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एआई कभी फूल कभी कांटा

एआई कभी फूल कभी कांटा

by अभिषेक कुमार सिंह
in जून २०२४, ट्रेंडींग, तकनीक, देश-विदेश, मीडिया, विज्ञान, विशेष, सामाजिक
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एआई के अत्याधुनिक आविष्कार ने दुनिया को एक नए मोड़ पर खड़ा कर दिया है। सभी विकसित व विकासशील देश एआई की रेस में शामिल हो गए हैं। यह तो तय है कि जो देश एआई के क्षेत्र में बाजी मारेगा, वही दुनिया में ‘गेमचेंजर’ की भूमिका अदा करेगा।

21वीं सदी में मशीनों से एक नया संकट पैदा हो गया है। ये मशीनें फिलहाल हमारे निर्देशों को समझकर खुद ही कई काम कर रही हैं पर चुनौती यह है कि कहीं ये इंसानों से आगे न निकल जाएं। चौकिए मत! समस्या इनमें भरी जाने वाली कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की है जो अभी तो हमारी सहायता कर रही है पर वैज्ञानिकों से लेकर समाजशास्त्रियों और अनेक बुद्धिजीवियों की चेतावनी है कि एआई से लैस मशीनें हमारे सहायक के रूप में तभी तक काम करेंगी, जबतक कि ये इस तकनीक का इस्तेमाल खुद की सहायता करने में नहीं कर पा रही हैं। जिस दिन मशीनों ने एआई की सहायता से अपना संसार बनाना शुरू कर दिया, तो डर इस बात का है कि ये समझदार मशीनें इंसानों को दुनिया से बेदखल भी कर सकती हैं।

सकारात्मक और नकारात्मक भी है एआई

आप किसी शॉपिंग वेबसाइट पर जाते हैं और वहां कोई सामान खोजते हैं, तो एआई आपकी खोजबीन को दर्ज कर लेता है और जब भी कोई अन्य वेबसाइट खोलते हैं तो उन सारे सामानों से जुड़े विज्ञापन आपको दिखाने लगता है। इसी तरह यदि सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म (फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि) पर जाकर अपनी पहचान से जुड़े डिटेल्स भरते हैं, तो एआई उन विवरणों को कहां-कहां पहुंचा सकते हैं इसकी मिसाल वर्ष 2018 की शुरुआत में फेसबुक से जुड़े एक विवाद में मिली थी, जिसके अंतर्गत फेसबुक यूजर्स के डिटेल्स ब्रिटेन की कंपनी कैंब्रिज एनालिटिका के पास पहुंच गए थे, जिनका इस्तेमाल चुनावी लाभ के लिए किया गया था।

एआई की सहायता से कई सकारात्मक काम भी हो रहे हैं। होटलों में मेजबानी करते रोबोट, गूगल से जगहों की जानकारी जुटाने का काम, ऑटोमैटिक कारों-बसों और मेट्रो रेल का संचालन, नई दवाओं का आविष्कार, विमानों की आवाजाही के सुचारू संचालन, स्पेस मिशनों से लेकर खनन उद्योग तक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सहायता ली जा रही है।

यही बहस एआई के आगमन के साथ तब उठी, जब नवम्बर 2022 में चैटजीपीटी जैसे प्रबंध ने पूरी दुनिया में तूफान ही उठा दिया। चैटजीपीटी के अलावा मिडजर्नी, डाल-ई जैसे अनेक तरह की सृजनात्मक सामग्री (कंटेंट) या लेख, कला या टीवी एंकर्स के रूप में ऐसी डिजिटल रचनाएं हमारे सामने उपस्थित कर दी गई हैं कि यह पता लगाना मुश्किल हो गया है कि इन सारे कार्यों का रचयिता इंसान है या मशीन।

इधर भारत में 18वीं लोकसभा चुनावों के दौरान भी कई नेताओं के एआई और डीपफेक से निर्मित वीडियो के कारण यह आशंका भी फैल गई कि इससे चुनाव को प्रभावित किया जा सकता है।

वैश्विक रैंकिंग में कौन-कहां

पूरी दुनिया में एआई को लेकर जो दिलचस्पी है, उसने कई बड़ी कंपनियों और देशों की सरकारों को इसमें निवेश के लिए प्रोत्साहित किया है। इसी साल (2024) की शुरुआत में ओपन एआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन इस क्षेत्र में 5 से 7 ट्रिलियन (खरब) डॉलर के निवेश की बात कही है। प्रस्तावित निवेश की यह रकम अमेरिका के संघीय बजट के करीब एक चौथाई के बराबर है। कुछ ही समय पहले कनाडा और भारत की संयुक्त एनालिटिक्स फर्म प्रेसीडेंस रिसर्च ने गणना की है कि साल 2030 तक एआई की मशीनों के लिए सेमीकंडक्टर यानी चिप बनाने का उद्योग करीब 135 बिलियन (अरब) डॉलर का हो सकता है। ध्यान में रखने वाली बात है कि अभी चैटजीपीटी केवल ‘टेक्स्ट’ (अक्षरों पर आधारित) है लेकिन यदि इसमें चित्र, वीडियो, ऑडियो और इस तरह की अन्य चीजें जुड़ेंगी और सभी मोर्चों पर एआई इंसानों से आगे निकल जाता है, तो इसमें खरबों डॉलर का खर्च आ सकता है। दुनिया के कुछ देश पहले से ही चिप उद्योग में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं, जिनमें अमेरिका के अलावा चीन, जापान, कई यूरोपीय देश और भारत भी शामिल है। एआई और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में फिलहाल चीन सबसे आगे है। वहां की सरकार अपने देश को एआई में आगे ले जाने के लिए 250 अरब डॉलर की सब्सिडी भी दे रही है। हालांकि सेमीकंडक्टर के निर्माण में चीन इस क्षेत्र में काफी बढ़त बनाए हुए ताईवान से करीब आधा दशक पीछे हैं। उधर, जिस तरह से अमेरिका इस मामले में तेजी दिखा रहा है, हो सकता है कि अगले दशक में एआई का परिदृश्य काफी कुछ बदल जाए।

हालांकि एआई का प्रयोग बढ़ने से कामकाज में तेजी और विविधता भी आ सकती है। दूर बैठे चिकित्सा सलाह मिलने, ऑनलाइन ट्रेनिंग देने से लेकर कई किस्म के कामकाज चुटकियों में हल हो सकते हैं। यदि एआई का सजगता से उपयोग किया जाए, तो अंततः यह तकनीक भी इंटरनेट और कम्प्यूटर की तरह लाभप्रद और समृद्धि की सर्जक सिद्ध होगी।

यहां प्रश्न है कि हमारे नौजवान खुद को एआई से सम्बंधित तकनीकों के लिए कैसे तैयार करें, ताकि वे किसी भी रोजगार के लिए उपयोगी साबित हों और बेहतर नौकरियां प्राप्त करें।

यह तैयारी कैसे हो, इसके तीन तरह के विकल्प हो सकते हैं। इनमें पहला है इंटरनेट पर उपलब्ध एआई के मुफ्त शॉर्ट टर्म कोर्स। जैसे गूगल पर एक कोर्स Large Language Models नाम से उपलब्ध है। इस पाठ्यक्रम में यह सिखाया जाता है कि चैटजीपीटी जैसे टूल पर किस तरह सामग्री (कंटेंट) और तस्वीरें बनाई जाती हैं। इससे किसी भी उपयोगी विषय पर लेख लिखने, अनुवाद करने, बड़े और लम्बे प्रोजेक्ट या असाइनमेंट तैयार करने में सहायता मिलती है। गूगल पर ही Image Generator नामक कोर्स एआई के जरिए फोटो सृजित करने, खराब गुणवत्ता वाली फोटो को अच्छी क्वॉलिटी में बदलने, चेहरों की डिजाइनिंग करने, स्केच, इमेज और कार्टून बनाने की ट्रेनिंग लेने में सहायता करता है। गूगल के ये कोर्स इसकी आधिकारिक वेबसाइट Cloudskillsboost.google पर उपलब्ध हैं। गूगल की तरह अमेजन भी मुफ्त में एआई लर्निंग कोर्स की सुविधा देती है। इसके कार्यक्रम अमेजन वेब सर्विसेज (-WS) पर जेनरेटिव एआई से सम्बंधित छात्रवृत्ति भी दी जा रही है, जिसे इससे सम्बंधित आधिकारिक वेबसाइट explore.skillbuilder.aws पर जाकर प्राप्त किया जा सकता है। इनके अलावा माइक्रोसॉफ्ट ने माइक्रो ब्लॉगिंग मंच लिंक्डइन के साथ मिलकर जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस नामक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम की शुरुआत की है, जो मुफ्त है। इस कोर्स में एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, जिसका उपयोग नौकरी पाने में हो सकता है। इसकी आधिकारिक वेबसाइट Learn.microsoft.come से अन्य जानकारियां मिल सकती हैं।

ये सभी कम अवधि के कोर्स हैं, जिनकी सहायता से युवा एआई से सम्बंधित अपनी कामकाजी दक्षता (स्किल) बढ़ा सकते हैं पर इनके अतिरिक्त युवा चाहें तो अच्छे शिक्षण संस्थान (जैसे कि सीडैक, आईआईटी आदि) से एआई में पीजी डिप्लोमा से लेकर ग्रैजुएशन और मास्टर्स डिग्री भी कर सकते हैं। आजकल बीबीए और एमबीए आदि पाठ्यक्रमों में भी एआई से सम्बंधित पाठ्यक्रम पढ़ाए जाने लगे हैं। युवा अपनी डिग्री में उन पाठ्यक्रमों को जोड़कर खुद को एआई से सम्बंधित चुनौतियों के लिए तैयार कर सकते हैं। यही नहीं, यदि युवा पहले से किसी नौकरी में हैं, तो भी वे एआई के कम अवधि वाले कोर्स करके अपनी योग्यता बढ़ा सकते हैं। ऐसे कई कोर्स राज्य और केंद्र सरकार के अलावा गूगल, आईबीएम और रॉयटर्स जैसी कंपनियां भी कराती हैं। इनमें से कुछ मुफ्त होते हैं, लेकिन सर्टिफिकेट प्राप्त करने के लिए पांच सौ से 15 हजार रुपए तक की फीस चुकानी पड़ सकती है।

भारत में एआई की तैयारी

हमारे देश में सरकार के स्तर पर भी एआई के सार्थक उपयोग के प्रयास 7-8 साल पहले ही शुरू हो चुके हैं। भारत का वाणिज्य मंत्रालय इस सम्बंध में वर्ष 2017 में एक टास्क फोर्स गठित कर चुका है। यह टास्क फोर्स सरकार को सलाह दे रही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भारतीय अर्थव्यवस्था में समावेश कैसे किया जाए। इस मामले में सरकारी प्रयासों को देखें, तो कह सकते हैं कि सरकारों को बदलती तकनीक के साथ तालमेल बिठाने और नए उभरते क्षेत्रों में युवाओं को योग्य बनाने सम्बंधी कई योजनाओं को लागू करने के लिए प्रेरित किया है।

वर्ष 2019 में अंतरिम बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा था कि सरकार जल्दी ही नेशनल सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस खोलेगी और देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पोर्टल लॉन्च किया जाएगा। एआई और इससे जुड़ी तकनीक का लाभ लोगों को दिलाने के लिए नेशनल सेंटर को धुरी (हब) बनाकर कुल नौ क्षेत्रों के चुनाव का दावा भी तब किया गया था। वित्त वर्ष 2023-24 के लिए पेश बजट में वित्त मंत्री ने ऐलान किया था कि देश में सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लिए तीन बड़े रिसर्च सेंटर बनाए जाएंगे। देश के शीर्ष शैक्षणिक संस्थानों में बनने वाले ये सेंटर कृषि, स्वास्थ्य, टिकाऊ विकास और शहरों को स्मार्ट बनाने के मुद्दे पर काम करेंगे। इन केंद्रों में मुख्यतः आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सम्बंधी शोध को बढ़ावा दिए जाने की योजना है। साथ ही स्किल डेवलपमेंट की स्कीम- प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना 4.0 के अंतर्गत युवाओं को कोडिंग, मैक्ट्रॉनिक्स, आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) थ्रीडी प्रिंटिंग और ड्रोन आदि तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। यहां जरूरी है कि युवा आगे बढ़कर एआई से सम्बंधित कौशल सीखने में हाथ आजमाएं और खुद को नई चुनौतियों के हिसाब से तैयार करें।

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