खुद को सबसे चालाक समझने वाले चीन की चाल को समझ कर भारत भी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की नीति पर चल रहा है। इतना तो तय है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नया भारत चीन की विस्तारवादी नीति को कभी सफल नहीं होने देगा।
हाल फिलहाल की वैश्विक राजनीति में हर लिहाज से उथल- पुथल मची हुई है। एक तरफ रूस यूक्रेन युद्ध चल रहा है, दूसरी तरफ इस्रायल हमास के बीच खूनी संघर्ष रुकने का नाम नहीं ले रहा। विश्व अभी भी कोविड काल से उपजी चुनौतियों से उबर नहीं पाया है। इन सबके बीच चीन भारत के विरुद्ध नए-नए षड़यंत्र रच रहा है। भारतीय सीमाओं में घुसपैठ कर रहा है, वहीं हिंद-प्रशांत तथा हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीति के तहत कभी युद्धाभ्यास करके, कभी नए संगठन बना, क्षेत्रीय सुरक्षा को चुनौती दे रहा है, जबकि बाकी दुनिया वैश्विक राजनीति में गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए सकारात्मक सम्बंध बनाने में व्यस्त रही है। चीन ने हिंद-प्रशांत में पहले से ही जो कर रहा है, उसका अनुसरण करते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में भी अपनी विस्तारवादी रणनीति शुरू कर दी है। चीन ने इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाने के लिए नया फोरम बना लिया है। चीन की विकास सहायता एजेंसी, चीन अंतर्राष्ट्रीय विकास सहयोग एजेंसी (उखऊउअ) ने 21 नवंबर, 2022 को कुनमिंग में अपने द्वारा बनाए गए पहले हिंद महासागर क्षेत्र फोरम की मेजबानी भी की। फोरम का उद्देश्य क्षेत्र में आर्थिक और बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देना बताया गया था, लेकिन जब उखऊउअ के अध्यक्ष लुओ झाओहुई ने अपने सम्बोधन में चीन के मैरीटाइम सिल्क रोड, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (इठख) और ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव (ॠऊख) का जिक्र किया, तो इस पहल को शुरू करने के पीछे चीनी इरादे स्पष्ट हो गए।
जाहिर है कि चीन हिंद महासागर क्षेत्र के रणनीतिक बिंदुओं पर अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है। इसने पहले ही पाकिस्तान के ग्वादर जैसे कुछ रणनीतिक बिंदुओं पर अपने अड्डे स्थापित कर लिए हैं, जो हिंद महासागर क्षेत्र में मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से तेल पारगमन को देखते हुए महत्वपूर्ण है। भारत की सुरक्षा और क्षेत्र की तटस्थता को चुनौती देने के लिए चीन ने पहले ही हिंद महासागर क्षेत्र के आसपास अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं पर अपने अड्डे स्थापित कर लिए हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी युद्धाभ्यास ने क्षेत्र की गतिशीलता को बदल दिया है। उदाहरण के लिए भारत और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में साझा चिंताओं और उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया है। अमेरिका भी अब भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपना क्षेत्रीय प्रतिनिधि मानता है। पर चीन की कुटिलता के चलते एक ओर रूस और चीन तथा दूसरी ओर चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के बीच द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समीकरण बदल गए हैं। भारत की शक्तिशाली जी-20 की सफल अध्यक्षता से चीन की साख को बड़ा धक्का लगा। भारत ने अफ्रीकी संघ को जी-20 में स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करके न केवल जी-20 को लोकतांत्रिक बनाया, बल्कि इसने ग्लोबल साउथ के लिए भी बात की और विकसित उत्तर और विकासशील दक्षिण के बीच एक पुल के रूप में काम करने की कोशिश की। इसने वैश्विक राजनीति में एक नया अध्याय खोला जहां राष्ट्रों ने सतत विकास को एक प्रमुख उद्देश्य के रूप में रखते हुए एक-दूसरे के साथ सहयोग करना शुरू कर दिया।
इससे बौखला कर चीन अब भारत की सीमाओं में घुसपैठ कर भारतीय सुरक्षा को चुनौती दे रहा है, वहीं क्षेत्रीय स्तर पर भी नए-नए चक्रव्यूह रच रहा है। चीन की भूमिका की वजह से ही मालदीव तथा भारत के सम्बंधों में खटास आ गई। पूर्वी एशिया को पश्चिम एशिया से जोड़ने वाले रणनीतिक समुद्री मार्गों के पार हिंद महासागर में मालदीव की रणनीतिक स्थिति इसे छोटे आकार के बावजूद पूरे क्षेत्र के लिए एक बहुत ही खास देश बनाती है। अब तक भारत और मालदीव के बीच अच्छे द्विपक्षीय सम्बंध थे और पिछली सरकार चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ रणनीति के जाल में नहीं फंसी थी, जिसका उपयोग करके उसने पहले ही चीनी मुख्य भूमि और सूडान के बंदरगाह के बीच स्थित विभिन्न देशों में रणनीतिक रूप से स्थित बंदरगाहों पर कब्जा कर लिया है। अभी तक भारत ने मालदीव में अपनी मजबूत उपस्थिति बनाए रखी थी, लेकिन मालदीव में गत दिनों में हुए चुनावों के बाद ऐसा लग रहा है कि भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय सम्बंधों के अलावा क्षेत्रीय अखंडता को भी भारी नुकसान पहुंच सकता है। चीन समर्थक उम्मीदवार मोहम्मद मुइज़्ज़ु, जो पहले माले के मेयर थे, की जीत ने हिंद महासागर क्षेत्र की भू-राजनीति को बदल दिया है। मुइज़्ज़ु ने न केवल अपना अभियान भारत विरोधी तर्ज पर चलाया, बल्कि मालदीव में तैनात सभी भारतीय सैनिकों को हटाने की भी घोषणा की। इससे क्षेत्र में शक्ति का वर्तमान संतुलन गड़बड़ाने लगा। उन पर लगे आरोपों के बाद फिर से चुनाव हुए, किंतु मुइज़्ज़ु की फिर से जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि मालदीव चीन का मोहरा बन कर ही काम करेगा।
आर्थिक गलियारा विकसित करने के नाम पर चीन द्वारा अफगानिस्तान (तालिबान) में पर्याप्त मात्रा में धन निवेश करने की खबरें भी बेहद चिंताजनक हैं। चीन अपनी बेल्ट और रोड पहल के एक हिस्से के रूप में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अफगानिस्तान में पैसा निवेश करने पर सहमत हो गया है। बेल्ट एंड रोड पहल, जिसे न्यू सिल्क रोड के नाम से भी जाना जाता है, 2013 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा भौतिक बुनियादी ढांचे के माध्यम से पूर्वी एशिया और यूरोप को जोड़ने के लिए शुरू की गई थी। अब इसका विस्तार अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक भी हो गया है, जिससे चीन का रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ गया है। चीन दुनिया में अपना एकाधिकार जमाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है। तथाकथित आर्थिक गलियारा विकसित करने के नाम पर वह पहले ही पाकिस्तान में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानों पर कब्जा कर चुका है और अब उसकी नजर अफगानिस्तान पर है। तालिबान को भी चीन की तरह एक निवेशक और सहयोगी की जरूरत है। यह शेष विश्व के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय होगा, क्योंकि यह मिश्रण निश्चित रूप से वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए चुनौतियां पैदा करेगा।
भारत अपनी ओर से इस चुनौती से निपटने के लिए अपने स्तर पर प्रयास करने के साथ-साथ बहुपक्षीय स्तर पर भी प्रयासरत है। चीन की विस्तारवादी नीति से निपटने के लिए भारत ने अपने स्तर पर अपनी सेना तथा इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर विशेष ध्यान दिया है। बहुपक्षीय स्तर पर भी भारत अमेरिका तथा अन्य देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
इस मोड़ पर जब हम अत्यधिक उन्नत प्रौद्योगिकी के युग में रह रहे हैं, लेकिन आपदाओं तथा युद्ध की वजह से हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया है। चीन को यह समझने की जरूरत है कि विस्तारवाद, युद्ध या संघर्ष हमें कहीं नहीं ले जा सकते। भारत न केवल राष्ट्रों के बीच दूरियों को पाटने के लिए ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश फैला रहा है, बल्कि वह राष्ट्रों से सहयोग का आह्वान भी कर रहा है क्योंकि वह जानता है कि यही सुनहरे भविष्य की कुंजी है। इसे समझना और सहयोग करना चीन पर निर्भर है।
डॉ . अंशु जोशी