव जाति की भोजन और आवास के बाद सेक्स एक महत्वपूर्ण शारीरिक जरूरत है, लेकिन यह जरूरत सामाजिकता की चूलें हिलाकर पूरी करना उचित नहीं। रही बात पॉस्को एक्ट के तहत झूठे केस से लड़कों का भविष्य खराब होने की। तो कानूनों में सुधार और लड़कों के पक्ष को भी गंभीरता से सुने जाने की आवश्यकता है, ताकि झूठे मामले दर्ज न हो। टेक्नोलॉजी को सामने रखकर या कुछ अपवादों को सामने रखकर समाज और संस्कारों से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता।

                                                                                                                                                                                           महेश तिवारी 

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