स्वाधीनता के अमृत संकल्प और करणीय कार्य

स्वतंत्रता टिकाए रखने हेतु नागरिकों में राष्ट्रबोध-शत्रुबोध एवं कर्तव्यबोध होना आवश्यक है। हमें यह स्वतंत्रता बड़े संघर्षों, त्याग, बलिदान के बाद मिली है, अत: राष्ट्र की स्वतंत्रता सुरक्षित रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक का परम कर्तव्य है। इसके लिए देश को अंदर ही अंदर खोखला करनेवाले दीमक रूपी राष्ट्रविरोधी अलगाववादी-विभाजनकारी तत्वों को पहचानकर उनका समूलनाश करना ही होगा क्योंकि हमारे देश को बाहरी नहीं अपितु आंतरिक खतरा सबसे अधिक है।

असंख्य वीर-वीराङ्गनाओं की पुण्याहुतियों एवं सदियों तक चले ‘स्वातन्त्र्य समर’ के फलस्वरूप अपना देश 15 अगस्त 1947 को स्वतन्त्र हुआ और अब राष्ट्र स्वाधीनता के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है। यह स्वाधीनता का अमृतकाल राष्ट्र के सर्वांगीण विकास एवं समृद्धि के साथ भारत माता को परम् वैभव के शिखर तक ले जाने का संकल्प है। यह संकल्प भारत को भौतिक समृद्धि के साथ भारतीय जीवन मूल्यों की धर्म ध्वजा को विश्व गगन में ले जाने का शाश्वत संदेश है।

भारत के ‘स्व’ को जगाते हुए संविधान में प्रदत्त अधिकारों एवं प्रावधानों के साथ – नागरिक बोध जो राष्ट्रबोध से आप्लावित हो ; उस अनुरूप कर्त्तव्य पारायणता ध्येयनिष्ठ मानस के निर्माण के लिए राष्ट्र को एकत्व के साथ अग्रसर होने के पथ पर बढ़ना होगा।

भारत के सांस्कृतिक-आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्मेष का क्रान्ति सूर्य समाज जीवन के विविध पक्षों में अपनी आभा बिखेर रहा है। भारतीय ज्ञान परम्परा एवं शिक्षण पद्धति के मूल्यों से पुष्ट ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020’ भारतीय मानस को आधुनिकता के साथ भारत की मौलिक विशिष्टता से जोड़ने में अहम भूमिका निभा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और परिवर्तनों की बयार से भारत परिवर्तन का नया सवेरा देख रहा है। और राष्ट्र मानस में हिन्दू संस्कृति एवं अपनी मूल परम्पराओं के प्रति गौरव बोध का भाव – राष्ट्र की एकात्मकता के साथ एकाकार हो रहा है। ‘सर्वस्पर्शी समरस एकात्म’ समाज के रूप में भारतीय मानस अब किसी भी प्रकार के विभाजन को अस्वीकार कर रहा है। ये समस्त परिवर्तन राष्ट्रनिष्ठा से पुष्ट विचारों के लोक व्यापीकरण के कारण संभव हो पा रहे हैं।

सशक्त नेतृत्व के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  – सेवा, सुशासन, स्वराज और गरीब कल्याण के साथ भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए समर्पित होकर देश को नई दिशा दिखा रहे हैं। नागरिकों में कर्त्तव्य बोध की भावना के विकास के साथ ‘मन की बात’ कार्यक्रम द्वारा भारतवर्ष की प्रतिभाओं एवं सर्जनात्मक कार्यों को राष्ट्र के समक्ष स्वयं ला रहे हैं और भारतीय संस्कृति के वैश्विक ब्रांड एम्बेसडर – नेतृत्वकर्ता के रूप में महापुरुषों के दिशाबोध से नए भारत को गढ़ने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं।

अमृतकाल वर्ष 2047 में जब भारत अपने परम् वैभव को प्राप्त करेगा, उसमें राष्ट्र के जनमानस की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। अतएव प्रधानमंत्री मोदी ने अमृत काल के जिन पंच प्रणों – देश को विकसित भारत के रूप में आगे बढ़ाने के संकल्प, गुलामी की मानसिकता को खत्म करना, भारत की विरासत पर गर्व करना, एकता और एकजुटता की ताकत और राष्ट्र के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का राष्ट्र से आह्वान किया है। उसके लिए सभी को तत्क्षण जुट जाना होगा। अलख जगानी पड़ेगी और समृद्ध राष्ट्र बनाने के लिए सभी को जुट जाना होगा।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से ‘स्व’ आधारित – स्वालम्बन, स्वदेशी, स्वराज की भावना के साथ ‘ग्राम स्वराज’ को पूरा करना होगा। वहीं चाहे जन सामान्य तक पहुंचने वाली  उज्ज्वला योजना हो, प्रधानमंत्री आवास योजना, जन-धन खाता, किसान सम्मान निधि हो या आयुष्मान योजना, सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली हो, ऐसी अनेक योजनाएं सफलतापूर्वक संचालित हो रही हैं। सशक्त नेतृत्व की सरकार अपने सद-प्रयासों के माध्यम से देश की गरीब जनता के जीवन की दिशा और दशा को बदलने का कार्य कर रही है। खेल के क्षेत्र में भारत वैश्विक पहचान बना रहा है – और विभिन्न खेलों में भारतीय खिलाड़ी राष्ट्र के नाम सर्वोच्च पदक जीतकर देश को गौरवान्वित कर रहे हैं। वहीं अब पद्म पुरस्कार – जमीन में वास्तविक काम करने वाले संघर्षशील जननायकों को मिल रहे हैं। इससे भारत का कोई कोना अछूता नहीं रहा है।

अमृतकाल में जब भारत सर्जनात्मक विकास की अभय शक्ति के साथ आगे बढ़ रहा है – उसी समय विभाजनकारी तत्वों, देशी – विदेशी षड्यंत्रकारियों एवं भारत विरोधी अराजक तत्वों से निपटने के लिए भी समाज के सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है। त्वरित प्रतिकार और समाज जीवन के समक्ष आने वाली चुनौतियों – आतंकवाद, नक्सलवाद, लव जिहादियों, अर्बन नक्सलियों, बौध्दिक नक्सलियों एवं संविधान विरोधी – राष्ट्र विरोधी तत्वों का समूलनाश करने की ओर उन्मुख होना पड़ेगा ताकि भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने वाले अराजक तत्व भारतवर्ष की गति-प्रगति में बाधक न बनने पाएं।

स्वाधीनता के लिए हमारे महान पूर्वजों ने असंख्य प्राणाहुतियों की कीमत चुकाई है, इसका सदैव स्मरण रखें क्योंकि इसी भाव से हमारी स्वतन्त्रता अक्षुण्ण रहेगी और तभी राष्ट्र सर्वांगीण विकास के शिखर को छू! पाएगा। इसी भाव से ही राष्ट्रभक्तों व राष्ट्र विरोधियों की पहचान आसानी से हो जाएगी। हमारी स्वाधीनता महान पूर्वजों के लहू के कण-कण से सिंचित है। उस लहू का गौरवबोध हमारी नस- नस में अनिवार्यतः प्रवाहित होना ही चाहिए, यही राष्ट्र निर्माण की शक्ति होगी। वहीं राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति एवं बच्चे-बच्चे के ह्रदय में ‘अखण्ड भारतवर्ष’ की झांकी विद्यमान रहनी चाहिए क्योंकि महर्षि श्री अरविन्द कहते थे कि – यह भारत का विभाजन अस्थायी है, भारत की नियति है अखण्ड भारत होना। वहीं राष्ट्र पुरोधा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की इन पंक्तियों का सदैव स्मरण रखना भी हम सबके जीवन का अनिवार्य बोध होना चाहिए –

दिन दूर नहीं खंडित भारत को

पुन: अखंड बनाएंगे।

गिलगित से गारो पर्वत तक

आज़ादी पर्व मनाएंगे॥

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से

कमर कसें बलिदान करें।

जो पाया उसमें खो न जाएं,

जो खोया उसका ध्यान करें।

हमारा यही राष्ट्रबोध हमारी शक्ति एवं समृद्धि का प्रतीक एवं गौरवबोध के रूप में नवजीवन को दिशा देगा।

 

                                                                                                                                                                     कृष्णमुरारी त्रिपाठी ‘अटल ‘

Leave a Reply