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खेती पर बल, केंद्र में किसान

खेती पर बल, केंद्र में किसान

by रज्जू श्रॉफ
in उद्योग, कृषि, भारत विकास विशेषांक - जुलाई २०१८, सामाजिक
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कृषि व संबद्ध क्षेत्रों को लेकर मोदी सरकार की पूरी कोशिश यही है कि किसान परेशान नहीं रहे। इसीको ध्यान में रखते हुए आम बजट 2018-19 के केंद्रबिंदु में किसानों को रखा गया। इरादा है सन 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना।

वर्ष 2018-19 का आम बजट पेश करने के दौरान वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली ने कहा था कि ’हम किसानों की आमदनी बढ़ाने पर विशेष जोर दे रहे हैं। हम कृषि को एक उद्यम मानते हैं और किसानों की मदद करना चाहते हैं ताकि वे कम खर्च करके समान भूमि पर कही ज्यादा उपज सुनिश्चित कर सकें और उसके साथ ही अपनी उपज की बेहतर कीमतें भी प्राप्त कर सकें।

वित्तमंत्री का यह बयान किसानों को फसल की वाजिब कीमत नही मिलने की चिंत्ता को दूर करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पहले ही कह चुके हैं कि देश की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ यानी 2022 तक किसानों की आमदनी को दुगुनी करने का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आधारभूत सिद्धांत उत्पादन की लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक यानी लागत से देढ़ गुना दाम दिलाना है। वर्ष 2017-18 की रबी फसलों के लिए अधिकांश घोषित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से कम से कम डेढ़ गुना ज्यादा पहले ही तय किया जा चुका है। अब बाकी फसलों के लिए भी बजट में इसी सिद्धांत को अपनाए जाने की बात कही गई है। सरकार को उम्मीद है कि इस पहल से किसानों कि आय दोगुनी करने में काफी मदद मिलेगी।

यहां यह समझना भी जरूरी है कि केवल समर्थन मूल्य बढ़ा देना ही काफी नहीं है। यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि यदि समर्थन मूल्य बाजार दाम से कम है तो सरकार खरीद करें या फिर तय व्यवस्था के तरह बाजार कीमत और समर्थन मूल्य के बीच का अंतर किसान को देने का इंतजाम हो। इस तरह की एक व्यवस्था मध्य प्रदेश और राजस्थान में  विकसित की जा चुकी है। अब उम्मीद है कि जब नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के साथ सलाह-मशविरा कर राष्ट्रीय व्यवस्था का एक खाका खींचेगा तो इन दो राज्यों में प्रचलित व्यवस्था पर जरूर गौर करेगा।

किसानी फायदेमंद हो, इसके लिए सरकार की अलग-अलग योजनाओं को विभिन्न समूहों में बांटकर उनका विश्लेषण किया जा सकता हैं-

कैसे ब़ढ़े उत्पादन: इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मुख्य रूप से दो योजनाएं हैं-

* राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत अनाज, दलहन, तिहलन, पोषक तत्व से भरपूर अनाज और वाणिज्यिक फसलों को शामिल किया जाता है।

* समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) के जरिए बागवानी फसलों की पैदावार की ऊंची दर हासिल करने का लक्ष्य है।

कैसे घटे लागत: इस समूह में तीन योजनाओं का जिक किया जा सकता है:-

* मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एसएचसी) की मदद से यह जाना जाता है कि खास जगह की मिट्टी की सेहत कैसी है, उसे किस तरह से और बेहतर बनाया जा सकता है। सेहत के मुताबिक तय होता है कि वहां किस तरह की खाद की जरूरत है। इन उपायों के जरिए किसानों का खर्च कम किया जाना संभव तो पाता है।

* नीमलेपित यूरिया (एनसीयू) के जरिए कोशिश यह है कि यूरिया का उचित इस्तेमाल हो सके। चूंकि यूरिया की खुदरा कीमत सरकार तय करती है और यह किसानों को बेहद सस्ती कीमत पर मिलती है, इसीलिए किसान दूसरे खाद के मुकाबले यूरिया का इस्तेमाल करना ज्यादा उचित समझते हैं, भले ही मिट्टी में उसकी जरूरत है या नहीं। यही नहीं इस खाद के गलत इस्तेमाल को रोकने में भी नीमलेपित यूरिया कारगर साबित हो रहा है। दूसरी ओर इस कदम से फसल में नाइट्रोजन की उपलब्धता को बढ़ाने में भी मदद मिलगी।

* प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (सूक्ष्म सिंचाई घटक एंव लक्ष्य 12 लाख हेक्टेयर प्रति वर्ष) के तहत हर खेत को पानी पहुंचाने की कोशिश है। ये बात सर्वविदित है कि सिंचाई के लिए मानसून पर निर्भरता कई मौकों पर किसानों के लिए भारी परेशानी का सबब बन जाती है। अब ऐसी स्थिति से निबटने के लिए जरूरी है कि देश में उपलब्ध जल-संसाधनों का बेहतर तरीके से उपयोग कर किसानों की मदद की जाए। इस दिशा में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना मददगार साबित होगी।

कैसे मिले लागत से ज्यादा यानी लाभकारी आय: इसके लिए सरकार की कई योजनाएं हैं, जिनका ब्यौरा कुछ इस तरह हैः-

* राष्ट्रीय कृषि मंडी योजना यानी ई नैम के तहत ‘एक राष्ट्र एक मंडी’ की सोच पर अमल किया जा रहा है। योजना के तहत मंडी व्यवस्था में व्यापक फेरबदल करना है जिससे किसानों को यह पता चल सके कि किस तरह से उसे बेहतर कीमत मिल सकेगी। साथ ही किसानों को पारदर्शी तरीके से लाभकारी कीमत मुहैया करना भी सुनिश्चित करना है।

* कृषि उत्पाद एवं पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2017 के रूप में एक नया मॉडल जारी किया गया ताकि विभिन्न राज्य और केंद्रशासित प्रदेश कृषि उत्पादों के विपणन को और बेहतर बना सकें । इस मॉडल की स्थापना, प्रत्यक्ष विपणन, किसान उपभोक्ता मंडियों और विशेष जींस मंडियों के साथ वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज जैसी बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने की बात कही गई है।

* वेयरहाउसिंग सुविधाः भंडारण एक बड़ी समस्या है। भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं होने की वजह से किसान मजबूरी में अपनी पैदावार औने-पौने भाव पर बेच देता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पैदावार तैयार हो जाने बाद रियायती दर पर वेयरहाउसिंग सुविधा और फसल बाद कर्ज का इंतजाम है।

* सरकार 22 अधिदेशित फसलों (खरीफ की 14 फसल, रबी की 6 फसल, कोपरा और पटसन) का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएमएसपी तय करती है। विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकार के आग्रह पर राशन की दुकानों से बेचे जाने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न केंद्रीय एजेसियों की मदद से तिलहन, दलहन  और कपास की खरीद करती है जिसके जरिए किसानों और ग्राहकों दोनों को मदद पहुंचाने की कोशिश होती है।

* फल सब्जियों जैसे नाशवान प्रकृति के कृषि व बागबानी उत्पादों की खरीद के लिए मंडी हस्तक्षेप योजना है।

कैसे करे जोखिम का सामनाः

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत प्राकृतिक आपदाओं, कीट और रोगों के परिणामस्वरूप अधिसूचित फसल में से किसी की विफलता की स्थिति में किसानों को बीमा कवरेज और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। साथ ही, इसके जरिए कृषि में किसानी की सतत प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए उनकी आय को स्थायित्व देने का भी लक्ष्य है। योजना में शामिल किसानों द्वारा सभी खरीफ फसलों के लिए केवल दो प्रतिशत एवं सभी रबी फसलों के लिए 1.5 प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान किया जाना है। वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के मामले में प्रीमियम केवल 5 प्रतिशत होगा। अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसल उगाने वाले पट्टेदार जोतदार किसानों सहित सभी किसान कवरेज के लिए पात्र हैं। यह योजना सभी किसानों के लिए है। यह कर्ज लेने वाले किसानों के लिए अनिवार्य है, जबकि अन्य किसानों के लिए स्वैच्छिक।

कैसे जारी रहे खेती का सिलसिला।

किसानों के लिए अपने उत्पादों की न केवल लाभकारी आय जरूरी है, बल्कि यह भी देखना है कि वह लगातार खेतीबाड़ी में लगा रहे। यह मुमकिन हो सकता है परम्परागत खेती के इतर दूसरे तौर-तरीकों को बढ़ावा देकर जिससे किसानों को अतिरिक्त आय हो सके। इसके लिए सरकार ने कुछ खास योजनाएं शुरू की हैं, मसलन

परंपरागत कृषि विकास योजना यानी पीकेवीवाई के तहत जैविक खाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे जहां एक और मिट्टी की सेहत सुधरेगी, वहीं किसान के लिए आय बढ़ाने का नया जरिया भी तैयार होगा।

खेतों मे वृक्षारोपण को ब़ढ़ावा देने के लिए ‘हर मेड़ पर पेड़’ की योजना शुरू की गई है। इसके जरिये एक तरफ जहां मिट्टी की सेहत बेहतर होती है, वहीं दूसरी ओर इमारती लकड़ी मुहैया करा कर किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।

कृषि से संबद्ध क्षेत्र

अगर कृषि का एक पक्ष सामान्य खेतीबाड़ी से जुड़ा है तो दूसरा पक्ष कुछ ऐसे उद्यम से जुड़ा है जहां किसान विविधिकरण का रास्ता अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकता है। विविधिकरण के तहत किसान मधुमक्खी पालन का काम कर सकता है, दुग्ध का व्यवसाय कर सकता है और मछली पालन व उसका कारोबार कर सकता है। इन सबके लिए विभिन्न योजनाओं के साथ तकनीकी जानकारी और वित्तीय सहायता मुहैया कराई जाती है। मसलन दुग्ध से जुड़े कारोबार को बढ़ावा देने के लिए यदि राष्ट्रीय गोकुल मिशन और राष्ट्रीय गोजातीय उत्पादकता मिशन है तो मात्सिकी बढ़ावा देने के लिए ब्लू रिवॉल्यूशन यानी नीली क्रांति को बढ़ावा दिया जा रहा है।

संबद्ध क्षेत्रों पर चर्चा बागवानी यानी हॉर्टिकल्चर के बगैर पूरी नहीं होगी। बागवानी के तहत फल और सब्जियों की पैदावार को बढ़ावा देना तो शामिल ही है, फूलों की खेती की भी अपनी अहमियत है। बागवानी को बढ़ावा देने के लिए समेकित बागवानी विकास मिशन (एमआइडीएच) में देश भर 539 जिलों को शामिल किया गया है। यहां यह भी ध्यान देने की बात है कि मिशन में शामिल नहीं हुए जिलों के लिए भी एमआइडीएच के तहत पैदावार तैयार होने के बाद की मदद, उनके विपणन और दूसरे कार्यों में मदद मुहैया कराई जाती है। कुल मिलाकर, कृषि व संबद्ध क्षेत्रों को लेकर सरकार की पूरी कोशिश यही है कि किसान परेशान नहीं रहे। इसी को ध्यान में रखते हुए आम बजट 2018-19 के केंद्रबिंदु में किसानों को रखा गया। सरकार ने इस बात को भी समझा है कि किसानों की समस्या सिर्फ फसलों का उचित मूल्य नहीं मिल पाना ही नहीं है, बल्कि जो दाम मिल रहे हैं, वे समय पर नहीं मिल पा रहे हैं। ऐसे में अगली फसल की व्यवस्था प्रभावित होती है। सरकार मानती है कि किसान कर्ज चुकाने के मामले में काफी ईमानदार होते हैं। इसी को देखते हुए रियायती दर पर कर्ज का लक्ष्य 11 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है।

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