भारत को महाशक्ति बनना है तो आने वाले 20 से 30 वर्षों तक एक निश्चित नीति के अतंर्गत काम करना होगा। सरकारी नेतृत्व और राजनीतिक इच्छाशक्ति की इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। शिक्षा नीति आमूल बदलनी होगी; ताकि राष्ट्र व राष्ट्रप्रेम से नई पीढ़ी ओतप्रोत रहे।
भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुुए 15 अगस्त 2018 को इकहत्तर साल पूरे हो जाएंगे। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं समस्त भारतवासियों के प्रेरणास्रोत डॉ. अब्दुल कलाम का स्वप्न था ‘भारत को महाशक्ति बनते हुए देखना।’ उन्हें अपने देश के उज्ज्वल भविष्य के प्रति नितांत आस्था थी। वस्तुस्थिति देखते हुए यदि आज हम कहें कि डॉ. अब्दुल कलाम का स्वप्न अवास्तविक था तो ऐसा बिलकुल नहीं है। आज की परिस्थिति का यदि हम छिद्रान्वेषण करें तो लगता है कि भारत वास्तव में भविष्य में महाशक्ति बन सकता है।
महाशक्ति एवं उद्यमिता
कोई भी देश महाशक्ति तब बनता है, जब उस देश का सर्वांगीण विकास होता है। किसी भी देश का सर्वांगीण विकास कब होता है, जब उस देश के राज्य प्रगति करते हैं। राज्य प्रगति तभी करते हैं जब उस राज्य के निवासी प्रगति करते हैं। समाज प्रगतिशील तभी कहलाता है जब उस समाज में कार्यरत उद्योग या व्यवसाय समृद्ध होते हैं। समाज के लोग भी प्रगतिशील जीवन जीने के लिए अग्रसर हों, इसलिए किसी भी देश के विकास का पैमाना, उस देेश में कार्यरत उद्योग कितने सक्षम हैं, इस पर निर्भर होता है। उद्योग सक्षम होने के लिए देश में अधिकाधिक सक्षम उद्योगपति होने चाहिए। किसी भी क्षेत्र का उद्योगपति हो, यदि उसने अपना उद्योग सफलतापूर्वक चलाया तो उसके सकारात्मक देशव्यापी परिणाम होते हैं।
एक सफल उद्योग, अपने ग्राहकों को उपयुक्त उत्पादन एवं सेवाएं उपलब्ध करता है। साथ ही बडे पैमाने पर रोजगार उपलब्ध कराता है। अपने उद्योग के लिए आवश्यक कच्चे माल या अन्य छोटी मशीनें या कलपुर्जों को बनाने वाले अन्य लघु उद्योंगों के विकास में सहायक होता है। जिस उद्योग में वह कार्यरत होता है, उसे पूरी क्षमता के साथ चलाता है। उद्योग-व्यवसाय से प्राप्त रकम से सरकार को कर चुकता है। व्यवसाय की सहायता से स्थापित उपक्रमों के माध्यम से सामाजिक कठिनाइयों पर मात करने में सहायक होता है। सफल व्यवसाय के कारण देश की आर्थिक स्थिति की गति सुचारू रूप से कार्यरत होती है। विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। एक सफल उद्योग देश की प्रगति में बहुत योगदान देता है। यदि देश में आधिकाधिक सक्षम उद्योगपति कार्यरत होंगे एवं देश के विकास में भागीदार बनने को वचनबद्ध होंगे तो निश्चित ही उस देश को प्रगति करने से कोई भी नहीं रोक सकता।
भारत और भविष्य
हम भारतीय हैं, इसका हमें गर्व होना चाहिए। आनेवाला समय भारत के लिए स्वर्णयुग है। भविष्य में हमारा देश तीव्रतम गति से प्रगति करेगा। अपनी मजबूत उपस्थिति विश्व में दर्ज कराने हेतु भारत तैयार है। प्रगति की इस लहर पर सवार होने में हमें कामयाब होना है। भारत के उज्ज्वल भविष्य की परिस्थिति कैसी होगी इसका आकलन करें।
जनसंख्या
विश्व की जनसंख्या छह अरब है। इसमें हमारा हिस्सा 1.3 अरब का है। अर्थात आज विश्व का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है। हमारी यह विशाल जनसंख्या हमारी ताकत है। देश के क्षेत्रफल के हिसाब से यह जनसंख्या अत्याधिक होने के कारण भूतकाल में हमारी निंदा की जाती थी परंतु आज यह प्रचंड़ जनसंख्या विश्व के अन्य देशों के लिए एक बड़ा बाजार बन गई है। इसलिए प्रत्येक देश एवं वहां के उद्योग इस बाजार की ओर उत्सुकता से देख रहे हैं। प्रत्येक देश भारत के साथ अच्छे संबंध रखने का इच्छुक है।
युवा शक्ति
विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में सबसे ज्यादा युवा हैं। इसके कारण अन्य देशों की तुलना में भारतीय नागरिकों की औसत उम्र कम है। भारतीयों की औसत उम्र 29 साल है। इसकी तुलना में चीन में 37, अमेरिका में 39 एवं ब्रिटेन में 40 है। इसका अर्थ हुआ कि भारत में युवा शक्ति की ताकत असीम है। आज की तरुणाई कल का निर्माण करने वाली है। युवा शक्ति में ऊर्जा है, तरह-तरह की कल्पनाएं हैं, अपना भविष्य बनाने के उनके अपने सपने हैं। उनकी कई संभावनाएं हैं। यदि आज की युवा शक्ति ने तय किया तो वे अपना एवं भारत का उज्ज्वल भविष्य निश्चित ही साकार कर सकते हैं।
विकास की लहर
भारत विकासशील देश है। अन्य सबल देशों की तुलना में भारत विकास में अभी भी पिछड़ा है। विकास के कई काम शेष हैं। कुछ चुनिंदा शहर छोड़ दें तो अब भी ग्रामीण भारत में बिजली, पक्के रास्ते एवं पानी ये मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। भारत की 70% जनता आज भी ग्रामीण इलाके में रहती है। आज भारत के प्रत्येक क्षेत्र में विकास की संभावनाएं बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी, मूलभूत सुविधाएं, रियल इस्टेट, शिक्षा, स्वास्थ्य, दैनंदिन आवश्यकता की वस्तुएं, बैंक, टेक्सटाइल, आवागमन के साधन, कम्यूनिकेशन इ. क्षेत्रोें में बड़े पैमाने पर भविष्य में प्रगति होना है। इन सब विकास के कामों में सरकार का योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहेगा। वर्तमान सरकार का प्रमुख एजेंडा भी विकास ही है। सरकार बहुत आक्रामक तरीके से इस क्षेत्र में काम भी कर रही हैं। परंतु अभी भी कई कदम उठाने की आवश्यकता है। विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र में सभी की अपेक्षाओं को पूर्ण करते हुए विकास की गति को कायम रखना दुष्कर कार्य है, फिर भी द्रष्टा और कर्तृत्ववान नेतृत्व के कारण यह संभव हो सकता है।
भव्य बाजार
भारत आज विश्व का बड़ा बाजार बन चुका है। उपरोक्त मुद्दों के कारण (जनसंख्या, युवा, विकास की तरह) भारत को वैश्विक उद्योग जगत एक बड़ी व्यावसायिक संभावना के रूप में देख रहा है। विश्व के प्रत्येक क्षेत्र की शक्तिशाली कम्पनियां भारत के लिए विशेष रणनीति बना रहा है। अभी अभी वॉलमार्ट एवं भारतीय कंपनी फ्लिपकार्ट के बीच हुआ समझौता हम सब को ज्ञात ही है। ऐसे ही अनेक समझौते भविष्य में भी होने की संभावना है। विश्व के व्यवसाय एवं व्यवसायी भारत की ओर दो कोणों से देख रहे हैं। पहला याने भारत में उपलब्ध ग्राहकों की संख्या और दूसरा भविष्य में भारत का होने वाला बड़ा विकास। 1.31 अरब की जनसंख्या वाला देश उतनी बड़ी संख्या के ग्राहक वर्ग का भी देश है। प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताएं, इच्छाएं और स्वप्न व्यावसायिकों के लिए बड़ी संभावना है। इसके कारण विश्व के नामी व्यवसाय भारत की ओर से आंख नहीं फेर सकते हैंं।
भारत में विकास कार्य तेज गति से हो रहे हैं। पश्चिम के देश साधारणत: विकसित हो चुके हैं। अत: वहां संभावनाओं का अभाव है। अपने देश में विकास के कामों की संभावना की खोज करने वाले व्यावसायिकों को काम मिल रहा है। इसके कारण भारतीय नागरिक तथा छोेटे उद्यमियों को रोजगार एवं अन्य कामों के रूप में अवसर प्राप्त होगा। भारतीय युवाओं को इस ओर सकारात्मक दृष्टि से देखने चाहिए।
उपरोक्त सभी मुद्दों का यदि एकत्रित विचार किया जाए तो भविष्य में भारत विश्व अर्थव्यवस्था का केंद्रबिंदु बनेगा इसमें कोई संशय नहीं है। वस्तुस्थिति अपने पक्ष में है यह तो एक बिंदु हुआ। परंतु केवल इसीसे काम चलने वाला नहीं है। हमें इस वस्तुस्थिति का अपने लिए उपयोग कर योग्य निर्णय लेकर आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। भूतकाल में हम देखें तो यह ध्यान में आता हैं कि उस समय भी हमारे लिए अनुकुल परिस्थितियां होने के बावजूद हम उनका लाभ नहीं उठा पाए। देश पराधीन हो गया और हमारे देश की जैसी प्रगति होना चाहिए थी वैसी नहीं हुई।
भूतकाल एवं भारत
भारत एक अत्यंत समृद्ध देश माना जाता था। सन 1760 में भारत का जीडीपी विश्व में सर्वाधिक था। इस दौरान ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापारी के रूप में भारत में प्रवेश किया। उद्योगों हेतु बड़े पैमाने पर कच्चा माल भारत में उपलब्ध था। इसी कच्चे माल को भारत से ले जाकर पक्का माल बनाना और फिर हमें ही उसे बेचने का काम ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रारंभ किया। यह करते हुए भारत में केवल व्यापार करना ही उनका उद्देश्य नहीं था, वरन भारत को कैसे गुलाम बनाया जाए यह छुपा विचार भी था। (इसके लिए दूरगामी नीति बनाने हेतु उन्होनें कुछ विशेषज्ञोेंं को भारत की परिस्थिति का अध्ययन करने हेतु भेजा। उसमें एक था लॉर्ड मेकाले। सन 1835 में लॉर्ड मेकाले ने ब्रिटिश संसद में भारत के विषय में उसके आकलन का लेखाजोखा प्रस्तुत किया। उसका सार निम्मानुसार है –
’‘मैंने संपूर्ण भारत भर प्रवास किया। मुझे वहां एक भी भिखारी या चोर नजर नहीं आया। इतनी बड़ी संपदा इस देश में है। इस देश के लोग अपनी परांपराओं का जतन करने वाले एवं प्रतिभाशाली हैं। इसके कारण हम इस देश को कभी गुलाम बना पाएंगे ऐसा मुझे नहीं लगता। परंतु यदि हम इस देश की रीढ़ ‘संस्कृति एवं आध्यात्मिकता’ पर चोट पहुंचाए एवं भारत की परम्परागत शिक्षा पद्धति को समूल नष्ट कर वहां के निवासियों को पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति की ओर आकृष्ट कर सकें तो उनका आत्मसम्मान नष्ट होगा। उनकी प्रवृत्ति गुलाम बनने की होगी। तभी हम भारत पर अपना वर्चस्व स्थापित कर पाएंगे।”
ब्रिटिश शासकों को भारत के संबंध में उनकी रणनीति तय करने में उपरोक्त परिच्छेद में वर्णित बातें दिशादर्शक बनीं। भारत की पारंपारिक शिक्षा व्यवस्था का समूल उच्चाटन तो उन्होंने किया ही; साथ ही पश्चिमी संस्कृति के प्रति भारतीयों के मन में आकर्षण भी निर्माण किया। नई शिक्षा पद्धति प्रचलित की। अंगे्रजों को शिक्षा के माध्यम से नेतृत्व तैयार नहीं करना था वरन् वे तो अनुयायी, गुलाम तैयार करना चाहते थे; ताकि वे हमेशा भारत पर शासन कर सकेें। सन 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। परंतु अंग्रेजों द्वारा बनाई गई शिक्षा नीति वही रही। आज भी उसी शिक्षा नीति हम अवलंबन कर रहे हैं। यह हमारा दुर्भाग्य है। एक तरफ तो महाशक्ति बनने के लिए हम हमारी युवा पीढ़ी पर अवलंबित है, तो दूसरी ओर इसी पीढ़ी को आवश्यक शिक्षा पद्धति से शिक्षा देने में हम असमर्थ हैं। जब तक युवा पीढ़ी की नींव भारत को ध्यान में रखते हुए बनाई गई शिक्षा पद्धति से नहीं रखी जाती तब तक महाशक्ति बनने की हमारी इच्छा हम पूरी नहीं कर सकते हैं।
शिक्षा एवं उद्योगिता
किसी भी देश को महासत्ता बनने में उस देश के नेतृत्त्व की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह यदि सत्य भी है तो भी उस देश के उद्योगपति जितने सक्षम होंगे उतना ही देश अधिक गति से प्रगति करता है। भूतकाल में भी हम देखें तो ध्यान में आता है कि महाशक्ति बनने के लिए देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत होनी चाहिए। वही देश आर्थिक दृष्टि से बलशाली होता है जिसके उद्योग विश्वभर में फैले हों, प्रगति कर रहे हों एवं अर्थव्यवस्था पर अपना प्रभाव डाल रहे हों। इसीलिए देश के नेतृत्त्व के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने देश में उद्यमशीलता तथा नावीण्यपूर्ण नवनिर्मिति के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण करेें। इस दृष्टि से हमारा देश अभी भी बहुत पीछे है। उद्योग जगत से संबधित एवं स्टार्ट-अप के लिए अभी भी मूलभूत स्तर पर जितना काम होना चाहिए उतना नहीं हुआ है। इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं है कि बिलकुल काम नहीं हुआ परंतु जितने प्रमाण में वह होना था वह नहीं हुआ। आज भी 70% से ज्यादा शिक्षा संस्थाओं में कौशल्य प्रधान शिक्षा नहीं दी जा रही है। विद्यार्थियों को उनके चारित्र एवं विचारों को देशहित में प्रभावित कर सके ऐसी शिक्षा नहीं दी जा रही है। शालेय एवं महाविद्यालयीन शिक्षकों को भी बदलते समय के अनुसार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। उद्यमशीलता एवं नवनिर्मिति के लिए अनुकूल वातावरण महाविद्यालय स्तर से ही निर्माण किया जाना आवश्यक है। आज ग्रेजुएशन के बाद MBA करते हैं। याने Master in Business Administration. इसका शिक्षण देने वाले महाविद्यालय जब अपने विज्ञापन में चइअ की डिग्री प्राप्त करने के बाद 100% नौकरी की गारंटी देते हैं तो मुझे हंसी आती है। यह बडा मजाक लगता है।
भूतकाल की पुनरावृत्ति का डर
अंग्रेजों के शासनकाल में उनकी नीति थी कि यहां से कच्चा माल इंग्लैण्ड ले जाना एवं वहां से पक्का माल बनाकर भारत में बेचना। इस प्रकार हमारे देश का धन वहां ले जाना। आज हमारे देश में उपलब्ध सबसे बडा कच्चा माल याने आज की युवा शक्ति है। विदेशी कंपनियां आज इसी कच्चे माल को नौकरी के लिए आकर्षित कर रही है। उनसे काम करवाकर इसी देश के निवासियों को कंपनी के उत्पादन एवं सेवाएं बेचने का उपक्रम कर रही है। हमारी युवा प़ीढी भी इसी में गद्गद है एवं पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित है। भारतीय युवा प़ीढी यदि इससे बाहर निकलने का संकल्प कर लें तो भविष्य में वैचारिक दासता से हम बाहर निकल जाएंगे अन्यथा इस वैचारिक दासता में जाने की संभावना बनी रहेगी। विदेशी सैनिक आक्रमण की अपेक्षा यह वैचारिक आक्रमण ज्यादा खतरनाक एवं हानिकारक है।
भविष्य की महाशक्ति–भारत
मेरे मतानुसार यदि भारत को महाशक्ति बनना है तो आनेवाले 20 से 30 वर्षों तक एक निश्चित नीति के अतंर्गत काम करना होगा। सरकारी नेतृत्व की इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होगी। यह निश्चित ही है। राजनीतिक इच्छाशक्ति बहुत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है। साथ ही साथ देश के उद्योगपतियों का योगदान एवं उज्ज्वल भविष्य के सपने भारत की प्रगति में योगदान करेंगे। शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन, बिलकुल मूलभूत बातों से होना अत्यावश्यक है। इसके कारण भावी पीढ़ी वैचारिक दृष्टि से सक्षम होगी। राष्ट्रभावना एवं राष्ट्रप्रेम बचपन से ही बच्चों के मन में कूटकूट कर भरना आवश्यक है। उद्योगिता एवं नवनिर्माण का प्रशिक्षण और मार्गदर्शन युवावस्था से ही देने वाले विश्वविद्यालयों की आवश्यकता है।
अच्छा है. ? ?