चुनाव में भाजपा और एनडीए गठबंधन को पिछले चुनाव की तुलना में सीटें तो कुछ कम हुईं, लेकिन पिछले 62 वर्षों में लगातार तीसरी बार बहुमत प्राप्त करने का कीर्तिमान एनडीए गठबंधन और नरेंद्र मोदी के नाम हो गया है। नरेंद्र मोदी की गणना ऐसे राजनेताओं में भी है जो अपने जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा गठबंधन तीसरी बार सरकार बनाने जा रहा है। इस गठबंधन ने कुल 291 सीटें जीतीं, इसमें भाजपा ने 240 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी इंडी गठबंधन को कुल 234 सीटों पर जीत मिली, इसमें काँग्रेस ने 99 सीटें जीतीं। 18 सीटें अन्य के खाते में गई हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी तीसरी पारी के लिए भ्रष्टाचार मुक्त भारत का संकेत दिया।
भारत की अठारहवीं लोकसभा का स्वरूप सामने आ गया है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिला और लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। मोदीजी के नेतृत्व में इस गठबंधन ने पहला लोकसभा चुनाव वर्ष 2014 में लड़ा था और पूर्ण बहुमत लेकर सरकार बनाई थी। दूसरी सफलता 2019 में मिली थी और अब यह तीसरी जीत है। इस गठबंधन को वर्ष 2019 की तुलना में भाजपा को प्राप्त मत प्रतिशत में तो वृद्धि हुई है, लेकिन सीटों की संख्या घटी है। भाजपा को वर्ष 2019 में 37 प्रतिशत वोटों के साथ कुल 303 लोकसभा सीटें और गठबंधन को 353 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार एनडीए गठबंधन को 291 सीटें ही मिल सकीं और भाजपा को 240। इस प्रकार गठबंधन को पिछली बार की तुलना में 62 सीटों का नुकसान है। वर्ष 2019 की तुलना में भाजपा को 37 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि इस बार 38 प्रतिशत वोट मिले हैं।
इस चुनाव में भाजपा और एनडीए गठबंधन को पिछले चुनाव की तुलना में सीटें तो कुछ कम हुईं, लेकिन पिछले 62 वर्षों में लगातार तीसरी बार बहुमत प्राप्त करने का कीर्तिमान एनडीए गठबंधन और नरेंद्र मोदी के नाम हो गया है। नरेंद्र मोदी की गणना ऐसे राजनेताओं में भी है जो अपने जीवन में कभी कोई चुनाव नहीं हारे।
मोदीजी के नाम और काम को सफलता
एनडीए ने यह चुनाव प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करके ही लड़ा था। मोदीजी के नाम, उनके काम पर और उनकी साख पर देश के 46.2 प्रतिशत मतदाताओं ने एनडीए पर अपना विश्वास जताया है। भाजपा और एनडीए गठबंधन ने नारा दिया था “मोदी की गारंटी”। मोदीजी ने पूरे चुनाव अभियान में सर्वाधिक सक्रियता का कीर्तिमान भी बनाया। मोदीजी ने पूरे भारत में किसी भी पार्टी के किसी भी नेता से अधिक सभाएं और रैलियां करके आक्रामक प्रचार किया। चुनाव आयोग ने 16 मार्च को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी। मोदीजी उस दिन दक्षिण भारत में थे। उन्होंने वहीं से चुनाव प्रचार आरम्भ किया और ३० मई को पंजाब के होशियारपुर में अपने प्रचार अभियान का समापन किया। उन्होंने कुल 206 जनसभाएं और रोड शो किए। इस लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में इतनी सभाएं और रोडशो किसी भी पार्टी के किसी नेता ने नहीं किए। यह मोदी जी के चेहरे और उनके प्रचार अभियान का परिणाम ही है कि भाजपा और उसके दलों का प्रभाव क्षेत्र बढ़ा है। लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा और आंध्र प्रदेश विधान सभा के चुनाव भी हुए। 147 सदस्यीय उड़ीसा विधानसभा में भाजपा ने कुल 78 सीटे जीती हैं। यह सरकार बनाने के लिए आवश्यक 74 सीटों से 4 अधिक है। इस प्रकार भाजपा उड़ीसा में सरकार बनाने जा रही है। आंध्र प्रदेश में भाजपा ने चंद्रबाबू नायडू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। यहां इस गठबंधन को बहुमत मिला। भाजपा ने आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 3 और विधानसभा में 8 सीटे जीती हैं। इसके साथ केरल में भी भाजपा ने और एक सीट पर जीत दर्ज करके अपना प्रभाव बनाया। केरल में भाजपा को पहली बार सफलता मिली है। तमिलनाडु में भाजपा को कोई सीट तो नहीं मिली, लेकिन वोट प्रतिशत बढ़ा है। इस बार तेलंगाना में भाजपा ने 8 सीटे जीतीं, जबकि पिछली बार यह संख्या 4 थी।
भाजपा ने दिल्ली, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, हिमांचल प्रदेश, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश में क्लीन स्विप किया है। इन प्रांतों में सभी लोकसभा सीटें भाजपा ने जीतीं। वहीं गुजरात और छत्तीसगढ़ प्रांतों में कांग्रेस को केवल 1 सीट ही मिल सकी है, शेष सभी सीटें भाजपा ने जीतीं।
विपक्ष की सीटें बढ़ी
मत प्रतिशत बढ़ने और नई सरकार बनाने के लिए पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद भाजपा को जिन प्रांतों में नुकसान हुआ है, उनमें सर्वाधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ। जहां 4 केंद्रीय मंत्री चुनाव हार गए, इनमें अमेठी से स्मृति ईरानी भी शामिल हैं। इनके अतिरिक्त सुल्तानपुर से मेनका गांधी और अयोध्या में भाजपा उम्मीदवार की हार भी आश्चर्यचकित करने वाली है। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त राजस्थान, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी भाजपा को नुकसान हुआ। इस नुकसान के पीछे मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण और हिंदू मतों में जातिगत विभाजन माना जा रहा है। विपक्षी गठबंधन में सबसे अधिक लाभ समाजवादी पार्टी को हुआ, वर्ष 2019 में समाजवादी पार्टी को केवल पांच सीटें मिलीं थीं, जबकि इस बार सपा ने 37 सीटें जीतकर उत्तर प्रदेश में भाजपा को भी पीछे कर दिया है। विपक्षी गठबंधन में दूसरा बड़ा लाभ कांग्रेस को हुआ। यद्यपि कांग्रेस को 99 सीटे ही मिलीं हैं और वह 100 का आंकड़ा पार नहीं कर पाई, पर वर्ष 2019 की तुलना में दुगनी सीटों पर पहुंच गई है। विपक्षी गठबंधन में तीसरा बड़ा लाभ पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को हुआ। विपक्ष इंडी गठबंधन को अपेक्षाकृत अधिक सफलता का श्रेय उनकी रणनीति को है। उनका मुख्य उद्देश्य मोदी को हराना था। इसके लिए विपक्ष ने तीन प्रकार की रणनीति से काम लिया। विपक्ष गठबंधन तो बनाया था, पर जहां आवश्यक हुआ वहां वे एक दूसरे के विरुद्ध भी बोले और जहां आवश्यक हुआ वहां एक साथ खड़े भी हो गए। इससे विपक्षी वोट का विभाजन रुका। इसके साथ विपक्ष ने अपने प्रचार अभियान में दो बातों पर जोर दिया। एक तो आरक्षण के बहाने जातिगत मुद्दा उछाला और दूसरा नरेंद्र मोदी पर जोरदार हमला बोला। राम मंदिर मुद्दे पर देश में भावनात्मक एकत्व का भाव देखा गया। भाजपा अपनी स्थापना से राम मंदिर पर खुलकर बात करती रही है। यह माना जाता है कि राम मंदिर निर्माण से भारत में आई भावनात्मक जाग्रति का लाभ भाजपा को मिलेगा। इस एकत्व भाव को मजबूत करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” नारा दिया। उन्होंने जातिगत विषयों से ऊपर उठकर समरस समाज रचना पर जोर दिया और कहा था कि वर्ग केवल चार होना चाहिए गरीब, युवा, महिला और किसान। मोदीजी का मानना था कि इस वर्गीकरण के आधार पर विकास योजनाएं बननी चाहिए। विपक्ष ने इस सामाजिक एकत्व में सेंध लगाने के लिए ही जातिगत और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे का जमकर प्रचार किया। परिणामों में इसकी झलक भी है। इन परिणामों में यह संकेत भी मिल रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं ने बहुत चुप रहकर पूरी ताकत से मतदान किया। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिम बंगाल में भाजपा को मिली हार वाले अधिकांश क्षेत्र मुस्लिम बाहुल्य एवं मजबूत जातिगत समीकरण वाले रहे हैं।
एनडीए गठबंधन ने जितनी ताकत से मोदीजी के चेहरे को आगे किया, विपक्ष ने उसी शैली में मोदीजी पर हमले किए। मोदीजी के भाषणों में उठाए गए बिंदुओं को नकारात्मक बताया और व्यक्तिगत हमले भी किए। विपक्ष के इंडी गठबंधन में आतंरिक मतभेद के बावजूद मोदी विरोध के लिए सबका स्वर एक था। मोदी के विरुद्ध कही गई किसी भी बात पर सब मिलकर हमला बोलते थे।
तीसरी पारी के लिए नरेंद्र मोदी का संकेत
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अपने दोनों कार्यकाल में संकल्पशील निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। उनके निर्णयों में आत्मनिर्भर भारत निर्माण का लक्ष्य होता है। इसके लिए व्यक्ति का अपनी परंपराओं से जुड़ना और संस्कृति पर गर्व करना आवश्यक है। मोदीजी के दोनों कार्यकाल में लिए गए निर्णयों का यही आधार है। एक समृद्ध और आत्म निर्भर भारत के लिए शुचिता आवश्यक है। इसके लिए कदाचार मुक्त समाज जीवन और प्रशासन होना चाहिए। लोकसभा के परिणाम आने के तुरंत बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भविष्य की योजनाओं का संकेत भी दिया और कहा कि भारत को गरीबी से मुक्त बनाया जाएगा। इसके लिए हर वर्ग के विकास के लिए योजनाएं बनाई जाएगी। नरेंद्र मोदी ने यह भी स्पष्ट संकेत दिया कि प्रशासन को कदाचार मुक्त किया जाएगा। उनके संकल्प पर सभी एनडीए घटक दलों ने भी सहमति दी। यह भी माना जा रहा है कि मोदी जी के इस संकल्प में तीसरी शक्ति के रूप में जो अन्य 18 सांसद चुनाव जीते हैं, उनमें से कुछ इस अभियान को सफल बनाने सहयोग कर सकते हैं।
मतदान का कीर्तिमान
अठारहवीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव प्रकिया का भी कीर्तिमान बना। 16 मार्च को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हुई थी और 4 जून को परिणाम आए। इस प्रकार कुल यह चुनाव अभियान कुल 80 दिन चला। यह भी अपने आप में एक रिकार्ड है। कुल 7 चरणों में मतदान हुआ। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को और अंतिम सातवें चरण का मतदान 1 जून को हुआ। इससे पहले 7 चरणों में लोकसभा चुनाव कभी नहीं हुए।
इस चुनाव में छोटे बड़े कुल 51 राजनैतिक दल मैदान में आए और 543 लोकसभा सीटों के लिए कुल 8360 उम्मीदवारों ने अपना भाग्य आजमाया। 4 जून को प्रातः 8 बजे वोटों की गिनती शुरू हुई। सबसे पहले पोस्टल बैलेट गिने गए, उसके बाद ईवीएम के वोटों की गिनती आरम्भ हुई।
इस बार विभिन्न स्थानों में पूरी चुनाव प्रक्रिया में कुल 39 स्थानों में पुनर्मतदान की स्थिति बनी। यह भी अब तक चुनावी इतिहास में सबसे कम हैं। पिछली बार वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में ही 540 स्थानों में पुनर्मतदान की स्थिति बनी थी। इस चुनाव में 96.88 करोड़ मतदाता थे, इनमें से कुल 64.3 करोड़ मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इनमें 33.1 करोड़ पुरुषों ने और 31.2 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। यह कुल मतदाताओं का 66.3 प्रतिशत है, यह भी अपने आप में एक कीर्तिमान है।