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दो शेरों के बीच खडा हूं…

दो शेरों के बीच खडा हूं…

by देवेन्द्र फडणवीस
in अनंत अटलजी विशेषांक - अक्टूबर २०१८, विशेष
3

“देश को परम वैभव के शिखर पर लें जाने का प्रवास अतिशय तीव्र गति से शुरू है। अटल जी ने इस परम वैभव की नींव रखी। अब भी बचपन की यादें हैं। हम दो भाइयों ने जिद कर अटल जी के साथ फोटो उतरवाई। तब उन्होंने कहा- मैं शेरों के बीच खड़ा हूं। मृदुता, कठोरता और व्यंग्य-विनोद अटल जी के स्वभाव के शेष गुण थे।”

सार्वजनिक जीवन में हमारे दल, याने भारतीय जनता पार्टी की शुरुआत प्रतिकूल वातावरण में हुई। मैं उस समय छोटा था। आपातकाल में मेरे पिताजी, जिन्हें हम बाबा कहते थे, जेल में थे। घर आई (माताजी) चलाती थी। रास्ता बहुत कठिन था परंतु ध्येयनिष्ठा अटल थी। ध्येय के पीछे पागल इस कारवां के नायक थे अटल बिहारी वाजपेयी। हमारे अटलजी। वे हमारे लिए भगवान थे।

मेरी उम्र, उनके प्रवाही वक्तृत्व की छत्रछाया में, बढ़ रही थी। बचपन में उनकी कविताएं मुझे याद थीं। मैं स्कूल में पढ़ता था उस समय नागपुर में पार्टी का अधिवेशन था। सभी बड़े-बड़े नेता नागपुर आने वाले थे। बाबा याने पिताजी अधिवेशन की व्यवस्था में व्यस्त थे। कार्यकर्ता भी व्यवस्था में लगे थे। तैयारी पूरी हो रही थी। इस समय का लाभ लेकर मैंने एवं मेरे भाई ने निश्चित किया कि “अटलजी के साथ फोटो अवश्य खिचवाएंगे”। इसके लिए हम पिताजी के पीछे पड़ गए मगर वे माननेवालों में से नहीं थे। पहचान का लाभ उठाकर अटल जी के साथ अपने दोनों बच्चों की फोटो खिंचवाने का हठ पूरा करना उनके स्वभाव के विपरीत था।

मेरे ध्यान में आ गया कि इस मार्ग से अपना काम नहीं होगा। फिर मैं प्रमोद महाजन जी के पीछे पड़ गया। उस काल में दल का कामकाज छोटे प्रमाण में था। साधन नहीं थे। इसके कारण प्रमोद जी बड़े नेता होते हुए भी हमारे घर ही ठहरते थे। उनसे पहचान थी ही।

हमने प्रमोदजी से कहा, “हमें अटलजी के साथ फोटो खिंचवानी है”। उन्होने हमारी पहचान अटल जी से कराई और उन्हें बताया कि बच्चों को आपके साथ फोटो खिंचवानी है। अटल जी ने तुरंत हम दोनों भाइयों को उनके अगल-बगल में खड़ा किया एवं फोटो खिंचवाया। हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसी समय हमारे पिताजी वहां आ गए। अटल जी ने उन्हें आवाज देकर बुलाया और कहा,“गंगाधरराव जी, मैं इन दो शेरों के बीच खड़ा हूं।”

बाद में मैं पार्टी का कार्य करने लगा। जिम्मेदारियां लेकर कार्य संपन्न करता गया। पार्षद हुआ, महापौर बना एवं विधायक भी बन गया। प्रसिध्द फोटोग्राफर विवेक रानड़े मेरे मित्र थे। उसने मजाक-मजाक मेरे फोटो खींचे और कैसे क्या हुआ मुझे पता नहीं पर उसके पोस्टर्स किसी ने छापे। बड़े-बड़े विज्ञापन नागपुर में दिखने लगे। मैं अवाक् रह गया एवं नागपुर से कुछ दिन गायब रहा। उन फोटोज् की बहुत चर्चा हो रही थी।

सब कुछ शांत हो गया है और लोग अब उस विज्ञापन को भूल गए हैं यह पक्का होने के बाद मैं अपने चुनाव क्षेत्र में घूमने लगा। अचानक एक दिन अप्पा काका का दिल्ली से फोन आया। अप्पा काका याने एन.एम.घटाटे। नई दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने वाले संविधान विशेषज्ञ। अटल जी के निकट के मित्र। वे नागपुर के होने के कारण ही हमारे परिवार के भी हितचिंतक थे। अप्पा काका ने मुझे फोन पर कहा कि, “तुम दिल्ली आओ, अटल जी ने बुलाया है।” निश्चित क्या है यह मुझे भी नहीं पता था। परंतु अटल जी ने बुलाया है तो जाना तो पड़ा ही। दिल्ली पहुंच कर अटल जी के घर गया। उन्होंने कहा, “आइये, आइये,.. मॉडल एम.एल.ए.जी! कैसे हैं आप? नागपुर में जो कुछ हुआ था वह मुझे याद आया और मैंने किसी तरह हंसने का प्रयास किया। अटल जी का अभिवादन किया। तनाव को दूर करते हुए अटल जी बोले; “आप एम.एल.ए. तो थे ही, लेकिन अब मॉडेल भी बन गए!” मजाक करते हुए अटल जी ने पुरानी यादें ताजा कीं। उस समय मेरे पिताजी की तबियत खराब थी। बीमारी गंभीर थी। उन्हें मिलने अटल जी दो बार आग्रहपूर्वक आए थे।

“पोहे बनाइये, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं”, पहले कभी एक बार मेरी मां से कह कर खास मराठी पदार्थों का आस्वाद अटल जी ने लिया था।बाद में अटल जी से मुलाकातें कम होने लगीं। सार्वजनिक जीवन से करीब-करीब उन्होने संन्यास ले लिया था। एक बार मैं दिल्ली गया था तो उनके घर जाकर आया। विनम्रता से अभिवादन किया। अटल जी द्वारा रोपित दल की बेल अब बहुत विस्तारित हो गई थी। प्रधानमंत्री मोदी ने उस पर कलश लगाया था। अब अधिकतर राज्यों में भाजपा का शासन है। अब अटल जी हमारे बीच नहीं रहे। ऐसे दु:खद प्रसंग पर याद आती है उनकी प्रगल्भता, निर्णय क्षमता एवं उस पर आश्चर्य होता है।

मृदु एवं कठोर दो पहलू

पाकिस्तान की ओर मित्रता का हाथ बढ़ाकर इस उपमहाद्वीप में शांति निर्माण के लिए प्रयत्न करने वाले कवि हदय राजनीतिक नेता थे अटल बिहारी वाजपेयी। परंतु उनके सकारात्मक प्रयत्नों को वैसा ही उत्तर देने के बजाय पड़ोसी देश खुराफात कर रहा है यह दिखते ही करगिल के युध्द में शत्रु को करारी मात देने वाले कठोर प्रशासक भी थे। “ हम मित्र चुन सकते हैं, पड़ोसी नहीं” इस बात पर भरोसा रखने वाले नेता, परंतु राष्ट्र अजेय रहेगा यह मानने वाले प्रधानमंत्री भी थे। परमाणु परीक्षण के लिए भारत तैयार था परंतु राजनीतिक निर्णय नहीं हो रहा था। प्रधानमंत्री का पद संभालने वाले नेता आगा-पीछा कर रहे थे। डॉ. अब्दुल कलाम जैसे ऋषितुल्य वैज्ञानिक ने अटल जी से मिलकर जब “पोखरण” का प्रस्ताव उनके सामने रखा, तब क्षणभर का विलंब न करते हुए अटल जी ने स्वीकृती दी थी। विदेशी महाशक्तियां प्रतिबंध लगाएगी, इसकी बिलकुल चिंता न करते हुए अटल जी ने परीक्षणों को स्वीकृती दी। सौ करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश पर कोई भी देश अधिक समय तक प्रतिबंध जारी नहीं रख सकता इसकी निश्चिति उन्हें थी। परीक्षणों के बाबत वे बहुत स्पष्ट थे, महाशक्ति होने के मार्ग पर उन्हें देश को आगे ले जाना था। दो से ढ़ाई साल के भीतर सभी देशों ने प्रतिबंध हटा लिए। अटल जी को सामाजिक स्थिति की समझ थी। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने दरिद्रता निवारण के  काम को सर्वाधिक महत्व दिया। ग्राम सड़क योजना का महत्वाकांक्षी प्रकल्प पर जब उन्होंने काम करना शुरू किया तब उन्होंने कहा था, “रास्ते बनाने पर होने वाला खर्च गांव-गांव में समृध्दि लाएगा, उत्पादन बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था को बरकत मिलेगी, इन सड़कों का उपयोग कर गांवों में इमारतें खड़ी की जाएंगी, शिक्षा का प्रसार होगा, वहां शिक्षक जाएंगे, अस्पताल खुलेंगे, डॉक्टर पहुचेंगे।

सुवर्ण चर्तुभूज योजना भारत के चारों सिरों को जोड़ने की अभिनव योजना थी। अटल जी को चुनाव में हार स्वीकार करनी पड़ी। उनके साथ खड़े दलों को भी विशेष फायदा नहीं हुआ। यू.पी.ए. की सरकार सत्ता में आई। उस सरकार ने जब आर्थिक रिपोर्ट प्रकाशित की तो यह माना कि अटल जी के शासन काल में छह करोड़ रोजगारों का निर्माण हुआ। विशाल हदय का यह नेता हमारे साथ रहे हम सब की यह इच्छा थी। आज देश को परम वैभव के शिखर पर लें जाने का प्रवास अतिशय तीव्र गति से शुरू है। इस परम वैभव की नींव जिन्होंने रखी वे आज हमारे बीच होने चाहिए थे। पर आज वे हमारे साथ नहीं है इस सत्य को स्वीकार करते हुए मन कठोर करना पड़ रहा है।

अटल, अढ़ल, अचल ऐसा यह नेतृत्व भारत की सब दिशाओं में वास करता रहेगा ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

अटलजी की स्मृतियों को भावपूर्ण श्रध्दांजलि।

 

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देवेन्द्र फडणवीस

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Comments 3

  1. Ravindra Marathe says:
    7 years ago

    Atalji Ke Vishal vyaktitva ke kuch pehluon ko ujagar karne wala Devendraji ka yeh lekh atyant rochak laga. Devendraji ki lekhani ki saralta aur sahajata sarahneeya hai. Hindi Vivek ki eis prastuti ke liye patrika ko abhinandan.

    Ravindra Marathe

    Reply
  2. विशाल अग्रवाल says:
    7 years ago

    सुन्दर प्रसंग…

    Reply
  3. अविनाश फाटक. बीकानेर. says:
    7 years ago

    अत्यन्त भावपूर्ण.

    Reply

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